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If you want to improve your Hindi language, then you must listen Hindi stories. Our podcasts have funny stories which include general Hindi story, moral stories and children's stories. Sometimes we also conduct Hindi interviews on our shows. You can learn a lot by listening to them. You can listen to our podcast on different platforms to improve your Hindi language यहाँ पर आपको हिन्दी कहानियाँ मिलेंगी। Support this podcast with a small monthly donation to help sustain future episodes. paypal.me/discoveryofrajasthan For business inquiries rajasikar11@gmail.com
- 85 - Treasures of Rajasthan: Traditional Folk Songs
Greetings to all our listeners,
Welcome to this special episode of our podcast 'Hindi Stories.' The land of Rajasthan has long been renowned for its rich cultural heritage, and one of the most precious elements of this heritage is its folk songs. These songs not only preserve our traditions and beliefs but also connect us with the stories, emotions, and lifestyles of our ancestors.
In Rajasthan, there is a long tradition of folk songs. These songs are sung during festivals, weddings, and other special occasions. While the tunes and lyrics of these folk songs vary across different regions of Rajasthan, their essence remains the same - fostering social harmony and providing entertainment.
In today’s fast-paced world, where we are engrossed in technology and the glamour of cinema, these priceless folk songs have faded into the background. The rapidly changing world and the crudeness of cinematic content have further diminished the space for these folk songs. However, our aim is to revive this heritage and bring it to you.
In this endeavor, we present to you a treasure trove of traditional Rajasthani folk songs, brought to life by the melodious voice of our evergreen guest, Mr. Ratan Singh Hooda. His soulful rendition of these songs will make you feel the fragrance of Rajasthan's soil, its customs, and the simplicity of its life.
So join us in this podcast episode and enjoy these traditional folk songs. We are confident that these songs will touch your heart and bring you closer to your cultural heritage.
If you like our effort, please subscribe to our channel, like the video, and share your thoughts in the comments.
Thank you!
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We hope you enjoy this episode and appreciate our effort. Stay with us on this journey of reviving our culture and traditions.
Thank you!
Stay tuned to 'हिंदी कहानियाँ'
Thu, 06 Jun 2024 - 08min - 84 - A Heartfelt Rendition of 'Ae Mere Watan Ke Logon' by Shri Ratan Singh Ji Hudda
Dear listeners,
Welcome to our special episode on our YouTube podcast. Today, we bring you a unique experience that will fill your hearts with pride and patriotism. We are honored to have the esteemed and talented Shri Ratan Singh Ji Hooda as our special guest.
Shri Ratan Singh Ji Hooda has lent his melodious voice and distinctive style to the patriotic song 'Ae Mere Watan Ke Logon.' This song is dedicated to the brave soldiers of our country who sacrificed their lives for the defense of our nation. It not only reminds us of our valiant martyrs but also tells the story of their courage, sacrifice, and indomitable spirit.
Listening to this song in the voice of Shri Ratan Singh Ji Hooda is a unique experience. The emotional depth and sincere reverence in his voice reach straight to our hearts. So, let's be a part of this inspiring and heartfelt moment and listen to 'Ae Mere Watan Ke Logon' sung by Shri Ratan Singh Ji Hooda.
We hope this rendition touches your heart and fills you with even more love and respect for our country. So, let's listen and proudly sing along to 'Ae Mere Watan Ke Logon.'
Jai Hind!
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Sat, 01 Jun 2024 - 06min - 83 - राजस्थानी गीत 'घूघरी'
नमस्कार श्रोताओं,
'हिंदी कहानियां' पॉडकास्ट में आपका हार्दिक स्वागत है। हमारे स्टूडियो की घड़ी में इस समय रात के आठ बजकर पंद्रह मिनट हो रहे हैं। पूरा प्रदेश इस समय भीषण गर्मी की चपेट में है। अपने आप को गर्मी और लू से बचाकर रखें। कल के एपिसोड में इसी समय हम स्वास्थ्य विशेषज्ञों से 'लू से बचाव और उपाय' विषय पर उनके विचार सुनवाएँगे। इस भीषण गर्मी में ह्रदय को शीतलता प्रदान करने के लिए आज के इस एपिसोड में, हम आपके लिए फिर से एक अनूठी प्रस्तुति लेकर आए हैं। एक बार फिर आपको हमारे खास मेहमान, भूतपूर्व सैनिक श्री रतन सिंह जी हुड्डा की सुरीली आवाज में राजस्थानी गीत 'घूघरी' सुनाने जा रहे हैं।
श्रोताओं, हमारे राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध है कि लोक गीतों में यहाँ के किस्से और कहानियों की एक लंबी फेहरिस्त है। इनमें ननद-भोजाई, सास-बहू, देवरानी-जेठानी, देवर-भाभी, जीजा-साली आदि पात्रों द्वारा विरह, तकरार और प्रणय के किस्से कहानियाँ खूब लिखे गए हैं और आज भी बड़े चाव से गाए और सुने जाते हैं। उसी में से हम आपके लिए समय-समय पर कुछ अनूठा लेकर आते रहे हैं। इसी कड़ी में आज के इस एपिसोड में 'घूघरी' गीत प्रस्तुत है।
तो आप सुन रहे थे राजस्थानी लोकगीत 'घूघरी'। इसे अपनी हृदयस्पर्शी आवाज़ में गाया था श्री रतन सिंह जी हुड्डा ने। उनकी गायिकी में राजस्थान की समृद्ध विरासत की झलक और मिट्टी की खुशबू बखूबी अनुभव की जा सकती है।
अपने कीमती कमेंट्स के माध्यम से हमें बताएं कि आपको इनका प्रयास कैसा लगा। आपकी प्रतिक्रियाएं और सुझाव हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और हमें बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
धन्यवाद!
सुनते रहिए 'हिंदी कहानियां'।
Thu, 30 May 2024 - 11min - 82 - राजस्थानी गीत 'म्हाने सुरगा सूं बुलाओ आगो है'
नमस्कार श्रोताओं,
'हिंदी कहानियां' पॉडकास्ट में आपका हार्दिक स्वागत है। आज के इस विशेष एपिसोड में, हम आपके लिए एक अनूठी प्रस्तुति लेकर आए हैं। आज हम आपको एक भूतपूर्व सैनिक की सुरीली आवाज में एक खूबसूरत राजस्थानी गीत सुनाने जा रहे हैं।
इस गीत के बोल हैं 'म्हाने सुरगा सूं बुलाओ आगो है' और इसे अपनी मर्मस्पर्शी आवाज़ में गाया है श्री रतन सिंह हुड्डा ने। उनकी गायिकी में राजस्थान की मिट्टी की खुशबू और उनके अनुभवों की गहराई है।
हम उम्मीद करते हैं कि यह गीत आपके दिल को छू जाएगा। गाना सुनने के बाद कृपया अपने कीमती कमेंट्स के माध्यम से हमें बताएं कि आपको इनका प्रयास कैसा लगा। आपकी प्रतिक्रियाएं और सुझाव हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और हमें बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
धन्यवाद!
सुनते रहिए 'हिंदी कहानियां'।
Fri, 24 May 2024 - 04min - 81 - एक विशेष प्रस्तुति के साथ हाज़िर हैं।
नमस्कार श्रोताओं, स्वागत है आपका 'हिंदी कहानियां' पॉडकास्ट चैनल में। काफी लंबे समय के बाद आज हम आपको एक विशेष प्रस्तुति के साथ हाज़िर हैं। इस एपिसोड में हम आपके लिए लेकर आए हैं एक 75 वर्षीय बुजुर्ग की आवाज में पुरानी हिंदी फिल्म का एक अमर गीत। फिल्म का नाम है 'भाभी' और इस में गाने को अपनी सुरीली आवाज़ दी थी महान गायक मोहम्मद रफ़ी साहब ने। इस खास मौके पर हमारे अतिथि हैं श्री रतन सिंह हुड्डा, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में इस गीत को पुनः जीवंत किया है। हम आशा करते हैं कि आपको यह प्रस्तुति पसंद आएगी। गाना सुनने के बाद कृपया अपने कीमती कमेंट्स के माध्यम से हमें बताएं कि आपको इन बुजुर्ग का यह प्रयास कैसा लगा। आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएँ हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। धन्यवाद! सुनते रहिए 'हिंदी कहानियां'।
Fri, 24 May 2024 - 05min - 80 - 12th के बाद क्या करें ? आज की पॉडकास्ट में सुने हमारे मेहमान शिवम चौधरी से। In today's podcast what to do after 12th, listen to our guest Shivam Chowdhary.
नमस्कार श्रोताओं आज की पॉडकास्ट हम उन बच्चों के लिए लेकर आए हैं जो 11th पास करके 12th में आ चुके हैं, और साइंस स्ट्रीम से है। तो उनके लिए आगे कैरियर के क्या क्या ऑप्शन है ? किस तरह से उनको तैयारी करनी चाहिए ताकि वह अपने लक्ष्य में सफल हो सके। तो आइए सुनते हैं आज की पॉडकास्ट में इन सारी बातों को। आप श्रोताओं से पॉडकास्ट का फीडबैक भी जानना चाहेंगे तो आप अपना फीडबैक हमें जरूर भेजें धन्यवाद।
Hello listeners, we have brought today's podcast for those children who have passed 11th and have come to 12th, and are from science stream. So what are the career options ahead for them? How should he prepare so that he can succeed in his goal? So let's listen to all these things in today's podcast. If you would also like to know the feedback of the podcast from the listeners, then you must send your feedback to us. Thank you
Tue, 23 May 2023 - 38min - 79 - 10वीं और 12वीं के बाद बच्चे क्या करें ? | What should children do after 10th and 12th?
नमस्कार श्रोताओं ! काफी दिनों के बाद हम एक नई पॉडकास्ट आप श्रोताओं के लिए लेकर आए हैं। आज की पॉडकास्ट में हम आपके सामने हमारी यंग जनरेशन जो अभी 10th और 12th की एग्जाम पास करके आगे की क्लासों में आ गई है .उनके फ्यूचर के बारे में है और उम्मीद है आपको इस पॉडकास्ट से बहुत ही सहायता मिलेगी, अपने फ्यूचर को सवारने में और उन माता-पिता ओं को भी सहायता मिलेगी जो अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहते हैं। तो आइए सुनते हैं, आज की पॉडकास्ट
Hello listeners! After a long time we have brought a new podcast for you listeners. In today's podcast, we have our young generation in front of you, who have just passed 10th and 12th exams and have come to further classes. It is about their future and I hope you will get a lot of help from this podcast, in riding your future. And those parents who are worried about their children will also get help. So let's listen, today's podcast
Mon, 22 May 2023 - 21min - 78 - जनप्रतिनिधि और सरकारी मुलाजिम के बीच बहस || Debate between public representative and government employeeMon, 08 May 2023 - 03min
- 77 - जयपुर दर्शन || जयपुर के 10 प्रमुख दर्शनीय स्थल || 10 Major Attractions of Jaipur
नमस्कार श्रोताओ ! आज की पॉडकास्ट में आपको जयपुर के 10 प्रमुख पर्यटक स्थलों की जानकारी दे रहे हैं। अगर आपको हमारी पॉडकास्ट पसंद आती है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर आपका पॉडकास्ट से संबंधित कोई भी सवाल है या जयपुर के पर्यटक स्थलों के बारे में कुछ और जानकारी जानना चाहते हैं तो भी आप कमेंट करके हमें पूछ सकते हैं हम आपके हर कमेंट का जवाब देंगे।
Hello listeners! In today's podcast, we are giving you information about 10 major tourist places of Jaipur. If you like our podcast, then do tell us by commenting and if you have any question related to the podcast or want to know some more information about the tourist places of Jaipur, then also you can ask us by commenting, we will answer your every comment. Will answer.
Tue, 14 Feb 2023 - 10min - 76 - होली धमाल राजस्थान || शेखावाटी होली धमालSun, 05 Feb 2023 - 12min
- 75 - निंदा का मनोविज्ञान || Psychology of Condemnation
हम अखबार पढ़ते हैं ताकि कोई निंदा रस मिल जाए जरा किसी की निंदा हो रही हो तो हम चौकन्ने होकर सुनने लगते हैं कैसे ध्यान मग्न हो जाते हैं अगर कोई आकर बताएं कि पड़ोसी की स्त्री किसी के साथ भाग गई है बस दुनियादारी भूल जाते हैं उस बात पर इतना ध्यान लगाते हैं कि उससे और पूछते हैं खुद खुद के पूछने लगते हैं कि कुछ और तो कहो कुछ आगे तो बताओ विस्तार से बताओ जरा ऐसे संक्षिप्त न बताओ कहां भागे जा रहे हो पूरी बात बता कर जाओ बैठो चाय पी लो हम उसके लिए पलक पावडे बिछा देते हैं अपने बच्चों को कहते हैं कुर्सी लाना जहां भी हमें लगता है कि निंदा हो रही है वहां पर हमें रस आता है हमें रस इसलिए आता है क्योंकि दूसरा आदमी छोटा किया जा रहा है और उसके छोटे होने में हमें भीतरी संतुष्टि मिलती है कि मैं बड़ा हो रहा हूं इसलिए अगर कोई भिखारी रास्ते पर केले के छिलके पर पैर फिसल कर गिर जाए तो हमें इतना रस नहीं आता जितना रस कोई संभ्रांत व्यक्ति केले के छिलके पर फिसल कर गिर पड़े तो आये। दिल खुश हो जाता है
Wed, 01 Feb 2023 - 12min - 74 - Ismat Chughtai's story 'then die' | इस्मत चुग़ताई की कहानी 'तो मर जाओ'
“मैं उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकती!” उन्होंने फैसला किया।
“तो मर जाओ!” जी चाहा कह दूँ। पर नहीं कह सकती। बहुत से रिश्ते हैं, जिनका लिहाज करना ही पड़ता है। एक तो दुर्भाग्य से हम दोनों औरत जात हैं। न जाने क्यों लोगों ने मुझे नारी जाति की समर्थक और सहायक समझ लिया है। शायद इसलिए कि मैं अपने भतीजों को भतीजियों से ज्यादा ठोका करती हूँ।
खुदा कसम, मैं किसी विशेष जाति की तरफदार नहीं। मेरी भतीजियाँ अपेक्षाकृत सीधी और भतीजे बड़े ही बदमाश हैं। ऐसी हालत में हर समझदार उन्हें सुधारने के लिए डाँटते-फटकारते रहना इन्सानी फर्ज समझता है।
पर उन्हें यह कैसे समझाऊँ। वे मुझे अपनी शुभचिन्तक मान चुकी हैं। और वह लड़की, जो किसी के बिना जिन्दा न रह सकने की स्थिति को पहुँच चुकी हो, कुछ हठीली होती है, इसलिए मैं कुछ भी करूँ, उसके प्रति अपनी सहानुभूति से इनकार नहीं कर सकती। अनचाहे या अनमने रूप से सही, मुझे उनके हितैषियों और शुभचिन्तकों की पंक्ति में खड़ा होना पड़ता है।
दुर्भाग्य से मेरा स्वास्थ्य हमेशा ही अच्छा रहा और बीमार होकर मुर्गी के शोरबे और अंगूर खाने के मौके बहुत ही कम मिल पाये। यही कारण था कि शायद कभी प्राण-घातक किस्म का इश्क न हो सका। हमारे अब्बा जरूरत से ज्यादा सावधानी बरतने वालों में से थे। हर बीमारी की समय से पहले ही रोक-थाम कर दिया करते थे। बरसात आयी और पानी उबाल कर मिलने लगा। आस-पास के सारे कुँओं में दवाइयाँ पड़ गयीं। खोंचे वालों के चालान करवाने शुरू कर दिये। हर चीज ढँकी रहे। बेचारी मक्खियाँ गुस्से से भनभनाया करतीं, क्या मजाल जो एक जर्रा मिल जाये। मलेरिया फैलने से पहले कुनेन हलक से उतार दी जाती और फोड़े-फुंसियों से बचने के लिए चिरायता पिलाया जाता।
Mon, 30 Jan 2023 - 15min - 73 - मलबे का मालिक (कहानी) : मोहन राकेश || Malbe Ka Malik (Hindi Story) : Mohan Rakesh
बहुत दिनों के बाद बाज़ारों में तुर्रेदार पगड़ियाँ और लाल तुर्की टोपियाँ दिखाई दे रही थीं। लाहौर से आए हुए मुसलमानों में काफ़ी संख्या ऐसे लोगों की थी, जिन्हें विभाजन के समय मजबूर होकर अमृतसर छोड़कर जाना पड़ा था। साढ़े सात साल में आए अनिवार्य परिवर्तनों को देखकर कहीं उनकी आँखों में हैरानी भर जाती और कहीं अफ़सोस घिर आता-- वल्लाह, कटड़ा जयमलसिंह इतना चौड़ा कैसे हो गया? क्या इस तरफ़ के सबके सब मकान जल गए? यहाँ हकीम आसिफ़ अली की दुकान थी न ? अब यहाँ एक मोची ने कब्जा कर रखा है।
और कहीं-कहीं ऐसे भी वाक्य सुनाई दे जाते -- वली, यह मस्जिद ज्यों की त्यों खड़ी है ? इन लोगों ने इसका गुरूद्वारा नहीं बना दिया ?
