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हिन्दी भक्ति गीत, भजन, कीर्तन, आरती, चालीसा - शब्द एवं गान
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- 113 - डगमग डगमग डोले नैया ---- उमा
डगमग डगमग डोले नैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया चंचल चित्त को मोह ने घेरा, पग-पग पर है पाप का डेरा,लाज रखो तो लाज रखैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया छाया चारों ओर अँधेरा, तुम बिन कौन सहारा मेरा,हाथ पकड़ कर बंसी बजैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया भक्तों ने तुमको मनाया भजन से, मैं तो रिझाऊँ तुम्हें आँसुवन से,गिरतों को आ के उठावो कन्हैयापार लगावो तो जानूँ खेवैया Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 4 Jun 2022 - 112 - ये विनती रघुवीर गोसाई — उमा
ये बिनती रघुबीर गुसांई,और आस बिस्वास भरोसो, हरो जीव जड़ताई, चहौं न कुमति सुगति संपति कछु, रिधि सिधि बिपुल बड़ाई,हेतू रहित अनुराग राम पद बढै अनुदिन अधिकाई, कुटील करम लै जाहिं मोहिं जहं जहं अपनी बरिआई,तहं तहं जनि छिन छोह छांडियो कमठ-अंड की नाईं, या जग में जहं लगि या तनु की प्रीति प्रतीति सगाई,ते सब तुलसी दास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं, Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Fri, 3 Jun 2022 - 111 - चितचोरन छबि रघुबीर की — उमा
चितचोरन छबि रघुबीर की। बसी रहति निसि बासर हिय मेंबिहरनि सरजू तीर की ।चितचोरन छबि रघुबीर की... उर मणि माल पीत पट राजतचलनि मस्त गज गीर की ।चितचोरन छबि रघुबीर की... सिया अलि लखि अवध छैल छबिसुधि नहीं भूषण चीर की ।चितचोरन छबि रघुबीर की... Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Fri, 3 Jun 2022 - 110 - ऐसो को उदार जग माहीं - उमा
ऐसो को उदार जग माहीं ।बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं ॥ जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ज्ञानी ।सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी ॥ जो संपति दस सीस अरप करि, रावण सिव पहँ लीन्हीं ।सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं ॥ तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।तो भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥ Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Thu, 2 Jun 2022 - 109 - नाथ मेरो कहा बिगरेगो - उमा
नाथ मेरो कहा बिगरेगोजायेगी लाज तुम्हारी भूमि बिहीन पाण्डव सुत डोले, जब ते धरमसुत हारेरही है ना पैज प्रबल पारथ की, कि भीम गदा महि डारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ... शूर समूह भूप सब बैठे, बड़े बड़े प्रणधारी,भीष्म द्रोण कर्ण दुशासन, जिन्ह मोपे आपत डारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ... तुम तो दीनानाथ कहावत, मैं अति दीन दुखारी,जैसे जल बिन मीन जो तड़पै, सोई गति भई हमारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ... मम पति पांच, पांचन के तुम पति, मो पत काहे बिसारी,सूर श्याम पाछे पछितहिओ, कि जब मोहे देखो उघारी,नाथ मेरो कहा बिगरेगो ... Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Wed, 1 Jun 2022 - 108 - सुनि कान्हा तेरी बांसुरी - उमा
सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,बांसुरी तेरी जादू भरी॥ सारा गोकुल लगा झूमने,क्या अजब मोहिनी छा गयी,मुग्ध यमुना थिरकने लगी,तान बंसी की तड़पा गयी,छवि मन में बसी सांवरी। सुनि कान्हा तेरी बांसुरीबांसुरी तेरी जादू भरी हौले से कोई धुन छेड़ के,तेरी मुरली तो चुप हो गयी,सात सुर भंवर में कहीं,मेरे मन की तरी खो गयी,मैं तो जैसे हुई बावरी। सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,बांसुरी तेरी जादू भरी। Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Wed, 1 Jun 2022 - 107 - म्हाणे चाकर राखो जी - उमा
म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ... चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरशन पास्यूँ।वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में गोविन्द लीला गास्यूँ।म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ... ऊँचे ऊँचे महल बनाऊँ बिच बिच राखूँ क्यारी।साँवरिया के दरशन पाऊँ पहर कुसुम्बी साड़ी।म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ... मीराँ के प्रभु गहर गम्भीरा हृदय धरो री धीरा।आधी रात प्रभु दरशन दीन्हे प्रेम नदी के तीरा।म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ... … चाकरी में दरसन पास्यूँ सुमरन पास्यूँ खरची।भाव भगती जागीरी पास्यूँ तीनूं बाताँ सरसी। मोर मुगट पीताम्बर सौहे गल वैजन्ती माला।बिन्दरावन में धेनु चरावे मोहन मुरली वाला। Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Tue, 31 May 2022 - 106 - यदि नाथ का नाम दयानिधि है - उमा
Click here to listen to bhajan in the voice of Dr. Uma Shrivastav यदि नाथ का नाम दयानिधि है, तो दया भी करेंगे कभी न कभी । दुखहारी हरी, दुखिया जन के, दुख क्लेश हरेगें कभी न कभी । जिस अंग की शोभा सुहावनी है, जिस श्यामल रंग में मोहनी है । उस रूप सुधा से स्नेहियों के, दृग प्याले भरेगें कभी न कभी । जहां गीध निषाद का आदर है, जहां व्याध अजामिल का घर है । वही वेश बनाके उसी घर में, हम जा ठहरेगें कभी न कभी । करुणानिधि नाम सुनाया जिन्हें, कर्णामृत पान कराया जिन्हें । सरकार अदालत में ये गवाह, सभी गुजरेगें कभी न कभी । हम द्वार में आपके आके पड़े, मुद्दत से इसी जिद पर हैं अड़े । भव-सिंधु तरे जो बड़े से बड़े, तो ये 'बिन्दु' तरेगें कभी न कभी ।
Mon, 30 May 2022 - 105 - नमो अंजनिनंदनं वायुपूतम् - उमा
नमो अंजनिनंदनं वायुपूतम् सदा मंगलाकर श्रीरामदूतम् । महावीर वीरेश त्रिकाल वेशम् घनानन्द निर्द्वन्द हर्तां कलेशम् । नमो अंजनिनंदनं वायुपूतम् सदा मंगलाकर श्रीरामदूतम् । संजीवन जड़ी लाय नागेश काजेगयी मूर्च्छना रामभ्राता निवाजे। सकल दीन जन के हरो दुःख स्वामीनमो वायुपुत्रं नमामि नमामि। नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम् सदा मंगलागार श्री राम दूतम् । Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 104 - रघुवर तेरो ही दास कहाऊँ - उमा
रघुवर तेरो ही दास कहाऊँ तेरो नाम जपूँ निसि वासरतेरो ही गुण गाऊँ रघुवर तेरो ही दास कहाऊँ तुम ही मेरे प्राण जीवन धनतुम तजि अनत न जाऊँ तुम्हरे चरण कमल को भज कररतन हरि सुख पाऊँ रघुवर तेरो ही दास कहाऊँ Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 103 - साधो, मन का मान त्यागो - उमा
साधो, मन का मान त्यागो। काम, क्रोध, संगत दुर्जन की, इनसे अहि निशि भागो,साधो, मन का मान त्यागो… सु:ख-दुःख दोऊ सम करि जानो, और मान अपमाना,हर्ष-शोक से रहै अतीता, तीनों तत्व पहचाना,साधो, मन का मान त्यागो… अस्तुति निंदा दोऊ त्यागो, जो है परमपद पाना,जन नानक यह खेल कठिन है, सद्गुरु के गुन गाना, साधो, मन का मान त्यागो…alternateअस्तुति निंदा दोऊ त्यागो, खोजो पद निरवाना,जन नानक यह खेल कठिन है, कोऊ गुरुमुख जाना, साधो, मन का मान त्यागो… Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 102 - अब तो माधव मोहे उबार - उमा
अब तो माधव मोहे उबार |दिवस बीते रैन बीती, बार बार पुकार || नाव है मझधार भगवान्, तीर कैसे पाए,घिरी है घनघोर बदली पार कौन लगाये | काम क्रोध समेत तृष्णा, रही पल छिन घेर,नाथ दीनानाथ कृष्ण मत लगाओ देर | दौड़ कर आये बचाने द्रौपदी की लाज,द्वार तेरा छोड़ के किस द्वार जाऊं आज | Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 101 - रघुवर तुमको मेरी लाज - उमा
रघुवर तुमको मेरी लाज ।सदा सदा मैं शरण तिहारी,तुम हो गरीब निवाज़ ॥पतित उधारण विरद तिहारो,श्रवनन सुनी आवाज ।तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज … हौँ तो पतित पुरातन कहिए,पार उतारो जहाज ॥तुलसीदास पर किरपा कीजै,भगति दान देहु आज ॥तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज … अघ खंडन दुःख भन्जन जन के,यही तिहारो काज ।तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज … Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 100 - मंगल मूरति राम दुलारे - उमा
मंगल मूरति राम दुलारे,आन पड़ा अब तेरे द्वारे,हे बजरंगबली हनुमान,हे महावीर करो कल्याण,हे महावीर करो कल्याण ॥ तीनों लोक तेरा उजियारा,दुखियों का तूने काज सँवारा,हे जगवंदन केसरीनंदन,कष्ट हरो हे कृपानिधान ॥ मंगल मूरति राम दुलारे… तेरे द्वारे जो भी आया,खाली नहीं कोई लौटाया,दुर्गम काज बनावन हारे,मंगलमय दीजो वरदान ॥ मंगल मूरति राम दुलारे… तेरा सुमिरन हनुमत वीरा,नासे रोग हरे सब पीरा,राम लखन सीता मन बसिया,शरण पड़े का कीजे ध्यान ॥ मंगल मूरति राम दुलारे… Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 99 - प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर - उमा
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर,प्रभु को नियम बदलते देखा ।उनका मान भले टल जाए,भक्त का मान न टलते देखा ॥ जिनकी केवल कृपा दृष्टि से,सकल सृष्टि को पलते देखा ।उनको गोकुल के गोरस पर,सौ-सौ बार मचलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर… जिनके चरण कमल कमला के,करतल से न निकलते देखा ।उनको बृज करील कुञ्जों में,कंटक पथ पर चलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर… जिनका ध्यान विरंचि शम्भुसनकादिक से न सम्हलते देखा ।उनको बाल सखा मंडल में,लेकर गेंद उछलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर… जिनकी वक्र भृकुटि के भय से,सागर सप्त उबलते देखा ।उनको ही यशोदा के भय से,अश्रु बिंदु दृग ढलते देखा ॥प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर… Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 98 - गोविंद कबहुँ मिले पिया मेरा - उमा
गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥ चरण-कंवल को हंस-हंस देखूं राखूं नैणां नेरा।गोविंद, राखूं नैणां नेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥ निरखणकूं मोहि चाव घणेरो कब देखूं मुख तेरा।गोविंद, कब देखूं मुख तेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥ व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज मिल तूं मीत सबेरा।गोविंद, मिल तूं मीत सबेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥ मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा।गोविंद, ताप तपन बहुतेरा।गोविंद कबहुं मिलै पिया मेरा॥ Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sat, 28 May 2022 - 97 - अब सौंप दिया इस जीवन का - उमा
Click here to listen to the bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में. उद्धार पतन अब मेरा है, भगवान तुम्हारे हाथों में.अब सौंप दिया इस जीवन का… हम तुमको कभी नहीं भजते, फिर भी तुम हमें नहीं तजते. अपकार हमारे हाथों में, उपकार तुम्हारे हाथों में. अब सौंप दिया इस जीवन का… हम में तुम में है भेद यही, हम नर हैं, तुम नारायण हो. हम हैं संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे हाथों में. अब सौंप दिया इस जीवन का… दृग 'बिंदु' बनाया करते हैं, एक सेतु विरह के सागर में. जिससे हम पहुंचा करते हैं, उस पार तुम्हारे हाथों में. अब सौंप दिया इस जीवन का…
Sat, 28 May 2022 - 96 - भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना - उमा
Click here to listen to the bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना । अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना ॥ दल बल के साथ माया, घेरे जो मुझको आ कर । तो देखते न रहना, झट आ के बचा लेना ॥ भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना । संभव है झंझटों में मैं तुमको भूल जाऊं । पर नाथ कहीं तुम भी मुझको ना भुला देना ॥ भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना । तुम देव मैं पुजारी, तुम ईश मैं उपासक । यह बात सच है तो फिर सच कर के दिखा देना ॥ भगवान मेरी नैया उस पार लगा देना ।
Sat, 28 May 2022 - 95 - यही हरि भक्त कहते हैं - उमा
Click here to listen to the bhajan by Dr. Uma Shrivastav यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ।कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ॥ नहीं स्वीकार करते हैं निमंत्रण नृप सुयोधन का ।विदुर के घर पहुंचकर भोग छिलकों का लगाते हैं ॥कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥ न आये मधुपुरी से गोपियों की दुख कथा सुनकर ।द्रुपदाजी की दशा पर द्वारका से दौड़ आते हैं ॥यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं । न रोये वन-गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर ।उठा कर गीध को निज गोद में आंसू बहाते हैं ॥न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥ कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।वो चरणोदक स्वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ॥कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥
Sat, 28 May 2022 - 94 - कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट - उमा
कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट । जोहत जोहत एक पग ठानी,कालिंदी के घाट,कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट । झूठी प्रीत करी मनमोहन,या कपटी की बात,कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट । मीरा के प्रभु गिरघर नागर,दे गियो बृज को चाठ,कान्हा तोरी जोहत रह गई बाट । Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Fri, 27 May 2022 - 93 - अबकी टेक हमारी - उमा
अबकी टेक हमारी, लाज राखो गिरिधारी। जैसी लाज रखी पारथ की, भारत जुद्ध मंझारी। सारथि होके रथ को हांक्यो, चक्र-सुदर्शन-धारी।भगत की टेक न टारी।अबकी टेक हमारी… जैसी लाज रखी द्रौपदि की, होन्हिं न दीन्हिं उघारी। खैंचत खैंचत दोऊ भुज थाके, दु:शासन पचि हारी।चीर बढ़ायो मुरारी ।अबकी टेक हमारी… सूरदास की लज्जा राखो, अब को है रखवारी ? राधे राधे श्रीवर-प्यारी श्रीवृषभान-दुलारी। सरन तकि आयो तुम्हारी।अबकी टेक हमारी… Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Thu, 26 May 2022 - 92 - किसकी शरण में जाऊं - उमा
किसकी शरण में जाऊं अशरण शरण तुम्हीं हो ॥ गज ग्राह से छुड़ाया प्रह्लाद को बचाया।द्रौपदी का पट बढ़ाया निर्बल के बल तुम्हीं हो ॥ अति दीन था सुदामा आया तुम्हारे धामा।धनपति उसे बनाया निर्धन के धन तुम्हीं हो ॥ तारा सदन कसाई अजामिल की गति बनाई।गणिका सुपुर पठाई पातक हरण तुम्हीं हो ॥ मुझको तो हे बिहारी आशा है बस तुम्हारी।काहे सुरति बिसारी मेरे तो एक तुम्हीं हो ॥ Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Wed, 25 May 2022 - 91 - तू दयालु दीन हौं - उमा
तू दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी।हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी॥ नाथ तू अनाथ को, अनाथ कौन मोसो।मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो॥ ब्रह्म तू, हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो।तात-मात, गुरु-सखा, तू सब विधि हितु मेरो॥ तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै।ज्यों त्यों तुलसी कृपालु! चरन-सरन पावै॥ Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava
Tue, 24 May 2022 - 90 - जो भजे हरि को सदा - उमा
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .. देह के माला तिलक और भस्म नहिं कुछ काम के .प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .. दिल का दर्पण साफ कर और दूर कर अभिमान को .खाक हो गुरु के चरण की फिर जनम नहीं पायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .. छोड़ दुनिया के मज़े और बैठ कर एकांत में .ध्यान धर हरि के चरण का तो प्रभु मिल जायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .. दृढ़ भरोसा रख के मन में जो भजे हरि नाम को .कहत ब्रह्मानंद ब्रह्मानंद में ही समायेगा ..जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .. Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Mon, 23 May 2022 - 89 - श्याम आये नैनों में - उमा
श्याम आये नैनों मेंबन गयी मैं साँवरी शीश मुकुट बंसी अधररेशम का पीताम्बरपहने है वनमाल, सखीसलोनो श्याम सुन्दरकमलों से चरणों परजाऊँ मैं वारि री मैं तो आज फूल बनूँधूप बनूँ दीप बनूँगाते गाते गीत सखीआरती का दीप बनूँआज चढ़ूँ पूजा मेंबन के एक पाँखुड़ी Listen to Bhajan sung by Dr. Uma Shrivastava by clicking here.
