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Shoonya Theatre Group presents series of Hindi Poetry , recited through means of voice , sounds and environment.Each Episode is carefully chosen and worked upon extensively by entire team. Its a audio treat for user giving him opportunity to explore new horizons of Imagination. Would be bringing Interviews of theatre artists and personalities
- 104 - "सीढ़ियाँ"- Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "सीढ़ियाँ", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
सीढ़ियाँ
सीढ़ियाँ
चढ़ते हुए
जो उतरना
भूल जाते हैं
वे घर नहीं
लौट पाते
क्योंकि सीढ़ियाँ
कभी ख़त्म नहीं होतीं
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Sun, 20 Nov 2022 - 01min - 103 - "औकात"- Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "औकात", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
औकात
वे पत्थरों को पहनाते हैं लँगोट
पौधों को चुनरी और घाघरा पहनाते हैं
वनों, पर्वतों और आकाश की नग्नता से होकर आक्रांत
तरह तरह से अपनी अश्लीलता का उत्सव मनाते हैं
देवी-देवताओं को पहनाते हैं आभूषण
और फिर उनके मंदिरों का
उद्धार करके इसे वातानुकूलित करवाते हैं
इस तरह वे ईश्वर को उसकी औकात बताते हैं।
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Sun, 11 Sep 2022 - 01min - 102 - काला छाता - रमा यादव द्वारा लिखित कहानी
#hindistory #hindikahani #kahani Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "काला छाता " written by Rama Yadav . We bring to you short Hindi stories which would fill you with different human emotions , each story is hand picked and carefully crafted for the listener. काला छाता छोटी कहानी – पढ़कर अपना मत अवश्य दें बारिश ने झड़ी लगा रखी थी...पर आज हर हाल में ही उसे घर से निकलना था वो अपने उस टीचर से मिलने को उतावली थी जिसने उसे सिखाया था कि पढ़ाया कैसे जाता है , खुद को गलाकर ...अपना सब कुछ देकर ...वो अपने जीवन के अंतिम कुछ दिनों को जी रहे थे ... और वो एक बार उन्हें देख लेना चाहती थी ..बारिश में भीगती वो वहां पहुंची जहाँ उसके प्रोफेसर का घर था पलंग पर लेटे प्रोफेसर रवि सिन्हा का चेहरा वैसे ही दमक रहा था जैसा उसने उन्हें पहले दिन पाया था ....वो शायद बिना सूचना दिए ही पहुँच गयी थी ...प्रोफेसर सिन्हा ने अपनी माँ की ओर देखा जो उनके पास ही बैठी थी ...माँ समझती हुईं सी उठी ..और उन्हें उनकी शर्ट दे दी .. तमाम ताकत लगाकर प्रोफेसर सिन्हा ने उसे अपनी सफ़ेद बनियान के ऊपर पहन लिया ...वहां खडी – खडी वो अभी एक बरस पहले की यादों में खो सी गयी .... उस दिन भी ...बारिश हो रही थी ....पर उसे आज कॉलेज जाना ही था ...घर पर छतरी एक ही थी और उसे कोई और ले जा चुका था ..भीगते हुए जाना अजीब तो लगता पर इसके अलावा कोई और चारा नहीं था ...अब तक की उसकी सारी बारिशे ऐसे ही बिना छाते के निकली थीं ..पर इस बार उसे कुछ अलग सा लग रहा था ..बहुत ही हलके गुलाबी रंग का लखनवी कढ़ाई का कुरता उस पर बहुत फब रहा था ...ये उसकी लाइफ का पहला शलवार – कुरता था अब तक वो साधारण सी दिखने वाली स्कर्ट या जींस ही पहना करती थी , ये कुरता और शलवार उसमें एक सुंदर लड़की होने का अहसास दुगना कर रहा था ...आज उसकी एम. ए की क्लास का पहला दिन था छतरी न होना अजीब लग सकता है , पर कभी उसे उसकी ज़रुरत भी वैसी महसूस नहीं हुई ..बारिश में भीगना बहुत अच्छा लगता रहा ..आज पहली ही बार ये अहसास हुआ कि छतरी के बिना घर से बहार पाँव निकालना कितना असम्भव सा है ... ..फिर भी घर से तो निकलना ही है ..यू स्पेशल का टाइम होने में बस पंद्रह मिनट बाकि हैं और तेज़ – तेज़ चलेगी तभी पंद्रह मिनट में बस स्टैंड तक पहुँच पायेगी ..उसके पास चप्पल भी कोल्हापुरी थी ..जो कि बारिश के मौसम से बिलकुल मेल नहीं खाती थीं ..उसने चप्पल पहनी ..पास रखे दूध के ग्लास से गट-गट दूध पिया बैग टांगा और आवाज़ लगायी – ‘’माँ ...मैं जा रही हूँ दरवाज़ा बंद कर लेना’’ ..और बारिश से बेपरवाह अपनी गुलाबी शिफोन की चुन्नी को संभालती निकल पड़ी l उसके कदम जल्दी – जल्दी उस ओर बढ़ रहे थे जहाँ यू स्पेशल आती थी ..तेज़ बारिश में भींगना और पैर से पानी को धकेलते चलना उसे बहुत अच्छा लग रहा था ..वो बस स्टैंड पर समय से पहले पहुँच गयी ..सभी लोग अपनी – अपनी छतरियों में सुरक्षित थे ...एक लड़की उसे पहचानती थी ..अब वो दोनों एक छतरी के नीचे थे l स्टैंड पर बस के आते ही सब लाइन बनाकर बस में बैठ गए ..उसके साथ जो लड़की थी वो एक दूसरी सीट पर बैठ गयी ..ये एक अनजान लड़की के साथ बैठी न जाने किन ख्यालों में खोयी थी ..अचानक एक अपरिचित व्यक्तित्व ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया .. ये लगभग अड़तीस – चालीस साल का युवा था ..उस युवा के माथे पर अद्भभुत तेज था ..काले रंग की बड़ी सी छतरी उसके एक हाथ में थी और एक खादी का झोला उसने अपने कंधे पर टांगा था वो उस बस में सबसे अलग लग रहा था ....उसका पक्का रंग उसके तेज को और बढ़ा रहा था ...लड़की ने आदर वश जाने ये कबमें पूछ लिया कि – ‘’आप बैठेंगे क्या ? उसे खुद भी न पता चला ..युवा ने बड़ी विनम्रता से कहा नहीं ..आप बैठिये ...’’ बस से उतरकर अब वो अपनी क्लास की और बढ़ रही थी , क्लास का ये पहला ही दिन था ..उसने क्लास रूम में जाकर अपनी सीट सुरक्षित करली ...पहला लेक्चर किन्ही प्रोफेसर रवि सिन्हा का था ..सभी आपस में बात कर रहे थे कि बहुत ही अच्छा पढ़ाते हैं ..क्लास की घंटी बज गयी थी ...सब शांत थे ..लड़की ने अचानक एक अपरिचित आवाज़ सुनी ..शब्द था - नमस्कार ..ये उसके इस क्लास के टीचर रवि सिन्हा का शब्द था जो आज सुबह उसे बस में दिखे थे .... लड़की इन्हीं ख्यालों में खोयी थी कि प्रोफेसर सिन्हा ने उसे अपना काला छाता देते हुए कहा ..ये अब तुम्हारा हुआ ..अब मुझे इसकी जरूरत कभी नहीं पड़ेगी ..लड़की ने छाता ले लिया ..और अपने प्रोफेसर को प्रणाम कर चुपचाप वहां से निकल पड़ी ... (सर्वाधिकार सुरक्षित शून्य नाट्य समूह ) Follow us on Instagram : https://www.instagram.com/shoonya_theatre/ Facebook : https://www.facebook.com/pg/ShoonyaProductions/ Website : https://www.shoonyatheatregroup.com/
Sun, 28 Aug 2022 - 05min - 101 - मुख़्तार - Indian flute player | Indian Flute Seller | Indian folk art
Greetings ,
Mukhtar is from Sultanpur U.P. he lives in Gurugram , he has a zeal to play flute. Mukhtar practices daily from 4 in the morning. He earns hi living by selling flutes.
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Sun, 14 Aug 2022 - 06min - 100 - "पत्तियाँ यह चीड़ की"- Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "पत्तियाँ यह चीड़ की", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
पत्तियाँ यह चीड़ की
सींक जैसी सरल और साधारण पत्तियाँ
यदि न होतीं चीड़ की
तो चीड़ कभी इतने सुंदर नहीं होते
नीम या पीपल जैसी आकर्षक
होतीं यदि पत्तियाँ चीड़ की
तो चीड़
आकाश में तने हुए भालों से उर्जस्वित
और तपस्वियों से स्थितिप्रज्ञ न होते
सूखी और झड़ी हुई पत्तियाँ चीड़ की
शीशम या महुए की पत्तियों सी
पैरों तले दबने पर
चुर्र-मुर्र नहीं होतीं
बल्कि पैरों तले दबने पर
आपको पटकनी दे सकती हैं
खून बहा सकती हैं
प्राण तक ले सकती हैं
पहाड़ी ढलानों पर
साधारण, सरल और सुंदर यह पत्तियाँ चीड़ की
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Sun, 31 Jul 2022 - 02min - 99 - "जूते"-Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "जूते", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
जूते
जिन्होंने ख़ुद नहीं की अपनी यात्राएँ
दूसरों की यात्रा के साधन ही बने रहे
एक जूते का जीवन जिया जिन्होंने
यात्रा के बाद
उन्हें छोड़ दिया गया घर के बाहर।
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Sun, 24 Jul 2022 - 01min - 98 - सपेरे रोहतास नाथ बाबा | Indian Snake Charmer | Street art | Indian Folk art
Greetings ,
Rohtas Nath Baba ji Indian snake charmer visited Shoonya theatre group . He has been awarded with Guinness award for his feat of playing "Been"/"Pungi" continuously for 10 hours.