जिस रास्ते से भी पाकिस्तानियों की टोली गुजरती, शहर के लोग उत्सुकतापूर्वक उसकी ओर देखते रहते। कुछ लोग अब भी मुसलमानों को आते देखकर शंकित-से रास्ते हट जाते थे, जबकि दूसरे आगे बढ़कर उनसे बगलगीर होने लगते थे। ज्यादातर वे आगन्तुकों से ऐसे-ऐसे सवाल पूछते थे कि आजकल लाहौर का क्या हाल है? अनारकली में अब पहले जितनी रौनक होती है या नहीं? सुना है, शाहालमी गेट का बाज़ार पूरा नया बना है? कृष्ण नगर में तो कोई खास तब्दीली नहीं आई? वहाँ का रिश्वतपुरा क्या वाकई रिश्वत के पैसे से बना है? कहते हैं पाकिस्तान में अब बुर्का बिल्कुल उड़ गया है, यह ठीक है? इन सवालों में इतनी आत्मीयता झलकती थी कि लगता था कि लाहौर एक शहर नहीं, हज़ारों लोगों का सगा-सम्बन्धी है, जिसके हालात जानने के लिए वे उत्सुक हैं। लाहौर से आए हुए लोग उस दिन शहर-भर के मेहमान थे, जिनसे मिलकर और बातें करके लोगों को खामखाह ख़ुशी का अनुभव होता था।Sat, 21 Jan 2023 - 25min - 72 - बड़ा बाग़, Jaisalmer: The story behind the canopies
बड़ा बाग़
भारत में राजस्थान राज्य में रामगढ़ के रास्ते पर जैसलमेर से लगभग ६ किलोमीटर उत्तर में एक उद्यान परिसर है। यह जैसलमेर के महाराजाओं के शाही समाधि स्थल या छत्रियों का एक सेट जैसा है, जिसकी शुरुआत जय सिंह द्वितीय के साथ १७४३ ईस्वी में की थी।
इतिहास
राज्य के संस्थापक और जैसलमेर राज्य के महाराजा, जैत सिंह द्वितीय (१४९७-१५३०), महारावल जैसल सिंह के वंशज, १६वीं शताब्दी में उनके शासनकाल के दौरान एक पानी की टंकी बनाने के लिए एक बांध बनाया था। इससे इस क्षेत्र में रेगिस्तान हरा हो गया।
उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे लूणकरण ने झील के बगल में एक सुंदर बगीचा और झील के बगल में एक पहाड़ी पर अपने पिता के लिए छतरी का निर्माण करवाया। बाद में, लूणकरण और अन्य भाटियों के लिए यहां कई और स्मारकों का निर्माण किया गया। अंतिम छतरी, महाराजा जवाहर सिंह'महाराज रघुनाथ सिंह और पृथ्वीराज सिंह की है, जो २०वीं सदी की तारीखों और भारतीय स्वतंत्रता के बाद पूरी नहीं हो पायी।
विवरण
बड़ा बाग़ एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। बड़ा बाग में प्रवेश पहाड़ी के नीचे से होता है। पहली पंक्ति में कुछ स्मारक हैं और भी कई स्मारक हैं, जो पहाड़ियों पर चढ़ने में सुलभ हैं। स्मारक विभिन्न आकारों के हैं और बलुआ पत्थर के नक्काशीदार हैं। शासकों, रानियों, राजकुमारों और अन्य शाही परिवार के सदस्यों के स्मारक बनाये गए हैं।ये छतरी बनाने का अधिकार शाही परिवार के देहवासी राजा के पोते का होता है।।जवाहर सिंह और गिरधर सिंह महाराज की छतरियां अभी पूर्ण नही हो पाई।। प्रत्येक शासक के स्मारक में एक संगमरमर का स्लैब है, जिसमें शासक के बारे में शिलालेख और घोड़े पर एक व्यक्ति की छवि है।स्थानीय भाषा मे इस घुड़सवार शिलालेख को जुंझार बोलते है जो देवतुल्य होता है।।
वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
https://youtu.be/tpQmFrs1_Kg
Fri, 13 Jan 2023 - 08min - 71 - पटवों की हवेली का इतिहास || History Of Patwon Ki Haveli
Patwon Ki Haveli In Hindi : पटवों की हवेली राजस्थान के जैसलमेर में स्थित एक प्राचीन आवास संरचना है जिसको अक्सर ‘हवेली’ कहा जाता है। यह हवेली राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन और ऐतिहासिक स्थल है। पीले करामाती शेड में रंगीन, पटवों की हवेली इस शहर की यात्रा करने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ बेहद अकर्षित करती है। यह मनमोहक हवेली जैसलमेर का एक प्रभावशाली स्मारक है क्योंकि यह शहर के प्राचीन निर्माणों में से एक है। पटवों की हवेली पांच हवेलियों का समूह है जिसका निर्माण एक अमीर व्यापारी ‘पटवा’ द्वारा किया गया है, जिसकें अपने पांच बेटों में से प्रत्येक के लिए एक का निर्माण किया था।
इस हवेली के पाँचों सदन 19 वीं शताब्दी में 60 वर्षों के अंदर पूरे हुए थे। अगर आप राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों या जैसलमेर शहर की सैर करने जा रहे हैं तो इस आर्टिकल को जरुर पढ़ें, यहां हम आपको पटवों की हवेली के इतिहास, रोचक तथ्य, एंट्री फीस, टाइमिंग और कैसे पहुंचे के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।
1. पटवों की हवेली का इतिहास और रोचक तथ्य- Patwon Ki Haveli History And Interesting Facts In Hindi
पटवों की हवेली पाँच हवेलियों से मिलकर बनी है जो इसके परिसर के भीतर है और यह जैसलमेर शहर में अपनी तरह की सबसे बड़ी हवेली है। पहली हवेली, जिसे कोठारी की पटवा हवेली के नाम से जाना जाता है, यह इन हवेलियों में से एक है। वर्ष 1805 में पहली हवेली का निर्माण गुमान चंद पटवा द्वारा किया गया था, जो एक प्रसिद्ध आभूषण और ब्रोकेस व्यापारी थे। यहां पर ब्रोकेड व्यापारिक प्रतिष्ठा के कारण पटवों की हवेली को अपने उत्कट व्यापारिक विशेषताओं की वजह से ‘हवेली ऑफ़ ब्रोकेड मर्चेंट्स’ भी कहा जाता था। स्थानीय लोग पटवों की हवेली के चांदी और सुनहरे धागे व्यापारियों के बार में बताते हैं, जिन्होंने उस जमाने में अफीम तस्करी करके बहुत पैसा कमाया था। इन हवेलियों के भीतर मेहराब और प्रवेश द्वार की अपनी अलग खासियत है जो उन्हें एक-दूसरे से अलग करती हैं, प्रत्येक में एक अलग शैली का मिरर वर्क और चित्रों का चित्रण है। हवेलियों के खंडों में से एक में मूरल वर्क बहुत ही अद्भुद तरीके से डिज़ाइन किया गया है, और इसके झरोखे, मेहराब, बालकनियों, प्रवेश द्वार और दीवारों पर भी जटिल नक्काशी और पेंटिंग हैं। पटवों के पांच भाइयों और उनके परिवारों के लिए एक अलग हवेली थी, जिनमे से सभी को एक अलग सुविधा मिलती थी। हवाली के परिसर में संग्रहालय है, जिसमें बीते युग की कलाकृतियों, चित्रों, कला और शिल्प का शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है, जो समृद्ध जीवन शैली को प्रदर्शित करने के लिए हवेलियों के निवासियों का चित्रण करते हैं। यहां की सभी हवेलियों को 50 वर्षों के अंतराल में डिजाइन किया गया था जिसमें से पहली हवेली सबसे भव्य है जिसको बनाने में सबसे ज्यादा समय लगा था। पटवों की हवेली राजस्थान में निर्मित दूसरी सबसे लोकप्रिय हवेली और जैसलमेर शहर की सबसे लोकप्रिय हवेली है। पटवों की हवेली के खंभे और छत पर उस समय के विशेषज्ञों द्वारा की गई आकर्षक और जटिल नक्काशी है। इसके दरवाजे बारीक डिजाइनों से भरे हुए हैं जो वास्तुकला के शौकीनों को बेहद पसंद आते हैं।2. पटवों की हवेली वास्तुकला- Patwon Ki Haveli Architecture In Hindi
पटवों की हवेली की वास्तुकला की गहनता इस संरचना की उत्कृष्ट दीवार चित्रों, बालकनियों में है जो एक मनोरम दृश्य द्वार, मेहराब के लिए खुली हुई है। सबसे खास बात यह है कि इसकी दीवार पर दर्पण से वर्क किया गया है। अपने पिछले मालिकों के बाद इस हवेली को ‘ब्रोकेड मर्चेंट की हवेली’ के रूप में भी जाना जाता है, जो सोने के धागे के व्यापारी थे और एक अफीम व्यापारी थी, जो तस्करी के जरिये पैसा कमाते थे। इस हवेली के एक खंड को मुरल वर्क से डिजाइन किया गया है और प्रत्येक भाग दूसरे भाग से एक विशिष्ट शैली का चित्रण करते हुए अलग होता है। इसके अलावा यह हवेली बीते युग की समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व भी करती है। यहां की पेंटिंग और कलाकृतियाँ इसके निवासियों की जीवन शैली का प्रदर्शन करती है। 60 से अधिक बालकनियों के साथ खंभे और छत को इस स्वर्ण वास्तुकला के जटिल डिजाइन और लघु कार्यों से उकेरा गया है।
वीडियो के लिए क्लिक करें
https://youtu.be/0muqWUgy_pU
Thu, 12 Jan 2023 - 04min - 70 - इतिहास : जैसलमेर दुर्ग || History : Jaisalmer Fort (Living Fort)
जैसलमेर दुर्ग स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि की विशुद्ध स्थानीय दुर्ग रचना है। ये दुर्ग २५० फीट तिकोनाकार पहाडी पर स्थित है। इस पहाडी की लंबाई १५० फीट व चौडाई ७५० फीट है।
रावल जैसल ने अपनी स्वतंत्र राजधानी स्थापित की थी। स्थानीय स्रोतों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण ११५६ ई. में प्रारंभ हुआ था। परंतु समकालीन साक्ष्यों के अध्ययन से पता चलता है कि इसका निर्माण कार्य ११७८ ई. के लगभग प्रारंभ हुआ था। ५ वर्ष के अल्प निर्माण कार्य के उपरांत रावल जैसल की मृत्यु हो गयी, इसके द्वारा प्रारंभ कराए गए निमार्ण कार्य को उसके उत्तराधिकारी शालीवाहन द्वारा जारी रखकर दुर्ग को मूर्त रूप दिया गया। रावल जैसल व शालीवाहन द्वारा कराए गए कार्यो का कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिलता है। मात्र ख्यातों व तवारीखों से वर्णन मिलता है।
जैसलमेर दुर्ग मुस्लिम शैली विशेषतः मुगल स्थापत्य से पृथक है। यहाँ मुगलकालीन किलों की तंक-भंक, बाग-बगीचे, नहरें-फव्वारें आदि का पूर्ण अभाव है, चित्तौड़ के दुर्ग की भांति यहां महल, मंदिर, प्रशासकों व जन-साधारण हेतु मकान बने हुए हैं, जो आज भी जन-साधारण के निवास स्थल है। कहा जाता है कि विश्व में इस दुर्ग के अतिरिक्त अन्य किसी भी दुर्ग पर जीवन यापन हेतु लोग नहीं रहते हैं !
जैसलमेर दुर्ग पीले पत्थरों के विशाल खण्डों से निर्मित है। पूरे दुर्ग में कहीं भी चूना या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। मात्र पत्थर पर पत्थर जमाकर फंसाकर या खांचा देकर रखा हुआ है। दुर्ग की पहांी की तलहटी में चारों ओर १५ से २० फीट ऊँचा घाघरानुमा परकोट खिचा हुआ है, इसके बाद २०० फीट की ऊँचाई पर एक परकोट है, जो १० से १५६ फीट ऊँचा है। इस परकोट में गोल बुर्ज व तोप व बंदूक चलाने हेतु कंगूरों के मध्य बेलनाकार विशाल पत्थर रखा है। गोल व बेलनाकार पत्थरों का प्रयोग निचली दीवार से चढ़कर ऊपर आने वाले शत्रुओं के ऊपर लुढ़का कर उन्हें हताहत करने में बडें ही कारीगर होते थे, युद्ध उपरांत उन्हें पुनः अपने स्थान पर लाकर रख दिया जाता था। इस कोट के ५ से १० फीट ऊँची पूर्व दीवार के अनुरुप ही अन्य दीवार है। इस दीवार में ९९ बुर्ज बने है। इन बुर्जो को काफी बाद में महारावल भीम और मोहनदास ने बनवाया था। बुर्ज के खुले ऊपरी भाग में तोप तथा बंदुक चलाने हेतु विशाल कंगूरे बने हैं। बुर्ज के नीचे कमरे बने हैं, जो युद्ध के समय में सैनिकों का अस्थाई आवास तथा अस्र-शस्रों के भंडारण के काम आते थे।
इन कमरों के बाहर की ओर झूलते हुए छज्जे बने हैं, इनका उपयोग युद्ध-काल में शत्रु की गतिविधियों को छिपकर देखने तथा निगरानी रखने के काम आते थे। इन ९९ बुर्जो का निर्माण कार्य रावल जैसल के समय में आरंभ किया गया था, इसके उत्तराधिकारियों द्वारा सतत् रुपेण जारी रखते हुए शालीवाहन (११९० से १२०० ई.) जैत सिंह (१५०० से १५२७ ई.) भीम (१५७७ से १६१३ ई.) मनोहर दास (१६२७ से १६५० ई.) के समय पूरा किया गया। इस प्रकार हमें दुर्ग के निर्माण में कई शताब्दियों के निर्माण कार्य की शैली दृष्टिगोचर होती है।
वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें
https://youtu.be/doZB1atGWWc
https://youtu.be/VCbEd6gsX1g
Wed, 11 Jan 2023 - 08min - 69 - चप्पल (हिंदी कहानी) : कमलेश्वर || Chappal (Hindi Story) : Kamleshwar
कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार एक लड़ाई मृत्यु से चल रही है...अौर उसके दु:ख और कष्ट को सहते हुए लोग -- सब एक से हैं। दर्द और यातना तो दर्द और यातना ही है -- इसमें इंसान और इंसान के बीच भेद नहीं किया जा सकता। दुनिया में हर माँ के दूध का रंग एक है। ख़ून और आंसुओं का रंग भी एक है। दूध, खून और आँसुओं का रंग नहीं बदला जा सकता...शायद उसी तरह दु:ख़, कष्ट और यातना के रंगों का भी बँटवारा नहीं किया जा सकता। इस विराट मानवीय दर्शन से मुझे राहत मिली थी.... मेरे भीतर से सदियाँ बोलने लगी थीं। एक पुरानी सभ्यता का वारिस होने के नाते यह मानसिक सुविधा ज़रूर है कि तुम हर बात, घटना या दुर्घटना का कोई दार्शनिक उत्तर खोज सकते हो। समाधान चाहे न मिले, पर एक अमूर्त दार्शनिक उत्तर ज़रूर मिल जाता है।
और फिर पुरानी सभ्यताओं की यह खूबी भी है कि उनकी परम्परा से चली आती संतानों को एक आत्मा नाम की अमूर्त शक्ति भी मिल गई है -- और सदियों पुरानी सभ्यता मनुष्य के क्षुद्र विकारों का शमन करती रहती है...एक दार्शनिक दृष्टि से जीवन की क्षण-भंगुरता का एहसास कराते हुए सारी विषमताओं को समतल करती रहती है...
मुझे अपने उस मित्र की बातें याद आईं जिसने मुझे संध्या के संगीन ऑपरेशन की बात बताई थी ओर उसे देख आने की सलाह दी थी। उसी ने मुझे आई०सी०यू० में संध्या के केबिन का पता बताया था -- आठवें फ्लोर पर ऑपरेशन थिएटर्स हैं और सातवें पर संध्या का आ०सी०यू०। मेजर ऑपेरशन में संध्या की बड़ी आँत काटकर निकाल दी गई थी और अगले अड़तालीस घण्टे क्रिटिकल थे...
रास्ता इमरजेंसी वार्ड से जाता था। एक बेहद दर्द भरी चीख़ इमरजेंसी वार्ड से आ रही थी... वह दर्द-भरी चीख़ तो दर्द-भरी चीख़ ही थी-- कोई घायल मरीज असह्य तकलीफ़ से चीख़ रहा था। उस चीख़ से आत्मा दहल रही थी... दर्द की चीख़ और दर्द की चीख़ में क्या अन्तर था! दूध, ख़ून और आँसुओं के रंगों की तरह चीख़ की तकलीफ़ भी तो एक-सी थी। उसमें विषमता कहाँ थी?...