Sun, 22 May 2022 - 88 - भजन: गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ
bhajan: guruji main to ek niranjan dhyaaun Listen to bhajan sung by Anjana Bhattacharya गुरुजी, गुरुजी , गुरुजी , गुरुजी .... गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ जी। दूजे के संग नहीं जाऊँ जी।। दुःख ना जानूँ जी मैं दर्द ना जानूँ जी मैं । ना कोई वैद्य बुलाऊँ जी।। सदगुरु वैद्य मिले अविनाशी। वाको ही नाड़ी बताऊँ जी।। दूजे के संग नहीं जाऊँ जी।। गंगा न जाऊँ जी मैं जमना न जाऊँ जी मैं। ना कोई तीरथ नहाऊँ जी।। अड़सठ तीरथ हैं घट भीतर। वाही में मल मल नहाऊँ जी।। दूजे के संग नहीं जाऊँ जी।। कहे गोरख जी हो सुन हो मच्छन्दर मैं । ज्योति में ज्योति मिलाऊँ जी।। सतगुरु के मैं शरण गये से। आवागमन मिटाऊँ जी।। दूजे के संग नहीं जाऊँ जी।। गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ जी। दूजे के संग नहीं जाऊँ जी।। gurujI, gurujI , gurujI , gurujI .... gurujI maiM to ek niraMjan dhyAU.N jI| dUje ke saMg nahIM jAU.N jI|| duHkh nA jAnU.N jI maiM dard nA jAnU.N jI maiM | nA koI vaidy bulAU.N jI|| sadguru vaidy mile avinAshI| vAko hI nA.DI batAU.N jI|| dUje ke saMg nahIM jAU.N jI|| gaMgA na jAU.N jI maiM jamnA na jAU.N jI maiM| nA koI tIrath nahAU.N jI|| a.DsaTh tIrath haiM ghaT bhItar| vAhI meM mal mal nahAU.N jI|| dUje ke saMg nahIM jAU.N jI|| kahe gorakh jI ho sun ho machChandar maiM | jyoti meM jyoti milAU.N jI|| satguru ke maiM sharaN gaye se| AvAgman miTAU.N jI|| dUje ke saMg nahIM jAU.N jI|| gurujI maiM to ek niraMjan dhyAU.N jI| dUje ke saMg nahIM jAU.N jI||
Thu, 8 Oct 2015 - 86 - होली: होलीआई रे कान्हा बृज के बसिया - उमा
Listen to this Holi `Holi aayii re kaanhaa brij ke basiya' in the voice of Dr. Uma Shrivastava होलीआई रे कान्हा बृज के बसिया होलीआई रे कान्हा… आज बिरज में धूम मची है, सब मिल खेलें होली झांझ मृदङ्ग मंजीरा बाजे, नाचे छोरा छोरी ऐसी धूम मची बृज में रसिया होलीआई रे कान्हा… अपने अपने घर से निकसी, कोई श्यामल कोई गोरी, किसी के हाथ गुलाल पिटारी कोई मारे पिचकारी अब तो धूम मची बृज में रसिया होलीआई रे कान्हा… इत से आई कुंवरि राधिका, हाथ गुलाल पिटारी, उत से धाये कृष्ण कन्हाई, भर मारी पिचकारी ऐसा फाग रच्यो बृज में रसिया होलीआई रे कान्हा…
Sat, 3 Apr 2021 - 85 - होली: राम-जानकी की होरी
Listen to the Holi `Ram Janki ki Hori` sung by Shri Vibhu Varma राम-जानकी की होरी (२)जनकपुर देखन चलो री, राम-जानकी की होरी… कौशल भूषण इत रघुनन्दन, उत मिथिलेश किशोरी, (२)सखा राम के, सखी सिया की, (२)कैसा ये फाग रचो री, जुगल छवि आज लखो री, राम जानकी की होरी… लपक झपक सीता ने लक्ष्मण, पकड़ लिये बरजोरी, (२)कहां गये वो धनुष बाण अब, (२)बेंदी माथे धरो री, सखी इनके रोली मलो री,राम जानकी की होरी… इतने में पिचकारी मारी, भरत सियाजू की ओरी, (२)भींज गई मिथिलेश नन्दिनी, (२)अब कहो भाभी मोरी, कहो, और खेलोगी होरी ॥राम जानकी की होरी… Other audios of this Holi can be heard at Holi-Geet on archive.org.
Fri, 2 Apr 2021 - 84 - होली: होली आज जले चाहे काल जले
Listen to the Holi `Holi Aaj jale chahe kaal jale` in the voice of Shri Abhay Shrivastava. होली आज जले चाहे काल जले (२) मोरा श्याम सुन्दर मोसे आन मिले (२) होली आज जले ... जब सब सखियाँ श्रृंगार करत हैं, मैं बिरहन बिरहा से जलूँ सखी मैं बिरहन बिरहा से जलूँ होली आज जले ... सब के पिया घर ही बसत हैं, हमरे पिया परदेस बसे री सखी हमरे पिया परदेस बसे होली आज जले ... मीरा के प्रभु गिरिधर नागर श्याम सुन्दर मोसे आन मिले सखी श्याम सुन्दर मोसे आन मिले होली आज जले ...
Thu, 1 Apr 2021 - 83 - होली: मोहन अजब खिलाड़ी
Listen to the Holi, Mohan Ajab Khilari` in the voice of Shri Abhay Shrivastava मोहन अजब खिलाड़ी, देखो होली कौतुक भारी मोहन अजब... नर तन धर सोई नट नागर, श्री वृषभानु दुलारी, (२) दिखलावत नित नये तमाशे, (२) चतुरन बहुत विचारी, बुद्धि सबकी पचि हारी मोहन अजब... मन मटकी भर प्रेम रंग से, सुचिता की पिचकारी (२) तक तक मारिये श्याम सुंदर पर, (२) चूके न अवसर भारी, कपट को घूंघट हटा री मोहन अजब... ज्ञान गुलाल अबीर भक्त को, याको चन्दन लगा री (२) विनती ये मधुरेश चरण की, (२) आवागमन मिटा री, बोलो, जय कृष्ण मुरारी मोहन अजब... variation माय मोह जाल के माँही, सृष्टि फँसा कर सारी (२) दिखलावत नित नये तमाशे, (२) चतुरन बहुत विचारी, बुद्धि सबकी थक हारी मोहन अजब... नर तन धर सोई नट नागर, सुंदर श्री गिरधारी, (२) नन्द नन्दन श्री कुंज बिहारी, (२) खेलत होली भारी, बोलो, जय कृष्ण मुरारी मोहन अजब...
Wed, 31 Mar 2021 - 82 - होली: बिरज में धूम मचायो कान्हा
Listen to the Holi, Biraj me dhoom machayo Kanha in the voice of Shri V N Shrivastav, Bhola. बिरज में धूम मचायो कान्हा (2) बिरज में धूम … बिरज में धूम मचायो कान्हा बिरज में धूम … कैसे कैसे जाऊँ, कैसे कैसे जाऊँ, अपने धाम बिरज में धूम मचायो कान्हा (2) बिरज में धूम … कैसे कैसे जाऊँ, मैं, कैसे कैसे जाऊँ, अपने धाम बिरज में धूम मचायो कान्हा (2) बिरज में धूम … सब सखियाँ मिल, होली खेलत हैं (3) होली खेलत हैं सब सखियाँ मिल, होली खेलत हैं (2) होली खेलत हैं (2) सब सखियाँ मिल, होली खेलत हैं (2) अँखियन डार गुलाल ... बिरज में धूम मचायो कान्हा (2) कैसे कैसे जाऊँ, मैं, (2) कैसे कैसे जाऊँ, (2) कैसे कैसे जाऊँ, अपने धाम बिरज में धूम मचायो कान्हा बिरज में धूम …
Tue, 30 Mar 2021 - 81 - होली गीत
राम परिवार में गाये जाने वाले पारंपरिक होली गीतबिरज में धूम मचायो कान्हामैं तो रंगी तुम ही रंग प्यारेमोहन अजब खिलाड़ीराम जानकी की होरीहोरी खेलत गिरधारीहोली आज जले चाहे काल जलेहोली आयी रे कान्हा बृज के बसिया
Mon, 29 Mar 2021 - 80 - भजन: राम भजा सो जीता जग में
Bhajan: Ram Bhaja so Jeeta Jag Me Listen to the bhajan sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' राम भजा सो जीता जग में, राम भजा सो जीता रे। हृदय शुद्ध नही कीन्हों मूरख, कहत सुनत दिन बीता रे। राम भजा सो जीता जग में ... हाथ सुमिरनी, पेट कतरनी, पढ़ै भागवत गीता रे। हिरदय सुद्ध किया नहीं बौरे, कहत सुनत दिन बीता रे। राम भजा सो जीता जग में ... और देव की पूजा कीन्ही, हरि सों रहा अमीता रे। धन जौबन तेरा यहीं रहेगा, अंत समय चल रीता रे। राम भजा सो जीता जग में ... बाँवरिया बन में फंद रोपै, संग में फिरै निचीता रे। कहे 'कबीर' काल यों मारे, जैसे मृग कौ चीता रे। राम भजा सो जीता जग में ...
