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- 47 - गबन (पार्ट १०) by Surbhi Kansal
रमा सारी दुनिया के सामने जलील बन सकता था, किन्तु पिता के सामने जलील बनना उसके लिए मौत से कम न था। जिस आदमी ने अपने जीवन में कभी हराम का एक पैसा न छुआ हो, जिसे किसी से उधार लेकर भोजन करने के बदले भूखों सो रहना मंजूर हो, उसका लड़का इतना बेशर्म और बेगैरत हो! रमा पिता की आत्मा का यह घोर अपमान न कर सकता था।
Wed, 05 Jun 2024 - 17min - 46 - गबन ( पार्ट ९) by Surbhi Kansal
रमा इतना निस्तेज हो गया कि जालपा पर बिगड़ने की भी शक्ति उसमें न रही। रूआंसा होकर नीचे चला गया और स्थित पर विचार करने लगा। जालपा पर बिगड़ना अन्याय था। जब रमा ने साफ कह दिया कि ये रूपये रतन के हैं, और इसका संकेत तक न किया कि मुझसे पूछे बगैर रतन को रूपये मत देना, तो जालपा का कोई अपराध नहीं। उसने सोचा,इस समय झिल्लाने और बिगड़ने से समस्या हल न होगी। शांत होकर विचार करने की आवश्यकता थी। रतन से रूपये वापस लेना अनिवार्य था।
Tue, 23 Apr 2024 - 37min - 45 - गबन ( पार्ट ८) by Surbhi Kansal
रमा दिल में कांप रहा था, कहीं जालपा यह प्रश्न न कर बैठे। आकर उसने यह प्रश्न पूछ ही लिया। उस वक्त भी यदि रमा ने साहस करके सच्ची बात स्वीकार कर ली होती तो शायद उसके संकटों का अंत हो जाता।
Thu, 04 Apr 2024 - 18min - 44 - गबन ( पार्ट ७) by Surbhi Kansal
दस ही पांच दिन में जालपा ने नए महिला-समाज में अपना रंग जमा लिया। उसने इस समाज में इस तरह प्रवेश किया, जैसे कोई कुशल वक्ता पहली बार परिषद के मंच पर आता है। विद्वान लोग उसकी उपेक्षा करने की इच्छा होने पर भी उसकी प्रतीभा के सामने सिर झुका देते हैं।
Mon, 11 Mar 2024 - 36min - 43 - गबन ( पार्ट ६) by Surbhi Kansal
जालपा दोनों आभूषणों को देखकर निहाल हो गई। ह्रदय में आनंद की लहर-सी उठने लगीं। वह मनोभावों को छिपाना चाहती थी कि रमा उसे ओछी न समझे । लेकिन एक-एक अंग खिल जाता था। मुस्कराती हुई आंखें, दिमकते हुए कपोल और खिले हुए अधर उसका भरम गंवाए देते थे।
Sat, 24 Feb 2024 - 32min - 42 - गबन (पार्ट ५) by Surbhi Kansal
जालपा अब अपने कृत्रिम संयम को न निभा सकी। अलमारी में से आभूषणों का सूची-पत्र निकालकर रमा को दिखाने लगी। इस समय वह इतनी तत्पर थी, मानो सोना लाकर रक्खा हुआ है, सुनार बैठा हुआ है, केवल डिज़ाइन ही पसंद करना बाकी है। उसने सूची के दो डिज़ाइन पसंद किए। दोनों वास्तव में बहुत ही सुंदर थे। पर रमा उनका मूल्य देखकर सन्नाट में आ गया।
Mon, 22 Jan 2024 - 28min - 41 - गबन ( पार्ट ४) by Surbhi Kansal
जालपा रूंधे हुए स्वर में बोली--कारण यही है कि अम्मांजी इसे खुशी से नहीं दे रही हैं, बहुत संभव है कि इसे भेजते समय वह रोई भी हों और इसमें तो कोई संदेह ही नहीं कि इसे वापस पाकर उन्हें सच्चा आनंद होगा।
Sat, 20 Jan 2024 - 18min - 40 - गबन (पार्ट ३) by Surbhi Kansal