मेरा वह मित्र जिसने मुझे संध्या को देख आने की फ़र्ज अदायगी के लिए भेजा था,वह भी इलाहाबाद का ही था। वह भी उसी सदियों पुरानी सभ्यता का वारिस था। ठेठ इलाहाबादी मौज में वह भी दार्शनिक की तरह बोला था-- अपना क्या है ? रिटायर हाने के बाद गंगा किनारे एक झोपड़ी डाल लेंगे। आठ-दस ताड़ के पेड़ लगा लेंगे... मछली मारने की एक बंसी...दो चार मछलियाँ तो दोपहर तक हाथ आएँगी ही... रात भर जो ताड़ी टपकेगी उसे फ्रिज में रख लेंगे...
--फ्रिज में ?
-- और क्या... माडर्न साधू की तरह रहेंगे ! मछलियां तलेंगे, खाएँगे और ताड़ी पीएँगे...और क्या चाहिए... पेंशन मिलती रहेगी। और माया-मोह क्यों पालें? पालेंगे तो प्राण अटके रहेंगे... ताड़ी और मछली... बस, आत्मा ताड़ी पीकर, मछली खाके आराम से महाप्रस्थान करे... न कोई दु:ख, न कोई कष्ट... लेकिन तुम जाके संध्या को देख ज़रूर आना...वो क्रिटिकल है...Wed, 28 Dec 2022 - 14min - 68 - मित्रो मरजानी || प्रसिद्ध उपन्यास || कृष्णा सोबती की प्रमुख रचना || भाग 3
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था. उपन्यास और कहानी विधा में उन्होंने जमकर लेखन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह जैसे उपन्यास शामिल हैं.
हिंदी साहित्य की महान साहित्यकारा और लेखिका के रूप में जानी जाने वाली कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात और पंजाब के उस हिस्से में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। साहित्य में इनके योगदान के लिए इ.न्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजा गया है, वहीं अपनी कुछ रचनाओं के लिए ये विवादों में रही। सोबती को प्रसिद्धि उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। यह एक ऐसा उपन्यास था जिसमें उन्होंने एक विवाहित महिला की कामुकता का एक नायाब चित्रण किया था। इन्होंने हशमत नाम से भी लेखन का कार्य किया हुआ है और हशमत नाम से उसको प्रकाशित भी करवाया, जो कि लेखकों और दोस्तों की कलम के चित्रों का संकलन है। कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sobti)इनका जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई। इन्होंने अपने तीन भाई बहनों के साथ स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा की पढ़ाई शुरू की। इनका परिवार औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया करता था। उन्होंने शुरुआत में लाहौर के फतेहचंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की शुरुआत की थी, परंतु जब भारत का विभाजन हुआ तो इनका परिवार भारत लौट आया। विभाजन के तुरंत बाद इन्होंने 2 साल तक महाराजा तेज सिंह के शासन में कार्य किया जो कि सिरोही, राजस्थान के महाराजा थे। कृष्णा सोबती की मृत्यु दिल्ली में उनके घर पर लंबी बीमारी की वजह से 25 जनवरी 2019 को हुई।
Fri, 23 Dec 2022 - 21min - 67 - मित्रो मरजानी || प्रसिद्ध उपन्यास || कृष्णा सोबती की प्रमुख रचना || भाग 2
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था. उपन्यास और कहानी विधा में उन्होंने जमकर लेखन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह जैसे उपन्यास शामिल हैं.
हिंदी साहित्य की महान साहित्यकारा और लेखिका के रूप में जानी जाने वाली कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात और पंजाब के उस हिस्से में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। साहित्य में इनके योगदान के लिए इ.न्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजा गया है, वहीं अपनी कुछ रचनाओं के लिए ये विवादों में रही। सोबती को प्रसिद्धि उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। यह एक ऐसा उपन्यास था जिसमें उन्होंने एक विवाहित महिला की कामुकता का एक नायाब चित्रण किया था। इन्होंने हशमत नाम से भी लेखन का कार्य किया हुआ है और हशमत नाम से उसको प्रकाशित भी करवाया, जो कि लेखकों और दोस्तों की कलम के चित्रों का संकलन है। कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sobti)इनका जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई। इन्होंने अपने तीन भाई बहनों के साथ स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा की पढ़ाई शुरू की। इनका परिवार औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया करता था। उन्होंने शुरुआत में लाहौर के फतेहचंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की शुरुआत की थी, परंतु जब भारत का विभाजन हुआ तो इनका परिवार भारत लौट आया। विभाजन के तुरंत बाद इन्होंने 2 साल तक महाराजा तेज सिंह के शासन में कार्य किया जो कि सिरोही, राजस्थान के महाराजा थे। कृष्णा सोबती की मृत्यु दिल्ली में उनके घर पर लंबी बीमारी की वजह से 25 जनवरी 2019 को हुई।
Mon, 19 Dec 2022 - 22min - 66 - मित्रो मरजानी || प्रसिद्ध उपन्यास || कृष्णा सोबती की प्रमुख रचना || भाग 1
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था. उपन्यास और कहानी विधा में उन्होंने जमकर लेखन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह जैसे उपन्यास शामिल हैं.
हिंदी साहित्य की महान साहित्यकारा और लेखिका के रूप में जानी जाने वाली कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात और पंजाब के उस हिस्से में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। साहित्य में इनके योगदान के लिए इ.न्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजा गया है, वहीं अपनी कुछ रचनाओं के लिए ये विवादों में रही। सोबती को प्रसिद्धि उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। यह एक ऐसा उपन्यास था जिसमें उन्होंने एक विवाहित महिला की कामुकता का एक नायाब चित्रण किया था। इन्होंने हशमत नाम से भी लेखन का कार्य किया हुआ है और हशमत नाम से उसको प्रकाशित भी करवाया, जो कि लेखकों और दोस्तों की कलम के चित्रों का संकलन है।
कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sobti)
इनका जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई। इन्होंने अपने तीन भाई बहनों के साथ स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा की पढ़ाई शुरू की। इनका परिवार औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया करता था। उन्होंने शुरुआत में लाहौर के फतेहचंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की शुरुआत की थी, परंतु जब भारत का विभाजन हुआ तो इनका परिवार भारत लौट आया। विभाजन के तुरंत बाद इन्होंने 2 साल तक महाराजा तेज सिंह के शासन में कार्य किया जो कि सिरोही, राजस्थान के महाराजा थे। कृष्णा सोबती की मृत्यु दिल्ली में उनके घर पर लंबी बीमारी की वजह से 25 जनवरी 2019 को हुई।Fri, 16 Dec 2022 - 25min - 65 - कितने पाकिस्तान 'Kitne Pakistan' based on Kamleshwar's novel || Story, Novel, Journalism, Column Writing, Film Screenplay
कितनी डरावनी थी वह चांदनी रात नीचे आंगन में तुम्हीं पड़ी थीं बन्नो...चांदनी में दूध-नहायी और पिछवाड़े पीपल खड़खड़ा रहा था और बदरू मियां की आवांज जैसे पाताल से आ रही थी ''कादिर मियां!...बन गया साला पाकिस्तान... ''
दोस्त! इस लम्बे सफर के तीन पड़ाव हैंपहला, जब मुझे बन्नो के मेहंदी के फूलों की हवा लग गयी थी, दूसराजब इस चांदनी रात में मैंने पहली बार बन्नो को नंगा देखा था और तीसरा तब, जब उस कमरे की चौखट पर बन्नो हाथ रखे खड़ी थी और पूछ रही थी ''और है कोई? ''
हां था। कोई और भी था।...कोई।Sat, 10 Dec 2022 - 42min - 64 - आप प्यारे प्यारे श्रोताओं से रूबरू होना चाहते हैं। || We would like to know you, dear listeners.
नमस्कार श्रोताओं !
आज के इस एपिसोड में हम सिर्फ अनौपचारिक बात करेंगे हम यह जानना चाहते हैं हमने एपिसोड में पूरी जानकारी दी है कि हमारी पॉडकास्ट कहां-कहां कौन-कौन से प्लेटफार्म पर सुनी जाती है और हम हमारा कांटेक्ट इनफार्मेशन भी आपको प्रोवाइड करवा रहे हैं ताकि आप हमसे कांटेक्ट कर सके जब आपका और हमारा कांटेक्ट बनेगा तो आपके लिए और इंटरेस्टिंग एपिसोड्स हम लेकर के आने वाले हैं जब हमें आपकी रूचि यों का पता चलेगा तो हम उसी अनुसार आपके लिए एपिसोड कास्ट करेंगे।
Hello listeners!
In today's episode, we will only talk informally, we want to know that we have given complete information in the episode that where our podcast is listened on which platforms and we are also providing our contact information to you so that you Can contact us when you and our contact will be made, then we will bring more interesting episodes for you, when we come to know about your interests, we will cast episodes accordingly.
Fri, 02 Dec 2022 - 10min - 63 - The subjunctive mood in Hindi || Introduction || Examples || Sentences || Subordinate clauses || Conditional clauses || Relative clauses
Hello Listeners !
Today i gonna introduce you The subjunctive mood verb in Hindi.
Introduction
The subjunctive mood is very common in Hindi.
The titles of many popular movies contain the subjunctive mood, such as:
- “जाने तू या जाने न” – “Whether you know it or not” “कल हो न हो” – “Tomorrow may or may not be”, i.e. there might not be any tomorrow “रंग दे बसंती” – “Color (me) basanti” (a color signifying a patriotic sacrifice)
If you visit India, you will probably encounter signs that use the subjunctive mood, such as:
- “कृपया मंदिर के बहार अपने जूते उतार दें” – “Please remove your shoes outside the temple” “कृपया रेलिंग से दुरी बनाये रखें” – “Please keep a distance from the railing”
If you fly on an airplane in India, you will hear announcements that use the subjunctive mood, such as:
- सभी यात्रियों से निवेदन है कि वे अपनी कुर्सी की पेटी बांध लें – “We request that all passengers fasten their seat belt” सभी यात्रियों से अनुरोध है कि वे अपना सामान अकेला न छोड़ें – “We request that all passengers not leave their baggage unattended”
You will probably hear some common expressions that involve the subjunctive mood, such as:
- जो हो सो हो – “Whatever will be will be”
The subjunctive mood is one of the four verb moods in Hindi.
The subjunctive mood is used to express an action or state that is somehow unreal, such as a possibility, condition, hypothetical statement, opinion, contingency, analogy, desire, contrafactual statement, duty, or obligation, etc., rather than an actual action or state.
For instance, consider an example:
- मैंने उसे सुझाव दिया कि वह वकील से बात करे – I suggested that he talk to a lawyer In the previous example, the verb बात करे is in the subjunctive mood and is in the subordinate clause कि वह वकील से बात करे. It is “unreal” because it is a suggestion, not an actual event. उसने मुझे बताया कि उसने वकील से बात की In the previous example, the indicative verb बात की was used because the speaker is describing an actual event.
The term “subjunctive” derives from the Latin word 'subjunctivus', meaning “joined at the end”. This name alludes to the fact that subjunctive verbs are often used in subordinate clauses (which are typically joined at the end of the main clause). However, the subjunctive mood is also frequently used in relative clauses and conditional clauses, and there are several independent uses of the subjunctive mood, i.e., uses that aren’t necessarily inside a particular type of clause.
Hope you enjoying this episode. I will try to cover maximum possibilities of subjunctive mood in coming episodes. Thank you.
Tue, 29 Nov 2022 - 03min - 62 - Informal conversation of a family | एक परिवार की अनौपचारिक बातचीत
नमस्ते श्रोताओं आज के इस एपिसोड में हम परिवार की एक सामान्य बातचीत को रिकॉर्ड करके आपको सुना रहे हैं उम्मीद है आपको हमारी यह पॉडकास्ट पसंद आएगी अगर हमारी पॉडकास्ट पसंद आती है तो आप हमें ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं और इसी तरह के एपिसोड के लिए हमें लिख सकते हैं हमारा ईमेल एड्रेस है rajasikar11@gmail.com
Hello listeners, in today's episode, we are recording a normal family conversation and broadcasting for you, hope will you like our podcast, if you like our podcast, you can contact us on email for similar episodes You can write to us our email address is - rajasikar11@gmail.com
Fri, 25 Nov 2022 - 05min - 61 - The imperative form of the Hindi language ll the intimate imperative ll the familiar imperative ll हिंदी भाषा की क्रियाएंFri, 11 Nov 2022 - 03min
- 60 - Health issues after covid ll Discussing health issues with experts ll How the attendants accompanying the patient behave in the hospital ? हिंदी
Hello listeners! In today's podcast we discussed on health. For this, we talked to a nursing officer who is working in Women's Hospital, Jaipur. He threw light on many things related to the hospital and the patients. Hope you enjoy this podcast of ours. You must let us know by commenting. Thank you
नमस्कार श्रोताओं! आज के पॉडकास्ट में हमने स्वास्थ्य पर चर्चा की। इसके लिए हमने जयपुर के महिला अस्पताल में कार्यरत एक नर्सिंग अधिकारी से बात की। उन्होंने अस्पताल और मरीजों से जुड़ी कई बातों पर प्रकाश डाला। आशा है आपको हमारा यह पॉडकास्ट अच्छा लगा होगा। आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं। आपको धन्यवाद
Tue, 08 Nov 2022 - 08min - 59 - Guru Nanak Dev - Guru Granth Sahib, as a collection of verses recorded in Gurmukhi. A Short biography of Guru Nanak Dev
Nanak was born on 15 April 1469 at Rāi Bhoi Kī Talvaṇḍī village (present-day Nankana Sahib, Punjab, Pakistan) in the Lahore province of the Delhi Sultanate, although according to one tradition, he was born in the Indian month of Kārtik or November, known as Kattak in Punjabi.
Most janamsakhis (ਜਨਮਸਾਖੀ, 'birth stories'), or traditional biographies of Nanak, mention that he was born on the third day of the bright lunar fortnight, in the Baisakh month (April) of Samvat 1526.[8] These include the Puratan ('traditional' or 'ancient') janamsakhi, Miharban janamsakhi, Gyan-ratanavali by Bhai Mani Singh, and the Vilayat Vali janamsakhi.The Sikh records state that Nanak died on the 10th day of the Asauj month of Samvat 1596 (22 September 1539 CE), at the age of 70 years, 5 months, and 7 days. This further suggests that he was born in the month of Vaisakh (April), not Kattak (November).
Kattak birthdate
In as late as 1815, during the reign of Ranjit Singh, the festival commemorating Nanak's birthday was held in April at the place of his birth, known by then as Nankana Sahib.[9] However, the anniversary of Nanak's birth—the Gurpurab (gur + purab, 'celebration')—subsequently came to be celebrated on the full moon day of the Kattak month in November. The earliest record of such a celebration in Nankana Sahib is from 1868 CE.
There may be several reasons for the adoption of the Kattak birthdate by the Sikh community. For one, it may have been the date of Nanak's enlightenment or "spiritual birth" in 1496, as suggested by the Dabestan-e Mazaheb.
The only janamsakhi that supports the Kattak birth tradition is that of Bhai Bala. Bhai Bala is said to have obtained Nanak's horoscope from Nanak's uncle Lalu, according to which, Nanak was born on a date corresponding to 20 October 1469 CE. However, this janamsakhi was written by Handalis—a sect of Sikhs who followed a Sikh-convert known as Handal—attempting to depict the founder as superior to Nanak. According to a superstition prevailing in contemporary northern India, a child born in the Kattak month was believed to be weak and unlucky, hence why the work states that Nanak was born in that month.
Bhai Gurdas, having written on a full-moon-day of the Kattak month several decades after Nanak's death, mentions that Nanak had "obtained omniscience" on the same day, and it was now the author's turn to "get divine light."
According to Max Arthur Macauliffe (1909), a Hindu festival held in the 19th century on Kartik Purnima in Amritsar attracted a large number of Sikhs. The Sikh community leader Giani Sant Singh did not like this, thus starting a festival at the Sikh shrine of the Golden Temple on the same day, presenting it as the birth anniversary celebration of Guru Nanak.
Macauliffe also notes that Vaisakh (March–April) already saw a number of important festivals—such as Holi, Rama Navami, and Vaisakhi—therefore people would be busy in agricultural activities after the harvest festival of Baisakhi. Therefore, holding Nanak's birth anniversary celebrations immediately after Vaisakhi would have resulted in thin attendance, and therefore, smaller donations for the Sikh shrines. On the other hand, by the Kattak full moon day, the major Hindu festival of Diwali was already over, and the peasants—who had surplus cash from crop sales—were able to donate generously.
Mon, 07 Nov 2022 - 08min - 58 - If you are traveling in India and need help from a local for whatever reason? Ask the route to your hotel. At the end, say thank you to the local with gratitude.
Hello friends we are broadcasting this podcast from Jaipur. How do you talk to a local if you are traveling in India and need help from a local for whatever reason? Let's say you forgot your way to your hotel. Choose the right person to ask for help. Tell us about where you want to go. Ask the route to your hotel. At the end, say thank you to the local with gratitude.
Hello my name is Rajesh.
I come from America.
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Namaste Ji !
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can you help me?
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Yes please tell me what is the matter?
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I forgot my way to the hotel!