Wed, 30 May 2018 - 79 - Sai Bhajan: ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा
Listen to VNS 'Bhola' teaching the bhajan to Prarthana & Chhavi. ये सब तुम्हारी मैहर है प्यारे, ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है । जहाँ भी देखूँ जिधर भी देखूँ, तुम्हारी मूरत/सूरत पड़े दिखाई । यहाँ के हर शय में प्यारे बाबा, तुम्हारी ख़ुशबू भरी हुई है ॥ ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है । जो आँख मूदूँ तो यूँ लगे ज्योँ, तू पास में ही खड़ा हुआ है । ज़मीं से अम्बर तलक फि़ज़ा ये, तेरे ही रंग में रंगी हुई है ॥ ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है । सजल हमारे नयन मगर तू, मधुर मधुर मुस्कुरा रहा है । तेरी मधुर मुसकान से अपनी, अंतर्ज्योति जगी हुई है ॥ ये सब तुम्हारी मैहर है बाबा, कि अब भी महफिल जमी हुई है । साईं राम साईं राम -----------
Sun, 20 May 2018 - 78 - सुन्दरकाण्ड - श्रीरामचरितमानस
Do the Sundarkand Path along with Shri Shiv Dayal Ji and Anil Shrivastava. कथा प्रारम्भ होत है, सुनहु वीर हनुमान । राम लक्षमण जानकी, करहुँ सदा कल्याण ॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥ श्री गणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्॥१॥ नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥२॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥ जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥ सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥ जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥ जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥ जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी॥ हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥१॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥ सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥ आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥ राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥ तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥ कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥ जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥ सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥ जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥ सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥ बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥ मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा॥ राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान। आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥२॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥ जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥ गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥ सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥ ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥ तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥ नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए॥ सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें॥ उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥ गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥ अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥ कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥ गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै॥ बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥१॥ बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥ कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥२॥ करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥ एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥३॥ पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार॥३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥ जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥ मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥ पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका॥ जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा॥ बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥ तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥ तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥४॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥ गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥ अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥ मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥ गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥ सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥ भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥ रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ॥५॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥ मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥ राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥ एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥ बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए॥ करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥ की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई॥ की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी॥ तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥६॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥ तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥ तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं॥ अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥ जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥ सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती॥ कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥ प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर॥७॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥ एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥ पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥ तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥ जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई॥ करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥ देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥ कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥ निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥८॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥ तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥ बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥ कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥ तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥ तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥ सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥ अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥ सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥ आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन॥९॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥ नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥ स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥ सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥ चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥ सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥ सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥ कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥ मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥ भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद॥१०॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥ सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना॥ सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥ खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥ एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥ नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥ यह सपना मैं कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥ तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं॥ जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच॥११॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥ तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई॥ आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥ सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥ सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥ निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी॥ कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला॥ देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा॥ पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥ सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका॥ नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥ देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥ कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब। जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ॥१२॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥ चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥ जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥ सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥ रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥ लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥ श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई॥ तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ॥ राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥ यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥ नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें॥ कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास॥ जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास॥१३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥ बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना॥ अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी॥ कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥ सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥ कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता॥ बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥ देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥ मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥ जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥ रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर। अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर॥१४॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥ नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू॥ कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥ जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥ कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥ तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥ सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं॥ प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥ कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥ उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई॥ निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु। जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु॥१५॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई॥ रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की॥ अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई॥ कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥ निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥ हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना॥ मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा॥ कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥ सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥ सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥१६॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥ आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥ अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥ करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥ बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥ अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥ सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा॥ सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥ तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥ देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥१७॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥ रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥ नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥ खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥ सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥ सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥ पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥ आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥ कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥१८॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥ मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥ चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥ कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥ अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥ रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा॥ तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा। मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥ उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥ ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥१९॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥ तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥ जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥ तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥ कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए॥ दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥ कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥ देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥ कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद। सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद॥२०॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा॥ कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥ मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥ सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया॥ जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा। जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन॥ धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता। हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥ खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥ जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि॥२१॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥ समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥ खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥ सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥ जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे॥ मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥ बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥ देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥ जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥ तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥ प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि॥२२॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू॥ रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥ राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥ बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी॥ राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥ सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं॥ सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥ संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥ मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥२३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥ बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥ मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥ उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥ सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना॥ सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए। नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥ आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥ सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर॥ कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ। तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ॥२४॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥ जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँûमैं तिन्ह कै प्रभुताई॥ बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥ जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥ रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥ कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥ बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥ पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता॥ निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं॥ हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥२५॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥ जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥ तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा॥ हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई॥ साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥ जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥ ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥ उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥ पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥२६॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥ चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥ कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥ दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी॥ तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥ मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥ कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना॥ तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥ जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥२७॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥ नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा॥ हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥ मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा॥ मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥ चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥ तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥ रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥ जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज॥२८॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई॥ एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥ आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥ पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥ नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥ सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ। राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥ फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥ प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज। पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज॥२९॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥ ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥ सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रेलोक उजागर॥ प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥ नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी॥ पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥ सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए॥ कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥ नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥३०॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥ नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी॥ अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना॥ मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी॥ अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना॥ नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा॥ बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा॥ नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी। सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला॥ निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति। बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥३१॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना॥ बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥ कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई॥ केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥ सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥ प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥ सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥ पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता॥ सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत। चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥३२॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥ प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥ सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर॥ कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा॥ कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥ प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना॥ साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई॥ नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा। सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥ ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल। तव प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल॥३३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥ सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥ उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना॥ यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥ सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥ तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा॥ अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे॥ कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी॥ कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ। नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ॥३४॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ श्री राम जय जय राम ॐ श्री राम जय जय राम ॥ श्री राम जय जय राम ॐ श्री राम जय जय राम ॥ श्री राम जय जय राम ॐ श्री राम जय जय राम ॥ प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा॥ देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना॥ राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा॥ हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना॥ जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती॥ प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं॥ जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई॥ चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा॥ नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी॥ केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं॥ चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे॥ कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं। जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥१॥ सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई। गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई॥ रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी। जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी॥२॥ एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर। जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर॥३५॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका॥ निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा॥ जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई॥ दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी॥ रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी॥ कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहू॥ समुझत जासु दूत कइ करनी। स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी॥ तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई॥ तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई॥ सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥ राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक। जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक॥३६॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥ सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा॥ जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥ कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥ अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥ मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥ बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई॥ बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥ जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही॥ सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥३७॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥ अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥ पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥ जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता॥ जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥ सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई॥ चौदह भुवन एक पति होई। भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥ गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥ काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ। सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥३८॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥ गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी॥ जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥ ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥ देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥ सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥ जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥ बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस। परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥३९(क)॥ मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात। तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥३९(ख)॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥ तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥ रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥ माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥ सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥ जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥ तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥ कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥ तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार। सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार॥४०॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी॥ सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहि निकट मुत्यु अब आई॥ जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥ कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाही॥ मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥ अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा॥ उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥ तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥ सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥ रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि। मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥४१॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयुहीन भए सब तबहीं॥ साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥ रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥ चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं॥ देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥ जे पद परसि तरी रिषिनारी। दंडक कानन पावनकारी॥ जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए॥ हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मै देखिहउँ तेई॥ जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ। ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ॥४२॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा॥ कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥ ताहि राखि कपीस पहिं आए। समाचार सब ताहि सुनाए॥ कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई॥ कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥ जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया॥ भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥ सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥ सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना॥ सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि। ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥४३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥ पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥ जौं पै दुष्टहदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई॥ निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥ भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥ जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥ जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई॥ उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत। जय कृपाल कहि चले अंगद हनू समेत॥४४॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर॥ दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता॥ बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥ भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥ सिंघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा॥ नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता॥ नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥ सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर। त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥४५॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥ दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥ अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भयहारी॥ कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥ खल मंडलीं बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती॥ मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती॥ बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥ अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्ह जानि जन दाया॥ तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम। जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥४६॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना॥ जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा॥ ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी॥ तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं॥ अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे॥ तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥ मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ॥ जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा॥ अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज। देखेउँ नयन बिरंचि सिब सेब्य जुगल पद कंज॥४७॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥ जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही॥ तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥ जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा॥ सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥ समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥ अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥ तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥ सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम। ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम॥४८॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें॥ राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा॥ सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी॥ पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा॥ सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी॥ उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥ अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी॥ एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥ जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥ अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥ रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड। जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड॥४९(क)॥ जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ। सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ॥४९(ख)॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना॥ निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥ पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी॥ बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक॥ सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥ संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँती॥ कह लंकेस सुनहु रघुनायक। कोटि सिंधु सोषक तव सायक॥ जद्यपि तदपि नीति असि गाई। बिनय करिअ सागर सन जाई॥ प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि। बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि॥५०॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सखा कही तुम्ह नीकि उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई॥ मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा॥ नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥ कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥ सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥ अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई॥ प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई॥ जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए॥ सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह। प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह॥५१॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥ रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥ कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥ सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए॥ बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥ जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना॥ सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोडाए॥ रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥ कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार। सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार॥५२॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ तुरत नाइ लछिमन पद माथा। चले दूत बरनत गुन गाथा॥ कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥ बिहसि दसानन पूँछी बाता। कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥ पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी। जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥ करत राज लंका सठ त्यागी। होइहि जब कर कीट अभागी॥ पुनि कहु भालु कीस कटकाई। कठिन काल प्रेरित चलि आई॥ जिन्ह के जीवन कर रखवारा। भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥ कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी। जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥ की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर। कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर॥५३॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें। मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥ मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा। जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥ रावन दूत हमहि सुनि काना। कपिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना॥ श्रवन नासिका काटै लागे। राम सपथ दीन्हे हम त्यागे॥ पूँछिहु नाथ राम कटकाई। बदन कोटि सत बरनि न जाई॥ नाना बरन भालु कपि धारी। बिकटानन बिसाल भयकारी॥ जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा। सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥ अमित नाम भट कठिन कराला। अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥ द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि। दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि॥५४॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ ए कपि सब सुग्रीव समाना। इन्ह सम कोटिन्ह गनइ को नाना॥ राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं। तृन समान त्रेलोकहि गनहीं॥ अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर॥ नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं। जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं॥ परम क्रोध मीजहिं सब हाथा। आयसु पै न देहिं रघुनाथा॥ सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला। पूरहीं न त भरि कुधर बिसाला॥ मर्दि गर्द मिलवहिं दससीसा। ऐसेइ बचन कहहिं सब कीसा॥ गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका। मानहु ग्रसन चहत हहिं लंका॥ सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम। रावन काल कोटि कहु जीति सकहिं संग्राम॥५५॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेस सहस सत सकहि न गाई॥ सक सर एक सोसि सत सागर। तब भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥ तासु बचन सुनि सागर पाहीं। मागत पंथ कृपा मन माहीं॥ सुनत बचन बिहसा दससीसा। जौं असि मति सहाय कृत कीसा॥ सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई॥ मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई। रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई॥ सचिव सभीत बिभीषन जाकें। बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें॥ सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी। समय बिचारि पत्रिका काढ़ी॥ रामानुज दीन्ही यह पाती। नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती॥ बिहसि बाम कर लीन्ही रावन। सचिव बोलि सठ लाग बचावन॥ बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस। राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस॥५६(क)॥ की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग। होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग॥५६(ख)॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सबहि सुनाई॥ भूमि परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बिलासा॥ कह सुक नाथ सत्य सब बानी। समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी॥ सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा। नाथ राम सन तजहु बिरोधा॥ अति कोमल रघुबीर सुभाऊ। जद्यपि अखिल लोक कर राऊ॥ मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही। उर अपराध न एकउ धरिही॥ जनकसुता रघुनाथहि दीजे। एतना कहा मोर प्रभु कीजे। जब तेहिं कहा देन बैदेही। चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही॥ नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ। कृपासिंधु रघुनायक जहाँ॥ करि प्रनामु निज कथा सुनाई। राम कृपाँ आपनि गति पाई॥ रिषि अगस्ति कीं साप भवानी। राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी॥ बंदि राम पद बारहिं बारा। मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा॥ बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥५७॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू॥ सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती॥ ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥ क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥ अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥ संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥ मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥ कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥ काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच। बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥५८॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥ गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥ तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥ प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहे सुख लहई॥ प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही॥ ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥ प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥ प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई॥ सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ। जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ॥५९॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ प्रबिसि नगर कीजे सब काजा । हृदयँ राखि कौसलपुर राजा ॥ नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाई रिषि आसिष पाई॥ तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥ मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई। करिहउँ बल अनुमान सहाई॥ एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ। जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥ एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥ सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥ देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥ सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥ निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ। यह चरित कलिमल हर जथामति दास तुलसी गायऊ॥ सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना॥ तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥ सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान। सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥६०॥ श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर । त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें । सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥ इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने पञ्चमः सोपानः समाप्तः। कथा विसर्जन होत है, सुनहु वीर हनुमान । राम लक्षमण जानकी, करहुँ सदा कल्याण ॥ सियावर रामचंद्र की जय ॥ उमापति महादेव की जय ॥ लक्ष्मण हनुमान की जय ॥ राम कृष्ण भगवान की जय ॥ श्री गुरु महाराज की जय ॥ आरती श्री रामायणजी की . कीरति कलित ललित सिय पी की .. गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद . बालमीक बिग्यान बिसारद .. सुक सनकादि सेष और सारद . बरन पवनसुत कीरति नीकी .. गावत संतत संभु भवानी . अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी .. ब्यास आदि कबिवर्ग बखानी . कागभुसुंडि गरुड के ही की .. गावत बेद पुरान अष्टदस . छओं सास्त्र सब ग्रंथन को रस .. मुनि जन धन संतन को सरबस . सार अंस सम्म्मत सब ही की .. कलि मल हरनि बिषय रस फीकी . सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की .. दलन रोग भव भूरि अमी की . तात मात सब बिधि तुलसी की .. आरति कीजै हनुमान लला की . दुष्ट दलन रघुनाथ कला की .. जाके बल से गिरिवर काँपे रोग दोष जाके निकट न झाँके . अंजनि पुत्र महा बलदायी संतन के प्रभु सदा सहायी .. दे बीड़ा रघुनाथ पठाये लंका जार सिया सुधि लाये . लंका सौ कोटि समुद्र सी खाई जात पवनसुत बार न लाई .. आरति कीजै हनुमान लला की . लंका जारि असुर संघारे सिया रामजी के काज संवारे . लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे आन संजीवन प्राण उबारे .. आरति कीजै हनुमान लला की . पैठि पाताल तोड़ि यम कारे अहिरावन की भुजा उखारे . बाँये भुजा असुरदल मारे दाहिने भुजा संत जन तारे .. आरति कीजै हनुमान लला की . सुर नर मुनि आरति उतारे जय जय जय हनुमान उचारे . कंचन थार कपूर लौ छाई आरती करति अंजना माई .. जो हनुमान जी की आरति गावे बसि वैकुण्ठ परम पद पावे . आरति कीजै हनुमान लला की . दुष्ट दलन रघुनाथ कला की .. आरति कीजै हनुमान लला की . बोलो श्री राम चन्द्र भगवान की जय ..
Sun, 18 Feb 2018 - 77 - भजन: जय शिव शंकर औघड़दानी
Bhajan: jay shiv shankar aughaddani (Words/Voice - Shri V N S 'Bhola') Text and link taken from Mahavir Binavau Hanumana जय शिव शंकर औघड़दानी जय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी सकल बिस्व के सिरजन हारे , पालक रक्षक 'अघ संघारी' जय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी हिम आसन त्रिपुरारि बिराजें , बाम अंग गिरिजा महरानी जय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी औरन को निज धाम देत हो , हमसे करते आनाकानी जय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी सब दुखियन पर कृपा करत हो हमरी सुधि काहे बिसरानी जय शिव शंकर औघड़दानी , विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी View and Listen to the bhajan on BholaKrishna youtube channel at https://www.youtube.com/watch?v=GjozaYcXoOE
Tue, 13 Feb 2018 - 76 - भजन: शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी
bhajan: Shankar Shiv Shambhu Sadhu Santan Sukhkari स्टार हिन्दुस्तान रिकार्ड कम्पनी के लिये १९५८ में लिखा और तभी इस भजन से अपना पहला कोमर्शियल रिकार्ड बना। राम कृपा से रेडियो सूरिनाम डच गयाना का सिग्नेचर ट्यून बना जो हमने १९७६ में अपने ब्रिटिश गयाना प्रवास में स्वयं सुना। आश्चर्य हुआ कि मेरा भजन मुझसे पहले अमरीका पहुंच गया। - 'Bhola' On the occasion of MahaShivaRatri on Feb 13, 2018, listen to this bhajan राम नाम मधुबन का, भ्रमर बना, मन शिव का । निश दिन सिमरन करता, नाम पुण्यकारी ॥ शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥ निश दिन सिमरन करते, नाम पुण्यकारी ॥ लोचन त्रय अति विशाल, सोहे नव चन्द्र भाल, रुण्ड मुण्ड व्याल माल, जटा गंग धारी । शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥ शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥ सतत जपत राम नाम अतिशय शुभकारी ॥ पारवती पति सुजान, प्रमथ राज वृषभ यान, सुर नर मुनि सैव्यमान, त्रिविध ताप हारी । शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥ औघड़ दानी महान, कालकूट कियो पान, आरत-हर तुम समान, को है त्रिपुरारी । शंकर शिव शम्भु साधु सन्तन सुखकारी ॥ Listen to bhajan written, composed and sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' at https://www.youtube.com/watch?v=KzoJ7isIxfs
Sun, 11 Feb 2018 - 75 - भजन: रोम रोम में रमा हुआ है
rom rom me ramA huA hai Listen to bhajan in the voice of V N Shrivastav 'Bhola' रोम रोम में रमा हुआ है, मेरा राम रमैया तू, सकल सृष्टि का सिरजनहारा, राम मेरा रखवैया तू, तू ही तू, तू ही तू, ... डाल डाल में, पात पात में, मानवता के हर जमात में, हर मज़हब, हर जात पात में एक तू ही है, तू ही तू, तू ही तू, तू ही तू, ... सागर का ख़ारा जल तू है, बादल में, हिम कण में तू है, गंगा का पावन जल तू है, रूप अनेक, एक है तू, तू ही तू, तू ही तू, ... चपल पवन के स्वर में तू है, पंछी के कलरव में तू है, भौरों के गुंजन में तू है , हर स्वर में ईश्वर है तू, तू ही तू, तू ही तू, ... "तन है तेरा, मन है तेरा, प्राण हैं तेरे, जीवन तेरा, सब हैं तेरे, सब है तेरा," पर मेरा इक तू ही तू, तू ही तू, तू ही तू, ...