महीने-भर से ऊपर हो गया। उसकी दशा ज्यों-की-त्यों है। न कुछ खाती-पीती है, न किसी से हंसती- बोलती है। खाट पर पड़ी हुई शून्य नजरों से शून्याकाश की ओर ताकती रहती है। सारा घर समझाकर हार गया, पड़ोसिने समझाकर हार गई, दीनदयाल आकर समझा गए, पर जालपा ने रोग- शय्या न छोड़ी।
Thu, 07 Dec 2023 - 24min - 38 - गबन (पार्ट २) by Surbhi Kansal
रमानाथ का कलेजा मसोस उठा। यह चन्द्रहार के लिए इतनी विकल हो रही है। इसे क्या मालूम कि दुर्भाग्य इसका सर्वस्व सलूटने का सामान कर रहा है। जिस सरल बालिका पर उसे अपने प्राणों को न्योछावर करना चाहिए था, उसी का सवर्चस्व अपहरण करने पर वह तुला हुआ है! वह इतना व्यग्र हुआ, कि जी में आया, कोठे से कूदकर प्राणों का अंत कर दे।
Wed, 11 Oct 2023 - 28min - 37 - गबन (by Surbhi Kansal)
बालिका के आनंद की सीमा न थी। शायद हीरों के हार से भी उसे इतना आनंद न होता। उसे पहनकर वह सारे गांव में नाचती फिरी। उसके पास जो बाल-संपित्ति थी, उसमें सबसे मूल्यवान, सबसे प्रिय यही बिल्लौर का हार था। लडकी का नाम जालपा था, माता का मानकी।
Tue, 26 Sep 2023 - 29min - 36 - निर्मला ( अंतिम पार्ट १७) by Surbhi Kansal
निर्मला बड़ी मधुर-भाषणी स्त्री थी, पर अब उसकी गणना कर्कशाओ में की जा सकती थी। दिन भर उसके मुख से जली-कटी बातें निकला करती थी। उसके शब्दों की कोमलता न जाने क्या हो गई! भावों में माधुयर्म का कही नाम नही। भूंगी बहुत दिनों से इस घर मे नौकर थी। स्वभाव की सहनशील थी, पर यह आठों पहर की बकबक उससे भी न सकी गई। एक दिन उसने भी घर की राह ली। यहां तक कि जिस बच्ची को प्राणों से भी अधिक प्यार करती थी, उसकी सूरत से भी घृणा हो गई। बात- बात पर घुड़क पड़ती, कभी-कभी मार बैठती। रुक्मणी रोई हुई बालिका को गोद में बैठा लेती और चुमकार- दुलार कर चुप कराती। उस अनाथ के लिए अब यही एक आश्रय रह गया था।
Tue, 05 Sep 2023 - 24min - 35 - निर्मला ( पार्ट १६) by Surbhi Kansal
दोपहर हो गयी, पर आज भी चूल्हा नही जला। खाना भी जीवन का काम है, इसकी किसी को सुध ही नही। मुंशीजी बाहर बेजान-से पड़े थे और निर्मला भीतर थी। बच्ची कभी भीतर जाती, कभी बाहर। कोई उससे बोलने वाला न था। बार-बार सियारिाम के कमरे के द्वार पर जाकर खड़ी होती और ‘बैया-बैया’ पुकारती, पर ‘बैया’ कोई जवाब न देता था
Tue, 29 Aug 2023 - 07min - 34 - निर्मला ( पार्ट १५) by Surbhi Kansal
अगर निर्मला के सन्दूक में पैसे न फलते थे, तो इस सन्दूकचे में शायद इसके फूल भी न लगते हों, लेकिन संयोग ही कहिए कि कागजों को झाडते हुए एक चवन्नी गिर पड़ी। मारे हर्ष के मुंशीजी उछल पड़े। बड़ी-बड़ी रकमें इसके पहले कमा चुके थे, पर यह चवन्नी पाकर इस समय उन्हें जितना आह्लाद हुआ, उतना शायद पहले कभी नहीं हुआ।
Fri, 25 Aug 2023 - 13min - 33 - निर्मला ( पार्ट १४) by Surbhi Kansal
सियाराम का मन बाबाजी के दशर्न के लिए व्याकुल हो उठा। उसने सोचा- इस वक्त वह कहां मिलेंगे? कहां चलकर देखूं? उनकी मनोहर वाणी, उनकी उत्साहप्रद सान्त्वना, उसके मन को खीचने लगी। उसने आतुर होकर कहा- मैं उनके साथ ही क्यों न चला गया? घर पर मेरे लिए क्या रखा था?