If you wish to contact him his number is : 9958852656
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Sun, 26 Jun 2022 - 06min - 97 - "मुर्दे "-Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "मुर्दे ", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
मुर्दे
मरने के बाद शुरू होता है
मुर्दों का अमर जीवन
दोस्त आएँ या दुश्मन
वे ठंडे पड़े रहते हैं
लेकिन अगर आपने देर कर दी
तो फिर
उन्हें अकडऩे से कोई नहीं रोक सकता
मज़े ही मज़े होते हैं मुर्दों के
बस इसके लिए एक बार
मरना पड़ता है ।
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Sun, 05 Jun 2022 - 02min - 96 - "सीढ़ी"-Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "सीढ़ी", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
सीढ़ी
मुझे एक सीढ़ी की तलाश है
सीढ़ी दीवार पर
चढ़ने के लिए नहीं
बल्कि नींव में उतरने के लिए
मैं किले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूं
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Sun, 29 May 2022 - 01min - 95 - "आघात"-Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "आघात", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
आघात |
आघात से काँपती हैं चीजें
अनाघात से उससे ज्यादा
आघात की आशंका से
काँपते हुए पाया खुद को।
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Sun, 22 May 2022 - 01min - 94 - "भय"-Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "भय", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
भय
हवा के चलने से
बादल कुछ इधर-उधर होते हें
लेकिन कोई असर नहीं पड़ता
उस लगातार काले पड़ते जा रहे आकाश पर
मुझे याद आता है बचपन में घर के सामने तारों से लटका
एक मरे हुए पक्षी का काला शरीर
मेरे साथ ही साथ बड़ा हो गया है मेरा डर
मरा हुआ वह काला पक्षी आकाश हो गया
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Sun, 08 May 2022 - 02min - 93 - "दीमकें" - Naresh Saxena's Hindi Poetry | Poetry | Kavitaen | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Naresh Saxena's "दीमकें", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
दीमकें
दीमकों को
पढ़ना नहीं आता
वे चाट जाती हैं
पूरी
क़िताब
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Sun, 01 May 2022 - 01min - 92 - "चेरी का बागीचा" - 9th Jan 2022 feedback | Anton Chekhov | Direction Rama Yadav
एंटोन चेखोव का नाटक "चेरी का बागीचा"
निर्देशन रमा यादव ,
9 जनवरी 2022 को ऑनलाइन खेला गया।
शून्य का ये प्रयास सफल रहा और दर्शकों ने काफी पसंद किया। नाटक के बाद दर्शकों का फीडबैक आपसे साझा कर रहे है।
If you wish to share your feedback you can write to us on
shoonyatheatregroup@gmail.com or message us at 9999172183
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Sun, 17 Apr 2022 - 15min - 91 - "आषाढ़ का एक दिन" - 8th Jan 2022 feedback | Mohan Rakesh | Direction Rama Yadav
मोहन राकेश का नाटक "आषाढ़ का एक दिन"
निर्देशन रमा यादव ,
8 जनवरी 2022 को ऑनलाइन खेला गया।
शून्य का ये प्रयास सफल रहा और दर्शकों ने काफी पसंद किया। नाटक के बाद दर्शकों का फीडबैक आपसे साझा कर रहे है।
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Sun, 10 Apr 2022 - 10min - 90 - "बातचीत" - रंगकर्म के विद्यार्थी पंकज के साथ | Rama Yadav | Shoonya theatre group| mandi houseSun, 20 Mar 2022 - 07min
- 89 - "कपलानी" Hindi short audio story| Hindi Short Story| Story telling
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
Shoonya Theatre group presents Mayank's "कप्लानि", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem/stiry through sound ,music and power of narration.
"कपलानी"
पहाड़ों में बसा एक छोटा सा गाँव ..... बादलों के बीच लुकाछिपी खेलता , टिम-टिमाते तारों की छाओं में सोता ....कभी साफ़ आसमान दूर तक धूप में चमकते सुनहरे बर्फ से ढके विशाल पहाड़ तो कभी घनी ठिठुरा देने वाली धुंध ।
शहर की हल-चल से दूर ......शांत ..... | झरने से गिरते पानी की कलकलहाट ......... दूर कहीं चारा चरती गाए के गले में बंधी घंटी की रुक रुक कर आती टनटनाहट। ऐसा सुकून जो मन को पल भर में शांत करदे ।
यहाँ कभी ही कोई भूले भटके सैलानी आया होगा , जो भी आया इस गाँव का होकर रह गया ।
हलाकि सबसे पास का रेलवे स्टेशन ऐसा कोई खासा दूर नहीं मगर स्टेशन से उतर कर 10 किलोमीटर की चढ़ाई हर किसी के बस की बात कहाँ और इतनी दूर दराज़ जगह में कौन जाना पसंद करेगा।
शंकर और विष्णु इसी गाँव के दो लड़के हर दिन स्कूल के बाद स्टेशन पर जाकर आती जाती रेल गाड़ियों को घंटों देखा करते ..... यात्रियों को.....उनके चमकदार सूट -बूट .... सिल्वर रंग की चमचमाती घड़ियों की तरफ आकर्षित होते। विष्णु अखबार बेच और शंकर जूते चमका घर के लिए कुछ पैसे भी कमाते । इस स्टेशन पर कभी कभार ही कोई ट्रैन ठहरती , दोनों के मन में हमेशा ये जिज्ञासा रहती की आखिर ये बने-ठणे लोग कहाँ से आते हैं और इतनी जल्दी में कहाँ निकल जाते हैं ,ना खाने का समय ना रुक कर बात करने की फुर्सत ,जो मन में आया खाया जो मन आया खरीदा ।
"इनके गाँव कैसे होते होंगे क्या वहां भी झरने बहते होंगे "..... ऐसे स्वाभाविक सवाल भला दोनों के छोटे से मन में कैसे ना उठते | 6 बजे की आखिरी ट्रैन "दून एक्सप्रेस" के चले जाने के बाद घर के रास्ते में दोनों अक्सर शहर की बातें किया करते वहां के कपड़ों , लज़ीज़ पकवानों के सपने देखा करते।
सोमवार की बात थी हर शाम की तरह विष्णु और शंकर स्टेशन पर बैठे आखिरी ट्रैन दून एक्सप्रेस का इंतज़ार कर रहे थे। ट्रैन आयी स्टेशन पर रुकी , कुछ यात्री उतरे कुछ अपनी सीट से ही सामान लेने लगे। शंकर और विष्णु भी हर दिन की तरह अपने काम में जुट गए। महेश एक नौजवान... उसकी उम्र यही कोई 23 साल की होगी हलकी दाढ़ी ... बड़ा सा बेग कंधे पर लिए स्टेशन पर उतरा उसने कहीं पढ़ा था कप्लानि के बारे में। देखने में अच्छे घर का ही लगता था मगर ना उसके पास चमकीली घड़ी थी ना ही रोबदार जूते।
ट्रैन के चले जाने के बाद विष्णु और शंकर ने महेश को घेर लिया "भैया आपकी ट्रैन छूट गयी " महेश दोनों के पास घुटने पर बैठते हुए बोला "नहीं मेरे दोस्तों दोस्तों छूटी नहीं मै कप्लानि ही आया हूँ "। दोनों हैरान थे और खुश भी ना जाने कितने सालों बाद कोई शहर से यहाँ आया होगा। तीनो गाँव के लम्बे रास्ते की और बढ़ चले।
पूरे रास्ते दोनों महेश से शहर के बारे में अनेकों प्रशन पूछते रहे ..... वहाँ के घरों के बारे में .... चमकीली घड़ी के बारे में .... गोल्डन चॉकलेट के बारे में ..... स्वादिष्ट खाने के बारे में और महेश बिलकुल सहज मन से दोनों का जवाब देता चला गया और धीरे धीरे पहाड़ों की मन्त्रमुघ्द करने वाली सुंदरता में खोता चला गया।
Sun, 13 Mar 2022 - 04min - 88 - "Gendi" Folk music of Chhattisgarh
In all of the dance forms, Gendi is pure fun.
The dancers are mounted on two long bamboo poles or on any firm pole and also maneuver through the crowd of other Gendi (pole) mounted dancers.
Banging on the ground, keeping an excellent balance while swaying with tribal acoustics and percussions.
Further, this is an amazing folk dance that has managed to keep its tradition alive.
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Sun, 06 Mar 2022 - 06min - 87 - "बीती विभावरी जाग री" - जयशंकर प्रसाद की कुछ पंक्तियाँ
Shoonya Theatre group presents Jaishankar Prasad's "बीती विभावरी जाग री", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
बरकतें
आसमान से बरकतें बरसती रहें ...
नदी तट की आरती ...
और मस्जिद की अजान...
ये हम पे फबता है ....
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Sun, 27 Feb 2022 - 02min - 86 - एक छोटी सी बात चीत स्टेज मैनेजर रवि रंजन जी के साथ
#HindiKavita #Kavita #HindiPoetry #Hindipoem
नमस्कार आप सब के निरंतर साथ और प्यार को देखते हुए शून्य एक नया प्रयास कर रहा है जिसमे वीडियो के माध्यम से भी हम आपसे जुड़ेंगे।
उसी सफर की तरफ ये एक छोटा सा कदम। जल्द ही और कविताएं आपक समक्ष लाएंगे।
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Sun, 20 Feb 2022 - 10min - 85 - "बरकतें"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Kavita| Hindi Panktiyan
Shoonya Theatre group presents Rama Yadav's "बरकतें", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
बरकतें
आसमान से बरकतें बरसती रहें ...
नदी तट की आरती ...
और मस्जिद की अजान...
ये हम पे फबता है ....
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Sun, 23 Jan 2022 - 03min - 84 - "राज़"- Surjeet's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan |Hindi Kavita
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Sun, 16 Jan 2022 - 01min - 83 - "रश्मिरथी से कुछ पंक्तियाँ "-भाग -२ Ramdhari Singh Dinkar's Hindi poetry|Hindi Quote|Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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Sun, 02 Jan 2022 - 02min - 82 - "रश्मिरथी से कुछ पंक्तियाँ "- Ramdhari Singh Dinkar's Hindi poetry| Hindi Quote | Hindi Panktiyan
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Sun, 26 Dec 2021 - 02min - 81 - "कण"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
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कण
रोशनी के कण कण को बटोर लेने का समय ...
वो समय जब समझ आता है कि हम मानव मात्र ही नही बल्कि विस्तृत मानवीयता का एक कण मात्र हैं ....
और उससे भी ऊपर
कायनात का एक छोटा सा कण...
आज इस छोटे से कण को ब्रह्मांड की कृपा की आवश्यकता है ....