Wed, 7 Feb 2018 - 74 - भजन: भज मन राम चरण सुखदाई ..
Bhajan: bhaj man ram charan sukhdai Listen to the bhajan in the voice of Madhu Chandra भज मन राम चरण सुखदाई .. जिन चरनन से निकलीं सुरसरि शंकर जटा समायी . जटा शन्करी नाम पड़्यो है त्रिभुवन तारन आयी .. राम चरण सुखदाई .. शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक शेष सहस मुख गायी . तुलसीदास मारुतसुत की प्रभु निज मुख करत बड़ाई .. राम चरण सुखदाई ..
Tue, 6 Feb 2018 - 73 - भजन: पढ़ो पोथी में राम
Bhajan: Padho pothi me Ram Listen to the bhajan by clicking here (Audio from Bhajan Sandhya at Krishna Shivalaya on Nov 29, 2017) पढ़ो पोथी में राम, लिखो तख्ती पे राम . देखो खम्बे में राम, हरे राम राम राम .. राम, राम, राम, राम, राम ॐ . ( २) राम, राम, राम, राम, राम, राम . ( २) राम, राम, राम, राम, हरे राम राम राम .. देखो आंखों से राम, सुनो कानों से राम . बोलो जिव्हा से राम, हरे राम राम राम .. राम राम पियो पानी में राम, जीमो खाने में राम . चलो घूमने में राम, हरे राम राम राम .. राम राम बाल्यावस्था में राम, युवावस्था में राम . वृद्धावस्था में राम, हरे राम राम राम .. राम राम जपो जागृत में राम, देखो सपनों में राम . पाओ सुषुप्ति में राम, हरे राम राम राम .. राम राम
Mon, 5 Feb 2018 - 72 - भजन: अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी
bhajan: ab kaise chhute ram rat lagi Listen to bhajan by Shri V N S 'Bhola' अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी । प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी । प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा । प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती । प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा । प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भगति करै रैदासा । View on Bholakrishna youtube channel at https://www.youtube.com/watch?v=-E7tM7QogA0
Sun, 4 Feb 2018 - 71 - भजन: रे मन मूरख, जनम गँवायौ
Bhajan: re man murakh janam gavaayo Listen to bhajan by Shri VNS Bhola रे मन मूरख जनम गँवायौ । करि अभिमान विषय को राच्यो, नाम शरण नहिं आयौ ॥ मन मूरख जनम गँवायौ, रे मन मूरख जनम गँवायौ । ये संसार फूल सेमल ज्यौं, सुन्दर देखि रिझायो । चाखन लाग्यौ रुई उडि़ गई, हाथ कछू नहिं आयौ ॥ मन मूरख जनम गँवायौ, रे मन मूरख जनम गँवायौ । कहा भये अब के मन सोचें, पहिलैं नाहिं कमायौ । सूरदास हरि नाम भजन बिनु, सिर धुनि-धुनि पछितायौ ॥ मन मूरख जनम गँवायौ, रे मन मूरख जनम गँवायौ । View video on BholaKrishna Channel at youtube at https://www.youtube.com/watch?v=sseihTzzGvM
Sun, 4 Feb 2018 - 70 - भजन: राम से बड़ा राम का नाम ..
Bhajan: Ram se bada Ram ka nam Listen in voice of Shri VNS Bhola, family and friends राम से बड़ा राम का नाम . अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम, राम से बड़ा राम का नाम .. सिमरिये नाम रूप बिनु देखे, कौड़ी लगे ना दाम . नाम के बांधे खिंचे आयेंगे, आखिर एक दिन राम . राम से बड़ा राम का नाम .. जिस सागर को बिना सेतु के , लांघ सके ना राम . कूद गये हनुमान उसी को, लेकर राम का नाम . राम से बड़ा राम का नाम .. वो दिलवाले डूब जायेंगे or वो दिलवाले क्या पायेंगे , जिनमें नहीं है नाम .. वो पत्थर भी तैरेंगे जिन पर लिखा हुआ श्री राम. राम से बड़ा राम का नाम .. Many Thanks to Anil Dada for corrections.
Fri, 2 Feb 2018 - 69 - धुन : आते भी राम बोलो
Dhun: aate bhi Ram bolo, jaate bhi Ram bolo Listen in the Voice of Shri VNS Bhola वृद्धि आस्तिक भाव की शुभ मंगल संचार । अभ्युदय सद्धर्म का राम नाम विस्तार ॥ (३) गुरु को करिए वंदना, भाव से बारम्बार । नाम सुनौका से किया, जिसने भव से पार ॥ कर्म धर्म का बोध दे, जिसने बताया राम । उसके चरण सरोज को, नतशिर हो प्रणाम ॥ वारे जाऊं संत के, जो देवे शुभ नाम । बांह पकड़ सुस्थिर करै, राम बतावे धाम ॥ श्री राम जय राम जय जय राम ॥ आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो । सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ (२) राम राम राम, बोलो राम राम राम । राम राम राम, बोलो राम राम राम । बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम (२) आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो । सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ मैंने अपने आप की, दे दी तुझको डोर । (३) आगे मर्ज़ी आपकी, ले जाओ जिस ओर ॥ (२) ले जाओ जिस ओर, ले जाओ जिस ओर ॥ आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो । सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ (२) चिंतामणि हरि नाम है, सफल करे सब काम । (२) महा मंत्र मानो यह, राम राम श्री राम ॥ (२) बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम । बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम ॥ आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो । सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ (२) राम राम राम, बोलो राम राम राम । राम राम राम, बोलो राम राम राम । बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम ॥ आते भी राम बोलो, जाते भी राम बोलो । सुबह और शाम बोलो, राम राम राम ॥ बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम । बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम ॥
Fri, 9 Mar 2018 - 68 - अमृत वाणी
Listen to Amritvani sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola', Family and Friends सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: (७) (राम-कृपा अवतरण) परम कृपा सुरूप है, परम प्रभु श्री राम । जन पावन परमात्मा, परम पुरुष सुख धाम ।। १ ।। सुखदा है शुभा कृपा, शक्ति शान्ति स्वरूप । है ज्ञान आनन्द मयी, राम कृपा अनूप ।। २ ।। परम पुण्य प्रतीक है, परम ईश का नाम । तारक मंत्र शक्ति घर, बीजाक्षर है राम ।। ३ ।। साधक साधन साधिए, समझ सकल शुभ सार । वाचक वाच्य एक है, निश्चित धार विचार ।। ४ ।। मंत्रमय ही मानिए, इष्ट देव भगवान् । देवालय है राम का, राम शब्द गुण खान ।। ५ ।। राम नाम आराधिए, भीतर भर ये भाव । देव दया अवतरण का, धार चौगुना चाव ।। ६ ।। मन्त्र धारणा यों कर, विधि से ले कर नाम । जपिए निश्चय अचल से, शक्ति धाम श्री राम ।। ७ ।। यथा वृक्ष भी बीज से, जल रज ऋतु संयोग । पा कर, विकसे क्रम से, त्यों मन्त्र से योग ।। ८ ।। यथा शक्ति परमाणु में, विद्युत् कोष समान । है मन्त्र त्यों शक्तिमय, ऐसा रखिए ध्यान ।। ९ ।। ध्रुव धारणा धार यह, राधिए मन्त्र निधान । हरि-कृपा अवतरण का, पूर्ण रखिए ज्ञान ।। १० ।। आता खिड़की द्वार से, पवन तेज का पूर । है कृपा त्यों आ रही, करती दुर्गुण दूर ।। ११ ।। बटन दबाने से यथा, आती बिजली धार । नाम जाप प्रभाव से, त्यों कृपा अवतार ।।१२ ।। खोलते ही जल नल ज्यों, बहता वारि बहाव । जप से कृपा अवतरित हो, तथा सजग कर भाव ।। १३ ।। राम शब्द को ध्याइये, मन्त्र तारक मान । स्वशक्ति सत्ता जग करे, उपरि चक्र को यान ।। १४ ।। दशम द्वार से हो तभी, राम कृपा अवतार । ज्ञान शक्ति आनन्द सह, साम शक्ति संचार ।। १५ ।। देव दया स्वशक्ति का, सहस्र कमल में मिलाप । हो सत्पुरुष संयोग से, सर्व नष्ट हों पाप ।। १६ ।। (नमस्कार सप्तक) करता हूं मैं वन्दना, नत शिर बारम्बार । तुझे देव परमात्मन्, मंगल शिव शुभकार ।। १ ।। अंजलि पर मस्तक किये, विनय भक्ति के साथ । नमस्कार मेरा तुझे, होवे जग के नाथ ।। २ ।। दोनों कर को जोड़ कर, मस्तक घुटने टेक । तुझ को हो प्रणाम मम, शत शत कोटि अनेक ।। ३ ।। पाप-हरण मंगल-करण, चरण शरण का ध्यान । धार करूँ प्रणाम मैं, तुझ को शक्ति-निधान ।। ४ ।। भक्ति-भाव शुभ-भावना, मन में भर भरपूर । श्रद्धा से तुझ को नमूँ, मेरे राम हजूर ।। ५ ।। ज्योतिर्मय जगदीश हे, तेजोमय अपार । परम पुरुष पावन परम, तुझ को हो नमस्कार ।। ६ ।। सत्यज्ञान आनन्द के, परम धाम श्री राम । पुलकित हो मेरा तुझे होवे बहु प्रणाम ।। ७ ।। (प्रात: पाठ) परमात्मा श्री राम परम सत्य, प्रकाश रूप, परम ज्ञानानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान्, एकैवाद्वितीय परमेश्वर, परम पुरुष, दयालु देवाधिदेव है, उसको बार-बार नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार ।। (अमृत वाणी) रामामृत पद पावन वाणी, राम नाम धुन सुधा समानी । पावन पाठ राम गुण ग्राम, राम राम जप राम ही राम ।।१ ।। परम सत्य परम विज्ञान, ज्योति-स्वरूप राम भगवान् । परमानन्द, सर्वशक्तिमान्, राम परम है राम महान् ।।२ ।। अमृत वाणी नाम उच्चारण, राम राम सुखसिद्धि-कारण । अमृत-वाणी अमृत श्री नाम, राम राम मुद मंगल-धाम ।।३ ।। अमृतरूप राम-गुण गान, अमृत-कथन राम व्याख्यान । अमृत-वचन राम की चर्चा, सुधा सम गीत राम की अर्चा ।।४ ।। अमृत मनन राम का जाप, राम राम प्रभु राम अलाप । अमृत चिन्तन राम का ध्यान, राम शब्द में शुचि समाधान ।।५ ।। अमृत रसना वही कहावे, राम राम जहाँ नाम सुहावे । अमृत कर्म नाम कमाई, राम राम परम सुखदाई ।।६ ।। अमृत राम नाम जो ही ध्यावे, अमृत पद सो ही जन पावे । राम नाम अमृत-रस सार, देता परम आनन्द अपार ।।७ ।। राम राम जप हे मना, अमृत वाणी मान । राम नाम में राम को, सदा विराजित जान ।।८ ।। राम नाम मुद मंगलकारी, विध्न हरे सब पातक हारी । राम नाम शुभ शकुन महान्, स्वस्ति शान्ति शिवकर कल्याण ।।९ ।। राम राम श्री राम विचार, मानिए उत्तम मंगलाचार । राम राम मन मुख से गाना, मानो मधुर मनोरथ पाना ।।१० ।। राम नाम जो जन मन लावे, उस में शुभ सभी बस जावे । जहां हो राम नाम धुन-नाद, भागें वहां से विषम विषाद ।।११ ।। राम नाम मन-तप्त बुझावे, सुधा रस सींच शांति ले आवे । राम राम जपिए कर भाव, सुविधा सुविधि बने बनाव ।।१२ ।। राम नाम सिमरो सदा, अतिशय मंगल मूल । विषम-विकट संकट हरण, कारक सब अनुकूल ।।१३ ।। जपना राम राम है सुकृत, राम नाम है नाशक दुष्कृत । सिमरे राम राम ही जो जन, उसका हो शुचितर तन मन ।।१४ ।। जिसमें राम नाम शुभ जागे, उस के पाप ताप सब भागे । मन से राम नाम जो उच्चारे, उस के भागें भ्रम भय सारे ।।१५ ।। जिस में बस जाय राम सुनाम, होवे वह जन पूर्णकाम । चित्त में राम राम जो सिमरे, निश्चय भव सागर से तरे ।।१६ ।। राम सिमरन होवे सहाई, राम सिमरन है सुखदाई । राम सिमरन सब से ऊंचा, राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा ।।१७ ।। राम राम ही सिमर मन, राम राम श्री राम । राम राम श्री राम भज, राम राम हरि-नाम ।।१८ ।। मात-पिता बान्धव सुत दारा, धन जन साजन सखा प्यारा । अन्त काल दे सके न सहारा, राम नाम तेरा तारन हारा ।।१९ ।। सिमरन राम नाम है संगी, सखा स्नेही सुहृद् शुभ अंगी । युग युग का है राम सहेला, राम भक्त नहीं रहे अकेला ।।२० ।। निर्जन वन विपद् हो घोर, निबड़ निशा तम सब ओर । जोत जब राम नाम की जगे, संकट सर्व सहज से भगे ।।२१ ।। बाधा बड़ी विषम जब आवे, वैर विरोध विघ्न बढ़ जावे । राम नाम जपिए सुख दाता, सच्चा साथी जो हितकर त्राता ।।२२ । मन जब धैय्र्य को नहीं पावे, कुचिन्ता चित्त को चूर बनावे । राम नाम जपे चिन्ता चूरक, चिन्तामणि चित्त चिन्तन पूरक ।।२३ ।। शोक सागर हो उमड़ा आता, अति दुःख में मन घबराता । भजिए राम राम बहु बार, जन का करता बेड़ा पार ।।२४ ।। कड़ी घड़ी कठिनतर काल, कष्ट कठोर हो क्लेश कराल । राम राम जपिए प्रतिपाल, सुख दाता प्रभु दीनदयाल ।।२५ ।। घटना घोर घटे जिस बेर, दुर्जन दुखड़े लेवें घेर । जपिए राम नाम बिन देर, रखिए राम राम शुभ टेर ।।२६ ।। राम नाम हो सदा सहायक, राम नाम सर्व सुखदायक । राम राम प्रभु राम का टेक, शरण शान्ति आश्रय है एक ।।