Mon, 14 Aug 2023 - 08min - 32 - निर्मला ( पार्ट १३) by Surbhi Kansal
निर्मला का स्वभाव बिलकुल बदल गया है। वह एक-एक कौड़ी दांत से पकड़ने लगी है। सियारिाम रोते-रोते चाहे जान दे दे, मगर उसे मिठाई के लिए पैसे नही मिलते और यह बर्ताव कुछ सियाराम ही के साथ नही है, निर्मला स्वयं अपनी जरुरतों को टालती रहती है। धोती जब तक फटकर तार-तार न हो जाए, नयी धोती नही आती। महीनों सिर का तेल नही मंगाया जाता। पान खाने का उसे शौक था, कई-कई दिन तक पानदान खाली पड़ा रहता है, यहां तक कि बच्ची के लिए दूध भी नही आता। नन्हे से शिशु का भविष्य विराट् रुप धारण करके उसके विचार-क्षेत्र पर मंडराता रहता ।
Thu, 27 Jul 2023 - 24min - 31 - निर्मला ( पार्ट १२) by Surbhi Kansal
निर्मला तो सन्नाटे में आ गयी। मालूम हुआ, किसी ने उसकी देह पर अंगारे डाल दिये। मुंशजी ने डांटकर जियाराम को चुप करना चाहा, जियाराम नि: शंक खड़ा ईट का जवाब पत्थर से देता रहा। यहां तक कि निर्मला को भी उस पर क्रोध आ गया। यह कल का छोकरा किसी काम का न काज का, यो खड़ा टर्रा रहा है, जैसे घर भर का पर पालन-पोषण यही करता हो। त्योंरियां चढ़ाकर बोली- बस, अब बहुत हुआ जियाराम, मालूम हो गया, तुम बड़े लायक हो, बाहर जाकर बैठो।
Tue, 25 Jul 2023 - 31min - 30 - निर्मला ( पार्ट ११.२) by Surbhi Kansal
मंसाराम क्या मरा ! मानों समाज को उन पर आवाजें कसने का बहाना मिल गया। भीतर की बातें कौन जाने, प्रत्यक्ष बात यह थी कि यह सब सौतेली मां की करतूत है चारो तरफ यही चर्चा थी, ईश्वरि न करे लड़कों को सौतेली मां से पाला पड़े। जिसे अपना बना-बनाया घर उजाड़ना हो, अपने प्यारे बच्चों की गदर्न पर छुरी फेरनी हो, वह बच्चों के रहते हुए अपना दूसरा ब्याह करे।
Tue, 25 Jul 2023 - 16min - 29 - निर्मला ( पार्ट ११.१) by Surbhi Kansal
सबेरा हुआ तो सोहन की दशा और भी खराब हो गई। उसकी नाक बहने लगी औरि बुखार और भी तेज हो गया। आंखें चढ़ गइं और सिर झुक गया। न वह हाथ-पैर हिलाता था, न हंसता-बोलता था, बस, चुपचाप पड़ा था। ऐसा मालूम होता था कि उसे इस वक्त किसी का बोलना अच्छा नही लगता। कुछ-कुछ खासी सी भी आने लगी। अब तो सुधा घबराई।
Wed, 28 Jun 2023 - 18min - 28 - निर्मला ( पार्ट १०.२) by Surbhi Kansal
निर्मला ने सुधा की ओर स्नेह, ममता, विनोद कृत्रिम तिरस्कार की दृष्टि से देखकर कहा- अच्छा, तो तुम्ही अब तक मेरे साथ यह त्रिया-चरित्र खेल रही थी! मैं जानती, तो तुम्हें यहां बुलाती ही नही।
Sat, 27 May 2023 - 10min - 27 - निर्मला ( पार्ट १०.१) by Surbhi Kansal
निर्मला के मन में उस पुरुष को देखने की प्रबल उत्कंठा हुई, जो उसकी अवहेलना करके अब उसकी बहन का उद्वार करना चाहता हैं प्रायिश्चत सही, लेकिन कितने ऐसे प्राणी हैं, जो इस तरह प्रायिश्चत करने को तैयार हैं?