रोशनी के वो कण बरसें जिसमें मानवीयता भीग जाए और एक नया उजाला हो ...
आमीन
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Sun, 19 Dec 2021 - 01min - 80 - "नाटक यूँ ही चलता रहेगा"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
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"नाटक यूँ ही चलता रहेगा"
फिर से थोड़ी आहट सुन रही है
नाटक की टोलियाँ फिर कुछ ..
कहने की तैयारी में...
कुछ नया ज़रूर आएगा
पुराने को साथ लिए
नाटक यूँ
ही चलता रहेगा
रचता रहेगा इतिहास
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Sun, 12 Dec 2021 - 01min - 79 - "रंगकर्म"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
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Sun, 05 Dec 2021 - 00min - 78 - प्रोफ़ेसर रमेश गौतम जी को विनम्र श्रद्धांजलि
प्रोफेसर रमेश गौतम रंगमंच के एक ऐसे विश्लेषक रहे जो साठ के दशक के अंतिम चरण से लेकर अब तक लगातार नाटकों का विवेचन -विश्लेषण करते रहे । प्रोफ़ेसर गौतम ने वर्तमान पीढ़ी में अनेक रंग चिंतकों को गढ़ा नाटक उनके ज़हन में ठीक वैसे बसा था जैसे भारतेंदु के ज़हन में नाटक के शिष्ट और लोकोन्मुख दोनों ही रूपों पर उनकी सामान पकड़ रही । रंगकर्म का मूलभूत गुण अनुशासन और ईमानदारी उनकी बहुमूल्य थाथी रहा ...
Sun, 28 Nov 2021 - 04min - 77 - प्रोफ़ेसर रमेश गौतम जी को विनम्र श्रद्धांजलि
प्रोफेसर रमेश गौतम रंगमंच के एक ऐसे विश्लेषक रहे जो साठ के दशक के अंतिम चरण से लेकर अब तक लगातार नाटकों का विवेचन -विश्लेषण करते रहे । प्रोफ़ेसर गौतम ने वर्तमान पीढ़ी में अनेक रंग चिंतकों को गढ़ा नाटक उनके ज़हन में ठीक वैसे बसा था जैसे भारतेंदु के ज़हन में नाटक के शिष्ट और लोकोन्मुख दोनों ही रूपों पर उनकी सामान पकड़ रही । रंगकर्म का मूलभूत गुण अनुशासन और ईमानदारी उनकी बहुमूल्य थाथी रहा ....
Sun, 21 Nov 2021 - 01min - 76 - "बंद साँकल"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
Shoonya Theatre group presents Rama Yadav's "बंद साँकल", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
बंद साँकल खुल जाएँ
नया सवेरा हो जाए ...
दहशत से पार पा जाएँ
डर के बादल छँट जाएँ ...
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Sun, 31 Oct 2021 - 01min - 75 - "पनाह"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
Shoonya Theatre group presents Rama Yadav's "पनाह", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
पनाह
जितना बच सकता है
बचा लें....
कोई राह आए जो
हमें
पनाह दे
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Sun, 24 Oct 2021 - 00min - 74 - "डॉ इंदु जैन" जी की कविताओं का वाचन - प्रस्तुति शून्य नाट्य समूहSun, 17 Oct 2021 - 42min
- 73 - "प्रकृति माँ"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
Shoonya Theatre group presents Rama Yadav's "सलाखें", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
प्रकृति माँ
काश मनुष्य और प्रकृति में जो सम्बंध सृष्टि के आरम्भ में था वो बना रहता तो आज ये प्रकृति कितनी सुंदर होती ।
अब तो बात इतनी पुरानी हो गयी कि लगता ही नही कि प्रकृति और इंसान कभी साथी भी रहें होंगे ...
अब जब सब सही होता है क्या हम प्रकृति के लिए कुछ कर पाएँगे ..
कुछ समझौता ...
A.C कैसी हवाएँ छोड़ रहे है न
कितनी गर्मी हम अपने इन प्यारे पंछियों को दे रहे हैं
धुआँ फेंकते हमारे वाहन
सोचना तो होगा कि
क्या हम एक बूँद भर भी साथ दे सकते हैं अपनी प्रकृति का
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Sun, 10 Oct 2021 - 02min - 72 - "आमीन"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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आमीन
ईद की मुबारक
दीपावली की ख़ुशी
साथ -साथ
मनाएँ
वो दिन जल्द आए
देश में अमन हो
शांति हो
सब स्वस्थ हों
ख़ुश हों
चैन हो
सुकून हो
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Sun, 03 Oct 2021 - 01min - 71 - "किसान"- Rama Yadav's Hindi poetry| Hindi Quote |Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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किसान
लहलहाती फसलों के पीछे
लहलहाती है मेहनत किसान की
धान रौंपते हाथों की
शोभा दिखायी देती है इन फसलों में
आओ लौट चलें खेतों की ओर
आओ एक बार देखे धरती को
फिर
गाँवों की आँखों से
आओ
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Sun, 26 Sep 2021 - 01min - 70 - "रोशनियाँ" - एक छोटी सी बात चीत लाइट डिज़ाइनर अतुल मिश्रा के साथ | Hindi Quotes| Hindi poetry|
#HindiKavita #Kavita #HindiPoetry #Hindipoem
नमस्कार आप सब के निरंतर साथ और प्यार को देखते हुए शून्य एक नया प्रयास कर रहा है जिसमे वीडियो के माध्यम से भी हम आपसे जुड़ेंगे।
उसी सफर की तरफ ये एक छोटा सा कदम। जल्द ही और कविताएं आपक समक्ष लाएंगे।
अपने विचार हमसे अवश्य साझा करें।
रोशनियाँ
धीमी-मध्यम-हल्की -भीनी-नीली-झीनी
रोशनियाँ
रोशनियों का खेल
रोशनियों का मेल
अलबेला
ये खेला
स्टेज का
रेला ...
रोशनियों का
रोशनी ....
दुख की
सुख की
प्रेम की
हैरत की
शोर -शराबे की
रोशनी ...
ख़ैर की
खबर की ...
अंधेरे की ...
उजाले की
रोशनियाँ -
मंच से परे
मंच पर
मंच से आगे
रोशनियाँ
फ़ेड ऑन
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Sun, 19 Sep 2021 - 02min - 69 - "रोशनी"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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रोशनी तुम भरी रहना हममे
चीरती रहना अंधेरी को
Photo :सागर
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Sun, 12 Sep 2021 - 01min - 68 - "आषाढ़"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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आषाढ़
युग बीत गए
पर आषाढ़ के बादलों ने
घिरना नहीं
छोड़ा ...
युग बीतते जाएँगे
बादल यूँ ही
धरती पर
घिरते जाएँगे.....
तस्वीर : दीपू सूर्या
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Mon, 30 Aug 2021 - 01min - 67 - स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सन्देश | राम आग्रह जी का धन्यवादSun, 15 Aug 2021 - 03min
- 66 - "प्रकृति माँ"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
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प्रकृति माँ
काश मनुष्य और प्रकृति में जो सम्बंध सृष्टि के आरम्भ में था वो बना रहता तो आज ये प्रकृति कितनी सुंदर होती ।
अब तो बात इतनी पुरानी हो गयी कि लगता ही नही कि प्रकृति और इंसान कभी साथी भी रहें होंगे ...
अब जब सब सही होता है क्या हम प्रकृति के लिए कुछ कर पाएँगे ..
कुछ समझौता ...
A.C कैसी हवाएँ छोड़ रहे है न
कितनी गर्मी हम अपने इन प्यारे पंछियों को दे रहे हैं
धुआँ फेंकते हमारे वाहन
सोचना तो होगा कि
क्या हम एक बूँद भर भी साथ दे सकते हैं अपनी प्रकृति का
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Sun, 08 Aug 2021 - 01min - 65 - "बादलों ने रंग क्यों बदला"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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बादलों ने रंग क्यों बदला /
प्रकृति रूठ गयी है ...
कला ..का भारी नुक़सान
तानसेन के लिए कहा जाता है कि जब वो दीपक राग गाते थे तो दीपक स्वतः ही जल उठते थे ...
राग मल्हार गाते तो बादल उमड़ -घुमड़ कर आ जाते बरसने लगते
प्रकृति का गहरा रिश्ता रहा है भारत के साथ । आज लगता है जैसे उस अटूट सम्बंध को गहरी ठेस लगी है ..प्रकृति रूठ सी गयी है कैसे मनाएँ ...क्या करें ...
आम जन -ख़ास जैन भाग रहा है कि कैसे ख़ुद को बचा लें
कलाकार जा रहे हैं
सितार -गायन सूना पड़ा है
बादलों अपना रंग न बदलों ...हे माँ प्रकृति अपनी कृपा दृष्टि हम पर बनाओ ...इस धारा को अपनी करूण ममता से सींचो ...
तस्वीर : हंगरी की कलाकार जुदित मारिया की
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Sun, 01 Aug 2021 - 02min - 64 - Feedback_2 - आप सबके सुझाव आमंत्रित हैं
सभी दर्शकों का पूरे शून्य नाट्य समहू की तरफ से शुक्रिया। अपने सुझाव अवश्य हमसे साझा करें।
Whatsapp:9999172183
Email : shoonyatheatregroup@gmail.com
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Sun, 25 Jul 2021 - 02min - 63 - "सलाखें"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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सलाखें
सलाख़ों में बंद इंसानियत
किससे सवाल करे ?????
त्राहि-त्राहि मची है पर सुनवायी नहीं...
सलाख़ों में बंद से हो गए...
चाहे घर के अंदर हों या बाहर ..ये सलाख़ें ग़ैर ज़िम्मेदारी की कब टूटेंगी ? पता नहीं....मनुष्यता की बात करते -करते कब मनुष्य होने के धर्म से ही आँख मूँद ली पता ही नहीं ...
आस -पास जो हो रहा है उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ...