२७ ।। पूंजी राम नाम की पाइये, पाथेय साथ नाम ले जाइये । नाशे जन्म मरण का खटका, रहे राम भक्त नहीं अटका ।।२८ ।। राम राम श्री राम है, तीन लोक का नाथ । परम पुरुष पावन प्रभु, सदा का संगी साथ ।।२९ ।। यज्ञ तप ध्यान योग ही त्याग, बन कुटी वास अति वैराग । राम नाम बिना नीरस फोक, राम राम जप तरिए लोक ।।३० ।। राम जाप सब संयम साधन, राम जाप है कर्म आराधन । राम जाप है परम अभ्यास, सिमरो राम नाम 'सुख-रास' ।।३१ ।। राम जाप कही ऊँची करणी, बाधा विध्न बहु दुःख हरणी । राम राम महा-मन्त्र जपना, है सुव्रत नेम तप तपना ।।३२ ।। राम जाप है सरल समाधि, हरे सब आधि व्याधि उपाधि । ऋद्धि सिद्धि और नव निधान, दाता राम है सब सुख खान ।।३३ । राम राम चिन्तन सुविचार, राम राम जप निश्चय धार । राम राम श्री राम ध्याना, है परम पद अमृत पाना ।।३४ ।। राम राम श्री राम हरि, सहज परम है योग । राम राम श्री राम जप, दाता अमृत भोग ।।३५ ।। नाम चिन्तामणि रत्न अमोल, राम नाम महिमा अनमोल । अतुल प्रभाव अति प्रताप, राम नाम कहा तारक जाप ।।३६ ।। बीज अक्षर महा-शक्ति-कोष, राम राम जप शुभ सन्तोष । राम राम श्री राम राम मंत्र, तन्त्र बीज परात् पर यन्त्र ।।३७ ।। बीजाक्षर पद पद्म प्रकाशे, राम राम जप दोष विनाशे । कुँडलिनी बोधे शुष्मणा खोले, राम मंत्र अमृत रस घोले ।।३८ ।। उपजे नाद सहज बहु भांत, अजपा जाप भीतर हो शान्त । राम राम पद शक्ति जगावे, राम राम धुन जभी रमावे ।।३९ ।। राम नाम जब जगे अभंग, चेतन भाव जगे सुख-संग । ग्रन्थी अविद्या टूटे भारी, राम लीला की खिले फुलवारी ।।४० ।। पतित पावन परम पाठ, राम राम जप याग । सफल सिद्धि कर साधना, राम नाम अनुराग ।।४१ ।। तीन लोक का समझिए सार, राम नाम सब ही सुखकार । राम नाम की बहुत बड़ाई, वेद पुराण मुनि जन गाई ।।४२ ।। यति सती साधु-संत सयाने, राम नाम निश दिन बखाने । तापस योगी सिद्ध ऋषिवर, जपते राम राम सब सुखकर ।।४३ ।। भावना भक्ति भरे भजनीक, भजते राम नाम रमणीक । भजते भक्त भाव भरपूर, भ्रम भय भेद-भाव से दूर ।।४४ ।। पूर्ण पंडित पुरुष प्रधान, पावन परम पाठ ही मान । करते राम राम जप ध्यान, सुनते राम अनाहद तान ।।४५ ।। इस में सुरति सुर रमाते, राम राम स्वर साध समाते । देव देवीगण दैव विधाता, राम राम भजते गणत्राता ।।४६ ।। राम राम सुगुणी जन गाते, स्वर संगीत से राम रिझाते । कीर्तन कथा करते विद्वान, सार सरस संग साधनवान् ।।४७ ।। मोहक मंत्र अति मधुर, राम राम जप ध्यान । होता तीनों लोक में, राम नाम गुण गान ।।४८ ।। मिथ्या मन-कल्पित मत-जाल, मिथ्या है मोह कुमद बैताल । मिथ्या मन मुखिया मनोराज, सच्चा है राम नाम जप काज ।।४९ ।। मिथ्या है वाद विवाद विरोध, मिथ्या है वैर निंदा हठ क्रोध । मिथ्या द्रोह दुर्गुण दुःख खान, राम नाम जप सत्य निधान ।।५० ।। सत्य मूलक है रचना सारी, सर्व सत्य प्रभु राम पसारी । बीज से तरु मकड़ी से तार, हुआ त्यों राम से जग विस्तार ।।५१ ।। विश्व वृक्ष का राम है मूल, उस को तू प्राणी कभी न भूल । साँस साँस से सिमर सुजान, राम राम प्रभु राम महान् ।।५२ ।। लय उत्पत्ति पालना रूप, शक्ति चेतना आनंद स्वरूप । आदि अन्त और मध्य है राम, अशरण शरण है राम विश्राम ।।५३ ।। राम नाम जप भाव से, मेरे अपने आप । परम पुरुष पालक प्रभु, हर्ता पाप त्रिताप ।।५४ ।। राम नाम बिना वृथा विहार, धन धान्य सुख भोग पसार । वृथा है सब सम्पद् सम्मान, होवे तन यथा रहित प्राण ।।५५ ।। नाम बिना सब नीरस स्वाद, ज्यों हो स्वर बिना राग विषाद । नाम बिना नहीं सजे सिंगार, राम नाम है सब रस सार ।।५६ ।। जगत् का जीवन जानो राम, जग की ज्योति जाज्वल्यमान । राम नाम बिना मोहिनी माया, जीवन-हीन यथा तन छाया ।।५७ ।। सूना समझिए सब संसार, जहां नहीं राम नाम संचार । सूना जानिए ज्ञान विवेक, जिस में राम नाम नहीं एक ।।५८ ।। सूने ग्रंथ पन्थ मत पोथे, बने जो राम नाम बिन थोथे । राम नाम बिन वाद विचार, भारी भ्रम का करे प्रचार ।।५९ ।। राम नाम दीपक बिना, जन-मन में अन्धेर । रहे, इस से हे मम मन, नाम सुमाला फेर ।।६० ।। राम राम भज कर श्री राम, करिए नित्य ही उत्तम काम । जितने कर्तव्य कर्म कलाप, करिए राम राम कर जाप ।।६१ ।। करिए गमनागम के काल, राम जाप जो करता निहाल । सोते जगते सब दिन याम, जपिए राम राम अभिराम ।।६२ ।। जपते राम नाम महा माला, लगता नरक द्वार पै ताला । जपते राम राम जप पाठ, जलते कर्मबन्ध यथा काठ ।।६३ ।। तान जब राम नाम की टूटे, भांडा भरा अभाग्य भय फूटे । मनका है राम नाम का ऐसा, चिन्ता-मणि पारस-मणि जैसा ।।६४ ।। राम नाम सुधा-रस सागर, राम नाम ज्ञान गुण-आगर । राम नाम श्री राम महाराज, भव-सिन्धु में है अतुल जहाज ।।६५ ।। राम नाम सब तीर्थ स्थान, राम राम जप परम स्नान । धो कर पाप-ताप सब धूल, कर दे भय-भ्रम को उन्मूल ।।६६ ।। राम जाप रवि-तेज समान, महा मोह-तम हरे अज्ञान । राम जाप दे आनन्द महान्, मिले उसे जिसे दे भगवान् ।।६७ ।। राम नाम को सिमरिये, राम राम एक तार । परम पाठ पावन परम, पतित अधम दे तार ।।६८ ।। माँगूं मैं राम-कृपा दिन रात, राम-कृपा हरे सब उत्पात । राम-कृपा लेवे अन्त सम्हाल, राम प्रभु है जन प्रतिपाल ।।६९ ।। राम-कृपा है उच्चतर योग, राम-कृपा है शुभ संयोग । राम-कृपा सब साधन-मर्म, राम-कृपा संयम सत्य धर्म ।।७० ।। राम नाम को मन में बसाना, सुपथ राम-कृपा का है पाना । मन में राम-धुन जब फिरे, राम-कृपा तब ही अवतरे ।।७१ ।। रहूँ, मैं नाम में हो कर लीन, जैसे जल में हो मीन अदीन । राम-कृपा भरपूर मैं पाऊँ, परम प्रभु को भीतर लाऊँ ।।७२ ।। भक्ति-भाव से भक्त सुजान, भजते राम-कृपा का निधान । राम-कृपा उस जन में आवे, जिस में आप ही राम बसावे ।।७३ ।। कृपा-प्रसाद है राम की देनी, काल-व्याल जंजाल हर लेनी । कृपा-प्रसाद सुधा-सुख-स्वाद, राम नाम दे रहित विवाद ।।७४ ।। प्रभु-प्रसाद शिव शान्ति दाता, ब्रह्म-धाम में आप पहुँचाता । प्रभु-प्रसाद पावे वह प्राणी, राम राम जपे अमृत वाणी ।।७५ ।। औषध राम नाम की खाइये, मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये । राम नाम अमृत रस-पान, देता अमल अचल निर्वाण ।।७६ ।। राम राम धुन गूँज से, भव भय जाते भाग । राम नाम धुन ध्यान से, सब शुभ जाते जाग ।।७७ ।। माँगूं मैं राम नाम महादान, करता निर्धन का कल्याण । देव द्वार पर जन्म का भूखा, भक्ति प्रेम अनुराग से रूखा ।।७८ ।। 'पर हूँ तेरा' -यह लिये टेर, चरण पड़े की रखियो मेर । अपना आप विरद विचार, दीजिए भगवन् ! नाम प्यार ।।७९ ।। राम नाम ने वे भी तारे, जो थे अधर्मी अधम हत्यारे । कपटी कुटिल कुकर्मी अनेक, तर गये राम नाम ले एक ।।८० ।। तर गये धृति धारणा हीन, धर्म-कर्म में जन अति दीन । राम राम श्री राम जप जाप, हुए अतुल विमल अपाप ।।८१ ।। राम नाम मन मुख में बोले, राम नाम भीतर पट खोले । राम नाम से कमल विकास, होवें सब साधन सुख-रास ।।८२ ।। राम नाम घट भीतर बसे, साँस साँस नस नस से रसे । सपने में भी न बिसरे नाम, राम राम श्री राम राम राम ।।८३ ।। राम नाम के मेल से, सध जाते सब काम । देव-देव देवे यदा, दान महा सुख धाम ।।८४ ।। अहो ! मैं राम नाम धन पाया, कान में राम नाम जब आया । मुख से राम नाम जब गाया, मन से राम नाम जब ध्याया ।।८५ ।। पा कर राम नाम धन-राशी, घोर अविद्या विपद् विनाशी । बढ़ा जब राम प्रेम का पूर, संकट संशय हो गये दूर ।।८६ ।। राम नाम जो जपे एक बेर, उस के भीतर कोष कुबेर । दीन दुखिया दरिद्र कंगाल, राम राम जप होवे निहाल ।।८७ ।। हृदय राम नाम से भरिए, संचय राम नाम धन करिए । घट में नाम मूर्ति धरिए, पूजा अन्तर्मुख हो करिए ।।८८ ।। आँखें मूँद के सुनिए सितार, राम राम सुमधुर झंकार । उस में मन का मेल मिलाओ, राम राम सुर में ही समाओ ।।८९ ।। जपूँ मैं राम राम प्रभु राम, ध्याऊँ मैं राम राम हरे राम । सिमरूँ मैं राम राम प्रभु राम, गाऊँ मैं राम राम श्री राम ।।९० ।। अमृत वाणी का नित्य गाना, राम राम मन बीच रमाना । देता संकट विपद् निवार, करता शुभ श्री मंगलाचार ।।९१ ।। राम नाम जप पाठ से, हो अमृत संचार । राम-धाम में प्रीति हो, सुगुण-गण का विस्तार ।।९२ ।। तारक मंत्र राम है, जिस का सुफल अपार । इस मंत्र के जाप से, निश्चय बने निस्तार ।।९३ ।। (धुन) १. बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम । २. श्री राम, श्री राम, श्री राम राम राम । ३. जय जय राम, जय जय राम, जय जय राम राम राम । ४. जय राम जय राम, जय जय राम, राम राम राम राम, जय जय राम । ५. पतित पावन नाम, भज ले राम राम राम । भज ले राम राम राम, भज ले राम राम राम ।। ६. अशरण शरण शान्ति के धाम, मुझे भरोसा तेरा राम । मुझे भरोसा तेरा राम, मुझे भरोसा तेरा राम ।। ७. रामाय नमः श्री रामाय नमः, रामाय नमः श्री रामाय नमः । ८. अहं भजामि रामं, सत्यं शिवं मंगलम् । सत्यं शिवं मंगलं, सत्यं शिवं मगलम् ।। वृद्धि-आस्तिक भाव की, शुभ मंगल संचार । अभ्युदय सद्धर्म का, राम नाम विस्तार ।। (२) -------------------------------------------------------------------------- लेखक श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज केवल प्रेमी राम-भक्तों में निशुल्क बांटने के लिये प्राप्ति स्थान - श्रीरामशरणम्, ८, रिंग रोड, लाजपत नगर-४, नई दिल्ली-११० ०२४ प्राप्ति समय - प्रतिदिन प्रातः ७ से ८ १/२ रविवार प्रातः ९ से ११ ----------------------------------
Fri, 9 Mar 2018 - 67 - कीर्तन: राधे राधे, श्याम मिला दे
MP3 ऑडियो राधे राधे , राधे राधे , राधे राधे , राधे राधे राधे राधे, श्याम मिला दे जय हो राधे राधे, श्याम मिला दे गोवर्धन में, राधे राधे वृन्दावन में, राधे राधे कुसुम सरोवर, राधे राधे हर कुन्ज में, राधे राधे गोवर्धन में, राधे राधे पीली पोखर, राधे राधे मथुरा जी में, राधे राधे वृन्दावन में, राधे राधे कुन्ज कुन्ज में, राधे राधे पात पात में, राधे राधे डाल डाल में, राधे राधे वृक्ष वृक्ष में , राधे राधे हर आश्रम में, राधे राधे माता बोले, राधे राधे बहना बोले, राधे राधे भाई बोले, राधे राधे सब मिल बोलो, राधे राधे राधे राधे,राधे राधे राधे राधे, श्याम मिला दे अरे मथुरा जी में, राधे राधे वृन्दावन में, राधे राधे पीली पोखर , राधे राधे गोवर्धन में, राधे राधे सब मिल बोलो, राधे राधे प्रेम से बोलो, राधे राधे सब मिल बोलो, राधे राधे अरे बोलो बोलो, राधे राधे अरे गाओ गाओ, राधे राधे सब मिल गाओ, राधे राधे प्रेम से बोलो, राधे राधे सब मिल बोलो, राधे राधे जोर से बोलो, राधे राधे राधे राधे,राधे राधे राधे राधे, श्याम मिला दे rAdhe rAdhe , rAdhe rAdhe , rAdhe rAdhe , rAdhe rAdhe rAdhe rAdhe, shyAm milA de jay ho rAdhe rAdhe, shyAm milA de govardhan meM, rAdhe rAdhe vR^indAvan meM, rAdhe rAdhe kusum sarovar, rAdhe rAdhe har kunj meM, rAdhe rAdhe govardhan meM, rAdhe rAdhe pIlI pokhar, rAdhe rAdhe mathurA jI meM, rAdhe rAdhe vR^indAvan meM, rAdhe rAdhe kunj kunj meM, rAdhe rAdhe pAt pAt meM, rAdhe rAdhe DAl DAl meM, rAdhe rAdhe vR^ikSh vR^ikSh meM , rAdhe rAdhe har Ashram meM, rAdhe rAdhe mAtA bole, rAdhe rAdhe bahnA bole, rAdhe rAdhe bhAI bole, rAdhe rAdhe sab mil bolo, rAdhe rAdhe rAdhe rAdhe,rAdhe rAdhe rAdhe rAdhe, shyAm milA de re mathurA jI meM, rAdhe rAdhe vR^indAvan meM, rAdhe rAdhe pIlI pokhar , rAdhe rAdhe govardhan meM, rAdhe rAdhe sab mil bolo, rAdhe rAdhe prem se bolo, rAdhe rAdhe sab mil bolo, rAdhe rAdhe re bolo bolo, rAdhe rAdhe re gAo gAo, rAdhe rAdhe sab mil gAo, rAdhe rAdhe prem se bolo, rAdhe rAdhe sab mil bolo, rAdhe rAdhe jor se bolo, rAdhe rAdhe rAdhe rAdhe,rAdhe rAdhe rAdhe rAdhe, shyAm milA de
Mon, 21 Sep 2015 - 66 - कीर्तन: राधे रानी की जय