Can you tell which way will lead there?
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Which hotel are you staying in?
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Hotel Park Avenue
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Oh well, go straight from here and take a right turn.
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Will there be any bus from here?
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No, there is no bus there, you have to go by auto.
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How much will the auto driver charge?
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Maximum ₹ 50 from here
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Sir thank you very much.
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You are welcome.
नमस्ते मेरा नाम राजेश है।
मैं अमेरिका से आया हूं।
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नमस्ते जी !
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क्या आप मेरी मदद कर सकती हैं?
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हां जरूर बताइए क्या बात है?
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मैं होटल का रास्ता भूल गया !
क्या आप बता सकते हैं वहां के लिए कौन सा रास्ता जाएगा?
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आप कौन से होटल में ठहरे हैं ?
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होटल पार्क एवेन्यू
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ओ अच्छा यहां से सीधे चल के आगे दाएं मुड़ना है।
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क्या वहां के लिए कोई बस मिलेगी यहां से?
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नहीं वहां के लिए कोई बस नहीं है आपको ऑटो से जाना पड़ेगा।
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ऑटो वाला कितना किराया लेगा?
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यहां से ज्यादा से ज्यादा ₹50
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जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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जी आपका स्वागत है।
Sun, 06 Nov 2022 - 03min - 57 - Jaipur is also called Pink City l Jaipur is the capital of India’s Rajasthan state
जयपुर शहर भारत संघ के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की राजधानी है। जयपुर राजस्थान का सबसे बडा शहर है। जयपुर को पिंक सिटी अथवा गुलाबी नगरी भी कहते है, इसको सबसे पहले स्टैनली रीड ने पिंक सिटी बोला था । जयपुर की स्थापना आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह ने की थी। यूनेस्को द्वारा जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। संघीय राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है।
आज के एपिसोड के हमारे तीन सवाल
1 जयपुर को सर्वप्रथम पिंक सिटी किसने कहा ?
2 पूरे जयपुर को गुलाबी रंग में कब रंगवाया गया ?
3 गोल्डन ट्रायंगल में भारत के कौन से तीन शहर हैं?
Jaipur is the capital of India’s Rajasthan state. It evokes the royal family that once ruled the region and that, in 1727, founded what is now called the Old City, or “Pink City” for its trademark building color. At the center of its stately street grid (notable in India) stands the opulent, colonnaded City Palace complex. With gardens, courtyards and museums, part of it is still a royal residence.
Our three questions for today's episode
1 Who first called Jaipur as the Pink City?
2 When was the whole of Jaipur painted pink?
3 Which three Indian cities are in the Golden Triangle?
Sat, 05 Nov 2022 - 03min - 56 - CBSE Board Exams 2022-23 l curriculum l preparation l strategy
नमस्कार श्रोताओं। आज के इस एपिसोड में हम दसवीं बोर्ड एग्जाम को लेकर के चर्चा करेंगे। हमारे साथ स्टूडियो में हमारी मेहमान मीनाक्षी चौधरी हैं। जिनसे हम जानेंगे कि हमें बोर्ड एग्जाम को लेकर के किन किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. हमारे कोर्स में कितना पाठ्यक्रम है ?
2. कौन-कौन सी किताबें हमें पढ़नी चाहिए ?
3. किन बातों का हमें ध्यान रखना चाहिए ?
4. मॉडल पेपर हमें कहां से मिलने वाले हैं ?
5. हमारी रूटीन लाइफ इस दौरान क्या होनी चाहिए ?
6. कितना समय अभी तक बचा है ?
7. प्री बोर्ड क्या होने वाले हैं ?
8. उनका मैन बोर्ड एग्जाम में कोई महत्व है या नहीं ?
इन सारी बातों पर हम चर्चा करेंगे। तो आइए सुनते हैं मीनाक्षी से। अगर आपको यह एपिसोड अच्छा लगे, तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम इसी तरह के और एपिसोड आपके लिए लेकर आएं। धन्यवाद।
Hello listeners. In today's episode we will discuss about 10th board exam. We have Minakshi Choudhary as our guest in the studio. From which we will know what things we should keep in mind regarding the board exam.
1. How many courses are there in our course?
2. Which books should we read?
3. What should we keep in mind?
4. Where are we going to get the model papers?
5. What should be our routine life during this time?
6. How much time is left till now?
7. What are the Pre Boards going to be?
8. Whether they have any importance in the main board exam or not?
We will discuss all these things. So let's hear from Minakshi. If you like this episode, then do let us know by commenting so that we can bring more such episodes for you. Thank you.
Thu, 03 Nov 2022 - 18min - 55 - 15 uses of 'for' in Hindi
Good evening ! I am Rajesh a professional teacher on italki. in today's podcast I will give you 15 phrases for use of 'for' so the the first phrase
1. for = ke liye
2. for me = mere liye
3. for us = Hamare Liye
4. for them = unke liye
5. for you = aapke liye
6. for it = iske liye
7. for him = uske liye
8. for her = uske liye
9. for now = abhi ke liye
10. for this = iske liye
11. for that = uske liye
12. for here = Yahan Ke Liye
13. for there = vahan ke liye
14. for whom = kis ke liye
15. for where = Kahan Ke Liye
I think you will repeat all the pronunciation phrases here and improve your Hindi skills. we will meet again in the next portcast. till that if you have any doubt regarding these 15 phrases use of 'for' you can message me. I will help you. definitely I will reply you. thank you so much.
Thu, 24 Feb 2022 - 02min - 54 - My Introduction
नमस्ते मेरा नाम राजेश है। मैं भारत के जयपुर शहर में रहता हूं। मैंने मेरा पोस्ट ग्रेजुएशन 2001 में कंप्लीट करने के बाद एजुकेशन में बैचलर डिग्री प्राप्त की है। 11 साल इंश्योरेंस इंडस्ट्री में सर्व करने के बाद मैंने टीचिंग के प्रोफेशन में कदम रखा। 2016 से मैं ऑनलाइन हिंदी को एक सेकंड लैंग्वेज के रूप में स्टूडेंट्स को पढ़ा रहा हूं। मेरे स्टूडेंट्स दुनिया के हर कोने से है जिसमें मुख्यतः ब्रिटेन, अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, जापान, न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से हैं। मैं यहां पर आपके लिए एक निश्चित समय अंतराल पर हिंदी पॉडकास्ट एपिसोड टेलीकास्ट करूँगा। जहां पर हिंदी सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। अगर आप मेरे साथ वन to वन लेसन करना चाहते हैं तो मुझे मैसेज करिए या मेरे साथ ट्रायल बुक कर सकते हैं।
Hello my name is Rajesh. I live in Jaipur city of India. I have completed my post graduation in 2001 and got bachelor degree in education. After serving in the insurance industry for 11 years, I entered the teaching profession. Since 2016 I am teaching online Hindi as a second language to students. My students are from every corner of the world, mainly from countries like UK, America, Australia, Hong Kong, Japan, New Zealand and Australia etc. I will telecast Hindi podcast episodes here for you at a fixed time interval. Where you will get a lot to learn Hindi. If you want to do one to one lesson with me then message me or you can book trial with me
Fri, 28 Jan 2022 - 01min - 53 - घास, बकरी और भेड़िया
एक बार की बात है एक मल्लाह के पास घास का ढेर, एक बकरी और एक भेड़िया होता है। उसे इन तीनो को नदी के उस पार लेकर जाना होता है। पर नाव छोटी होने के कारण वह एक बार में किसी एक चीज को ही अपने साथ ले जा सकता है।
अब अगर वह अपने साथ भेड़िया को ले जाता तो बकरी घास खा जाती।
अगर वह घास को ले जाता तो भेड़िया बकरी खा जाता।
इस तरह वह परेशान हो उठा कि करें तो क्या करें? उसने कुछ देर सोचा और फिर उसके दिमाग में एक योजना आई।
सबसे पहले वह बकरी को ले कर उस पार गया। और वहाँ बकरी को छोड़ कर, वापस इस पार अकेला लौट आया। उसके बाद वह दूसरे सफर में भेड़िया को उस पार ले गया। और वहाँ खड़ी बकरी को अपने साथ वापस इस पार ले आया।
इस बार उसने बकरी को वहीँ बाँध दिया और घास का ढेर लेकर उस पार चला गया। और भेड़िया के पास उस ढेर को छोड़ कर अकेला इस पार लौट आया। और फिर अंतिम सफर में बकरी को अपने साथ ले कर उस पार चला गया।
सीख – मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी हो, खोजने पर समाधान मिल ही जाता है।
Thu, 27 May 2021 - 02min - 52 - होली धमाल ऊंचो घाल्यो पालनो।
नमस्कार दोस्तों मार्च का महीना आने वाला है और होली की धूम चारों तरफ मची हुई है जगह-जगह चंग और गिंदर के दृश्य देखे जा सकते हैं तो इसी कड़ी में हम आपके लिए अब होली तक रोज कोशिश करेंगे कि एक नई धमाल लेकर आए और आप उस धमाल को हमारे पॉडकास्ट चैनल पर सुन सकते हैं और अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते हैं आप हमें वॉइस मैसेज भी भेज सकते हैं और किसी विशेष धमाल की फरमाइश भी कर सकते हैं हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपको वह धमाल हम सुनवाई तो मिलते हैं एक नए एपिसोड के साथ एक नई धमाल के साथ तब तक के लिए नमस्कार।
Tue, 23 Feb 2021 - 08min - 51 - हमसे संपर्क करें। Contact us
नमस्कार श्रोताओं ! शनिवार शाम 6 बजे तक आप हमें व्हाट्सअप पर संपर्क कर सकते हैं। रविवार दोपहर 1 बजे हम आपको कॉल करेंगे। इस दौरान आप अपने सवाल कर सकते हैं। हम आपके सवालों के जवाब देंगे। इस बातचीत को हम अपने अगले एपिसोड में आपकी सहमति से शामिल करेंगे। हमारा व्हाट्सअप नंबर है 9680615806 आप हमसे सोशल मिडिया पर भी फॉलो कर सकते हैं। Ø You Tube Channel URL- https://www.youtube.com/channel/UCJB-G080D28SDjacx4NR16Q Ø You Tube Channel URL- https://www.youtube.com/channel/UCeAx5V_mOrekyRX9-7vpTWg?view_as=subscriber Ø Blog - https://frompinkcity.blogspot.com Ø Blog- https://lovelyjaipur.blogspot.com Ø Instagram- https://www.instagram.com/hindi_learners/ Ø Facebook-https://www.facebook.com/jaipurtourisem (अपना जयपुर)
Fri, 18 Dec 2020 - 06min - 50 - भारत के बारे में 10 विचित्र किन्तु सत्य तथ्य
1. शनि शिंगनापुर – बिना दरवाजों के गाँव महाराष्ट्र के शनि शिंगनापुर नामक गाँव में लोग बिना दरवाजों के रहते हैं. इस गाँव में बिना दरवाजों और तालों के प्रतिष्ठान हैं। इसके निवासी बेफिक्र होकर सोते हैं क्योंकि वे भगवान शनि को गांव के संरक्षक के रूप में मानते हैं। 300-वर्ष पुराने इस गाँव में प्रतिदिन 40,000 से अधिक भक्त पहुंचते हैं . 2. वाराणसी – दुनिया के सबसे प्राचीन बसे हुए स्थानों में से एक गंगा नदी के तट पर स्थित वाराणसी का संसद में प्रतिनिधित्व देश के पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा किया जा रहा है. यह पवित्र शहर कम से कम 3000 वर्ष पुराना है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने 5000 साल पहले इस शहर को खोजा था। 3. महाराष्ट्र में लोनार झील – एक उल्का द्वारा निर्मित इस झील का निर्माण लगभग 52,000 साल पहले एक उल्कापिंड उल्का द्वारा किया गया था। 4. विश्व का एकमात्र फ्लोटिंग डाकघर भारत में न केवल दुनिया में सबसे अधिक डाकघर हैं , बल्कि श्रीनगर में डल झील पर इसका अपना अस्थायी डाकघर है। यह एक हाउसबोट पर अवस्थित है तथा इसमें एक दार्शनिक संग्रहालय भी है। 5. गायों के अधिकारों के बिल वाला एकमात्र देश जिस क्षण से एक हिन्दू का जन्म होता है , उसकी दो माताएं होती हैं। एक, उनकी जन्म माता और दूसरी गौमाता। गायों को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, और संविधान में ऐसे कानून हैं जो गायों की बिक्री और वध पर प्रतिबन्ध लगाते हैं . 6. सिंगल वोटर के लिए पोल बूथ भारत के सबसे विशेषाधिकार प्राप्त मतदाता, महंत भारतदास, गिर वन, गुजरात के मध्य में बंज नामक एक छोटे से आवास में रहते हैं। सिर्फ एक मतदाता के लिए एक विशेष मतदान केंद्र की स्थापना देश की लोकतांत्रिक भावना को प्रदर्शित करता है । 7. माधोपट्टी – भारत का सबसे अधिक आईएस अधिकारियों वाला गाँव माधोपट्टी – भारत का सबसे अधिक आईएस अधिकारियों वाला गाँव उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से गाँव , माधोपट्टी से सबसे अधिक IAS अधिकारियों का चयन हुआ है. इस संदर्भ में इस गाँव ने इतिहास रच दिया है। इस गाँव ने 50 से अधिक आईएस अधिकारी दिए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इस गांव के कई लोगों ने इसरो, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और विश्व बैंक जैसे प्रतिष्ठित संगठनों से जुड़कर अपना करियर बनाया है। बैंक और अन्य विभागों के अधिकारियों की तो यहाँ भरमार है. अपनी लगन, बुद्धि और ज्ञान से उच्च पदों पर पहुंचे ये लोग पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. 8. तुलसी श्याम – गुरुत्वाकर्षण शक्ति रहित रोड वाली पहाड़ियाँ विचित्र किन्तु सत्य, जी हाँ, यह अजीब घटना वास्तव में गुजरात के अमरेली जिले में तुलसी श्याम के पास एक सड़क पर होती है. इस स्थान पर गुरुत्वाकर्षण बल कार्य नहीं करता. 9 . दुनिया का सबसे ऊँचा क्रिकेट ग्राउंड भारत एक क्रिकेट प्रेमी राष्ट्र है। गिनीज बुक द्वारा दर्ज दुनिया का सबसे ऊँचा क्रिकेट ग्राउंड भी यहाँ पर है. हिमाचल प्रदेश के चैल में समुद्र तल से 2,144 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह क्रिकेट ग्राउंड पर्यटकों को खूब लुभाता है. 10. भारत का पहला रॉकेट एक साइकिल द्वारा ले जाया गया 1963 में, इसरो ने त्रिवेंद्रम के बाहरी इलाके थुम्बा में एक चर्च से अपना पहला रॉकेट लॉन्च किया। उक्त रॉकेट को एक साइकिल पर ले जाया गया था। इस तरह इस लॉन्चिंग पैड को बाद में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के रूप में जाना जाने लगा।
Tue, 15 Dec 2020 - 06min - 49 - दुनिया का सबसे रहस्यमयी जंगल