आज फिर से घर में ही हार रहे हैं हम
कुछ तो ग़ैर ज़िम्मेदार हुए ही होंगे हमारे लोकतंत्र के रखवाले
और कब तक अब ये जंग
और कितने नमन
अब नहीं सहा जाता
ख़ामोश हो ये जंग अब
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Sun, 18 Jul 2021 - 02min - 62 - "रोज़"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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रोज़
रोज़ रोज़ रोज़
मुँह पर गमछा लपेटे आते हैं
शिकन नही होती माथे पर उनके । ऐसे समय में जब पल का पता नहीं घर -घर से कूड़ा इकट्ठा करते हैं । कोई हाल -चाल पूछे न पूछे वो सबसे राम -राम , दुआ - सलाम करते हैं ...हाल भी पूछ लेते हैं ...हम तो उनकी तनख़्वाह भी उन्हें सोच - समझ कर देते हैं ....
इनकी कर्मठता के सामने नतमस्तक हैं कि जब सबने घर से निकलना छोड़ दिया तब भी ये रोज़ सुबह सर पर गमछा बांध उसी बहादुरी से चले आते हैं ...
सच हम केवल निहशब्द हैं उनकी दिलेरी और सेवा के लिए कोई शब्द ही नहीं मिलता
बस आँखें झुकी जाती हैं
ये है सच्ची मानवता
कैसे मनुष्य अपने कारण से सबसे ऊपर उठ जाता है
समाज के लिए एक मिसाल क़ायम कर रहे हैं ये कचरा ढोने वाले
आज भी और पहले भी
यही हमारा
प्रथम तबका
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Sun, 11 Jul 2021 - 02min - 61 - "जड़ता टूटे"- Rama Yadav's Hindi Quote | Hindi poetry| Hindi Lines | Hindi Panktiyan
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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जड़ता टूटे
वीरान से पड़े रास्तों पर फिर से बच्चे गेंद खेलें ,
सब्ज़ी वाले भईया आवाज़ लगाएँ ,
मियाँ की चूड़ियों से ताई की कलाई खनके ...
दूधिया अपनी साइकिल की घंटी बजाता निकले ,
किसी बूढ़ी अम्मा के भजन मंदिर से गूंजे ...
जागरण की स्वर लहरियों से मोहल्ले गूँजे ...
बाज़ार सजे
शोर -गुल हो
एक छत से दूसरी छत तक
पतंगो का समा बंधे
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Sun, 04 Jul 2021 - 01min - 60 - निदा फ़ाज़ली का एक गीत - एक दुआ के साथ की दुआ बरसे | Nida Fazli| Hindi Poetry
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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Sun, 27 Jun 2021 - 03min - 59 - "लफ़्ज़ों का पुल" -: इस तन्हाई में निदा फाज़ली साहब की रचना आपके लिए ..एक दुआ के साथ की दुआ बरसे
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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Sun, 20 Jun 2021 - 01min - 58 - "फ़ुर्सत"-Nida Fazli's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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Sun, 13 Jun 2021 - 01min - 57 - "दो सहेलियाँ"-Nida Fazli's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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Sun, 06 Jun 2021 - 01min - 56 - "सहर"-Nida Fazli's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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Sun, 30 May 2021 - 01min - 55 - "रुख़्सत होते वक़्त" - Nida Fazli's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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Sun, 23 May 2021 - 01min - 54 - "भोर"-Nida Fazli's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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Sun, 16 May 2021 - 00min - 53 - कमरे में धूप - Kunwar Narayan's Hindi Kavita by Shoonya Theatre | Recorded Live
शून्य थियेटर , थियेटर की दुनिया में एक नया प्रयोग कर रहा है शून्य की टीम अपने दर्शक , श्रोताओं तक घर बैठे पहुँच रही है l आज आपके लिए हिन्दी के बड़े कवि कुंवर नारायण की कविता कमरे में धूप लेकर आए हैं जिसका निर्देशन किया है रमा यादव ने l इस कविता में बहुत सा अभिनय है ..उस अभिनय के लिए आवाज़ दी है सनी ने और उसे संयोजित किया है मयंक ने l कविता का रंगमंच शून्य की अपनी पहचान है ..आपके सामने उसी की एक नयी कड़ी कमरे में धूप ....आइये देखते हैं |
कमरे में धूप
हवा और दरवाजों में बहस होती रही,
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।
सहसा किसी बात पर बिगड़ कर
हवा ने दरवाजे को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया !
खिड़कियाँ गरज उठीं,
अखबार उठ कर खड़ा हो गया,
किताबें मुँह बाये देखती रहीं,
पानी से भरी सुराही फर्श पर टूट पड़ी,
मेज के हाथ से कलम छूट पड़ी।
धूप उठी और बिना कुछ कहे
कमरे से बाहर चली गई।
शाम को लौटी तो देखा
एक कुहराम के बाद घर में खामोशी थी।
अँगड़ाई लेकर पलंग पर पड़ गई,
पड़े-पड़े कुछ सोचती रही,
सोचते-सोचते न जाने कब सो गई,
आँख खुली तो देखा सुबह हो गई।
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Sun, 09 May 2021 - 04min - 52 - "हैरत है"-Nida Fazli's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
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Sun, 02 May 2021 - 01min - 51 - शून्य के दर्शक श्याम द्वारा जो कि ग्यारवी कक्षा के छात्र हैं "आषाढ़ का एक दिन" पर फीडबैकSun, 25 Apr 2021 - 00min
- 50 - Feedback - आप सबके सुझाव आमंत्रित हैं
सभी दर्शकों का पूरे शून्य नाट्य समहू की तरफ से शुक्रिया। अपने सुझाव अवश्य हमसे साझा करें।
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Sun, 18 Apr 2021 - 03min - 49 - "वर्णमाला"-Manglesh Dabral's Hindi Kavita by Dr. Kavita Bhatia
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
मंगलेश डबडाल की कविता का वाचन इस बार डॉ कविता भाटिया द्वारा |
वर्णमाला
एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ
अ से अनार अ से अमरूद
लेकिन लिखने लगता हूँ अ से अनर्थ अ से अत्याचार
कोशिश करता हूँ कि क से क़लम या करुणा लिखूँ
लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से क्रूरता क से कुटिलता
अभी तक ख से खरगोश लिखता आया हूँ
लेकिन ख से अब किसी ख़तरे की आहट आने लगी है
मैं सोचता था फ से फूल ही लिखा जाता होगा
बहुत सारे फूल
घरो के बाहर घरों के भीतर मनुष्यों के भीतर
लेकिन मैंने देखा तमाम फूल जा रहे थे
ज़ालिमों के गले में माला बन कर डाले जाने के लिए
कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है
भ से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है
द दमन का और प पतन का सँकेत है
आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला
वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं
समाज की हिंसा
ह को हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है
हम कितना ही हल और हिरन लिखते रहें
वे ह से हत्या लिखते रहते हैं हर समय ।
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Sun, 11 Apr 2021 - 03min - 48 - "कमरा"-Manglesh Dabral's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
शून्य नाट्य समूह का नमन हिन्दी के बड़े कवि मंगलेश डबराल के नाम l
करोना के इस आपातकाल में मंगलेश डबराल जी का जाना एक बड़ी क्षति है ..एक बहुत बड़ी सादगी का अचानक से चले जाना l मंगलेश जी की सादी कविताओं की ध्वनि दूर तक जाती है l सोते-जागते कविता के माध्यम से शून्य नाट्य समूह दे रहा है अपने प्रिय कवि को सलामी|
कमरा
इस कमरे में सपने आते हैं
आदमी पहुँच जाता है
दस या बारह साल की उम्र में
यहाँ फ़र्श पर बारिश गिरती है
सोये हुओं पर बादल मंडराते हैं
रोज़ एक पहाड़ धीरे-धीरे
इस पर टूटता है
एक जंगल यहाँ अपने पत्ते गिराता है
एक नदी यहाँ का कुछ सामान
अपने साथ बहाकर ले जाती है
यहाँ देवता और मनुष्य दिखते हैं
नंगे पैर
फटे कपड़ों में घूमते
साथ-साथ घर छोड़ने की सोचते
(1989 में रचित)
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Sun, 04 Apr 2021 - 01min - 47 - "तानाशाह"-Manglesh Dabral's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
शून्य नाट्य समूह का नमन हिन्दी के बड़े कवि मंगलेश डबराल के नाम l
करोना के इस आपातकाल में मंगलेश डबराल जी का जाना एक बड़ी क्षति है ..एक बहुत बड़ी सादगी का अचानक से चले जाना l मंगलेश जी की सादी कविताओं की ध्वनि दूर तक जाती है l सोते-जागते कविता के माध्यम से शून्य नाट्य समूह दे रहा है अपने प्रिय कवि को सलामी|
तानाशाह
तानाशाहों को अपने पूर्वजों के जीवन का अध्ययन नहीं करना पड़ता। वे उनकी पुरानी तस्वीरों को जेब में नहीं रखते या उनके दिल का एक्स-रे नहीं देखते। यह स्वत:स्फूर्त तरीके से होता है कि हवा में बन्दूक की तरह उठे उनके हाथ या बँधी हुई मुठ्ठी के साथ पिस्तौल की नोक की तरह उठी हुई अँगुली से कुछ पुराने तानाशाहों की याद आ जाती है या एक काली गुफ़ा जैसा खुला हुआ उनका मुँह इतिहास में किसी ऐसे ही खुले हुए मुँह की नकल बन जाता है। वे अपनी आँखों में काफ़ी कोमलता और मासूमियत लाने की कोशिश करते हैं लेकिन क्रूरता एक झिल्ली को भेदती हुई बाहर आती है और इतिहास की सबसे क्रूर आँखों में तब्दील हो जाती है। तानाशाह मुस्कराते हैं, भाषण देते हैं और भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं कि वे मनुष्य है, लेकिन इस कोशिश में उनकी भंगिमाएँ जिन प्राणियों से मिलती-जुलती हैं वे मनुष्य नहीं होते। तानाशाह सुन्दर दिखने की कोशिश करते हैं, आकर्षक कपड़े पहनते हैं, बार-बार सज-धज बदलते हैं, लेकिन यह सब अन्तत: तानाशाहों का मेकअप बनकर रह जाता है।