MP3 Audio बोलो बरसानेवाली की जय जय जय श्याम प्यारे की जय बंसीवारे की जय बोलो पीत पटवारे की जय जय मेरे प्यारे की जय मेरी प्यारी की जय गलबाँहें डाले छवि न्यारी की जय राधे रानी की जय जय महारानी की जय नटवारी की जय बनवारी की जय राधे रानी की जय जय महारानी की जय बोलो बरसानेवाली की जय जय जय राधे से रस ऊपजे, रस से रसना गाय । अरे कृष्णप्रियाजू लाड़ली, तुम मो पे रहियो सहाय ॥ राधे रानी की जय जय महारानी की जय वृष्भानु दुलारी की जय जय जय बोलो कीरथि प्यारी की जय जय जय ?? बोलो बरसानेवाली की जय जय जय मेरे प्यारे की जय मेरी प्यारी की जय नटवारी की जय बनवारी की जय गलबाँहें डाले छवि न्यारी की जय वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय । जहाँ डाल डाल और पात पे श्री राधे राधे होय ॥ राधे रानी की जय जय महारानी की जय बोलो बरसानेवाली की जय जय जय एक चंचल एक भोली भाली की जय राधे रानी की जय जय महारानी की जय वृन्दावन बानिक बन्यो जहाँ भ्रमर करत गुंजार । अरी दुल्हिन प्यारी राधिका, अरे दूल्हा नन्दकुमार ॥ राधे रानी की जय जय महारानी की जय नटवारी की जय बनवारी की जय एक चंचल एक भोली भाली की जय वृन्दावन से वन नहीं, नन्दगाँव सो गाँव । बन्सीवट सो वट नहीं, कृष्ण नाम सो नाम ॥ बन्सीवारे की जय बन्सीवारे की जय बोलो पीतपटवारे की जय जय जय राधे रानी की जय जय महारानी की जय राधे मेरी स्वामिनी मैं राधे की दास । जनम जनम मोहे दीजियो श्री वृन्दावन वास ॥ सब द्वारन को छाँड़ि के, अरे आयी तेरे द्वार । वृषभभानु की लाड़ली, तू मेरी ओर निहार ॥ राधे रानी की जय जय महारानी की जय जय हो ! बोलो वृन्दावन की जय । अलबेली सरकार की जय । बोलो श्री वृन्दावन बिहारी लाल की जय ॥ bolo barasAnevAlI kI jay jay jay shyAm pyAre kI jay baMsIvAre kI jay bolo pIt paTvAre kI jay jay mere pyAre kI jay merI pyArI kI jay galbA.NheM DAle Chavi nyArI kI jay rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay naTvArI kI jay banvArI kI jay rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay bolo barasAnevAlI kI jay jay jay rAdhe se ras Upje, ras se rasnA gAy | re kR^iShNapriyAjU lA.DlI, tum mo pe rahiyo sahAy || rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay vR^iShbhAnu dulArI kI jay jay jay bolo kIrthi pyArI kI jay jay jay ?? bolo barasAnevAlI kI jay jay jay mere pyAre kI jay merI pyArI kI jay naTvArI kI jay banvArI kI jay galbA.NheM DAle Chavi nyArI kI jay vR^indAvan ke vR^ikSh ko maram na jAne koy | jahA.N DAl DAl aur pAt pe shrI rAdhe rAdhe hoy || rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay bolo barasAnevAlI kI jay jay jay ek chaMchal ek bholI bhAlI kI jay rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay vR^indAvan bAnik banyo jahA.N bhramar karat guMjAr | rI dulhin pyArI rAdhikA, re dUlhA nandakumAr || rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay naTvArI kI jay banvArI kI jay ek chaMchal ek bholI bhAlI kI jay vR^indAvan se van nahIM, nandagA.Nv so gA.Nv | bansIvaT so vaT nahIM, kR^iShN nAm so nAm || bansIvAre kI jay bansIvAre kI jay bolo pItapaTvAre kI jay jay jay rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay rAdhe merI svAminI maiM rAdhe kI dAs | janam janam mohe dIjiyo shrI vR^indAvan vAs || sab dvAran ko ChA.N.Di ke, re AyI tere dvAr | vR^iShabhbhAnu kI lA.DlI, tU merI or nihAr || rAdhe rAnI kI jay jay mahArAnI kI jay jay ho ! bolo vR^indAvan kI jay | albelI sarkAr kI jay | bolo shrI vR^indAvan bihArI lAl kI jay ||
Mon, 21 Sep 2015 - 65 - भजन: नाम जपन क्यों छोड़ दिया
Bhajan: Nam Japan Kyo Chod Diya by Anjana Bhattacharya & Premjeet Kaur from Shree Ram Sharanam नाम जपन क्यों छोड़ दिया क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा सत्य बचन क्यों छोड दिया झूठे जग में दिल ललचा कर असल वतन क्यों छोड दिया कौड़ी को तो खूब सम्भाला लाल रतन क्यों छोड दिया जिन सुमिरन से अति सुख पावे तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया खालस इक भगवान भरोसे तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया नाम जपन क्यों छोड़ दिया ॥ Listen to bhajan on Youtube channel by Bholakrishna at https://www.youtube.com/watch?v=gvdkb1rM46Q nAm japan kyoM Cho.D diyA krodh na Cho.DA jhUTh na Cho.DA saty bachan kyoM ChoD diyA jhUThe jag meM dil lalchA kar asal vatan kyoM ChoD diyA kau.DI ko to khUb sambhAlA lAl ratan kyoM ChoD diyA jin sumiran se ti sukh pAve tin sumiran kyoM Cho.D diyA khAlas ik bhagvAn bharose tan man dhan kyoM nA Cho.D diyA nAm japan kyoM Cho.D diyA ||
Sun, 20 Sep 2015 - 64 - भजन: हरि तुम हरो जन की भीर
Bhajan: Hari Tum Haro Jan Ki Bheer By Anjana Bhattacharya MP3 from Shree Ram Sharanam, Delhi. हरि तुम हरो जन की भीर, द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥ भगत कारण रूप नरहरि धर्यो आप सरीर ॥ हिरण्यकश्यप मारि लीन्हो धर्यो नाहिन धीर॥ बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥ दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥ hari tum haro jan kI bhIr, dropdI kI lAj rAkhI, tum ba.DhAyo chIr|| bhagat kAraN rUp narahri dharyo Ap sarIr || hiraNyakashyap mAri lInho dharyo nAhin dhIr|| bU.Dto gajrAj rAkhyo kiyau bAhar nIr|| dAsI mIrA lAl girdhar charaNakaMval sIr||
Sun, 20 Sep 2015 - 63 - भजन: शुभ घड़ी प्रथम गणेश मनाओ
शुभ घड़ी प्रथम गणेश मनाओ । मंगल दीप जलाओ जलाओ ।। पूजो प्रथम श्री गणनाथ, करते हैं सबके शुभ काज। रखते सारे जग की लाज, श्रद्धा शीश नवाओ; मनाओ।। शुभ घड़ी …… . रहें सहाय सदा श्रीराम, कृपा करें हम पर घनश्याम। पूरन हो शुभसे शुभ काम, हर्षित मन सबका मनाओ।। शुभ घड़ी ……. Listen to the bhajan 'shubh ghadi pratham ganesh manao' MP3 Audio shubh gha.DI pratham gaNesh manAo | maMgal dIp jalAo jalAo || pUjo pratham shrI gaNnAth, karte haiM sabke shubh kAj| rakhte sAre jag kI lAj, shraddhA shIsh navAo; manAo|| shubh gha.DI …… . raheM sahAy sadA shrIrAm, kR^ipA kareM ham par ghanashyAm| pUran ho shubhse shubh kAm, harShit man sabkA manAo|| shubh gha.DI ……. Thank you to Geeta Jiji, Ajey Da, Anil Dada and Induja Bhabhi for the bhajan text, audio and information. "पूज्य बाबूजी ने इस भजन को दूसरों को सम्बोधित करने के बजाय स्वयं को प्रेरित करने के लिए शब्द " मनाओ " को बदल कर " मनाऊँ " कर दिया था।लाइन " पूरन हो शुभसे शुभ काम " को बदल कर वे परोपकार भावना से " पूरन हो सबके शुभ काम " गाते थे।" - Ajey Da
Thu, 17 Sep 2015 - 41 - भजन: हरि हरि हरि हरि सुमिरन करो
bhajan: hari hari hari hari sumiran karo MP3 Audio - Bhola हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो, हरि चरणारविन्द उर धरो .. हरि की कथा होये जब जहाँ, गंगा हू चलि आवे तहाँ .. हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो ... यमुना सिंधु सरस्वती आवे, गोदावरी विलम्ब न लावे . सर्व तीर्थ को वासा तहाँ, सूर हरि कथा होवे जहाँ .. हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो ... hari hari, hari hari, sumiran karo, hari charaNAravind ur dharo .. hari kI kathA hoye jab jahA.N, gaMgA hU chali Ave tahA.N .. hari hari, hari hari, sumiran karo ... yamunA siMdhu sarasvatI Ave, godAvrI vilamb na lAve . sarv tIrth ko vAsA tahA.N, sUr hari kathA hove jahA.N .. hari hari, hari hari, sumiran karo ... Listen to the bhajan at Bholakrishna youtube channel at https://www.youtube.com/watch?v=R4iTCjip0I8
Thu, 1 Feb 2018 - 26 - भजन: रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम
Listen to the bhajan rahe janam janam tera dhyan, yahee var do mere raam Lyrics & Music Direction - V N Shrivastav 'Bhola' Voices - V N Shrivastav 'Bhola' and Amita Shrivastava अर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहहुं निरवान | जनम जनम रति राम पद, यह वरदान न आन || रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम सिमरूँ निश दिन हरि नाम, यही वर दो मेरे राम । रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम, मेरे राम । मन मोहन छवि नैन निहारे, जिह्वा मधुर नाम उच्चारे, कनक भवन होवै मन मेरा, जिसमें हो श्री राम बसेरा, or कनक भवन होवै मन मेरा, तन कोसलपुर धाम, यही वर दो मेरे राम | रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ सौंपूं तुझको निज तन मन धन, अरपन कर दूं सारा जीवन, हर लो माया का आकर्षण, प्रेम भगति दो दान, यही वर दो मेरे राम | रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ गुरु आज्ञा ना कभी भुलाऊँ, परम पुनीत राम गुन गाऊँ, सिमरन ध्यान सदा कर पाऊँ, दृढ़ निश्चय दो राम ! यही वर दो मेरे राम, रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ संचित प्रारब्धों की चादर, धोऊं सतसंगों में आकर, तेरे शब्द धुनों में गाकर, पाऊं मैं विश्राम, यही वर दो मेरे राम | रहे जनम जनम तेरा ध्यान, यही वर दो मेरे राम ॥ Listen to the bhajan by Shri V N S 'Bhola' - Youtube link
Sat, 11 Mar 2017 - 25 - भजन: राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा
Listen to Bhajan: Ram Nam Japne Vale ko Ram Milega by Shri V N Shrivastav 'Bhola' राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा.. राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा.. राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा, राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा, राम मिलेगा, राम मिलेगा, राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा.. राम ब्रह्म हैं, चिन्मय हैं, अविनाशी हैं, राम ब्रह्म हैं, चिन्मय हैं, अविनाशी हैं, सर्वरहित हैं, लेकिन घट-घट वासी हैं, सर्वरहित हैं, लेकिन घट-घट वासी हैं, जो ये नाम जपेगा, उसको राम मिलेगा, जो ये नाम जपेगा, उसको राम मिलेगा.. राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा.. राम नाम जपते जपते सब कर्म करो जी, राम नाम जपते जपते सब कर्म करो जी, राम नाम जपने में न कोई शर्म करो जी, राम नाम जपने में न कोई शर्म करो जी, सत्य नाँव पर चढ़ो, साथ में राम चढ़ेगा, हो... सत्य नाँव पर चढ़ो, साथ में राम चढ़ेगा, हो... साथ में राम चढ़ेगा, हो... ओ... सत्य नाँव पर चढ़ो, साथ में राम चढ़ेगा, नहीं डूबने देगा, नहीं डूबने देगा, भव नद पार करेगा.. राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा.. राम नाम में निहित मन्त्र की शक्ति है, राम नाम में निहित मन्त्र की शक्ति है, राम नाम जपने से कृपा बरसती है, राम नाम जपने से कृपा बरसती है, कृपा वृष्टि में भींगो, कृपा वृष्टि में भींगो, भाई, कृपा वृष्टि में भींगो, कृपा वृष्टि में भींगो, कृपा वृष्टि में भींगो, भींगो, भींगो, भींगो, कृपा वृष्टि में भींगो, मन का मैल धुलेगा, कृपा वृष्टि में भींगो, मन का मैल धुलेगा, मैल धुलेगा, नाम भक्ति का रंग चढ़ेगा, मैल धुलेगा, नाम भक्ति का रंग चढ़ेगा.. राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, हो... राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, हो... राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा, राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा, राम धाम में दिव्य शांति विश्राम मिलेगा, राम नाम जपने वाले को राम मिलेगा, हो... राम मिलेगा, उसे राम का धाम मिलेगा ..