जंगलों का नाम सुनते ही दिमाग में अलग-अलग तरह की आकृतियां उभरने लगती हैं और अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई देने लगती हैं। ये सब केवल अफ़वाह नहीं है, बल्कि दुनिया में कुछ ऐसे जंगल आज भी मौजूद है, जिसके अंदर जाने पर ये तमाम चीजें महसूस की जा सकती हैं। इसलिए आज हम आपको विश्व के सबसे डरावने जंगल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे दुनियाभर के लोग 'होया बस्यू' जंगल के नाम से जानते हैं। आइए जानें। जंगल में देखी गई हैं कई अविश्वसनीय घटनाएं होया बस्यू में घटने वाली रहस्यमयी घटनाओं के कारण ही इस जगह को 'रोमानिया या ट्रांसल्वेनिया का बरमूडा ट्राएंगल' भी कहते हैं। यह कुख्यात जंगल रोमानिया के ट्रांसल्वेनिया के क्लुज काउंटी में स्थित है, जो क्लुज-नेपोका शहर के पश्चिम में स्थित है। यह जंगल लगभग 700 एकड़ में फैला हुआ है। इस जंगल के बारे में यह माना जाता है कि यहां सैकड़ों लोग गायब हुए हैं। इसके साथ ही जंगल में कई अविश्वसनीय घटनाओं को भी देखा गया है। जंगल में पांव रखते ही सुनाई देती है अजीबो-गरीब आवाजें होया बस्यू जंगल की कई कहानियां प्रसिद्ध हैं। इस जंगल के पेड़ मुड़े हुए हैं और उनका आकार बड़ा ही विचित्र है। ये पेड़ इतने डरावने नजर आते हैं कि लोग इन पेड़ो के पास जाने के नाम से ही घबरा जाते हैं। इतना ही नहीं, यहां पर लोगों को अजीबो-गरीब अवाजें भी सुनाई देती है, इसी वजह से लोग जंगल में जाने से डरते हैं और शाम होते ही जंगल के आस-पास भी नहीं रहते हैं। एलियन के निवास का दावा कुछ साल पहले एक सैन्य तकनीशियन ने इस जंगल में एक उड़नतस्तरी (UFO) को देखने का दावा किया था। इसके अलावा साल 1968 में भी एमिल बरनिया नाम के एक शख्स ने यहां आसमान में एक अलौकिक शरीर को देखने का दावा किया था। साथ ही यहां घूमने आने वाले कुछ पर्यटकों ने भी कुछ इसी तरह की घटनाओं का जिक्र किया है। लोगों का कहना है कि इस जंगल में रहस्यमयी शक्तियों का वास है। 200 भेंडों के साथ रहस्यमयी तरीके से जंगल में गायब हुआ शख्स होया बस्यू जंगल को लेकर पहली बार लोगों की दिलचस्पी तब उजागर हुई थी, जब इस क्षेत्र में एक चरवाहा लापता हो गया था। सदियों पुरानी अफवाह के अनुसार, वह आदमी जंगल में जाते ही रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया था। हैरानी की बात तो ये थी कि उस समय उसके साथ 200 भेड़ें भी थीं, जो कि उस शख्स के साथ ही गायब हो गई थीं। साल 1870 में भी घटी थी ऐसी ही एक घटना इतना ही नहीं, साल 1870 में भी यहां पास के ही गांव में रहने वाले एक किसान की बेटी गलती से इस जंगल में घुस गई और उसके बाद गायब हो गई। लोगों को हैरानी तब हुई, जब वह लड़की ठीक पांच साल बाद जंगल से वापस आ गई, लेकिन वह अपनी याददाश्त पूरी तरह से खो चुकी थी। हालांकि, कुछ समय के बाद ही उसकी मौत भी हो गई थी। इमरान हाशमी कराना चाहते थे इस जंगल में फिल्म 'राज़: रीबूट' की शूटिंग इमरान हाशमी अपनी हॉरर फिल्म 'राज़: रीबूट' के लिए कुछ शॉट्स विश्व के सबसे भूतिया जंगल में शूट कराना चाहते थे। जिसके लिए उनकी शूटिंग टीम रोमानिया स्थित विश्व के इस सबसे भूतिया जंगल में शूट करने के लिए भी तैयार हो चुकी थी। लेकिन वहां की सरकार ने उन्हें शूटिंग की अनुमति नहीं दी, इसी वजह से फिल्म की शूटिंग सीयन के जंगल में हुई थी।
Sun, 13 Dec 2020 - 06min - 48 - आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले का लेपाक्षी मंदिर
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले का लेपाक्षी मंदिर हैंगिंग पिलर्स के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। मंदिर के बीचोबीच एक नृत्य मंडप है। इस मंडप पर कुल 70 खंभे मौजूद हैं, जिसमें से 69 खंभे वैसे ही हैं, जैसे होने चाहिए। मगर 1 खंभा दूसरों से एकदम अलग है, ऐसा इसलिए क्योंकि यह खंभा हवा में है यानी इमारत की छत से जुड़ा है, लेकिन जमीन के कुछ सेंटीमीटर पहले ही खत्म हो गया। बदलते वक्त के साथ यह अजूबा एक मान्यता बन चुका है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इंसान खंभे के इस पार से उस पार तक कोई कपड़ा ले जाए, तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है। मंदिर के यह अनोखा पिलर हर साल यहां आने वाले लाखों टूरिस्टों के लिए बड़ी मिस्ट्री है। किंवदति है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता यहां आए थे। सीता का अपहरण कर रावण अपने साथ लंका लेकर जा रहा था, तभी पक्षीराज जटायु ने रावण से युद्ध किया और घायल हो कर इसी स्थान पर गिरे थे। बाद में जब श्रीराम सीता की तलाश में यहां पहुंचे तो उन्होंने 'ले पाक्षी' कहते हुए जटायु को अपने गले लगा लिया। ले पाक्षी एक तेलुगु शब्द है जिसका मतलब है 'उठो पक्षी'। कहा जाता है कि मंदिर में प्रभु श्रीराम के पैरों के निशान हैं, जबकि कई लोगों का मानना है की यह माता सीता के पैरों के निशान हैं। कुछ लोग इन पैरों के निशान हनुमानजी के पैरों के निशान बताते हैं। ऐसा माना जाता है कि जटायु के घायल होने के बाद सीता ने जमीन पर आकर खुद अपने पैरों का यह निशान छोड़ा था और जटायु को भरोसा दिलाया था कि जब तक भगवान राम यहां नहीं आते, यहां मौजूद पानी जटायु को जिंदगी देता रहेगा। यहां मौजूद एक अद्भुत शिवलिंग है रामलिंगेश्वर जिसे जटायु के अंतिम संस्कार के बाद भगवान राम ने खुद स्थापित किया था। पास में ही एक और शिवलिंग है हनुमानलिंगेश्वर। बताया जाता है कि श्रीराम के बाद महाबली हनुमान ने भी यहां भगवान शिव की स्थापना की थी। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर को ऋषि अगस्त ने बनाया था। लेकिन इतिहासकारों अनुसार मंदिर को सन् 1583 में विजयनगर के राजा के लिए काम करने वाले दो भाईयों (विरुपन्ना और वीरन्ना) ने बनाया था। यह मंदिर भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र के लिए बनाया गया है। यहां तीनों भगवानों के अलग-अलग मंदिर भी मौजूद हैं। यहां बड़ी नागलिंग प्रतिमा मंदिर परिसर में लगी है, जो कि एक ही पत्थर से बनी है। यह भारत की सबसे बड़ी नागलिंग प्रतिमा मानी जाती है। काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी इस मूर्ति में एक शिवलिंग के ऊपर सात फन वाला नाग बैठा है।
Fri, 11 Dec 2020 - 04min - 47 - आश्चर्यजनक किंतु सत्य
नमस्कार ! हिंदी पॉडकास्ट की सेवा में एक बार फिर आपका स्वागत है। यह पॉडकास्ट हम जयपुर से प्रसारित कर रहे हैं। श्रोताओं अपने आसपास की दुनिया में हमने बहुत अजीब घटनाएं देखी व सुनी होती है, लेकिन जो हमने अपनी आंखों से नहीं देखा इसलिए उन पर विश्वास करना जरा मुश्किल होता है। लेकिन चूँकि जो घटना घट चुकी होती है। इसलिए वह सत्य होती है। आज कुछ ऐसी ही घटनाओं का जिक्र हम अपनी पॉडकास्ट में करने वाले हैं, जो आपने कभी सुनी होगी या आपके साथ भी इस तरह की घटनाएं हुई होंगी। प्रस्तुत है कुछ आश्चर्यजनक किंतु सत्य घटना।
Thu, 10 Dec 2020 - 04min - 46 - दिसंबर की गुनगुनी धूपTue, 08 Dec 2020 - 09min
- 45 - हिंदी कहानी-गुनगुना एहसास।
गुनगुना एहसास। यह कहानी एक लड़की की है जो अपनी युवावस्था में किसी लड़के के साथ प्यार के एहसास में बंधी थी। उसके बाद वह आपस में जुदा हो गए थे। आज वही लड़की गुनगुनी धूप में जब नहा कर के अपने बाल सुखा रही है तो उसको वह पहाड़ों की याद आती है। वह उन सुनहरे पलों को याद करते हुए अपने बालों को सुखा रही है। तो आइए सुनते हैं यह कहानी, जिसकी लेखिका है अनीता श्रीवास्तव।
Thu, 03 Dec 2020 - 06min - 44 - सामान्य सर्दी-जुकाम व कोरोना वायरस में अंतर
नमस्कार श्रोताओ। आज के इस अंक में हम आपको सामान्य सर्दी जुखाम और कोरोनावायरस में सामान्यतया क्या लक्षण पाए जाते हैं, उन में क्या अंतर है और एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं। अगर आपको सामान्य सर्दी जुखाम है या कोरोनावायरस इसकी आप साधारणतया किस तरह से पहचान कर सकते हैं। किस तरह के लक्षण हैं तो आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। दोनों में क्या आपको अंतर करना है। किस तरह से आपको सावधानियां बरतनी है। खान-पान का क्या ध्यान रखना है। उम्मीद है यह पॉडकास्ट आपके लिए लाभदायक रहेगी। अगर आपको हमारी पॉडकास्ट अच्छी लगती है तो कृपया इसको लाइक करें और अपने जान पहचान वालों के साथ शेयर जरूर करें। हम से संपर्क करने के लिए आप वॉइस मैसेज भेज सकते हैं। नीचे कमेंट सेक्शन में प्लस के निशान को दबाकर आप अपना वॉइस रिकॉर्ड करके हम तक भेज सकते हैं।
Wed, 02 Dec 2020 - 11min - 43 - हिंदी कहानी - सहनशक्ति
आज की कहानी हमारे आसपास, हमारे परिवार में जो रिश्ते होते हैं, उन रिश्तो में जो रोजमर्रा के वार्तालाप होते हैं, छोटी-छोटी जो नोकझोंक होती है, उन्हीं के ऊपर आधारित यह कहानी है। कहानी में जो पात्र हैं, वह एक सास और उसकी बहू के मध्य का वार्तालाप है। तो उम्मीद है, आपको यह कहानी पसंद आएगी। सुनते हैं, सहनशक्ति।
Tue, 01 Dec 2020 - 04min - 42 - बेटियां हर घर की रौनक होती हैं।
बेटियां हर घर की रौनक होती हैं। जन्म लेते ही उनकी किलकारीयों से घर आंगन गूंज उठता है। उसके पश्चात वह धीरे-धीरे बड़ी होती हैं। कॉलेज जाती हैं, उनके आने जाने से घर में एक उल्लास का माहौल बना रहता है। शादी होकर ससुराल चली जाती हैं। ससुराल जाने के बाद भी वापस जब मायके आती हैं, तो भी अपने साथ खुशियां ढेर सारी खुशियां लेकर आती हैं। आज हम इस भागमभाग की जिंदगी में यह रिश्ते और इन रिश्तो की गर्माहट खोते जा रहे हैं। इसी को ध्यान में रखकर के यह एक कहानी जिसका ताना-बाना एक बेटी के इर्द-गिर्द बुना गया है। सुने यह कहानी और अपने चाहने वालों को भी सुनाएं।
Sat, 28 Nov 2020 - 07min - 41 - हमारी हिंदी पॉडकास्ट कहां-कहां से सुनी जा रही है ?
नमस्कार श्रोताओं ! इस अंक में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि हमारी पॉडकास्ट कहां-कहां से सुनी जा रही है और कौन कौन से चैनल है जहां पर आप हमें सुन सकते हैं। साथ ही आप हमें वॉइस मैसेज भेज कर अपनी फरमाइश भी कर सकते हैं । जैसे आपको कोई विशेष कहानी सुननी हो जो आपको अभी तक नहीं मिल रही हो तो हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपको वह कहानी सुनाएं।
Fri, 27 Nov 2020 - 07min - 40 - !! मित्रता की परिभाषा !!
एक बेटे के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था। उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा। एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त हैं, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते हैं। बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे। बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद दोनों ने सुना कि अंदर से बेटे का दोस्त अपनी माताजी को कह रहा था कि माँ कह दे, मैं घर पर नहीं हूँ। यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों घर लौट आए। फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ। दोनों रात के 2 बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ। जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र। तब मित्र बोला... अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारें साथ चलता हूँ। तब पिता की आँखे भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि, मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था। ऐसे मित्र न चुने जो खुदगर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे! शिक्षा:- मित्र कम चुनें, लेकिन नेक चुनें..!! सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
Thu, 26 Nov 2020 - 03min - 39 - दो घडे़ - Do Ghade
दो घडे़ एक बार एक नदी में जोरो की बाढ़ आई। तीन दिनों के बाद बाढ़ का जोर कुछ कम हुआ। बाढ़ के पानी में ढेरों चीजें बह रही थीं। उनमें एक ताँबे का घड़ा एवं एक मिट्टी का घड़ा भी था। ये दोनों घड़े अगल-बगल तैर रहे थे। ताँबे के घड़े ने मिट्टी के घड़े से कहा, अरे भाई, तुम तो नरम मिट्टी के बने हुए हो और बहुत नाजुक हो अगर तुम चाहो, तो मेरे समीप आ जाओ। मेरे पास रहने से तुम सुरक्षित रहोगे। मेरा इतना ख्याल रखने के लिए अपको धन्यवाद, मिट्टी का घड़ा बोला, मैं आपके करीब आने की हिम्मत नहीं कर सकता। आप बहुत मजबूत और बलिष्ठ हैं। मैं ठहरा कमजोर और नाजुक कहीं हम आपस में टकरा गए, तो मेरे टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे। यदि आप सचमुच मेरे हितैषी हैं, तो कृपया मुझसे थोड़ा दूर ही रहिए। इतना कहकर मिट्टी का घड़ा तैरता हुआ ताँबे के घड़े से दूर चला गया। शिक्षा - ताकवर पड़ोसी से दूर रहने में ही भलाई है।
Wed, 25 Nov 2020 - 02min - 38 - एकता का बल - Ekta Mein Bal Ki Kahani
एकता का बल एक किसान था। उसके पाँच बेटे थे। सभी बलवान और मेहनती थे। पर वे हमेशा आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। किसान यह देख कर बहुत चिंतित रहा करता था। वह चाहता था कि उसके बेटे आपस में लड़ाई-झगड़ा न करें और मेलजोल से रहें। किसान ने अपने बेटों को बहुत समझाया और डाँटा-फटकारा भी, पर उनपर इसका कोई असर नहीं हुआ। किसान को हमेशा यही चिंता सताती रहती कि वह अपने बेटों में एकता कैसे कायम करे! एक दिन उसे अपनी समस्या का एक उपाय सूझा। उसने अपने पाँचों बेटों को बुलाया। उन्हें लकडि़यों का एक गट्ठर दिखाकर उसने पूछाँ, "क्या तुममें से कोई इस गट्ठर को खोले बिना तोड़ सकता है?" किसान के पाँचों बेटे बारी-बारी से आगे आए। उन्होंने खूब ताकत लगाई। पर उनमें से कोई भी लकडि़यों का गट्ठर तोड़ नही सका। फिर किसान ने गट्ठर खोलकर लकडि़यों को अलग-अलग कर दिया। उसने अपने बेटों को एक-एक लकड़ी देकर उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी लड़कों ने बहुत आसानी से अपनी-अपनी लकडी तोड़ डाली। किसान ने कहा,"देखा! एक-एक लकड़ी को तोड़ना कितना आसान होता है। इन्हीं लकडि़यों को एक साथ गट्ठर में बाँध देने पर ये कितनी मजबूत हो जाती हैं। इसी तरह तुम लोग मिल-जुल कर एक साथ रहोगे, तो मजबूत बनोगे और लड़ झगड़कर अलग-अलग हो जाओगे, तो कमजोर बनोगे।" शिक्षा -एकता में ही शक्ति है, फूट में ही है विनाश।
Tue, 24 Nov 2020 - 02min - 37 - बिल्ली के गले मे घंटी - Who will Bell the Cat in Hindi
बिल्ली के गले मे घंटी एक पंसारी था। उसकी दुकान में बहुत से चूहे रहते थे। वहाँ उनके खाने का भरपूर समान था। वे अनाज, सूखे मेवे, ब्रेड, बिस्कुट, जैम और चीज़ आदि छककर खाते थे। चूहों के कारण पंसारी को काफी नुकसान होता था। एक दिन उसने सोचा, "इन चूहों से छुटकारा पाने के लिए मुझे कुछ उपाय करना चाहिए। वरना ये तो मुझे कहीं का नहीं छोडेगें। एक दिन दुकनदार एक बड़ी और मोटी-सी बिल्ली ले आया। उसने उसे दुकान में छोड़ दिया। अब चूहे खुलेआम घूम-फिर नहीं सकते थे। बिल्ली रोज किसी न किसी चूहे को पकड़ती और उसे मारकर खा जाती। धीरे-धीरे चूहों की संख्या कम होने लगी। इससे चूहों को बहुत चिंता हुई। उन्होंने इसका उपाय ढूँढने के लिये सभा की। सबने एक स्वर मे कहा, "हमें इस बिल्ली से छुटकारा पाना ही होगा"। पर छुटकारा पाने के लिए क्या करना चाहिए, यह उस सभा में किसी को नहीं सूझता था। तभी एक होशियार चूहे ने खडे़ होकर कहा, "बिल्ली बहुत चालाक है, वह दबे पाँव बड़ी फूर्ती से आती है। इसलिए हमें उसके आने का पता ही नही चलता। हमें किसी तरह उसके गले में एक घंटी बाँध देनी चाहिए।" दूसरे चूहे ने इसका समर्थन किया, "वाह क्या बात कही है! जब बिल्ली चलेगी, तो उसके गले की घंटी बजेगी। हम घंटी की आवाज सुनकर सावधान हो जाएँगे। हम इतने फासले पर रहेंगे कि वह हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगी।" सभी चूहों ने इस सुझाव का समर्थन किया। सारे चूहे खुशी से नाचने लगे। तभी एक बूढे़ चूहे ने कहा, "खुशियाँ मनाना बंद करो। मुझे सिर्फ इतना बताओ कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधेगा?" यह सुनते ही सारे चूहे चुप हो गये। वे एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। उन्हें इस सवाल का कोई जवाब नहीं सूझा। शिक्षा -जिस सुझाव पर अमल न हो सके, वह सुझाव किस काम का!