इतिहास में कई बार तानाशाहों का अन्त हो चुका है, लेकिन इससे उन पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें लगता है वे पहली बार हुए हैं।
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Sun, 28 Mar 2021 - 03min - 46 - "माँ की तस्वीर"-Manglesh Dabral's Hindi Kavita by Dr. Nisha Nag Purohit
मंगलेश डबडाल की कविता का वाचन इस बार डॉ निशा नाग द्वारा जो की शून्य नाट्य समूह की एक सुधी दर्शक तो हैं ही साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हिन्दी की प्रवक्ता हैं ।
माँ की तस्वीर
घर में माँ की कोई तस्वीर नहीं
जब भी तस्वीर खिंचवाने का मौक़ा आता है
माँ घर में खोई हुई किसी चीज़ को ढूंढ रही होती है
या लकड़ी घास और पानी लेने गई होती है
जंगल में उसे एक बार बाघ भी मिला
पर वह डरी नहीं
उसने बाघ को भगाया घास काटी घर आकर
आग जलाई और सबके लिए खाना पकाया
मैं कभी घास या लकड़ी लाने जंगल नहीं गया
कभी आग नहीं जलाई
मैं अक्सर एक ज़माने से चली आ रही
पुरानी नक़्क़ाशीदार कुर्सी पर बैठा रहा
जिस पर बैठकर तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं
माँ के चहरे पर मुझे दिखाई देती है
एक जंगल की तस्वीर लकड़ी घास और
पानी की तस्वीर खोई हुई एक चीज़ की तस्वीर
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Sun, 21 Mar 2021 - 01min - 45 - "सोते-जागते"-Manglesh Dabral's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
शून्य नाट्य समूह का नमन हिन्दी के बड़े कवि मंगलेश डबराल के नाम l
करोना के इस आपातकाल में मंगलेश डबराल जी का जाना एक बड़ी क्षति है ..एक बहुत बड़ी सादगी का अचानक से चले जाना l मंगलेश जी की सादी कविताओं की ध्वनि दूर तक जाती है l सोते-जागते कविता के माध्यम से शून्य नाट्य समूह दे रहा है अपने प्रिय कवि को सलामी|
सोते-जागते
जागते हुए मैं जिनसे दूर भागता रहता हूँ
वे अक्सर मेरी नीन्द में प्रवेश करते हैं
एक दुर्गम पहाड़ पर चढ़ने से बचता हूँ
लेकिन वह मेरे सपने में प्रकट होता है
जिस पर कुछ दूर तक चढ़ने के बाद कोई रास्ता नहीं है
और सिर्फ़ नीचे एक अथाह खाई है
जागते हुए मैं एक समुद्र में तैरने से बचता हूँ
सोते हुए मैं देखता हूँ रात का एक अपार समुद्र
कहीं कोई नाव नहीं है और मैं डूब रहा हूँ
और डूबने का कोई अन्त नहीं है
जागते हुए मैं अपने घाव दिखलाने से बचता हूँ
ख़ुद से भी कहता रहता हूँ — नहीं, कोई दर्द नहीं है
लेकिन नीन्द में आँसुओं का एक सैलाब आता है
और मेरी आँखों को
अपने रास्ते की तरह इस्तेमाल करता है
दिन भर मेरे सर पर
बहुत से लोगों का बहुत सा सामान लदा होता है
उसे पहुँचाने के लिए सफ़र पर निकलता हूँ
नीन्द में पता चलता है, सारा सामान खो गया है
और मुझे ख़ाली हाथ जाना होगा
दिन में एक अत्याचारी-अन्यायी से दूर भागता हूँ
उससे हाथ नहीं मिलाना चाहता
उसे चिमटे से भी नहीं छूना चाहता
लेकन वह मेरी नीन्द में सेन्ध लगाता है
मुझे बाँहों में भरने के लिए हाथ बढ़ाता है
और इनकार करने पर कहता है
इस घर से निकाल दूँगा, इस देश से निकाल दूँगा
कुछ ख़राब कवि जिनसे बचने की कोशश करता हूँ
मेरे सपने में आते हैं
और इतनी देर तक बड़बड़ाते हैं
कि मैं जाग पड़ता हूँ घायल की तरह ।
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Sun, 14 Mar 2021 - 03min - 44 - "यहाँ थी वह नदी"-Manglesh Dabral's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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शून्य नाट्य समूह का नमन हिन्दी के बड़े कवि मंगलेश डबराल के नाम l
करोना के इस आपातकाल में मंगलेश डबराल जी का जाना एक बड़ी क्षति है ..एक बहुत बड़ी सादगी का अचानक से चले जाना l मंगलेश जी की सादी कविताओं की ध्वनि दूर तक जाती है l 1970 में लिखी उनकी वसंत कविता के माध्यम से शून्य नाट्य समूह दे रहा है अपने प्रिय कवि को सलामी|
यहाँ थी वह नदी
जल्दी से वह पहुँचना चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इन्तज़ार कर रही थी
और पक्षियों की क़तार
आ रही थी पानी की खोज में
बचपन की उस नदी में
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा उफनती
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
उस नदी से शुरू होते थे दिन
उसकी आवाज़
तमाम खिड़कियों पर सुनाई देती थी
लहरें दरवाज़ों को थपथपाती थीं
बुलाती हुईं लगातार
हमे याद है
यहाँ थी वह नदी इसी रेत में
जहाँ हमारे चेहरे हिलते थे
यहाँ थी वह नाव इंतज़ार करती हुई
अब वहाँ कुछ नहीं है
सिर्फ़ रात को जब लोग नींद में होते हैं
कभी-कभी एक आवाज़ सुनाई देती है रेत से
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Sun, 07 Mar 2021 - 01min - 43 - "वसंत "-Manglesh Dabral's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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शून्य नाट्य समूह का नमन हिन्दी के बड़े कवि मंगलेश डबराल के नाम l
करोना के इस आपातकाल में मंगलेश डबराल जी का जाना एक बड़ी क्षति है ..एक बहुत बड़ी सादगी का अचानक से चले जाना l मंगलेश जी की सादी कविताओं की ध्वनि दूर तक जाती है l 1970 में लिखी उनकी वसंत कविता के माध्यम से शून्य नाट्य समूह दे रहा है अपने प्रिय कवि को सलामी|
"वसंत"
इन ढलानों पर वसंत
आएगा हमारी स्मृति में
ठंड से मरी हुई इच्छाओं को फिर से जीवित करता
धीमे-धीमे धुंधवाता खाली कोटरों में
घाटी की घास फैलती रहेगी रात को
ढलानों से मुसाफिर की तरह
गुजरता रहेगा अंधकार
चारों ओर पत्थरों में दबा हुआ मुख
फिर उभरेगा झाँकेगा कभी
किसी दरार से अचानक
पिघल जाएगी जैसे बीते साल की बर्फ
शिखरों से टूटते आएँगे फूल
अंतहीन आलिंगनों के बीच एक आवाज
छटपटाती रहेगी
चिड़िया की तरह लहूलुहान
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Sun, 21 Feb 2021 - 02min - 42 - "रेड लाइट" -Hindi Short Story By Shoonya Theatre Group | Hindi Kahani | Story telling | Story
#hindistory #hindikahani #kahani
Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "रेड लाइट" written by Rama Yadav .
We bring to you short Hindi stories which would fill you with different human emotions , each story is hand picked and carefully crafted for the listener.
रेड लाइट
घर पहुँचने की जल्दी तो कभी भी नहीं होती.... दिल्ली की सड़कों पर ड्राइव करने का अपना एक अलग ही मज़ा है ...मुझे आता है ..आपका पता नहीं ..वो कुछ लम्हें वख्त से चुराए होते हैं मैंने अपने लिए l ठान ली है कि चाहे जो हो जाए irritate नहीं होना यार ..
यूँ भी क्या हो जाएगा परेशान होकर ..इधर पर टेंशन होती है गाड़ी जब रेड लाइट्स पर रुकती है तो समझ नहीं आता की इतने लोग कहाँ से आ गए जो कमा खा नहीं पा रहे ..किसी को कलम बेचते देख ..फूल बेचते देख मन दुखी सा हो जाता है ..उन हाथों में कई नन्हें हाथ भी होते हैं ..दिमाग सिकुड़ने लगता है कि क्या किया जाए ..कई बार इस झूठी शानो शोकत पर गुस्सा आने लगता है l
ऐसे ही एक दिन दिल्ली कि किसी रेड लाइट के खुलने का इंतज़ार था कि एक बहुत प्यारी सी मुस्कराहट ने ध्यान अपनी और खींच लिया ..वो किसी दूसरी कार में बैठे व्यक्ति से कुछ मांगना चाह रही थी l चटक गुलाबी शलवार कुर्ता और वैसी ही चुन्नी ..देह की एकदम पतली ...बला कि खूबसूरत और लम्बी ..जब वो मेरी तरफ मुड़ी तो तीखे नैन नक्श और उसकी मुस्कराहट ने मुझे बाँध लिया ...रेड लाईट पर कोई बहुत समय नहीं होता ..ये सब जो भी हो रहा था ये पलों का काम था पर वो पल जैसे वहीँ जम गए थे l मुझे पता था कि अब वो मेरी कार की ओर कदम बढ़ाएगी ..मैं भी सचेत कि मेरे पास कुछ हो जो मै उसके हाथ पे रख सकूँ ..वो मेरी तरफ बढी ..उसके बढ़ते क़दमों के साथ मैंने कार के शीशे कब नीचे किये और अपने हाथ में एक नोट थाम लिया पता न चला l
रेड लाइट खुल गयी थी , पर ट्रेफिक ज्यादा होने के कारण कार को क्षण भर खड़े होने का मौका था l जैसे ही उसने अपना हाथ बढ़ाया मुझे उसकी बाँहें दिखायीं दीं ..उन हाथों की कसी नसे और उस पर उभरे रेशे एक बलिष्ट पुरुष की निशानी दे रहे थे ..नोट उसके हाथ में जा चुका था ..वो मेरी आँखों के भाव को समझ चुकी थी
...एक मुस्कराहट देती या देता वो निकल गया ..मेरे चेहरे पर उस दिन जो मुस्कराहट आई वो अब तक कि सब मुस्कुराहटों से अलग थी ..किसी तरह जहाँ तक संभव हुआ मेरी नज़रें उस पर बनी रहीं ..दूर जाकर उसने एक इशारा किया जिसका मतलब था मत सोचो और वो रेड लाइट जाने कब खत्म हो गयी l
(सर्वाधिकार सुरक्षित शून्य थियेटर समूह )
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Sun, 07 Feb 2021 - 02min - 41 - Chhau Recorded Live | Contact artists using number in description| Indian Folk|RajasthanSun, 31 Jan 2021 - 10min
- 40 - Rajasthani Folk Recorded Live-2 | Contact artists using number in description| Indian Folk|Rajasthan
#RajasthaniFolk #FolkMusic #Music
Shoonya Theatre Brings to you Rajasthani folk music recorded at a live performance .