Thu, 23 Feb 2017 - 24 - नैहरवा हमका न भावे - भजन - कबीरदास
naiharavaa hamakaa naa bhaave - bhajan by Sant Kabirdas Listen to this bhajan sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' by clicking here. कबीर दास जी की अति सारगर्भित रचना नैहरवा हमका न भावे !! साई की नगरी परम् अति सुंदर जहाँ कोई जान न पावे ! चाँद सूरज जहाँ पवन न पानी, को सन्देश पहुचावे ! दर्द ये साईं को सुनावे .. .!! टेक !! आगे चलों पन्थ नही सूझे, पीछे दोष लगावे केहि विधि ससुरे जाऊं मोरि सजनी बिरहा जोर जरावे बिषय रस नाच नचावे ... !!टेक!! बिनु सद्गुरु अपनों नहीं कोऊ जो ये राह बतावे ! कहत कबीर सुनो भाई साधो सुपनन पीतम पावे ! तपन जो जिय की बुझावे .. !! टेक !! दुल्हनिया है "जीवात्मा" और दुलहा हैं "परमात्मा" "जीव" को उसका मायका अथवा "यह संसार" तनिक भी नहीं भाता ! मानव परिवेश में बंधा जीवात्मा बेचैन है ! वह शीघ्रातिशीघ्र अपने स्थाई निवास स्थान अथवा परमपिता परमेश्वर की नगरी - उसकी सुसराल पहुंचना चाहता है !
Sat, 19 Nov 2016 - 23 - अबिनासी दुलहा कब मिलिहो - भजन - सन्त कबीरदास जी
abinasi duliha kab miliho - bhajan by Sant Kabirdas Listen to the bhajan sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' by clicking here. अबिनासी दुलहा कब मिलिहो भगतन के रछपाल !! जल उपजी जल ही सो नेहा, रटत पियास पियास , मैं ठाढ़ी बिरहन मग जोहूँ , प्रियतम तुमरी आस !! टेक !! छोड़े नेह गेह, लगि तुमसों , भयी चरण लवलीन , तालामेलि होत घट भीतर , जैसे जल बिन मीन !! टेक !! दिवस नभूख ,रैननहिं निदिया ,घरआँगन न सुहावे , सेजरिया बैरन भइ हमको , जाबत रेन बिहावे !! टेक !! हमतो तुमरी दासी सजना, तुम हमरे भरतार , दीनदयाल दया करि आवो, समरथ सिरजन हार !! टेक !! कह कबीर सुन जोगिनी, तो तन में मन हि मिलाय. तुम्हरी प्रीति के कारने, हो बहुरि मिलिहंइ आय !! टेक !!
Fri, 18 Nov 2016 - 22 - दीनबंधु दीनानाथ मेरी तन हेरिये - भजन - मलूकदास
deenbandhu deenanath meri tan heriye - Bhajan by Sant Malukdas Listen to this bhajan sung by Shri VNS 'Bhola' by clicking here. दीनबन्धु दीनानाथ, मेरी तन हेरिये ॥ भाई नाहिं, बन्धु नाहिं, कटुम-परिवार नाहिं । ऐसा कोई मीत नाहिं, जाके ढिंग जाइये ॥ खेती नाहिं, बारी नाहिं, बनिज ब्योपार नाहिं ऐसो कोउ साहु नाहिं जासों कछू माँगिये ॥ कहत मलूकदास छोड़ि दे पराई आस, राम धनी पाइकै अब काकी सरन जाइये ॥ _______________________________________________ dīnabandhu dīnānāth, mērī tan hēriyē || bhāī nāhiṁ, bandhu nāhiṁ, kaṭum-parivār nāhiṁ | aisā kōī mīt nāhiṁ, jākē ḍhiṁg jāiyē || khētī nāhiṁ, bārī nāhiṁ, banij byōpār nāhiṁ aisō kōu sāhu nāhiṁ jāsōṁ kachū mām̐giyē || kahat malūkdās chōṛi dē parāī ās, rām dhanī pāikai ab kākī saran jāiyē || _____________________________________ dInabandhu dInAnAth, merI tan heriye || bhAI nAhiM, bandhu nAhiM, kaTum-parivAr nAhiM | aisA koI mIt nAhiM, jAke DhiMg jAiye || khetI nAhiM, bArI nAhiM, banij byopAr nAhiM aiso kou sAhu nAhiM jAsoM kaChU mA.Ngiye || kahat malUkdAs Cho.Di de parAI As, rAm dhanI pAikai ab kAkI saran jAiye ||
Fri, 18 Nov 2016 - 21 - भजन: राम दो निज चरणों में स्थान
Ram, do nij charano me sthan words, composition and voice - V N Shrivastav 'Bhola' Click here for mp3 audio from Shri Ram Sharanam राम, दो निज चरणों में स्थान, शरणागत अपना जन जान । अधमाधम मैं पतित पुरातन । साधनहीन निराश दुखी मन। अंधकार में भटक रहा हूँ । राह दिखाओ अंगुली थाम। राम, दो ... सर्वशक्तिमय राम जपूँ मैं । दिव्य शान्ति आनन्द छकूँ मैं। सिमरन करूं निरंतर प्रभु मैं। राम नाम मुद मंगल धाम। राम, दो ... केवल राम नाम ही जानूँ। और धर्म मत ना पहिचानूँ। जो गुरु मंत्र दिया सतगुरु ने। उसमें है सबका कल्याण। राम, दो ... हनुमत जैसा अतुलित बल दो, पर-सेवा का भाव प्रबल दो । बुद्धि, विवेक, शक्ति इतनी दो, पूरा करूं राम का काम । राम, दो ...
Sun, 13 Nov 2016 - 20 - कीर्तन: हमारे रामजी से राम राम
Click to Listen to hamare ramji se ram ram, kahiyo ji hanuman हमारे रामजी से राम राम कहियो जी हनुमान कहियो जी हनुमान कहियो जी हनुमान .... हमारे रामजी से राम राम कहियो जी हनुमान कहियो जी हनुमान कहियो जी हनुमान ....
Sat, 29 Oct 2016 - 19 - भजन: संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान
Bhajan: Sankat Mochan Kripa Nidhan Jay Hanuman Jay Jay Hanuman Listen to this bhajan sung by Shri Anil Shrivastav by clicking here. संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान अंजनि माता के नयनांजन रघुकुल भूषण केसरीनंदन ग्यारहवें रूद्र भगवान जय हनुमान जय जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान सूर्य देव ने शास्त्र पढाया नारद ने संगीत सिखाया मारुत मानस की संतान जय हनुमान जय जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान चार अक्षर का नाम है प्यारा चारों जुग परताप तिहारा त्रिभुवन को तुम पर अभिमान जय हनुमान जय जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान तुमने राम के काम बनाये लंका जारि सिया सुधि लाये राम सिया पितु मातु समान जय हनुमान जय जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान एक ही मंत्र जपो अविराम श्री राम जय राम जय राम राम तुम्हारे जीवन प्राण जय हनुमान जय जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान जो कोई तुम्हरी महिमा गावे सहज राम के दर्शन पावे दास को दो चरणों में स्थान जय हनुमान जय जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान जय हनुमान जय जय हनुमान महावीर अतुलित बलवान जय हनुमान जय जय हनुमान
Sat, 29 Oct 2016 - 18 - संकट मोचन हनुमाष्टक
Listen to Sankat Mochan Hanumanashtak sung by Shri Ram Parivar members by clicking here. हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान, कहियो जी हनुमान ॥ बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो । ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात ना टारो ।। देवन आनि करी बिनती तब, छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 1 ।। बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो । चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो ।। कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु , सो तुम दास के सोक निवारो ।। को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 2 ।। अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो । जीवत ना बचिहौ हम सो जू, बिन सुधि लाए इहाँ पगु धारो ।। हेरि तके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया – सुधि प्रान उबारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 3 ।। रावन त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो । ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ।। चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 4 ।। बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो । लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो ।। आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 5 ।। रावन जुद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो । श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ।। आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 6 ।। बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो । देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो ।। जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत सँहारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 7 ।। काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो । कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहि जात है टारो ।। बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कुछ संकट होय हमारो । को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।। 8 ।। लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर । ब्रजदेह दानव दलन, जय जय जय कपि सुर ।
Sat, 29 Oct 2016 - 17 - श्री हनुमान चालीसा
hanuman janmotsav ki bahut bahut badhai Listen to Hanuman Chalisa MP3 by Shri V N Shrivastav 'Bhola', family and friends श्री राम जय राम जय जय दयालु । श्री राम जय राम जय जय कृपालु ॥ अतुलित बल धामं हेम शैलाभ देहम् । दनुज वन कृषाणं ज्ञानिनां अग्रगणयम् । सकल गुण निधानं वानराणामधीशम् । रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । वरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥ हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥ महावीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमिति के संगी ॥ कंचन वरन विराज सुवेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥ हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान, कहियो जी हनुमान ॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहि देखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंन्द्र के काज सँवारे ॥ लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरत सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥ हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥ तुम्हरो मंत्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ दु्र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहैं तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥ आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥ भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावैं ॥ हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥ नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वीं राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥ और मनोरथ जो कोइ लावै । तासु अमित जीवन फल पावै ॥ चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ साधु संत के तुम रखबारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥ राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥ तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥ और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥ संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥ जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरू देव की नाईं ॥ जो शत बार पाठ कर कोई । छूटे बंदि महा सुख होई ॥ जो यह पढै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥ हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान , कहियो जी हनुमान ॥ पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप । राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ श्री राम जय राम जय जय राम । sing along video on youtube https://www.youtube.com/watch?v=h1UayiWhhDA
Tue, 11 Apr 2017 - 16 - भजन: या मोहन के मैं रूप लुभानी
Bhajan: Ya Mohan ke main roop lubhani Listen to this bhajan sung by Shri GP Shrivastava by clicking here. या मोहन के मैं रूप लुभानी । जमना के नीरे तीरे धेनु चरावै बंसी से गावै मीठी बानी ।। या मोहन के मैं रूप लुभानी । तन मन धन गिरधर पर बारूं चरणकंवल मीरा लपटानी ।। या मोहन के मैं रूप लुभानी । सुंदर बदन कमलदल लोचन बांकी चितवन मंद मुसकानी ।। या मोहन के मैं रूप लुभानी ।
Fri, 28 Oct 2016 - 15 - भजन: सुने री मैंने निरबल के बल राम
Bhajan: sune ri maine nirbal ke bal ram Listen to this bhajan sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola' by clicking here. सुने री मैंने निरबल के बल राम , पिछली साख भरूँ संतन की अड़े सँवारे काम । जब लग गज बल अपनो बरत्यो, नेक सरयो नहीं काम , निर्बल ह्वै बल राम पुकार्यो,आये आधे नाम । सुने री मैंने निरबल के बल राम । द्रुपद सुता निर्बल भईं ता दिन ,तजि आये निज धाम , दुस्सासन की भुजा थकित भई, वसन रूप भये राम । सुने री मैंने निरबल के बल राम । अप बल,तप बल और बाहु बल ,चौथा है बल राम , सूर किशोर कृपा से सब बल हारे को हरिनाम । सुने री मैंने निरबल के बल राम ।
Fri, 28 Oct 2016 - 14 - भजन: जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे
Bhajan: jau kahan taji charan tumhare Listen to this bhajan sung by Shri V N S 'Bhola' by clicking here. जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे । काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे । जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे । कौनहुँ देव बड़ाइ विरद हित, हठि हठि अधम उधारे । जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे । खग मृग व्याध पषान विटप जड़, यवन कवन सुर तारे । जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे । देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज, सब माया-विवश बिचारे । तिनके हाथ दास ‘तुलसी’ प्रभु, कहा अपुनपौ हारे । जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे । ____________________________________ jAU.N kahA.N taji charan tumhAre | kAko nAm patit pAvan jag, kehi ti dIn piyAre | jAU.N kahA.N taji charan tumhAre | kaunhu.N dev ba.DAi virad hit, haThi haThi adham udhAre | jAU.N kahA.N taji charan tumhAre | khag mR^ig vyAdh paShAn viTap ja.D, yavan kavan sur tAre | jAU.N kahA.N taji charan tumhAre | dev, danuj, muni, nAg, manuj, sab mAyA-vivash bichAre | tinke hAth dAs ‘tulsI` prabhu, kahA apunapau hAre | jAU.N kahA.N taji charan tumhAre | ____________________________________ jāūm̐ kahām̐ taji caran tumhārē | kākō nām patit pāvan jag, kēhi ti dīn piyārē | jāūm̐ kahām̐ taji caran tumhārē | kaunhum̐ dēv baṛāi virad hit, haṭhi haṭhi adham udhārē | jāūm̐ kahām̐ taji caran tumhārē | khag mr̥g vyādh paṣān viṭap jaṛ, yavan kavan sur tārē | jāūm̐ kahām̐ taji caran tumhārē | dēv, danuj, muni, nāg, manuj, sab māyā-vivaś bicārē | tinkē hāth dās ‘tulsī’ prabhu, kahā apunapau hārē | jāūm̐ kahām̐ taji caran tumhārē |
Fri, 28 Oct 2016 - 13 - भोला की भजन शाला - 1
यू ट्यूब के "भोला कृष्णा चेनल " में उपलब्ध -व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला" द्वारा गाये भजन निःशुल्क सीखिये और जी भर के गाइए,सीखने के साथ साथ अपने इष्ट को रिझाइये,मन वांछित फल पाइये इन में से अनेक भजनों के लिखने और गाने की प्रेरणा पारम्परिक रचनाओं से मिली है, पुरातन उन सभी अज्ञेय रचनाकारों एवं संगीतज्ञों का गुरुत्व शिरोधार्य है ! अंजनी सुत हे पवन दुलारे , हनुमत लाल राम के प्यारे !! शब्द स्वर = भोला अब तुम कब सुमिरोगे राम जिवडा दो दिन को मेहमान !! पारंपरिक - एमपी3गुरु की कृपा दृष्टि हो जिसपर !! शब्द स्वर = भोला गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ !! प्रेरणा स्रोत - पंडित जसराज गुरु बिन कौन सम्हारे !! शब्द स्वर = भोला जय शिव शंकर औगढ़ दानी, विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी !! शब्द स्वर = भोला तुझसे हमने दिल है लगाया !! शब्द स्वर = भोला तेरे चरणों में प्यारे अय पिता !! प्रेरणा - राधास्वामी सत्संग - स्वर = भोला दाता राम दिए ही जाता, भिक्षुक मन पर नहीं अघाता !! शब्द स्वर = भोला पायो निधि राम नाम !! शब्द स्वर - व्ही के मेहरोत्रा तथा भोला बिरज में धूम मचायो कान्हा !! होली !! = स्वर भोला रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम !! प्रेरणा पारम्परिक - शब्द-स्वर = भोला राम बोलो राम !! शब्द स्वर = भोला राम राम काहे ना बोले !! प्रेरणा - मिश्र बन्धु - संशोधित शब्द एवं स्वर = भोला राम राम बोलो !! शब्द स्वर = भोला - एमपी3राम हि राम बस राम हि राम, और नाही काहू सों काम !! शब्द स्वर = भोला रोम रोम में रमा हुआ है मेरा राम रमैया तू !! शब्द स्वर = भोला शंकर शिव शम्भु साधु संतन सुखकारी !! शब्द स्वर = भोला श्याम आये नैनों में बन गयी मैं सांवरी !! प्रेरणा - आकाशवाणी = स्वर - भोला हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम !! पारंपरिक - स्वर = भोला =============================महावीर बिनवउँ हनुमाना से साभार उद्धृत