Mon, 23 Nov 2020 - 02min - 36 - लोक आस्था का पर्व छठ पूजा
भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है। छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है। छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ? यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं।अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं।
Mon, 16 Nov 2020 - 14min - 35 - दिवाली की कहानी - Hindi Kahaniya | Hindi Moral Stories || Diwali Ki Kahani
यह कहानी एक मजदूर व उसकी विकलांग बेटी की है। दिवाली आने वाली है और उन दोनों के बीच बड़ी असमंजस की स्थिति है। क्योंकि मजदूर की नौकरी चले जाने की वजह से उनके घर में खाने पीने का सामान भी समाप्त हो गया और ऊपर से दिवाली का त्यौहार भी आ गया। सुनिए यह कहानी।
Thu, 12 Nov 2020 - 11min - 34 - Karwa Chauth Story -- सुने करवा चौथ व्रत कथा
दांपत्य जीवन में मधुरता लाने वाला त्योहार करवा चौथ इस बार 4 नवंबर को यानी बुधवार को है। सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत करेंगी और शाम को चांद को अर्घ्य देकर और छलनी से पति का चेहरा देखकर व्रत तोड़ेंगी। वहीं कुंवारी कन्याएं मनोनुकूल पति की प्राप्ति के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखकर तारों को देखेंगी फिर व्रत खोलेंगी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं करवा चौथ के व्रत में पढ़ी जाने वाली पूरा कथा।
Tue, 03 Nov 2020 - 03min - 33 - महाभारत की कहानी: दानवीर कर्ण | Danveer Karan Ki Katha
महाभारत की कथा में कई महान चरित्रों का जिक्र है। उन्हीं में से एक थे दानवीर कर्ण। श्रीकृष्ण हमेशा कर्ण की दानवीरता की प्रशंसा करते थे। वहीं, अर्जुन और युधिष्ठिर भी दान-पुण्य करते रहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण कभी उनकी प्रशंसा नहीं करते थे। एक दिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा। श्रीकृष्ण बोले, “समय आने पर वह यह साबित कर देंगे कि सबसे बड़ा दानवीर सूर्यपुत्र कर्ण है।”
कुछ दिनों के बाद एक ब्राह्मण अर्जुन के महल में आया। उसने बताया कि पत्नी की मृत्यु हो गई है। उसके दाह संस्कार के लिए उन्हें चन्दन की लकड़ियों की जरूरत है। ब्राह्मण ने अर्जुन से चंदन की लकड़ी दान में मांगी। अर्जुन ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि राजकोष से चन्दन की लकड़ियों का इंतजाम किया जाए, लेकिन उस दिन न तो राजकोष में चंदन की लकड़ियां मिली और न ही पूरे राज्य में। अर्जुन ने ब्राह्मण से कहा, “आप मुझे क्षमा करें, मैं आपके लिए चंदन की लकड़ी का इंतजाम नहीं कर सका।”
श्रीकृष्ण इस पूरी घटना को देख रहे थे। उन्होंने ब्राह्मण से कहा, “आपको एक जगह चंदन की लकड़ियां जरूर मिलेगी, आप मेरे साथ चलिए।” श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी अपने साथ ले लिया। श्रीकृष्ण और अर्जुन ने ब्राह्मण का वेश बनाया और उस ब्राह्मण के साथ कर्ण के दरबार में पहुंचे। वहां भी ब्राह्मण ने कर्ण से चंदन की लकड़ी दान में मांगी। कर्ण ने अपनी मंत्री से चंदन की लकड़ी का इंतजाम करने को कहा। थोड़े समय बाद कर्ण के मंत्री ने कहा कि पूरे राज्य में कहीं चंदन की लकड़ी नहीं मिली।
इस पर कर्ण ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि उसके महल में चंदन के खंभे हैं, उन्हें तोड़कर ब्राह्मण को दान दिया जाए। मंत्री ने ऐसा ही किया। ब्राह्मण चंदन की लकड़ी लेकर अपनी पत्नी के दाह संस्कार के लिए चला गया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “देखो तुम्हारे महल के खंभों में भी चन्दन की लकड़ी लगी है, लेकिन तुमने ब्राह्मण को निराश किया। वहीं, कर्ण ने एक बार फिर अपनी दानवीरता का परिचय दिया।”
कहानी से सीख
दान वो नहीं जो समृद्ध स्थिति में किया जाता है, बल्कि असली दान वो है, जो अभाव होने पर भी किया जा सकता है।
Fri, 30 Oct 2020 - 03min - 32 - चांद पर खरगोश | The Hare On The Moon Story In Hindi
बहुत समय पहले गंगा किनारे एक जंगल में चार दोस्त रहते थे, खरगोश, सियार, बंदर और ऊदबिलाव। इन सभी दोस्तों की एक ही चाहत थी, सबसे बड़ा दानवीर बनना। एक दिन चारों ने एक साथ फैसला लिया कि वो कुछ-न-कुछ ऐसा ढूंढकर लाएंगे, जिसे वो दान कर सकें। परम दान करने के लिए चारों मित्र अपने-अपने घर से निकल गए।
ऊदबिलाव गंगा तट से लाल रंग की सात मछलियां लेकर आ गया। सियार दही से भरी हांडी और मांस का टुकड़ा लेकर आया। उसके बाद बंदर उछलता-कूदता बाग से आम के गुच्छे लेकर आया। दिन ढलने को था, लेकिन खरगोश को कुछ नहीं समझ आया। उसने सोचा अगर वो घास का दान करेगा, तो उसे दान का कोई लाभ नहीं मिलेगा। यह सोचते-सोचते खरगोश खाली हाथ वापस चला गया।
खरगोश को खाली हाथ लौटते देख उससे तीनों मित्रों ने पूछा, “अरें! तुम क्या दान करोगे? आज ही के दिन दान करने से महादान का लाभ मिलेगा, पता है न तुम्हें।” खरगोश ने कहा, “हां, मुझे पता है, इसलिए आज मैंने खुद को दान करने का फैसला लिया है।” यह सुनकर खरगोश के सारे दोस्त हैरान हो गए। जैसे ही इस बात की खबर इंद्र देवता तक पहुंची, तो वो सीधे धरती पर आ गए।
इंद्र साधु का भेष बनाकर चारों मित्रों के पास पहुंचे। पहले सियार, बंदर और ऊदबिलाव ने दान दिया। फिर खरगोश के पास इंद्र देवता पहुंचे और कहा तुम क्या दान दोगे। खरगोश ने बताया कि वो खुद को दान कर रहा है। इतना सुनते ही इंद्र देव ने वहां अपनी शक्ति से आग जलाई और खरगोश को उसके अंदर समाने के लिए कहा।
खरगोश हिम्मत करके आग के अंदर घुस गया। इंद्र यह देखकर हैरान रह गए। उनके मन में हुआ कि खरगोश सही में बहुत बड़ा दानी है और इंद्र देव यह देख बहुत खुश हुए। उधर, खरगोश आग में भी सही सलामत खड़ा था। तब इंद्र देव ने कहा, “मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। यह आग मायावी है, इसलिए इससे तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।”
इतना कहने के बाद इंद्र देव ने खरगोश को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम्हारे इस दान को पूरी दुनिया हमेशा याद करेगी। मैं तुम्हारे शरीर का निशान चांद पर बनाऊंगा।” इतना कहते ही इंद्र देव ने चांद में एक पर्वत को मसलकर खरगोश का निशान बना दिया। तब से ही मान्यता है कि चांद पर खरगोश के निशान हैं और इसी तरह चांद तक पहुंचे बिना ही, चांद पर खरगोश की छाप पहुंच गई।
कहानी से सीख:
किसी भी काम को करने के लिए दृढ़ शक्ति का होना जरूरी है।
Fri, 30 Oct 2020 - 03min - 31 - पेशावर एक्सप्रेस
पेशावर एक्सप्रेस -- कृष्ण चंदर जब मैं पेशावर से चली तो मैंने छका छक इत्मिनान का सांस लिया। मेरे डिब्बों में ज़्यादा-तर हिंदू लोग बैठे हुए थे। ये लोग पेशावर से हुई मरदान से, कोहाट से, चारसदा से, ख़ैबर से, लंडी कोतल से, बन्नूँ नौशहरा से, मांसहरा से आए थे और पाकिस्तान में जानो माल को महफ़ूज़ न पाकर हिन्दोस्तान का रुख कर रहे थे, स्टेशन पर ज़बरदस्त पहरा था और फ़ौज वाले बड़ी चौकसी से काम कर रहे थे। इन लोगों को जो पाकिस्तान में पनाह गजीं और हिन्दोस्तान में शरणार्थी कहलाते थे उस वक़्त तक चैन का सांस न आया जब तक मैंने पंजाब की रूमानख़ेज़ सरज़मीन की तरफ़ क़दम न बढ़ाए, ये लोग शक्ल-ओ-सूरत से बिल्कुल पठान मालूम होते थे, गोरे चिट्टे मज़बूत हाथ पांव, सिर पर कुलाह और लुंगी, और जिस्म पर क़मीज़ और शलवार, ये लोग पश्तो में बात करते थे और कभी कभी निहायत करख़्त क़िस्म की पंजाबी में बात करते थे। उनकी हिफ़ाज़त के लिए हर डिब्बे में दो सिपाही बंदूक़ें लेकर खड़े थे। वजीह बल्लोची सिपाही अपनी पगड़ियों के अक़ब मोर के छत्तर की तरह ख़ूबसूरत तुर्रे लगाए हुए हाथ में जदीद राइफ़लें लिए हुए उन पठानों और उनके बीवी बच्चों की तरफ़ मुस्कुरा मुस्कुरा कर देख रहे थे जो एक तारीख़ी ख़ौफ़ और शर के ज़ेर-ए-असर उस सरज़मीन से भागे जा रहे थे जहां वो हज़ारों साल से रहते चले आए थे जिसकी संगलाख़ सरज़मीन से उन्होंने तवानाई हासिल की थी। जिसके बर्फ़ाब चश्मों से उन्होंने पानी पिया था। आज ये वतन यकलख़्त बेगाना हो गया था और उसने अपने मेहरबान सीने के किवाड़ उन परबंद कर दिए थे और वो एक नए देस के तपते हुए मैदानों का तसव्वुर दिल में लिए बादिल-ए-नाख़्वासता वहां से रुख़्सत हो रहे थे। इस अमर की मसर्रत ज़रूर थी कि उनकी जानें बच गई थीं। उनका बहुत सा माल-ओ-मता और उनकी बहुओं, बेटीयों, माओं और बीवीयों की आबरू महफ़ूज़ थी लेकिन उनका दिल रो रहा था और आँखें सरहद के पथरीले सीने पर यों गड़ी हुई थीं गोया उसे चीर कर अंदर घुस जाना चाहती हैं और उसके शफ़क़त भरे मामता के फ़व्वारे से पूछना चाहती हैं, बोल माँ आज किस जुर्म की पादाश में तू ने अपने बेटों को घर से निकाल दिया है। अपनी बहुओं को इस ख़ूबसूरत आँगन से महरूम कर दिया है। जहां वो कल तक सुहाग की रानियां बनी बैठी थीं। अपनी अलबेली कुँवारियों को जो अंगूर की बेल की तरह तेरी छाती से लिपट रही थीं झिंझोड़ कर अलग कर दिया है। किस लिए आज ये देस बिदेस हो गया है। मैं चलती जा रही थी और डिब्बों में बैठी हुई मख़लूक़ अपने वतन की सतह-ए-मुर्तफ़े उसके बुलंद-ओ-बाला चटानों, उसके मर्ग़-ज़ारों, उसकी शादाब वादियों, कुंजों और बाग़ों की तरफ़ यूं देख रही थी, जैसे हर जाने-पहचाने मंज़र को अपने सीने में छिपा कर ले जाना चाहती हो जैसे निगाह हर लहज़ा रुक जाये, और मुझे ऐसा मालूम हुआ कि इस अज़ीम रंज-ओ-अलम के बारे मेरे क़दम भारी हुए जा रहे हैं और रेल की पटरी मुझे जवाब दिए जा रही है। हुस्न अबदाल तक लोग यूँही मह्ज़ुं अफ़्सुर्दा यासो नकबत की तस्वीर बने रहे। हुस्न अबदाल के स्टेशन पर बहुत से सिख आए हुए थे। पंजा साहिब से लंबी लंबी किरपानें लिए चेहरों पर हवाईयां उड़ी हुई बाल बच्चे सहमे सहमे से, ऐसा मालूम होता था कि अपनी ही तलवार के घाव से ये लोग ख़ुद मर जाऐंगे। डिब्बों में बैठ कर उन लोगों ने इत्मिनान का सांस लिया और फिर दूसरे सरहद के हिंदू और सिख पठानों से गुफ़्तगु शुरू हो गई। किसी का घर-बार जल गया था कोई सिर्फ़ एक क़मीज़ और शलवार में भागा था, किसी के पांव में जूती न थी और कोई इतना होशयार था कि अपने घर की टूटी चारपाई तक उठा लाया था। जिन लोगों का वाक़ई बहुत नुक़्सान हुआ था वो लोग गुम-सुम बैठे हुए थे। ख़ामोश , चुप-चाप और जिसके पास कभी कुछ न हुआ था वो अपनी लाखों की जायदाद खोने का ग़म कर रहा था और दूसरों को अपनी फ़र्ज़ी इमारत के क़िस्से सुना सुना कर मरऊब कर रहा था और मुसलमानों को गालियां दे रहा था।
Sat, 24 Oct 2020 - 26min - 30 - Lazy-Donkey-Story-In-Hindi आलसी गधे की कहानी
किसी गांव में एक गरीब व्यापारी अपने गधे के साथ रहा करता था। व्यापारी का घर बाजार से कुछ दूरी पर ही था। वह रोज गधे की पीठ पर सामान की बोरियां रखकर बाजार जाया करता था। व्यापारी बहुत अच्छा और दयालु इंसान था और अपने गधे का अच्छी तरह ध्यान रखता था। गधा भी अपने मालिक से बहुत प्यार करता था, लेकिन गधे की एक समस्या थी कि वह बहुत आलसी था। उसे काम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसे सिर्फ खाना और आराम करना पसंद था। एक दिन व्यापारी को पता चला कि बाजार में नमक की बहुत मांग है। उस दिन उसने सोचा कि अब वो बाजार में नमक बेचा करेंगे। जैसे ही हाट लगने का दिन आया, व्यापारी ने नमक की चार बोरियां गधे की पीठ पर लादी और उसे बाजार चलने के लिए तैयार किया। व्यापारी, गधे के आलसीपन के बारे में जानता था, इसलिए गधे के न चलने पर उसने गधे को एक-दो बार धक्का दिया और गधा चल पड़ा। नमक की बोरियां थोड़ी भारी थीं, जिस वजह से गधे के पैर कांप रहे थे और उसे चलने में मुश्किल हो रही थी। किसी तरह, गधे को धक्का देते हुए व्यापारी उसे आधे रास्ते तक ले आया। व्यापारी के घर और बाजार के बीच एक नदी पड़ती थी, जिसे पुल की मदद से पार करना पड़ता था। गधा जैसे ही नदी पार करने के लिए पुल पर चढ़ा और कुछ दूर चला, उसका पैर फिसल गया और वह नदी में गिर गया। गधे को नदी में गिरा देख, व्यापारी घबरा गया और हड़बड़ाते हुए तैरकर उसे नदी से निकालने जा पहुंचा। व्यापारी ने किसी तरह अपने गधे को नदी से बाहर निकाल लिया। जब गधा नदी से बाहर आया, तो उसने देखा कि उसकी पीठ पर लदी बोरियां हल्की हो गई हैं। सारा नमक पानी में घुल गया था और व्यापारी को आधे रास्ते से ही वापस घर लौटना पड़ा। इस वजह से व्यापारी का बहुत नुकसान हो गया, लेकिन इस घटना से आलसी गधे को बाजार तक न जाने की एक तरकीब सूझ गई थी। अगले दिन बाजार जाते समय जब पुल आया, तो गधा जानबूझकर नदी में गिर गया और उसकी पीठ पर टंगी बोरियों में रखा सारा नमक पानी में घुल गया। व्यापारी को फिर से आधे रास्ते से ही घर लौटना पड़ा। गधे ने हर दिन ऐसा करना शुरू कर दिया। इसके कारण गरीब व्यापारी को बहुत ज्यादा नुकसान होने लगा, लेकिन धीरे-धीरे व्यापारी को गधे की यह युक्ति समझ आ गई थी। एक दिन व्यापारी ने सोचा कि क्यों न गधे की पीठ पर ऐसा सामान रखा जाए जिसका वजन पानी में गिरने से दोगुना हो जाए। यह सोच कर व्यापारी ने गधे की पीठ पर रूई से भरी बोरियां बांध दी और उसे लेकर बाजार की ओर चल पड़ा। जैसे ही पुल आया, गधा रोज की तरह नदी में गिर गया, लेकिन आज उसकी पीठ पर लदा वजन कम नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया। गधा इस बात को समझ नहीं पाया। ऐसा अगले दो से तीन तक होता रहा। व्यापारी गधे की पीठ पर रूई से भरी बोरी बांध देता और पानी में गिरते ही उसका वजन दोगुना हो जाता। आखिरकार गधे ने हार मान ली। गधे को अब सबक मिल चुका था। चौथे दिन जब व्यापारी और गधा बाजार के लिए निकले, तो गधे ने चुपचाप पुल पार कर लिया। उस दिन के बाद से गधे ने कभी भी काम करने में आलस नहीं दिखाया और व्यापारी के सारे नुकसान की धीरे-धीरे भरपाई हो गई। कहानी से सीख बच्चों, आलसी गधे की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अपने कर्त्तव्य का पालन करने में कभी भी आलस नहीं दिखाना चाहिए। साथ ही, व्यापारी की तरह सही समझ और सूझबूझ से किसी भी काम को आसानी से किया जा सकता है।