If you wish to contact these artists for performance or any other purpose kindly contact
9999172183
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Sun, 24 Jan 2021 - 10min - 39 - Rajasthani Folk Recorded Live | Contact artists using number in description| Indian Folk| Rajasthan
#RajasthaniFolk #FolkMusic #Music
Shoonya Theatre Brings to you Rajasthani folk music recorded at a live performance .
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Sun, 17 Jan 2021 - 13min - 38 - "डिबिया " -Uday Prakash's Short Story By Shoonya Recorded Live | Hindi Kahani | Story |
#hindistory #hindikahani #kahani
Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "डिबिया" written by Uday Prakash.
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Sun, 10 Jan 2021 - 17min - 37 - "समर्पण का मिथ"-Louise Glück's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
#HindiKavita#Kavita#HindiPoetry#Hindipoem#
Shoonya Theatre group presents Louise Glück's Kavita/ hindi Kavita "समर्पण का मिथ", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
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Sun, 03 Jan 2021 - 05min - 36 - "लोरी "-Louise Glück's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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Sun, 27 Dec 2020 - 03min - 35 - "बर्फ"-Louise Glück's Hindi Kavita Kavita | Hindi Poetry| Hindi Kavita| Kavitaen
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Sun, 20 Dec 2020 - 01min - 34 - भूखों की रोटी हड़प ली गई है-Bertolt Brecht's Hindi Kavita Kavita |Hindi Poetry|Hindi Kavita|Kavitaen
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Sun, 13 Dec 2020 - 01min - 33 - शहरों के बारे में - Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry|Hindi Kavita|Kavitaen
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Sun, 06 Dec 2020 - 01min - 32 - नेता जब शांति की बात करते हैं -Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita
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Sun, 29 Nov 2020 - 00min - 31 - "बातचीत"- with Bhupesh Kumar PandyaSun, 22 Nov 2020 - 42min
- 30 - युग पलट रहा है - Rama Yadav's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry|Hindi Kavita
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युग पलट रहा है
कुछ हाथों से छूट रहा है
हर पल दिल धड़क रहा है ,
एक युग पलट रहा है ...
गुनगुनी धूप करवट ले रही है ..
मौसम का रुख बदल रहा है ..
याद के साए दूर टंगे लालटेन से ...
कुछ परछाइयां पकड रहे हैं ..
बेबस हैं ..
लाचार हैं
केवल अपना हाथ मल रहे हैं ..
कैसी ये विदाई
जहाँ न कोई रस्म है न फिर मिलने की कसम है ..
बहुत दूर तक
केवल तकती आँखें हैं ....
और लम्बी
बहुत लम्बी पगडंडी है ...
कुछ अपना
बहुत अपना
हाथों से छूट रहा है
एक युग पलट रहा है
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Sun, 15 Nov 2020 - 02min - 29 - आने वाले महान समय की रंगीन कहावत - Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry|Hindi Kavita
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Sun, 08 Nov 2020 - 01min - 28 - हॉलीवुड -Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita | Poetry
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Sun, 01 Nov 2020 - 01min - 27 - कमज़ोरियां -Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita | Poetry
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Sun, 25 Oct 2020 - 01min - 26 - युद्ध जो आ रहा है -Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita | Poetry
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Sun, 18 Oct 2020 - 01min - 25 - जब कूच हो रहा होता है - Bertolt Brecht's Hindi Kavita | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita
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Sun, 11 Oct 2020 - 01min - 24 - दोस्त - Bertolt Brecht's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita
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Sun, 04 Oct 2020 - 02min - 23 - दीवार पर खड़िया से लिखा था - Bertolt Brecht's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry
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Fri, 02 Oct 2020 - 01min - 22 - "देवदार" - Bertolt Brecht's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry | Aduio poetry
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Sun, 20 Sep 2020 - 01min - 21 - हर चीज़ बदलती है - Bertolt Brecht's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry |Hindi Kavita
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Sun, 13 Sep 2020 - 00min - 20 - "पीली भीत " - Hindi Short Story By Shoonya Theatre Group | Hindi Kahani | Story telling | Story
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पीली भीत
रात के शांत अंधेरों में ऐसा नहीं कि कभी नहीं निकलती , बल्कि ये शांत अँधेरे ही वो मौक़ा देते हैं जब वख्त की दरारों को पार कर बहुत पीछे जाया जा सकता है ..या उन दरों - दीवारों को महसूस कर पाती हूँ जो बहुत अपने हैं l सुबह के शोर में तो ये मोड़ उतने साफ़ कहाँ ही दिखायी देते हैं l ये वही मोड़ , सड़के और दीवारें हैं जिनके साथ न जाने कितने – कितने सफ़र किये हैं , जिनका एक – एक हरफ ज़हन में हर वखत ताज़ा है जो खुद में मुझे भर लेने को हर वख्त तैयार है ..इनकी आगोश में मेरे लिए पनाह हमेशा है l जैसे ही ये पीली भीत शुरू होती है , वैसे ही दिल को जैसे बहुत पीछे जाने का मौका मिल जाता है और बहुत सारे गुलमोहर मेरे भीतर महकने लगते हैं l बहुत लम्बी फैली ये पीली भीत मेरे अंदर के बसंत को जिंदा रखने में हर वख्त कामयाब है ...इसका कतरा – कतरा मेरे वजूद को बयान करता है ..कई बार इसका होना मुझे अपना होना लगता है ..यही तो वो जगह है जहाँ मैंने अपने होने को जाना और जो मेरी नींव को बहुत गहरा कर गयी ...सब कुछ बदल जाए पर इसका ये रंग नहीं बदलेगा ..कारण कि ये अब एक धरोहर का हिस्सा है और न इसका आस – पास बदलेगा ..इसलिए मन में एक तसल्ली है कि फिर यहाँ जो हमने एक पल बिताया एक दूसरे के साथ वो भी उस क्षण में यूँ का यूँ ज़िंदा रहेगा ..ये वही तो जगह है जहाँ पहली बार तुमने मुझे वो हरा कंगन पहनाया था जिसकी बनावट तुम्हे और मुझे दोनों को ही नहीं समझ आ रही थी , कितना वख्त लगा था तुम्हें उसे मेरे हाथ में पहनने में ..वो एक मुकमल लम्हा बन गया मेमेरी ज़िन्दगी का और फिर आखिरकार वो मेरी कलाई में आ गया था और उससे मेरी कलाई जगमगा गयी ...ठीक वैसे जैसे रात कि खामोशी में ओस की बूँद की टपकन ...
(सर्वाधिकार सुरक्षित शून्य थियेटर समूह )
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Sun, 06 Sep 2020 - 03min - 19 - "शहर" - Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry | Hindi Poem | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Kavita/ hindi Kavita "शहर "/"Sheher", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
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Sun, 30 Aug 2020 - 01min - 18 - "छोटा सा सपना" - Hindi Short Story By Shoonya Theatre Group | Hindi Kahani | Story telling | Story
#hindistory #hindikahani #kahani
Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "छोटा सा सपना" written by Rama Yadav .
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छोटा सा सपना
एक लघु कथा ( कृपया पढ़कर अपनी राय अवश्य दें )
आज वो बल्लियों उछल रहा था , उसका छोटा सा सपना पूरा होने जा रहा था , पिछले डेढ़ महीने से वो जो रात - दिन मेहनत कर रहा था वो आज रंग लाने वाली थी l
गुज़रे डेढ़ महीने में न जाने वो उस शो रूम के कितने चक्कर काट चुका था , पर हर बार खाली हाथ लौट आता था ...भीतर घुसने की हिम्मत ही न होती ...पर हाँ कांच के अंदर से झांकते ‘ मूल्य’ का उसने पता लगा लिया था .. आज वो उस शो रूम से खाली हाथ नहीं आयेगा , आज उसकी मुठ्ठी में एक सौ का करारा नोट और साथ ही बीस रूपए हैं , हाँ एक सौ बीस रूपए ..और उतने की हीं हैं वो चप्पल जो उसने अपनी माँ के लिए पसंद की है l बहुत ही सादी सी.... जिसमें उसकी माँ के मीलो चलने वाले मजबूत पैर और भी सुंदर लगेंगे ..पिछला सारा महिना खूब मेहनत करके उसने ये पैसे जमा किये हैं ..और इन्हें मुठ्ठियों में बाँधकर वो इतराता घूम रहा है, उसके पांव उड़े जा रहें हैं l
बड़ी ठाठ के साथ उसने शो रूम में प्रवेश किया और काम से खुरदरी हुई मुठ्ठियों को और कसकर भींच लिया l उसने दुकानदार से ईशारे में दूर कोने में कांच के शीशे से बाहर झांकती चपल्लों के लिए कहा , उसे बहुत सारी चप्पलें नहीं देखनी थीं , बस इसी को फटाफट ले जाना था l दुकान पर काम करने वाले व्यक्ति ने उसके बताने पर वैसी ही सात नम्बर की चप्पल निकाल दी l वो जल्दी से बिल कटवा देना चाहता था , और उड़कर माँ के पैरों में ये चप्पल पहना देना चाहता था , बिल कट चुका था , उसने मुठ्ठी खोली और बिना देखे ही वो पैसा दुकानदार के आगे बढ़ा दिया ...दुकानदार उस पर झिडक पड़ा ..वो समझ नहीं पा रहा था कि हुआ क्या ..दुकानदार ने उसकी हथेली पर बीस रूपए रखते हुए कहा कि ये बीस की नहीं एक सौ बीस की हैं ..उसने बीस रूपए का नोट देखा और उसे अपनी मुठ्ठियों में बाँध लिया ..वो समझ नहीं पा रहा था कि उसका करारा सा सौ रूपए का नोट कहाँ गया ..उसे लगा कि कहीं उसकी खुशी में मुठ्ठी हलकी सी खुली और वो सरक कर गिर तो नहीं गया ..पूरा रास्ता वो चप्पा – चप्पा अपना करारा नोट ढूंढता फिरा ..उसकी सिसकियाँ भीतर ही भिंची रह गयीं ..उसकी आँख से एक आंसू नहीं टपका ..उसने अगले महीने फिर से जी तोड़ काम करने का मन बनाया और घर की राह ली l
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Sun, 23 Aug 2020 - 03min - 17 - नीली गुड़िया - Hindi Short Story By Shoonya Theatre Group | Hindi Kahani | Story telling | Story
Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "नीली गुड़िया" written by Rama Yadav .