Fri, 26 May 2023 - 18min - 26 - निर्मला ( पार्ट ९) by Surbhi Kansal
बालिका को हृदय से लगाकर वह अपनी सारी चिंताएं भूल गई थी। शिशु के विकसित और हर्ष प्रदीप्त नेत्रों को देखकर उसका हृदय प्रफुल्लित हो रहा था। मातृत्व के इस उद्गार में उसके सारे क्लेश विलीन हो गये थे। वह शिशु को पति की गोद मे देकर निहाल हो जाना चाहती थी।
Mon, 08 May 2023 - 07min - 25 - निर्मला ( पार्ट ८) by Surbhi Kansal
वह हतबुद्धी-सी खड़ी रही, मानो संज्ञाहीन हो गई हो उसने दोनों लड़को से मुंशीजी के शोक और संताप की बातें सुनकर यह अनुमान किया था कि अब उनका दिल साफ हो गया है। अब उसे ज्ञात हुआ कि वह भ्रम था। हां, वह महाभ्रम था। अगर वह जानती कि आंसुओ की दृष्टि ने भी संदेह की अग्नि शांत नही की, तो वह कदापि न आती। वह कुढ़-कुढ़ाकर मर जाती, घर से पांव न निकालती।
Fri, 05 May 2023 - 29min - 24 - निर्मला ( पार्ट ७) by Surbhi Kansal
‘वह भी जान गये’। उसके अन्त:करण में बार-बार यही आवाज गूंजने लगी-‘वह भी जान गये’। भगवान् अब क्या होगा? जिस संदेह की आग में वह भस्म हो रही थी, अब शतगुना वेग से धधकने लगी।
Fri, 28 Apr 2023 - 56min - 23 - निवेदन .....Fri, 31 Mar 2023 - 00min
- 22 - निर्मला (पार्ट ६) (by Surbhi Kansal)
यहां बुड्ढा आदमी तुम्हारे रग-रूप हाव-भाव पर क्या लट्टू होगा? इसने इन्ही बालकों की सेवा करने के लिए तुमसे विवाह किया है, भोग-विलास के लिए नही । वह बड़ी देर तक घाव पर नमक छिड़कती रही, पर निर्मला ने चूं तक न की।
Fri, 24 Feb 2023 - 44min - 21 - निर्मला (पार्ट ५) (by Surbhi Kansal)
मातृ प्रेम में कठोरता होती थी, लेकिन मृदुलता से मिली हुई। इस प्रेम में करुणा थी, पर वह कठोरता न थी, जो आत्मतियता का गुप्त संदेश है।
Tue, 07 Feb 2023 - 49min - 20 - निर्मला (पार्ट ४) ( by Surbhi Kansal)
अभािगनी को अच्छा घर वर कहां मिलता! अब तो किसी भाती सिर का बोझा उतरना था, किसी भाती लडकी को पार लगाना था, उसे कुएं मे झोकना था। वह रूपवती है, गुणशील है, चतुर है, कुलीन है, तो हुआ करे, दहेज नही तो उसके सारे गुण दोष हैं, दहेज हो तो सारे दोष गुण हैं।
Tue, 17 Jan 2023 - 12min - 19 - निर्मला ( पार्ट ३) ( by Surbhi Kansal)
बनावट की बात तो ऐसी चुभती है कि सच्ची बात उसके सामने बिलकुल फीकी मालूम होती ह। यह किस्से-कहानियां लिखने वाले जिनकी किताबे पढ़-पढ़कर तुम घंटो रोती हो, क्या सच्ची बाते लिखते हैं? सरासर झूठ का तुमार बांधते हैं। यह भी एक कला है।
Sun, 25 Dec 2022 - 22min - 18 - निर्मला ( पार्ट २) (by Surbhi Kansal)
संध्या का समय था। बाबू भालचन्द्र दीवानखाने के सामने आरामकुसी पर नंग-धड़ंग लेटे हुए हुक्का पी रहे हे थे। बहुत ही स्थूल, ऊंचे कद के आदमी थे। ऐसा मालूम होता था कि काला देव है या कोई हब्शी अफ्रीका से पकड़कर लाया गया है। सिर से पैर तक एक ही रंग था-काला। चेहरा इतना स्याह था कि मालूम न होता था कि माथे का अंत कहां है सिर का आरंभ कहां। बस, कोयले की एक सजीव मूर्ति थी।
Sat, 17 Dec 2022 - 19min - 17 - निर्मला (पार्ट १) ( by Surbhi Kansal)
कृष्णा कुछ-कुछ जानती है। कुछ-कुछ नही जानती। जानती है बहन को अच्छे-अच्छे गहने मिलेंगे, द्वार पर बाजे बजेंगे, मेहमान आयेंगे, नाच होगा-यह जानकर प्रसन्न है और यह भी जानती है कि बहन सबके गले मिलकर रोएगी, यहां से रो धोकर विदा हो जाएगी, मैं अकेली रह जाऊंगी- यह जानकर दुखी भी है।
Sat, 10 Dec 2022 - 32min - 16 - हिंसा परमो धर्म: ( by Surbhi Kansal)
उसकी जात से दूसरों को चाहे कितना ही फ़ायदा पहुँचे, अपना कोई उपकार न होता था, यहाँ तक कि वह रोटियों तक के लिए भी दूसरों का मुहताज था। दीवाना तो वह था और उसका गम दूसरे खाते थे। आख़िर जब लोगों ने बहुत धिक्कारा-- 'क्यों अपना जीवन नष्ट कर रहे हो, तुम दूसरों के लिए मरते हो, कोई तुम्हारा भी पूछने वाला है?