Sun, 3 Mar 2024 - 12 - भजन: प्रीति लगी तुम नाम की
Listen to this bhajan sung by Shri VNS 'Bhola' by clicking here. _______________________________________ कबीरदास जी की रचना -- प्रीति लगी तुम नाम की , पल बिसरैं नाहीं। नजर करो अब मेहर की, मोहि मिलौ गुसाईं।। बिरह सतावै हाय अब, जिव तड़पै मेरा। तुम देखन को चाव है प्रभु मिलौ सबेरा।। नैना तरसैं दरस को, पल पलक न लागै। दरदबंद दीदार का, निसि बासर जागै।। जो अबके प्रीतम मिलै , करूँ निमिष न न्यारा । अब कबीर गुरु पाँइया, मिला प्रान प्यारा ।। _________________________________ kabīrdās jī kī racnā -- prīti lagī tum nām kī , pal bisaraiṁ nāhīṁ| najar karō ab mēhar kī, mōhi milau gusāīṁ|| birah satāvai hāy ab, jiv taṛapai mērā| tum dēkhan kō cāv hai prabhu milau sabērā|| nainā tarasaiṁ daras kō, pal palak na lāgai| daradabaṁd dīdār kā, nisi bāsar jāgai|| jō abkē prītam milai , karūm̐ nimiṣ na nyārā | ab kabīr guru pām̐iyā, milā prān pyārā || _________________________________ kabIrdAs jI kI rachnA -- prIti lagI tum nAm kI , pal bisaraiM nAhIM| najar karo ab mehar kI, mohi milau gusAIM|| birah satAvai hAy ab, jiv ta.Dapai merA| tum dekhan ko chAv hai prabhu milau saberA|| nainA tarasaiM daras ko, pal palak na lAgai| daradabaMd dIdAr kA, nisi bAsar jAgai|| jo abke prItam milai , karU.N nimiSh na nyArA | ab kabIr guru pA.NiyA, milA prAn pyArA ||
Thu, 27 Oct 2016 - 11 - भजन: परम गुरु राम मिलावनहार
एक सुंदर भावपूर्ण भजन -- *परम गुरू राम मिलावनहार ।* *अति उदार, मंजुल मंगलमय,* *अभिमत - फलदातार ।।* *टूटी फूटी नाव पड़ी मम* *भीषण भव नद धार ।* *जयति जयति जय देव दयानिधि* *बेग उतारो पार ।।* यह सुन्दर रचना श्री भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्धार की है। (राग आसावरी -- ताल धुमाली ) (गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित " भजन संग्रह ", पृष्ठ 351) Listen to the bhajan sung by Shri V N S 'Bhola' by clicking below: Composition by Smt. Shanta Dayal Composition in Raaga Asavari param gurU rAm milAvanhAr | ati udAr, maMjul maMgalmay, abhimat - phaladAtAr || TUTI phUTI nAv pa.DI mam bhIShaN bhav nad dhAr | jayti jayti jay dev dayAnidhi beg utAro pAr || Listen to the bhajan sung by Shri V N S 'Bhola' by clicking below: Composition by Smt. Shanta Dayal Composition in Raaga Asavari param gurū rām milāvanhār | ati udār, maṁjul maṁgalmay, abhimat - phaladātār || ṭūṭī phūṭī nāv paṛī mam bhīṣaṇ bhav nad dhār | jayti jayti jay dēv dayānidhi bēg utārō pār ||
Wed, 26 Oct 2016 - 10 - भजन: जो भजे हरि को सदा
जो भजे हरि को सदा सो परम पद पायेगा .. देह के माला तिलक और भस्म नहिं कुछ काम के . प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा .. दिल के दर्पण को सफ़ा कर दूर कर अभिमान को . खाक हो गुरु के चरण की तो प्रभु मिल जायेगा .. छोड़ दुनिया के मज़े और बैठ कर एकांत में . ध्यान धर हरि के चरण का फिर जनम नहीं पायेगा .. दृढ़ भरोसा मन में रख कर जो भजे हरि नाम को . कहत ब्रह्मानंद ब्रह्मानंद में ही समायेगा .. Listen to the bhajan by clicking here. jō bhajē hari kō sadā sō param pad pāyēgā .. dēh kē mālā tilak aur bhasm nahiṁ kuch kām kē . prēm bhakti kē binā nahiṁ nāth kē man bhāyēgā .. dil kē darpaṇ kō safā kar dūr kar abhimān kō . khāk hō guru kē caraṇ kī tō prabhu mil jāyēgā .. chōṛ duniyā kē mazē aur baiṭh kar ēkāṁt mēṁ . dhyān dhar hari kē caraṇ kā phir janam nahīṁ pāyēgā .. dr̥ṛh bharōsā man mēṁ rakh kar jō bhajē hari nām kō . kahat brahmānaṁd brahmānaṁd mēṁ hī samāyēgā .. Listen to the bhajan by clicking here. jo bhaje hari ko sadA so param pad pAyegA .. deh ke mAlA tilak aur bhasm nahiM kuCh kAm ke . prem bhakti ke binA nahiM nAth ke man bhAyegA .. dil ke darpaN ko safA kar dUr kar abhimAn ko . khAk ho guru ke charaN kI to prabhu mil jAyegA .. Cho.D duniyA ke maXe aur baiTh kar ekAMt meM . dhyAn dhar hari ke charaN kA phir janam nahIM pAyegA .. dR^i.Dh bharosA man meM rakh kar jo bhaje hari nAm ko . kahat brahmAnaMd brahmAnaMd meM hI samAyegA ..
Wed, 26 Oct 2016 - 8 - आरती: ॐ जय लक्ष्मी माता
MP3 Audio ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत हर विष्णु विधाता . ॐ जय लक्ष्मी माता .. उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ओ मैया तुम ही जग माता . सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता .. दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता ओ मैया सुख सम्पति दाता . जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता .. तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता ओ मैया तुम ही शुभ दाता . कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता ॐ जय लक्ष्मी माता .. जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता ओ मैया सब सद्गुण आता . सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता ॐ जय लक्ष्मी माता .. तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ओ मैया वस्त्र न कोई पाता . खान पान का वैभव, सब तुम से आता ॐ जय लक्ष्मी माता .. शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता ओ मैया क्षीरोदधि जाता . रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॐ जय लक्ष्मी माता .. महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता ओ मैया जो कोई जन गाता . उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॐ जय लक्ष्मी माता .. http://www.bhajans.org/aaratii/laxmii.mp3
Wed, 11 Nov 2015 - 7 - आरती: जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा .
MP3 Audio जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा . माता जाकी पारवती, पिता महादेवा .. एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी, माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी . पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा, लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा .. अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया, बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया . 'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा, जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
Wed, 11 Nov 2015 - 6 - आरती: जगजननी जय जय
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय! भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी .. तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा। सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी .. आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी। अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी .. अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी। कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी .. तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया। मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी .. राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा। तू वाँछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी .. दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा। अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी .. तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू। तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी .. सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा। विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी .. तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना। रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी .. मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे। कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी .. शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी। भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी .. हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे। हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी .. निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै। करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी .. (2) MP3 Audio
Wed, 21 Oct 2015 - 5 - कीर्तन: मैया तेरा बना रहे दरबार
MP3 Audio of Bhajan maiya tera bana rahe darbar Voice - Dr. Mrs. Premlata Paliwal मैया तेरा बना रहे दरबार बना रहे दरबार मैया तेरा तेरे पावन दर पे आके मैया हो सबका उद्धार मैया बना रहे दरबार प्रेम का दीपक ज्ञान की बाती मन मन्दिर में जले दिन राती मैया मिट जाये अंधकार मैया बना रहे दरबार गहरी नदिया, नाव पुरानी जीवन की यह अथक कहानी तू ही खेवनहार मैया बना रहे दरबार जो भी तेरे दर पे आया मैया मनवांछित फल उसने पाया मैया तेरी दया है अपार मैया बना रहे दरबार
Mon, 19 Oct 2015 - 4 - आरती: जय अम्बे गौरी
MP3 Audio जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी . बोलो जय अम्बे गौरी .. माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को मैया टीको मृगमद को उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको बोलो जय अम्बे गौरी .. कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे मैया रक्ताम्बर साजे रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे बोलो जय अम्बे गौरी .. केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी मैया खड्ग कृपाण धारी सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी बोलो जय अम्बे गौरी .. कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती मैया नासाग्रे मोती कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति बोलो जय अम्बे गौरी .. शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर धाती मैया महिषासुर धाती धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती बोलो जय अम्बे गौरी .. चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे मैया शोणित बीज हरे मधु कैटभ दोउ मारे सुर भय दूर करे बोलो जय अम्बे गौरी .. ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी मैया तुम कमला रानी आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी बोलो जय अम्बे गौरी .. चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों मैया नृत्य करत भैरों बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू बोलो जय अम्बे गौरी .. तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता मैया तुम ही हो भर्ता भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता बोलो जय अम्बे गौरी .. भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी मैया वर मुद्रा धारी मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी बोलो जय अम्बे गौरी .. कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती मैया अगर कपूर बाती माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती बोलो जय अम्बे गौरी .. माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे मैया जो कोई नर गावे कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे बोलो जय अम्बे गौरी .. http://www.bhajans.org/aaratii/ambegaurii.mp3
Sun, 18 Oct 2015 - 3 - भजन: नमामि अम्बे दीन वत्सले
नमामि अम्बे दीन वत्सले, तुम्हे बिठाऊँ हृदय सिंहासन . तुम्हे पिन्हाऊँ भक्ति पादुका, नमामि अम्बे भवानि अम्बे .. श्रद्धा के तुम्हे फूल चढ़ाऊँ, श्वासों की जयमाल पहनाऊँ . दया करो अम्बिके भवानी, नमामि अम्बे भवानि अम्बे .. बसो हृदय में हे कल्याणी, सर्व मंगल मांगल्य भवानी . दया करो अम्बिके भवानी, नमामि अम्बे भवानि अम्बे .. MP3 Audio
Sat, 17 Oct 2015 - 2 - भजन: अस कछु समुझि परत रघुराया
Bhajan: As kachhu samaujhi parat raghuraya अस कछु समुझि परत रघुराया ! बिनु तव कृपा दयालु ! दास-हित ! मोह न छूटै माया ॥ १ ॥ जैसे कोइ इक दीन दुखित अति असन-हीन दुख पावै । चित्र कलपतरु कामधेनु गृह लिखे न बिपति नसावै ॥ ३ ॥ जब लगि नहिं निज हृदि प्रकास, अरु बिषय-आस मनमाहीं । तुलसिदास तब लगि जग-जोनि भ्रमत सपनेहुँ सुख नाहीं ॥ ५ ॥ Listen to bhajan sung by VNS Bhola as kaChu samujhi parat raghurAyA ! binu tav kR^ipA dayAlu ! dAs-hit ! moh na ChUTai mAyA || 1 || jaise koi ik dIn dukhit ti asan-hIn dukh pAvai | chitr kalapatru kAmdhenu gR^ih likhe na bipti nasAvai || 3 || jab lagi nahiM nij hR^idi prakAs, ru biShay-As manmAhIM | tulasidAs tab lagi jag-joni bhramat sapnehu.N sukh nAhIM || 5 ||
Wed, 7 Oct 2015 - 1 - भजन: रे मन हरि सुमिरन कर लीजै
Click here to listen to the bhajan Bhajan: re man hari sumiran kar leeje मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी रे मन, हरि सुमिरन कर लीजै । हरि सुमिरन कर लीजै । हरि सुमिरन कर लीजै । हरिको नाम प्रेमसों जपिये, हरिरस रसना पीजै । हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै ॥ हरि-भगतनकी सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै । हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन तिनकौ सेवन कीजै ॥ हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै, सो ही प्रश्न करीजै । हरि-जन हरिमारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै ॥ हरिहित खाइय, पहिरिय हरिहित, हरिहित करम करीजै । हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय, हरिहित मरिये जीजै ॥ ________________________________________________________ maMgal bhavan amaMgal hArI drava_u so dasrath ajir bihArI re man hari sumiran kar lIjai | hariko nAm premsoM japiye, hariras rasnA pIjai | harigun gAiy, suniy niraMtar, hari-charanni chit dIjai || hari-bhagatankI saran grahan kari, haris.Ng prIti karIjai | hari-sam hari jan samujhi manhiM man tinakau sevan kIjai || hari kehi bidhisoM hamsoM rIjhai, so hI prashn karIjai | hari-jan harimArag pahichAnai, anumti dehiM so kIjai || harihit khAiy, pahiriy harihit, harihit karam karIjai | hari-hit hari-san sab jag seiy, harihit mariye jIjai ||
Sat, 3 Oct 2015
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