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नीली गुड़िया
(एक छोटी-सी कहानी , कृपया पढ़कर अपनी राय अवश्य दें )
उस नीले कपड़ो वाली गुड़िया की नीली आँखें और काले – काले घुंघराले बाल ...जो ऊन के बने थे, उसे आज भी नहीं भूलते... उस गुडिया ने उसके संवेदन-तंत्र को बहुत भीतर से छुआ था l उसे आज भी याद है कि जब वो अपनी हौदी में खुले नल के नीचे नहाता...तो अपनी गुड़िया को साथ रखता , गुड़िया कपड़े की थी... उसे चिंता रहती कि वो उसे भीगने नहीं देगा... माँ भी इस बात का ध्यान रखती कि उसकी गुड़िया पर पानी नहीं डालना है... बस पानी की छपाके ही गुड़िया तक जाते ...पाँच साल की उम्र तक वो उसकी इतनी बड़ी हमजोली हो गयी थी कि जैसे उसकी जुड़वा हो या फिर उससे भी कहीं ज्यादा l ये गुड़िया उसका एक अनमोल तोहफ़ा थी ..उसके बाद न जाने कितने तोहफ़े मिले पर उसकी जगह एक भी नहीं ले पाया l गुड़िया रात दिन उसके साथ रहती ..उसकी पैदाइश से भी पहले वो गुड़िया उसकी माँ ने बनायी थी और इस तरह से वो उसकी नाल से जुड़ गयी थी , उसकी नीली फ्राक , जादुई आंखें... घुंघराले बाल ....न जाने कैसे बनाए गए थे ..उसके गुलाबी मोज़े जो गर्मियों में सूती कपड़े के हो जाते और सर्दियों में ऊन के ....उसे बड़ा असमंजस लगता l उसके बढ़ने के साथ गुड़िया से उसकी दोस्ती और भी गहरी हो गयी थी , एक दिन खुले नल के नीचे अपनी हौदी में गुड़िया को अपनी कांख में दबाये बचाए वो नहा रहा था , कि साथ वाली छत से आवाज़ आई ..’’ लड़का होके गुडिया से खेलता है ‘’ हं ...हं ..हं ....उसने उस आवाज़ और उसके पीछे आने वाली हँसी को नज़रंदाज़ कर दिया और खूब कसकर अपनी गुडिया को बगल में दबा लिया l उसे नहीं पता कि क्यों पर अगले दिन भी नहाते हुए उसे वही आवाज़ और वही हँसी सुनाई दी..हं ..हं ...हं ... उसने अपने कानों को कसकर बंद कर लिया ..उसे याद है कि उसके मन ने उससे सवाल किया था कि ये लड़का -लड़की क्या होता है , उस रात वो अपनी गुड़िया को कसकर दबोच कर सोया था ...तीसरे दिन वो आवाज़ फिर आई ....इस बार वो आवाज़ उसकी बर्दाश्त के बाहर थी ...’’ लड़का होकर भी गुड़ियों से खेलता है ‘’ हं ...हं ...हं..हं..हं...आवाज़ उसके कानों में बेलगाम गूँज रही थी, देखते ही देखते ...उसने अपनी गुड़िया के चिथड़े-चिथड़े कर पोली की खिडकी से नीचें फेंक दिए ...उसे नहीं पता कि इतनी ताकत उसमें कहाँ से आ गयी थी ....माँ रसोई से ये सब देख रही थी .. वो अपना आँचल संभालती बहार आई तो लड़का बिफर ...बिफर कर रोने लगा ....माँ सीढ़ियों की तरफ दौड़ नीचे वहां पहुंची जहाँ से खिडकी से गिरा सामन बीन सकती थी , पर नीचे पहुंचकर उसने देखा कि गली का जमादार गुड़िया के चिथड़े पहले ही उठा चुका था ..लड़का अपनी पोली की खिडकी से खड़ा ये सब देख रहा था ..माँ धीरे – धीरे खाली हाथ ऊपर लौट आई ....
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Sun, 16 Aug 2020 - 04min - 16 - धूप - Agyeya's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry | Hindi Poem | Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Agyeya's Kavita/ hindi Kavita "धूप "/"Dhoop", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
धूप
सूप-सूप भर
धूप-कनक
यह सूने नभ में गयी बिखर:
चौंधाया
बीन रहा है
उसे अकेला एक कुरर।
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Sun, 09 Aug 2020 - 01min - 15 - काला छाता - Hindi Story By Shoonya Theatre Group | Hindi Kahani | Story telling | Story |Short Story
Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "काला छाता " written by Rama Yadav .
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काला छाता
छोटी कहानी – पढ़कर अपना मत अवश्य दें
बारिश ने झड़ी लगा रखी थी...पर आज हर हाल में ही उसे घर से निकलना था वो अपने उस टीचर से मिलने को उतावली थी जिसने उसे सिखाया था कि पढ़ाया कैसे जाता है , खुद को गलाकर ...अपना सब कुछ देकर ...वो अपने जीवन के अंतिम कुछ दिनों को जी रहे थे ... और वो एक बार उन्हें देख लेना चाहती थी ..बारिश में भीगती वो वहां पहुंची जहाँ उसके प्रोफेसर का घर था पलंग पर लेटे प्रोफेसर रवि सिन्हा का चेहरा वैसे ही दमक रहा था जैसा उसने उन्हें पहले दिन पाया था ....वो शायद बिना सूचना दिए ही पहुँच गयी थी ...प्रोफेसर सिन्हा ने अपनी माँ की ओर देखा जो उनके पास ही बैठी थी ...माँ समझती हुईं सी उठी ..और उन्हें उनकी शर्ट दे दी .. तमाम ताकत लगाकर प्रोफेसर सिन्हा ने उसे अपनी सफ़ेद बनियान के ऊपर पहन लिया ...वहां खडी – खडी वो अभी एक बरस पहले की यादों में खो सी गयी ....
उस दिन भी ...बारिश हो रही थी ....पर उसे आज कॉलेज जाना ही था ...घर पर छतरी एक ही थी और उसे कोई और ले जा चुका था ..भीगते हुए जाना अजीब तो लगता पर इसके अलावा कोई और चारा नहीं था ...अब तक की उसकी सारी बारिशे ऐसे ही बिना छाते के निकली थीं ..पर इस बार उसे कुछ अलग सा लग रहा था ..बहुत ही हलके गुलाबी रंग का लखनवी कढ़ाई का कुरता उस पर बहुत फब रहा था ...ये उसकी लाइफ का पहला शलवार – कुरता था अब तक वो साधारण सी दिखने वाली स्कर्ट या जींस ही पहना करती थी , ये कुरता और शलवार उसमें एक सुंदर लड़की होने का अहसास दुगना कर रहा था ...आज उसकी एम. ए की क्लास का पहला दिन था छतरी न होना अजीब लग सकता है , पर कभी उसे उसकी ज़रुरत भी वैसी महसूस नहीं हुई ..बारिश में भीगना बहुत अच्छा लगता रहा ..आज पहली ही बार ये अहसास हुआ कि छतरी के बिना घर से बहार पाँव निकालना कितना असम्भव सा है ... ..फिर भी घर से तो निकलना ही है ..यू स्पेशल का टाइम होने में बस पंद्रह मिनट बाकि हैं और तेज़ – तेज़ चलेगी तभी पंद्रह मिनट में बस स्टैंड तक पहुँच पायेगी ..उसके पास चप्पल भी कोल्हापुरी थी ..जो कि बारिश के मौसम से बिलकुल मेल नहीं खाती थीं ..उसने चप्पल पहनी ..पास रखे दूध के ग्लास से गट-गट दूध पिया बैग टांगा और आवाज़ लगायी – ‘’माँ ...मैं जा रही हूँ दरवाज़ा बंद कर लेना’’ ..और बारिश से बेपरवाह अपनी गुलाबी शिफोन की चुन्नी को संभालती निकल पड़ी l उसके कदम जल्दी – जल्दी उस ओर बढ़ रहे थे जहाँ यू स्पेशल आती थी ..तेज़ बारिश में भींगना और पैर से पानी को धकेलते चलना उसे बहुत अच्छा लग रहा था ..वो बस स्टैंड पर समय से पहले पहुँच गयी ..सभी लोग अपनी – अपनी छतरियों में सुरक्षित थे ...एक लड़की उसे पहचानती थी ..अब वो दोनों एक छतरी के नीचे थे l
स्टैंड पर बस के आते ही सब लाइन बनाकर बस में बैठ गए ..उसके साथ जो लड़की थी वो एक दूसरी सीट पर बैठ गयी ..ये एक अनजान लड़की के साथ बैठी न जाने किन ख्यालों में खोयी थी ..अचानक एक अपरिचित व्यक्तित्व ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया .. ये लगभग अड़तीस – चालीस साल का युवा था ..उस युवा के माथे पर अद्भभुत तेज था ..काले रंग की बड़ी सी छतरी उसके एक हाथ में थी और एक खादी का झोला उसने अपने कंधे पर टांगा था वो उस बस में सबसे अलग लग रहा था ....उसका पक्का रंग उसके तेज को और बढ़ा रहा था ...लड़की ने आदर वश जाने ये कबमें पूछ लिया कि – ‘’आप बैठेंगे क्या ? उसे खुद भी न पता चला ..युवा ने बड़ी विनम्रता से कहा नहीं ..आप बैठिये ...’’