Thu, 17 Nov 2022 - 23min - 15 - खुदाई फौजदार ( by Surbhi Kansal)Tue, 19 Oct 2021 - 26min
- 14 - परीक्षा ( by Surbhi Kansal)
सरदार सुजान सिंह ने देश के प्रसिद्ध समाचारपत्रों में यह विज्ञापन दिया कि रियासत देवगढ़ के लिए एक सुयोग्य दीवान की जरूरत है | दीवान पद के उम्मीदवार का ग्रेजुएट होना जरूरी नहीं पर हृष्ट-पुष्ट होना आवश्यक है | मंदाग्नि के मरीज को उम्मीदवार बनने से मना कर दिया गया था | उम्मीदवार की विद्या को कम परन्तु कर्तव्य को अधिक महत्व दिया जानेवाला था | जो सरदार सुजान सिंह की परीक्षा में खरा उतरेगा, वही दीवान का पद पायेगा |
Sat, 21 Aug 2021 - 10min - 13 - चोरी (by Surbhi Kansal)
कहानी सुन कर कोई भी ऐसा नही होगा जिसे अपना बचपन याद न आ जाये। प्रेमचंद जी ने बड़े ही सुन्दर तरीके से बचपन की यादों को कहानी में पिरोया है।
Sun, 25 Oct 2020 - 22min - 12 - पंच परमेश्वर ( by Surbhi Kansal)
पंच परमेश्वर' शीर्षक कहानी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ट कहानियों में से एक है | इस कहानी में प्रेमचंद्र जी ने यह दिखलाया है की उत्तरदायित्त्व आ जाने से मनुष्य अपनी व्यक्तिगत परिधियों से ऊपर उठ जाता है |
Fri, 09 Oct 2020 - 32min - 11 - बूढ़ी काकी ( by Surbhi Kansal)
वृद्धा अवस्था में मन किसी बच्चे की भांति चंचल हो जाता है। स्वादिष्ट भोजन खाने के लिए जी तरसता है और उसे पाने के बाद अपने साथ हुए सारे तिरस्कार भाव को भूल जाता है। ऐसे ही भावपूर्ण दृश्यों के साथ बुजुर्गो के प्रति संवेदना जाहिर करती कथाकार मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी 'बूढ़ी काकी'।
Wed, 16 Sep 2020 - 25min - 10 - नमक का दारोगा ( by Surbhi Kansal)
इसमें एक ईमानदार नमक निरीक्षक की कहानी को बताया गया है जिसने कालाबाजारी के विरुद्ध आवाज उठाई। ... कहानी में मानव मूल्यों का आदर्श रूप दिखाया गया है और उसे सम्मानित भी किया गया है। सत्यनिष्ठा, धर्मनिष्ठा और कर्मपरायणता को विश्व के दुर्लभ गुणों में बताया गया है।
Wed, 02 Sep 2020 - 24min - 8 - पूस की रात ( by Surbhi Kansal)
पूस की रात' गरीब भारतीय किसान की दयनीय दशा को लेकर लिखी गयी कहानी है। इस कहानी में प्रेमचंदजी ने समाज की आर्थिक विषमता पर प्रकाश डाला है।
Thu, 27 Aug 2020 - 18min - 7 - कायर ( by Surbhi Kansal)
इस कहानी में प्रेमचंद जी ने बड़े ही मार्मिक रूप् से दो प्रेम करने वालों की मनोस्थिती का वर्णन किया है।
Mon, 24 Aug 2020 - 30min - 6 - दारोगा जी ( by Surbhi Kansal)Wed, 19 Aug 2020 - 20min
- 5 - कफन ( by Surbhi Kansal)Sat, 15 Aug 2020 - 22min
- 4 - ऐक्ट्रेस (पार्ट 2) ( by Surbhi Kansal)Fri, 14 Aug 2020 - 16min
- 3 - ऐक्ट्रेस (पार्ट 1) ( by Surbhi Kansal)
प्रेमचंद जी ने बहुत ही खुबसूरती से एक ऐक्ट्रेस के मन के विचारो तथा उसके हृदय में चल रहे द्वंद को अपनी कलम से प्रस्तुत किया है।
Thu, 13 Aug 2020 - 14min - 2 - रामलीला (by Surbhi Kansal)
प्रेमचंद ने बड़े ही सरल और प्रभावित शब्दो में लेखक के बचपन की रामलीला की यादों का सजीव वर्णन किया है।
Mon, 10 Aug 2020 - 18min - 1 - TrailerSun, 09 Aug 2020 - 00min
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