Fri, 23 Oct 2020 - 04min - 29 - तेनालीराम की कहानी: मौत की सजाThu, 22 Oct 2020 - 04min
- 28 - 1919 की एक बात -- सआदत हसन मंटो
ये 1919 ईस्वी की बात है, भाईजान, जब रौलेट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजीटेशन हो रहा था। मैं अमृतसर की बात कर रहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डिफ़ेन्स ऑफ़ इण्डिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब में बन्द कर दिया था। वो इधर आ रहे थे कि पलवाल के मुक़ाम पर उनको रोक लिया गया और गिरफ़्तार करके वापस बम्बई भेज दिया गया। जहाँ तक में समझता हूँ, भाईजान, अगर अँग्रेज़ ये ग़लती न करता तो जलियाँवाला बाग़ का हादसा उस की हुक्मरानी की स्याह तारीख़ में ऐसे ख़ूनीं वर्क़ का इज़ाफ़ा कभी न करता। क्या मुसलमान, क्या हिन्दू, क्या सिख, सब के दिल में गांधी जी की बेहद इज़्ज़त थी। सब उन्हें महात्मा मानते थे। जब उन की गिरफ़्तारी की ख़बर लाहौर पहुँची तो सारा कारोबार एकदम बन्द हो गया। यहाँ से अमृतसर वालों को मालूम हुआ, चुनाँचे यूँ चुटकियों में मुकम्मल हड़ताल हो गई। कहते हैं कि नौ अप्रैल की शाम को डाक्टर सत्यपाल और डाक्टर किचलू की ज़िलावतनी के आर्डर डिप्टी कमिशनर को मिल गए थे। वो उन की तामील के लिए तैयार नहीं था क्योंकि उसके ख़्याल के मुताबिक़ अमृतसर में किसी हैजान-ख़ेज बात का ख़तरा नहीं था। लोग पुरअम्न तरीक़े से एहितजाजी जलसे वग़ैरा करते थे। जिनसे तशद्दुद का सवाल ही पैदा नहीं होता था। मैं अपनी आँखों देखा हाल बयान करता हूँ। नौ को रामनवमी थी।। जलूस निकला मगर मजाल है जो किसी ने हुक्काम की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ एक क़दम उठाया हो, लेकिन भाईजान, सर माईकल अजब औंधी खोपड़ी का इनसान था। उस ने डिप्टी कमिशनर की एक ना सुनी। उस पर, बस, यही ख़ौफ़ सवार था कि ये लीडर महात्मा गांधी के इशारे पर सामराज का तख़्ता उलटने के दर पे हैं और जो हड़तालें हो रही हैं और जलसे मुनअक़िद होते हैं उनके पस-ए-पर्दा यही साज़िश काम कर रही है।
Thu, 22 Oct 2020 - 21min - 27 - तेनालीराम और मटके की कहानी
तेनालीराम और मटके की कहानी- एक बार की बात है, किसी कारण से महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से नाराज हो गए थे। वे उनसे इतना नाराज हो गए थे कि उन्होंने कहा, “पंडित तेनालीरामा, अब आप हमें अपनी शक्ल नहीं दिखाएंगे और अगर आपने हमारे आदेश का पालन नहीं किया, तो हम आपको कोड़े मारने का आदेश देंगे।” महाराज की यह बात सुनकर तेनालीराम वहां से चुपचाप चले गए।
Wed, 21 Oct 2020 - 03min - 26 - तेनालीराम की कहानी: मनपसंद मिठाई
तेनालीराम की कहानी: मनपसंद मिठाई तेनालीराम हमेशा जवाब देने के अपने नायाब तरीकों के कारण जाने जाते थे। उनसे कोई भी सवाल पूछा जाए, वह हमेशा एक अलग अंदाज के साथ जवाब देते थे, फिर चाहे वो सवाल उनकी मनपसंद मिठाई का ही क्यों न हो। आइए, जानते हैं कि कैसे तेनालीराम ने अपनी मनपसंद मिठाई के पीछे महाराज कृष्णदेव राय की कसरत करवा दी। सर्दियों की एक दोपहरी महाराज कृष्णदेव राय, राजपुरोहित और तेनालीराम महल के बागीचे में टहल रहे थे। महाराज बोले, “इस बार बहुत गजब की ठंड पड़ रही है। सालों में ऐसे ठंड नहीं पड़ी। ये मौसम तो भरपूर खाने और सेहत बनाने का है। क्यों राजपुरोहित जी, क्या कहते हैं?” “बिल्कुल सही कह रहे हैं महाराज आप। इस मौसम में ढेर सारे सूखे मेवे, फल और मिठाइयां खाने का मजा ही अलग होता है”, राजपुरोहित ने जवाब दिया। मिठाइयों का नाम सुनकर महाराज बोले, “यह तो बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। वैसे ठंड में कौन सी मिठाइयां खाई जाती हैं?” राजपुरोहित बोले, “महाराज सूखे मेवों की बनी ढेर सारी मिठाइयां जैसे काजू कतली, बर्फी, हलवा, गुलाब जामुन, आदि। ऐसी और भी कई मिठाइयां हैं, जो हम ठंड में खा सकते हैं।” यह सुनकर महाराज हंसने लगे और तेनालीराम की तरफ मुड़कर बोले, “आप बताइए तेनाली। आपको ठंड में कौन सी मिठाई पसंद है?”
Wed, 21 Oct 2020 - 04min - 25 - हीरे का हार -- चंद्रधर शर्मा गुलेरी
चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' (1883 - 12 सितम्बर 1922) हिन्दी के कथाकार, व्यंगकार, निबन्धकार तथा सम्पादक थे। उन्हें हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, प्राकृत, बांग्ला, मराठी, जर्मन तथा फ्रेंच भाषाओं का ज्ञान था। उनकी रुचि धर्म, ज्योतिष इतिहास, पुरातत्त्व, दर्शन भाषाविज्ञान शिक्षाशास्त्र और साहित्य से लेकर संगीत, चित्रकला, लोककला, विज्ञान और राजनीति तथा समसामयिक सामाजिक स्थिति तथा रीति-नीति में थी। आम हिन्दी पाठक ही नहीं, विद्वानों का एक बड़ा वर्ग भी उन्हें अमर कहानी ‘उसने कहा था’ के रचनाकार के रूप में ही पहचानता है।
आज सवेरे ही से गुलाबदेई काम में लगी हुई है। उसने अपने मिट्टी के घर के आँगन को गोबर से लीपा है, उस पर पीसे हुए चावल से मंडन माँडे हैं। घर की देहली पर उसी चावल के आटे से लीकें खैंची हैं और उन पर अक्षत और बिल्वपत्र रक्खे हैं। दूब की नौ डालियाँ चुन कर उनने लाल डोरा बाँध कर उसकी कुलदेवी बनाई है और हर एक पत्ते के दूने में चावल भर कर उसे अंदर के घर में, भींत के सहारे एक लकड़ी के देहरे में रक्खा है। कल पड़ोसी से माँग कर गुलाबी रंग लाई थी उससे रंगी हुई चादर बिचारी को आज नसीब हुई है। लठिया टेकती हुई बुढ़िया माता की आँखें यदि तीन वर्ष की कंगाली और पुत्र वियोग से और डेढ़ वर्ष की बीमारी की दुखिया के कुछ आँखें और उनमें ज्योति बाकी रही हो तो - दरवाजे पर लगी हुई हैं। तीन वर्ष के पतिवियोग और दारिद्र्य की प्रबल छाया से रात-दिन के रोने से पथराई और सफेद हुई गुलाबदेई की आँखों पर आज फिर यौवन की ज्योति और हर्ष के लाल डोरे आ गए हैं। और सात वर्ष का बालक हीरा, जिसका एकमात्र वस्त्र कुरता खार से धो कर कल ही उजाला कर दिया गया है, कल ही से पड़ोसियों से कहता फिर रहा है कि मेरा चाचा आवेगा।
Wed, 21 Oct 2020 - 18min - 24 - पंचतंत्र हिंदी कहानी- सिंह और सियार
वर्षों पहले हिमालय की किसी कन्दरा में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था। एक दिन वह एक भैंसे का शिकार और भक्षण कर अपनी गुफा को लौट रहा था। तभी रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला जिसने उसे लेटकर दण्डवत् प्रणाम किया।
जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “सरकार मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।' शेर ने उसकी बात मान ली और उसे मित्रवत अपनी शरण में रखा।
कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गये शिकार को खा-खा कर वह सियार बहुत मोटा हो गया।
प्रतिदिन सिंह के पराक्रम को देख-देख उसने भी स्वयं को सिंह का प्रतिरुप मान लिया। एक दिन उसने सिंह से कहा, 'अरे सिंह ! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुंगा और उसका भक्षण करुंगा और उसके बचे-खुचे माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा।'
चूँकि सिंह उस सियार को मित्रवत् देखता था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा न मान उसे ऐसा करने से रोका।
भ्रम-जाल में फँसा वह दम्भी सियार सिंह के परामर्श को अस्वीकार करता हुआ पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ। वहाँ से उसने चारों ओर नज़रें दौड़ाई तो पहाड़ के नीचे हाथियों के एक छोटे से समूह को देखा। फिर सिंह-नाद की तरह तीन बार सियार की आवाजें लगा कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा। किन्तु हाथी के सिर के ऊपर न गिर वह उसके पैरों पर जा गिरा। और हाथी अपनी मस्तानी चाल से अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। क्षण भर में सियार का सिर चकनाचूर हो गया और उसके प्राण पखेरु उड़ गये।
पहाड़ के ऊपर से सियार की सारी हरकतें देखता हुआ सिंह ने तब यह गाथा कही – 'होते हैं जो मूर्ख और घमण्डी, होती है उनकी ऐसी ही गति।'सीख: घमंड और मूर्खता का साथ बहुत गहरा होता है, इसलिए कभी भी ज़िंदगी में किसी भी समय घमण्ड नहीं करना चाहिए।
Mon, 19 Oct 2020 - 03min - 23 - कोरोना के दौरान बच्चों की पढ़ाई और उसके फायदे व नुकसान
नमस्कार श्रोताओं आज की पॉडकास्ट की चर्चा का विषय है, कोरोना के दौरान बच्चों की पढ़ाई और उसके फायदे व नुकसान। इस चर्चा में हमने एक मेहमान को शामिल किया है, जो कक्षा आठ की छात्रा है, और जयपुर के एक विद्यालय में पढ़ रहे हैं। तो आइए जानते हैं कि बच्चों के हिसाब से कोरोना के दौरान पढ़ाई के नुकसान व फायदे क्या है, और बच्चे इस बारे में क्या सोचते हैं।
Sat, 17 Oct 2020 - 13min - 22 - तेनालीराम की कहानी- राजगुरु की चालSat, 17 Oct 2020 - 06min
- 21 - तेनालीराम की कहानी- दूध न पीने वाली बिल्ली
दूध न पीने वाली बिल्ली-
दक्षिण भारत के विजयनगर में राजा कृष्णदेव राय का राज था। एक बार विजयनगर में चूहों ने बहुत तबाही मचाई, जिससे पूरी प्रजा परेशान थी, क्योंकि चूहे आए दिन किसी के कपड़े कुतर जाते, तो किसी की फसल और अनाज को नुकसान पहुंचाते। इससे परेशान होकर एक दिन पूरी प्रजा राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुंची और उनकी समस्या दूर करने की प्रार्थना की।प्रजा के मुखिया ने राजा कृष्णदेव राय से कहा, महाराज, हमें चूहों के आतंक से मुक्ति दिलाइए। हम इन चूहों के आंतक से तंग आ चुके हैं। मुखिया की बात सुनकर राजा ने आदेश दिया कि हर घर में एक बिल्ली पाली जाए और उसकी देखभाल की जाए। बिल्लियों की देखभाल के लिए उन्होंने हर घर में एक-एक गाय भी दे दी। महाराज ने तेनालीराम को भी एक बिल्ली और एक गाय दी।
बिल्लियों के आने से चूहे कुछ ही दिनों में भाग गए और गायों का दूध पीकर बिल्लियां भी माेटी हो गईं। अब प्रजा के सामने बस एक ही समस्या थी कि समय से बिल्लियों को दूध दिया जाए और गायों का पालन किया जाए। वहीं, बिल्लियां दूध पी-पीकर इतनी मोटी हो गईं कि चलती-फिरती तक नहीं थीं।
तेनालीराम की बिल्ली भी मोटी और सुस्त हो गई थी। वह अपनी जगह से हिलती भी नहीं थी। एक दिन बिल्ली के आलसीपन से परेशान होकर तेनालीराम को योजना सूझी। उसने रोज की तरह बिल्ली के सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया, लेकन इस बार दूध बहुत गरम था। उसे मुंह लगाते ही बिल्ली का मुंह जल गया और उसने दूध नहीं पिया।
इस प्रकार कई दिन निकल गए, जिससे बिल्ली दुबली हो गई और भागने भी लगी। इसी बीच राजा कृष्णदेव राय ने सभा में बिल्लियों का निरीक्षण करने का ऐलान कर दिया और एक तय दिन पर पूरी प्रजा को अपनी-अपनी बिल्लियां दरबार में लाने का आदेश दिया।
सभी की बिल्लियां बहुत मोटी हो गई थीं, लेकिन तेनालीराम की बिल्ली बहुत दुबली थी। राजा ने इसका कारण पूछा, तो उसने कहा कि मेरी बिल्ली ने दूध पीना छोड़ दिया है। राजा ने इस बात को नहीं माना और उसने एक कटोरा दूध बिल्ली के सामने रखा। दूध को देखते ही बिल्ली भाग खड़ी हुई।
इस घटना को देख कर सभी दंग रह गए। राजा ने तेनालीराम से इसका राज जानना चाहा। तब तेनालीराम ने कहा, “महाराज अगर सेवक ही आलसी हो जाए, तो उसका रहना मालिक पर बोझ बन जाता है। वैसे ही इन सभी बिल्लियों के साथ भी है। मैंने अपनी बिल्ली का आलस भगाने के लिए उसे गर्म दूध दिया जिससे उसका मुंह जल गया और वह खुद से ही अपना भोजन तलाशने लगी। इससे वह ठंडा दूध देखकर भी भाग जाती और अपना भोजन खुद ही तलाश करती। धीरे-धीरे यह चुस्त और तेज हो गई, ठीक ऐसे ही मालिक को अपने सेवक के साथ करना चाहिए और उसे आलसी नहीं बनने देना चाहिए।”
तेनालीराम की बात राजा को पसंद आई और उन्होंने तेनालीराम को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम में दीं।
कहानी से सीख
हमें कभी भी किसी को इतना आराम नहीं देना चाहिए कि वह आलसी हो जाए, जैसे इस कहानी में बिल्ली के साथ हुआ। साथ ही मेहनत करने वाली की सभी कद्र करते हैं।
Sat, 17 Oct 2020 - 04min - 20 - डरावनी कहानी- एक खौफनाक साया
एक खौफनाक साया-
आशपुरा विस्तार में रहने वाली धरा शर्मा की अभी नयी-नयी शादी हुई थी। शादी के 2-3 दिन बाद ही पति दिलीप को ऑफिस के काम से एक हफ्ते के लिए दुबई जाना पड़ा।
एक रात जब धरा अपने कमरे में अकेली सोयी हुई थीं तभी अचानक उनका टीवी चलना शुरू हो गया, जिससे वह चौंक गयी। उन्होने तुरंत उठ कर टीवी बंद कर दिया। और फिर से सोने की कोशिश करने लगी।
थोड़ी देर बाद उन्हे महसूस हुआ कि उनकी बगल में बिस्तर पर कोई लेटा हुआ है। टीवी की अपने आप चलना और फिर किसी की मौजूदगी का एहसास होना घर में अकेली लेटी महिला को डरा देने के लिए काफी था। धरा जिस करवट लेटी थीं उसी करवट लेटी रहीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें।
खुद को समझाने के लिए उन्होंने सोचा कि शायद ये उनका वहम होगा। लकिन थोड़ी देर बाद उन्हें फिर से वही अनुभव हुआ कि जैसे बिस्तर का गद्दा दब रहा हो, और बगल में लेट कर कोई करवट बदल रहा हो।
इस एहसास से धरा के तो रोंगटे खड़े हो गए। वह समझ नहीं पा रही थीं की यह सब हो क्या रहा है।
बहुत हिम्मत जुटा कर वो बिस्तर से उठीं और पीछे पलट कर देखा…. वहाँ कोई नहीं था लेकिन जब उनकी नज़र गद्दे पर पड़ी, तो धरा का दिल दहल गया। गद्दा नीचे की और दबा हुआ था। और ऐसा दिख रहा था जैसे उस पर कोई इंसान लेटा हुआ है। अब वह चिल्लाना चाहती थीं पर खौफ और डर के मारे उनके हलक से आवाज़ तक नहीं निकली।
दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चली थी…घबराहट में धरा ने तकिया उठा कर उस जगह पर फेंका जहां गद्दा दबा हुआ था।
ऐसा करते ही बिजली की तेज़ी से गद्दा ऊपर आ कर ठीक हो गया। और धरा को ऐसा भास हुआ कि वहाँ से कोई परछाई तेज़ी से उठ खड़ी हुई हों । इसके बाद करीब 30 मिनट तक कोई हलचल नहीं हुई तब धरा में थोड़ी-बहुत हिम्मत बंधी और उसने पास पड़े मोबाइल से बगल के कमरे में सो रही अपनी सासू माँ को फ़ोन किया।