बस से उतरकर अब वो अपनी क्लास की और बढ़ रही थी , क्लास का ये पहला ही दिन था ..उसने क्लास रूम में जाकर अपनी सीट सुरक्षित करली ...पहला लेक्चर किन्ही प्रोफेसर रवि सिन्हा का था ..सभी आपस में बात कर रहे थे कि बहुत ही अच्छा पढ़ाते हैं ..क्लास की घंटी बज गयी थी ...सब शांत थे ..लड़की ने अचानक एक अपरिचित आवाज़ सुनी ..शब्द था - नमस्कार ..ये उसके इस क्लास के टीचर रवि सिन्हा का शब्द था जो आज सुबह उसे बस में दिखे थे ....
लड़की इन्हीं ख्यालों में खोयी थी कि प्रोफेसर सिन्हा ने उसे अपना काला छाता देते हुए कहा ..ये अब तुम्हारा हुआ ..अब मुझे इसकी जरूरत कभी नहीं पड़ेगी ..लड़की ने छाता ले लिया ..और अपने प्रोफेसर को प्रणाम कर चुपचाप वहां से निकल पड़ी ...
(सर्वाधिकार सुरक्षित शून्य नाट्य समूह )
Sun, 02 Aug 2020 - 05min - 14 - कठपुतलियों की दुनिया - Hindi Story By Shoonya Theatre Group
#hindistory #hindikahani #kahani
Shoonya theatre Group presents Hindi Kahani/Story "कठपुतलियों की दुनिया" written by Rama Yadav .
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कठपुतलियों की दुनिया ( एक छोटी सी कहानी ) कहानी पढ़कर अपने विचार ज़रूर लिखें
गुलाबी रंग कि कठपुतलियां यूँ ही दिवार पर टंगी हुईं थी l इस घर में आए उन्हें कई बरस हो गए थे l खरीदा उन्हें किसी लड़की ने था और वो लड़की , उन्हें एक दादी को दे गयी थी , दादी प्यारी सी थी , लड़की तो उन्हें दे गयी थी ..पर दादी ने उन्हें बड़े प्यार से सम्भाला था ...दरअसल अब वो कठपुतलियाँ दादी की ही हो गयीं थीं ..दादी सुंदर सी थी ..तीखी सी आवाज़ ...दादी चीखती भी तो प्यारी लगती ..लगता कोई गुडिया चीख रहीं हैं ..कठपुतलियां डर जाती पर चिल्लाने के बाद दादी हंस देतीं और दोनों कठपुतलियां आँखों में डाल – डालकर मुस्कुरा देती l उनकी समझ से परे था कि दादी चीखती भी हैं और हंसती भी हैं ...दादी कि नज़र बचाकर कठपुतलियां कभी – कभी नाचने लगतीं ..पर उन्हें ये देखकर हैरानी हुई कि एक दिन नहाकर ..नयी सारी पहनकर दादी नाचने लगीं ..कठपुतलियों को लगा कि कहीं दादी ने उन्हें नाचते तो नहीं देख लिया ....क्योंकि दादी नाचते हुए एक कठपुतली ही लग रहीं थीं ..कठपुतलियां एक दूसरे की आँखों में आँखें डालकर फिर से हंस पड़ीं ...
दादी ने घर को प्यार से सजाकर रखा था .कठपुतलियों को याद है दादी ने पीले रंग के उस लैम्प को कितने प्यार से परदे के बीचो बीच उसके पाइप पर ...जगह बनाकर टांगा था ..दादी बैठ जाती और पीले लैम्प को टंगा देखती जाती और खुद को उसमें दीपक की तरह जला देती l दादी का दिल उसमें जलता – बुझता रहता ..वो सोचती रहती कि उन्हें क्या करना था ..और वो क्या- क्या कर पाई ..ऐसे ही जलते – बुझते दादी सो जाती ..
दादी के सोने के बाद ..कठपुतलियां दादी के लैम्प को लेकर खेलतीं और बीच – बीच में टकटकी लगाए दादी को भी देखते रहतीं ...और फिर वो भी सोने चली जातीं ..कठपुतलियों को याद है कि दादी को जब एक दिन सुंदर सा मजबूत मिट्टी का हाथी मिला ..तो उस हाथी को दादी ने खूबसूरती से सजा दिया था ..कठपुतलियों को पता है कि उस दिन दादी का मन किया था कि वो इस हाथी पर बैठकर किसी राजा को ब्याहने जाए ...और वो अपने सर पर अपनी चुन्नी का साँफा बाँध खूब हँसी थीं ...और झूठ – मूठ अपनी मूछों पर ताव भी दिया था , फिर दादी ने कठपुतलियों को यूँ देखा कि जैसे पूछ रहीं हो कि आओ चलो – चलती हो मेरी बरात में ...... फिर दादा को देखकर चुपचाप सो गयीं थीं ....
कठपुतलियां आज बड़ी परेशान थीं ..उनमें छटपटाहट थीं कि वो इस दिवार पर टंगी – टंगी ही दादी को ज़मीन पर पसरी न देखती रहें ..उन्होंने देख लिया था कि दादी को उसी लड़की ने सजा दिया है जो एक दिन उन्हें दादी को लाकर दे गयीं थी ..अब दादी चलने को थीं ...कठपुतलियाँ बेतहाशा ...छूटना चाह रहीं थीं ..वो दादी के पास आकर नाचना गाना चाहती थीं ....अचानक उनकी नज़र उस लड़की से मिल गयी जो उन्हें लायी थी ..
कठपुतलियाँ लड़की की आँखों को देखकर समझ गयीं कि दादी के साथ – साथ उनकी दुनिया भी उनसे छिन गयीं हैं ..अब वो इस घर में शायद कुछ ही और दिन की मेहमान हैं l
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Sun, 26 Jul 2020 - 04min - 13 - अलाव - Agyeya's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry | Hindi Poem | Hindi Kavita
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अलाव
माघ : कोहरे में अंगार की सुलगन
अलाव के ताव के घेरे के पार
सियार की आँखों में जलन
सन्नाटे में जब-तब चिनगी की चटकन
सब मुझे याद है : मैं थकता हूँ
पर चुकती नहीं मेरे भीतर की भटकन !
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Sun, 19 Jul 2020 - 01min - 12 - एक नज़र - Rama Yadav's Hindi Story By Shoonya Theatre GroupSun, 12 Jul 2020 - 04min
- 11 - पराजय है याद - Agyeya's Hindi Kavita By Shoonya | Kavita |Hindi Poetry | Hindi Poem | Hindi Kavita
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पराजय है याद
भोर बेला--नदी तट की घंटियों का नाद।
चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद।
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान---
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद।
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Sun, 28 Jun 2020 - 01min - 10 - "बातचीत"- with Bhupesh Pandya a well know Indian Theatre Artist on various aspects of Theatre arts.
Shoonya brings exclusive interview with theatre artist Bhupesh Pandya , 2001 pass out of National School of Drama .
Since then he has been practicing theatre , would be talking in length on various aspects of theatre , acting techniques , theatre plays , direction , playwrights and much more. Through journey of Bhupesh ji would try to sketch life of Indian theatre artist , his learnings and struggles.
He has worked in over 250 stage plays , over 1500 street plays during his theatre career and is still pursuing theatre with all his heart . Bhupesh ji also acted in several Bollywood films and left a mark of his acting on audiences.
Do listen to detailed conversation about journey of a theatre artist , this conversation has lot to offer in terms of skills , motivation ,hard work and deication. Do subcribe to our YouTube channel we would keep bringing such exclusive theatre talks .
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Sun, 21 Jun 2020 - 42min - 9 - हवाएँ चैत की - Agyeya's Hindi Kavita By Shoonya Theatre Group
Shoonya Theatre group presents Agyeya's Kavita/ hindi Kavita
"हवाएँ चैत की", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poem through sound ,music and power of narration.
हवाएँ चैत की
बह चुकी बहकी हवाएँ चैत की
कट गईं पूलें हमारे खेत की
कोठरी में लौ बढ़ा कर दीप की
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।
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Thu, 11 Jun 2020 - 01min - 8 - चुपचाप- Agyeya's Hindi Kavita
Shoonya Theatre group presents Agyeya's Hindi poetry "चुपचाप", in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poetry or hindi poem through sound ,music and power of narration.
चुप-चाप चुप-चाप
झरने का स्वर
हम में भर जाए
चुप-चाप चुप-चाप
शरद की चांदनी
झील की लहरों पर तिर आए,
चुप-चाप चुप चाप
जीवन का रहस्य
जो कहा न जाए, हमारी
ठहरी आँख में गहराए,
चुप-चाप चुप-चाप
हम पुलकित विराट में डूबें
पर विराट हम में मिल जाए--
चुप-चाप चुप-चाऽऽप...
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Thu, 04 Jun 2020 - 02min - 7 - बातचीत- With Rama Yadav on Jagadish Chandra Mathur's play Konark
!!...Greetings Listeners...!!
We bring you an exclusive discussion with theatre director , practitioner Dr.Rama Yadav.This conversation is focused on Jagdishchandra Mathur's "कोणार्क" staged at Shri Ram Centre Mandi House Delhi by weekend production of SRCPA itself directed by Rama Yadav .
In this discussion we would discuss about various techniques of acting, character building and minute details of Theatre as an art form. Discussing role of artists, theatre activists during this CovID-19 pandemic. Personal accounts of theatre actors , experiences and queries. We hope this discussion would give an meaning full insight into field of theatre .
Link to Play : https://www.rajkamalprakashan.com/default/downloadable/download/sample/sample_id/256/
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Wed, 27 May 2020 - 43min - 6 - जो पुल बनाएंगे - Agyeya's Hindi poetry | Unique Audio art piece| Hindi Poem | Hindi Podcast
Shoonya Theatre group presents Agyeya's Hindi poetry जो पुल बनाएंगे, in this unique and creative art project we try to explore possibilities of Hindi poetry or hindi poem through sound ,music and power of narration.
जो पुल बनाएँगे
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएँगे।
सेनाएँ हो जाएँगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बन्दर कहलाएँगे।
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Regards
Team Shoonya
Wed, 20 May 2020 - 02min - 5 - साँप- अज्ञेय ki Hindi Kavita by Shoonya Theatre Group
!!...Greetings Theatre ...!!
lovers here is an theatrical audio art piece produced by Shoonya Theatre Group. Agyeya's hindi kavita/hindi poem "साँप" which makes you think , having a deep meaning and context.
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ--(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना-- विष कहाँ पाया?
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Wed, 13 May 2020 - 01min
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