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श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare

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श्री ज्ञानेश्वरी वाचन ________________________________________ तर तर्कु तोचि फारशु | नीतिभेदू अंकुशु | वेदान्तु तो महारसु | मोदकु मिरवे ||११|| एके हातीं दंतु | जो स्वभावता खंडितु | तो बौद्धमतसंकेतु | वार्तिकाचा ||१२|| मग सहजे सत्कारवादु | तो पद्यकर वरदु | धर्मप्रतिष्ठा तो सिद्धु | अभयहस्तु ||१३|| देखा विवेकवंतु सुविमळु | तोचि शुंडादंडु सरळु | जेथ परमानंद केवळु | महासुखाचा ||१४|| तरी संवादु तोचि दशनु | जो समता शुभ्रवर्णु | देव उन्मेषसूक्ष्मेक्षणु | विघ्नराजु ||१५|| ________________________________________

12 - श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 56-60 | Ravi Vare
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  • 12 - श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 56-60 | Ravi Vare

    | श्री ज्ञानेश्वरी वाचन |

    अध्याय 1

    ओवी 56-60

    जैसें शारदी - चिये चंद्रकळे | माजीं अमृतकण कोंवळे | ते वेंचिती मनें  मवाळें | चकोरतलगें ||५६||

     तियांपरी श्रोतां | अनुभवावी हे कथा |  अतिहळुवारपण चित्ता | आणूनियां ||५७||

     हे शब्देंविण संवादिजे | इंद्रियां  नेणता भोगिजे | बोलाआदि झोंबिजे | प्रमेयासी ||५८||

     जैसे भ्रमर परागु नेती |  परी कमळदळें नेणती | तैसी परी आहे सेवितीं | ग्रंथीं इये ||५९||

     का आपुला  ठावो न सांडितां | आलिंगिजे चंद्र प्रकटतां | हा अनुराग भोगितां | कुमुदिनी  जाणे ||६०||

    Sun, 09 Aug 2020 - 00min
  • 11 - श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 51-55| Ravi Vare

    ना तरी शब्दब्रह्मब्धि | मथियला व्यसबुद्धि | निवडिलें निरवधि | नवनीत हें  ||५१||

    मग ज्ञानाग्निसंपर्कें कडासिलें विवेकें | पद आले परिपाकें | आमोदासी  ||५२|| 

    जें अपेक्षिजे विरक्तीं | सदा अनुभविजे संतीं | सोहंभावें पारंगतीं  | रमिजे जेथ ||५३||

     जें आकर्णिजे भक्तीं | जें आदिवंद्य त्रिजगतीं | तें  भीष्मपर्वीं संगती | सांगिजेल ||५४||

     जें भगवदीता म्हणिजे | जे  ब्रह्येशांनीं प्रशंजिसे | जे सनकादिकीं सेविजे | आदरेंसीं ||५५||

    Fri, 17 Jul 2020 - 00min
  • 10 - श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 46-50| Ravi Vare

    .

    Thu, 16 Jul 2020 - 00min
  • 9 - श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 41-45| Ravi Vare

    ना तरी नगरांतरीं वसिजे | तरी नगरचि होईजे | तैसें व्यासोक्तितेजें | धवळत  सकळ ||४१||

    कीं प्रथम वयसाकाळीं | लावण्याची नव्हाळी | प्रकटे जैसी आगळी |  अंगना अंगीं ||४२||

     ना तरी उद्यानीं माधवी घडे | तेथ वनशोभेची खाणी उघडे |  आदिलापासोनि अपाडें | जियापरी ||४३||

     नाना घनीभूत सुवर्ण | जैसें  न्याहाळिंता साधारण | मग अळंकारीं बरवेपण । निवाडुदावी ।।४४।।

     तैसें  व्यासोक्ती अळंकारिलें   | आवडे ते बरवेपण पातलें | तें जाणोनि काय  आश्रयिलें | इतिहासीं ||४५||

    Wed, 08 Jul 2020 - 00min
  • 8 - श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 36-40| Ravi Vare

    || श्रीज्ञानेश्वरी ||   अध्याय : १

    ओवी : ३६ - ४०

    माधुर्यीं मधुरता | शृंगारीं सुरेखता | रूढपण उचितां | दिसलें भलें ||३६||

    एथ कळाविदपन कळा | पुण्यासि प्रतापु आगळा | म्हणऊनि जनमेजयाचे  अवलीळा |  दोष हरले ||३७||

    आणि पाहतां नावेक | रंगीं सुरंगतेची आगळिक | गुणां  सगुणपणाचें बिक | बहुवस एथ ||३८||

    भानुचेनि तेजें धवळलें | जैसें  त्रेलोक्य  दिसे उजळिलें | तैसें व्यासमती कवळिलें | मिरवे विश्व ||३९||

    कां सुक्षेत्रीं बीज घातलें | तें आपुलियापरी विस्तारलें | तैसें भारतीं  सुरवाडलें | अर्थजात ||४०||

    #1minute_पाच_ओवी  #माउलींच्याचरणी

    Mon, 08 Jun 2020 - 00min
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