उनकी सांस तुरत दौड़ कर धरा के कमरे में आ गयी। और पूछने लगी की क्या हुआ? अभी धरा कुछ बोले उसके पहले उसे फिर से ऐसा कुछ दिख गया जिसे देख कर उसके होश उड़ गए।
धरा नें देखा की उसकी सासू माँ के पीछे एक जवान औरत की धुंधली परछाई खड़ी थी उसकी आँखों की जगह काले गहरे गड्ढे थे। और उसका कद करीब-करीब कमरे की छत जितना ऊंचा था। यह भयानक नज़ारा देख कर धरा वहीं बेहोश हो गयी। और उसी रात उन्हे अस्पताल में दाखिल करना पड़ा।
डॉक्टर नें कहा कि डर के मारे उन्हे low blood pressure की शिकायत हो चुकी है। धरा के ससुराल वाले वह मकान छोड़ने को राज़ी नहीं हैं इस लिए धरा आज भी अपने मायके रहती हैं।
Sun, 11 Oct 2020 - 04min - 19 - बच्चों की कहानी-कछुआ और खरगोश
कछुआ और खरगोश-
एक दिन, खरगोश ने सोचा क्यों न कछुए से दौड़ लगाई जाए। उसने कछुए से पूछा और कछुआ सहमत हो गया, और दौड़ शुरू हो गई।
दौड़ में खरगोश कछुए से काफी आगे निकल गया क्योंकि वह बहुत तेज रनर था। खरगोश को अपने तीव्रता पर घमंड था और उसने सोचा कि वह एक झपकी लेकर उठ भी जाएगा तब भी वह कछुए से जीत जाएगा। और उसने ऐसा ही किया, फिनिशिंग लाइन से ठीक पहले, कुछ दूरी पर वह एक पेड़ के नीचे सो गया। वह आश्वस्त था कि वह आसानी से जीत जाएगा, भले ही वह कुछ समय के लिए सो गया हो।
दूसरी ओर, कछुआ, खरगोश की तुलना में काफी धीमा था। हालांकि, वह बिना रुके दौड़ लगाता रहा। धीरे–धीरे ही सही पर कछुआ फिनिशिंग लाइन तक पहुँचने में कामयाब रहा, और खरगोश हाथ मलता रह गया।
कहानी से सीख
जब तक आप नियमित और दृढ़ हैं, आप हमेशा जीतेंगे, चाहे आपकी गति कुछ भी हो। आलस्य और घमंड हमारा सबसे बड़ा शत्रु है, इससे दूर रहना चाहिए।
Sun, 11 Oct 2020 - 02min - 18 - बच्चों की कहानी-भेड़िया आया… भेड़िया आया…
भेड़िया आया… भेड़िया आया…
एक बार एक लड़का था जिसके पिता ने एक दिन उससे कहा कि अब वह इतना बड़ा हो गया है कि भेड़ों की देखभाल कर सके।हर दिन वह भेड़ों को घास चरने के लिए ले जाता और उन पर निगरानी रखता। देखते ही देखते, भेड़ें बड़े हो गए और उनका ऊन भी घना हो गया था । परंतु वह लड़का दुखी था, वह इन उबाऊ भेड़ों पर नज़र नहीं रखना चाहता था, उसे भागना था, जी भर के खेलना था। इसलिए, उसने कुछ मज़ेदार करने का फैसला किया और एक दिन वह चिल्लाने लगा ‘भेड़िया! भेड़िया!’ इससे पहले कि भेड़िया किसी भेड़ को खा जाए, उसे भगाने के लिए पूरा गाँव पत्थरों के साथ दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा। जब उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भेड़िया नहीं है, तब वे उसे डाँटते – फटकारते हुए वहाँ से निकल गए कि कैसे वह उनका समय बर्बाद कर रहा था और बिना वजह के डरा भी रहा था। अगले दिन, लड़का फिर चिल्लाया ‘भेड़िया! भेड़िया!!’ और गाँव वाले फिर से उस भेड़िये को भगाने के लिए दौड़ते हुए वहाँ पहुँचे।
लड़का उसने पैदा किए दर पर हस रहा था और गाँव वाले वहाँ से निकल गए, और उनमें से कुछ औरों से ज़्यादा क्रोधित थे। तीसरे दिन, जब वह लड़का एक छोटी पहाड़ी पर गया, तो उसने अचानक एक भेड़िए को अपनी भेड़ों पर हमला करते देखा। वह जितना हो सके उतने ज़ोर से चिल्लाया, “भेड़िया! भेड़िया! भेड़िया! भेड़िया!’ लेकिन इस बार कोई गाँव वाला उसके भेड़ों को बचाने नहीं आया क्योंकि उन्हें लगा कि वह फिर से मज़ाक कर रहा है।पहले बिना वजह सिर्फ ‘भेड़िया!’ चिल्लाने से, उस दिन उसने अपनी तीन भेड़ें खो दी।
कहानी से मिली सीख-
लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कहानियाँ न बनाएं क्योंकि ऐसा करने से जब आपको वाकई में ज़रूरत होगी तब आपकी मदद करने के लिए कोई नहीं आएगा।
Sat, 10 Oct 2020 - 03min - 17 - बच्चों की कहानी-एक चतुर गणना
एक चतुर गणना-
अकबर ने एक बार अपनी अदालत में एक प्रश्न रखा, जिसने सभी को चक्कर में डाल दिया। वे सब जवाब ढूंढने की कोशिश कर ही रहे थे कि इतने में वहाँ बीरबल आया और उसने समस्या जाननी चाही। फिर उन्होंने उसे, अकबर द्वारा पूछे सवाल के बारे में बताया।
‘इस शहर में कुल कितने कौवे हैं?’
बीरबल तुरंत मुस्कुराया, अकबर के पास गया और घोषणा की, कि उनके सवाल का जवाब “इक्कीस हजार पाँच सौ तेईस” है। जब उससे पूछा गया कि उसे जवाब कैसे पता है, तो बीरबल ने कहा कि, ‘अपने आदमियों से कौओं की संख्या गिनने को कहें। यदि संख्या ज़्यादा है, तो शहर के बाहर से कौओं के रिश्तेदार उनसे मिलने आए हैं और यदि संख्या कम है, तो कौवे शहर के बाहर अपने रिश्तेदारों से मिलने गए हैं। जवाब से प्रसन्न होकर अकबर ने बीरबल को माणिक और मोती की माला भेंट की।
कहानी से मिली सीख-
आपके उत्तर के लिए स्पष्टीकरण होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उत्तर देना।
Sat, 10 Oct 2020 - 01min - 16 - हिंदी कहानी-सुई का पेड़
सुई का पेड़-
पुराने समय की बात है, दो भाई थे जो एक जंगल के नज़दीक रहते थे, बड़ा भाई अपने छोटे भाई के प्रति बहुत धूर्त था, और उसका सारा खाना खा जाता था और उसके सभी अच्छे कपड़े भी ले लेता था। एक दिन, बड़ा भाई, बाज़ार में बेचने के लिए , कुछ लकड़ियाँ इक्कठा करने जंगल में गया। जैसे ही वह एक पेड़ से दूसरे पेड़ की शाखाएं काटकर आगे बढ़ा , उसकी मुलाकात एक जादुई पेड़ से हुई। पेड़ ने उससे कहा, “हे! दयालु महोदय, कृपया मेरी शाखाओं को ना काटें। यदि आप मुझे छोड़ देते हैं, तो मैं आपको अपने सुनहरे सेब दूंगा। बड़ा भाई मान गया लेकिन वह पेड़ द्वारा दिए गए सेबों की संख्या से निराश था, लालच ने उस पर क़ाबू पा लिया, और उसने पेड़ को डराया कि यदि पेड़ ने उसे और सेब नहीं दिए तो वह पूरी शाखा काट देगा। सेब देने के बजाय, जादुई पेड़ ने उसपर सैकड़ों छोटी सुइयों की बौछार कर दी । बड़ा भाई दर्द से कराहते हुए ज़मीन पर गिर गया और धीरे–धीरे सूरज ढलने लगा।
यहाँ छोटा भाई चिंतित हो गया और अपने बड़े भाई की तलाश में निकल पड़ा, उसने अपने भाई को शरीर पर सैकड़ों सुइयों के साथ पाया। वह उसकी तरफ़ दौड़ा और उसने प्रत्येक सुई बहुत सावधानी और प्यार से निकाली। सारी सुईयाँ निकालने के बाद, बड़े भाई ने उसके साथ बुरा व्यवहार करने के लिए माफ़ी मांगी और बेहतर इंसान बनने का वादा भी किया। पेड़ ने बड़े भाई के दिल में आया बदलाव देखा और उन्हें सभी सुनहरे सेब दे दिए, जिससे उन्हें कभी कोई कमी महसूस नहीं हुई।
कहानी से मिली सीख
नम्र और दयालु होना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका फल हमेशा अच्छा ही मिलेगा।
Sat, 10 Oct 2020 - 02min - 15 - हिंदी कहानी-बोले हुए शब्द वापस नहीं आते
बोले हुए शब्द वापस नहीं आते
एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.
संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है. जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.Sat, 10 Oct 2020 - 02min - 14 - हिंदी कहानी- मुश्किल दौर से गुजर कर आप क्या बनते हैं, आप पर निर्भर करता है
हिंदी कहानी- मुश्किल दौर से गुजर कर आप क्या बनते हैं, आप पर निर्भर करता है
एक बार कि बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकर्ति सभी को समान अवसर देती हैं और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते है। इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया।
सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतरा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।
अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं पा रहा था|
आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और किन पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था।
जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था
उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने, चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के थ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी। अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़रा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली।आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है।
कहानी से शिक्षा-सभी को समान अवसर मिलते है और मुश्किले आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है की आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं।
Sat, 10 Oct 2020 - 03min - 13 - हिंदी कहानी-एक आइसक्रीम
आइसक्रीम की एक डिश A Ice cream Dish Story in Hindi
एक बार एक छोटा सा लड़का एक होटल में गया ।कुछ ही देर में वहां वेटर आया और पुछा आपको क्या चाहिए सर ? छोटे बच्चे ने उल्टा पुछा ! वैनिला आइसक्रीम(vanilla ice-cream) कितने रूपए का है ? उस वेटर वाले ने जवाब दिया 50 रुपये का ।
यह सुन कर उस छोटे लड़के ने अपने जेब में हाँथ डाल कर कुछ निकला और हिसाब किया । उसने दुबारा पुछा कि संतरा फ्लेवर आइसक्रीम(orange flavor ice-cream) कितने का है । वेटर ने दुबारा जवाब दिया और कहा 35 रुपये का सर ।
यह सुने के बाद उस लड़के ने कहा ! मेरे लिए एक संतरा फ्लेवर आइसक्रीम(orange flavor ice-cream) ले आईये ।
कुछ ही देर में वेटर आइसक्रीम की प्लेट और साथ में बिल लेकर आया और उस बच्चे के टेबल पर रखकर चले गया । उस लड़के ने उस आइसक्रीम को खाने के बाद पैसे दिए और वह चले गया ।
जब वह वेटर वापस आया तो वह दंग रहे गया यह देखकर कि उस लड़के नें खाए हुए आइसक्रीम प्लेट के बगल में उसके लिए 15 रुपय का टिप छोड़ गया था ।
कहानी से शिक्षा-उस लड़के पास 50 रुपये होने पर भी उसने उस वेटर के टिप के बारे में पहले सोचा न की अपने आइसक्रीम के बारे में । उसी प्रकार हमें अपने फायदे के बारे में सोचने से पहले दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए ।
Sat, 10 Oct 2020 - 02min - 12 - होली धमाल थाने क्यांकि लागी सीख भोळे स्याणे कीMon, 17 Feb 2020 - 06min
- 11 - होली धमाल देवर महारो रे यो हरिये रुमाल वालो रेFri, 14 Feb 2020 - 08min
- 10 - होली धमाल लालर ल्या दे रेFri, 14 Feb 2020 - 08min
- 9 - लालच बुरी बला है।
The pot of sin was filled, then there was a war of religion. And 100 sons of greedy Dhritarashtra died in that great war. Dhritarashtra, who sacrificed all his sons on the altar of his craving, tried to kill Bhimsen by holding him in his arms even after the end of the war. But in the end, embarrassed and accepting defeat, Dhritarashtra goes to the forest with his wife.
पाप का घड़ा भर गया, तब धर्म का युद्ध हुआ। और उस महान युद्ध में लालची धृतराष्ट्र के 100 पुत्र मारे गए। धृतराष्ट्र, जिन्होंने अपने सभी पुत्रों को अपनी लालसा की वेदी पर बलिदान कर दिया, युद्ध के अंत के बाद भी भीमसेन को अपनी बाहों में पकड़कर मारने की कोशिश की। लेकिन अंत में, शर्मिंदा और हार स्वीकार करते हुए, धृतराष्ट्र अपनी पत्नी के साथ जंगल में चले गए।
Fri, 14 Feb 2020 - 02min - 8 - स्वामी श्रद्धानन्द का जीवन
At the age of about 21, Munshiram was married to Shivdevi, daughter of Rai Saligram of Jalandhar.Shivdevi received only primary education. But Munshiram decided to teach Shivdevi further. Within a few days, Shivdevi won Munshiram's heart by her devotion to service and Shivdevi also gave up Munshiram's habit of drinking.
Sun, 09 Feb 2020 - 09min - 7 - सत्संग का महत्व।
जीवन को समुन्नत बनाने और सुधारने के लिए सत्संग मूलाधार है। जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति में सत्संग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। सत्संग क्या है? इस संसार में तीन पदार्थ- ईश्वर, जीव और प्रकृति- सत हैं। इन तीनों के बारे में जहां अच्छी तरह से बताया जाए, उसे सत्संग कहते हैं। श्रेष्ठ और सात्विक जनों का संग करना, उत्ताम पुस्तकों का सत्संग, पवित्र और धार्मिक वातावरण का संग करना, यह सब सत्संग के अंतर्गत आता है। सत्संग हमारे जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना कि शरीर के लिए भोजन। भोजनादि से हम शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेते हैं, किंतु आत्मा जो इस शरीर की मालिक है, उसकी संतुष्टि के लिए कुछ नहीं करते।
Thu, 02 Jan 2020 - 05min - 6 - योग और उसके अंग
यह आठ अंग हैं- (1) यम (2)नियम (3)आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7) ध्यान (8)समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।
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Mon, 30 Dec 2019 - 05min - 5 - व्यायाम
वयायाम का अर्थ है – शरीर को इस तरह तानना सिकोड़ना कि वह सही स्थिति में कार्य कर सके । जिस प्रकार अच्छे भोजन से शरीर को पोषण मिलता है, उसी प्रकार से व्यायाम से शरीर लंबे समय तक उचित दशा में बना रहता है । व्यायाम से शरीर को सुगठित, तंदुरुस्त और फुर्तीला बनाया जा सकता है ।
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Mon, 30 Dec 2019 - 04min - 4 - दुबड़ी सातः की कहानी।
दुबड़ी सातः के व्रत में सुनी जाने वाली कहानी।
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Mon, 30 Dec 2019 - 06min - 3 - बिंदायक जी की कहानी बच्ची की आवाज़ में
व्रत, उजमन में सुनने वाली बिंदायक जी महाराज की कहानी।
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Mon, 30 Dec 2019 - 03min - 2 - बिंदायक जी की कहानी
व्रत, उजमन में सुनने वाली बिंदायक जी महाराज की कहानी।
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Mon, 30 Dec 2019 - 03min - 1 - Ganesh Ji Ki Kahani
Har vrat ke bad suni jane wali Shri Ganesh ji ki kahani.
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Sun, 29 Dec 2019 - 02min
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