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रामायण रिकैप्स में आपका स्वागत है, पॉडकास्ट जहां हम रामायण के महाकाव्य हिंदू धर्मग्रंथ में तल्लीन हैं। प्रत्येक एपिसोड, हम आपके लिए प्रसिद्ध रामायण टीवी शो से ऑडियो लाते हैं, जिसमें भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और राक्षस राजा रावण को हराने की उनकी यात्रा की क्लासिक कहानी को फिर से बताया गया है।
जैसा कि हम कहानी सुनते हैं, हम अपनी अंतर्दृष्टि और विश्लेषण भी प्रदान करते हैं, उन विषयों, पात्रों और प्रतीकों की खोज करते हैं जो रामायण को एक कालातीत कृति बनाते हैं। हम कहानी के माध्यम से चलने वाले प्रेम, वफादारी और भक्ति के संदेशों के साथ-साथ महाकाव्य लड़ाइयों और दैवीय हस्तक्षेपों पर चर्चा करेंगे जो इसे इतना रोमांचकारी बनाते हैं।
चाहे आप लंबे समय से रामायण के प्रशंसक हों या कहानी के लिए नए हों, हमारा पॉडकास्ट आपको एक मनोरम यात्रा पर ले जाएगा जो हिंदू पौराणिक कथाओं की आपकी समझ को समृद्ध करेगा और आपको पात्रों की वीरता और ज्ञान से प्रेरित करेगा।
तो हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम रामायण के अध्यायों के माध्यम से यात्रा करते हैं और इस पौराणिक महाकाव्य के जादू और आश्चर्य का अनुभव करते हैं।
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- 25 - रामायण - EP 25 - राजा जनक का न्याय। भरत का राम की चरण पादुकाओं के साथ अयोध्या लौटना।
भरत के बाद राजा जनक भी राम से मिलने चित्रकूट पहुँच जाते हैं। सभी में आशा जागती है कि राजा जनक अपने वचनों से राम को अयोध्या वापस जाने के लिये राजी कर लेंगे। सीता अपने माता पिता से मिलती हैं। बेटी को तपस्विनी वेश में देखकर पिता भावुक होते हैं लेकिन अपनी बेटी के संस्कारों को देखकर उन्हें गर्व की अनुभूति भी होती है। रानी सुनयना राजा जनक को सभी की इच्छा से अवगत कराती हैं कि वे राम को अयोध्या लौटने के लिये प्रेरित करें। भरत भी माता कौशल्या को राजी करने का प्रयास करते हैं कि वे माता के विशेषाधिकार का प्रयोग कर राम को अयोध्या लौटने का आदेश दें। उधर कैकेयी राम के पास जाती हैं और कहती हैं कि यदि वो उसे अपनी माँ मानता है तो उसकी आज्ञा मानकर अयोध्या चले। राम फिर तर्कों का सहारा लेते हैं और कहते हैं कि यदि वो उन्हें एक तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर करना चाहती हैं तो वह अयोध्या वापस चलने को तैयार हैं। कैकेयी को निरुपाय होना पड़ता है। अगले दिन सभा की अध्यक्षता राजा जनक को सौंपी जाती है। राम जनक की आज्ञा का वचन देते हैं। भरत भी उनसे निष्पक्ष न्याय की गुहार लगाते हैं और राम के वहीं वन में राज्याभिषेक की माँग करते हैं। भगवान शंकर का स्मरण कर राजा जनक न्याय करने बैठते हैं। पहले वे कहते हैं कि भगवान भी भक्त के निश्चल प्रेम के आगे विवश होते हैं। यहाँ भरत का अपने भाई के प्रति भक्ति और प्रेम अथाह है इसलिये उनका पलड़ा भारी है। राजा जनक के ये वचन सुन भरत समेत सभी के चेहरे खिल उठते हैं। लेकिन अगले ही पल जनक प्रेम का दूसरा पक्ष भी रखते हैं और कहते हैं कि प्रेम निस्वार्थ होना चाहिये। प्रेम कुछ माँग नहीं सकता बल्कि अपने प्रेमी को कुछ देता है, उसके सुख के लिये सब कुछ लुटा देता है। जनक भरत से कहते हैं कि वे राम से उनकी प्रसन्नता पूछें और उसे पूजा समझ कर पूरा करें। भरत राम के चरणों में बैठकर उनकी इच्छा पूछते हैं। राम भी भरत के प्रेम के आगे हारकर अयोध्या का राज्य स्वीकार करते हैं किन्तु पिता का वचन पूरा करने के लिये वनवास की चौदह साल की अवधि पूरी होने तक भरत को राज्य की देखभाल का दायित्व सौंपते हैं। भरत राम को उनके वचन से बाँधने के लिये घोषणा करते हैं कि यदि उन्होंने चौदह साल से एक दिन भी देरी लगाई तो वे अग्निप्रवेश कर लेगें। भरत राम से उनकी चरण पादुकाएं लेते हैं ताकि उन्हें राज सिंहासन पर रखकर वे राम के प्रतिनिधि के रूप में राजकाज सम्भालें। भरत बड़े भाई की चरण पादुकाएं शीश पर रखकर लौटते हैं। विदाई के इस भावुक पल में सभी की आँखों से अश्रुधारा बहती है।
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Sat, 28 Oct 2023 - 35min - 24 - रामायण - EP 24 - कैकेयी द्वारा मृत्यु दण्ड की माँग। भरत द्वारा राम से राज्य सम्भालने की याचना।
राम और भरत का मिलाप बहुत ही भावुक वातावरण में होता है। राम द्वारा पिता की कुशलता के बारे में पूछे जाने पर भरत रुँधें गले से उनके निधन का समाचार देते हैं। राम लक्ष्मण गले लगकर रोते हैं। तभी गुरु वशिष्ठ और तीनों रानियाँ कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा वहाँ पहुँचती हैं। राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे कौशल्या की बजाय पहले माता कैकेयी के चरण स्पर्श करते हैं। कैकेयी को अपराध बोध है लेकिन राम के मन में कोई मलाल नहीं। वे इसे नियति का खेल मानते हैं। तत्पश्चात राम माता सुमित्रा और कौशल्या से मिलते हैं। महर्षि वशिष्ठ के आदेश पर राम और लक्ष्मण से अपने दिवंगत पिता को तिल और मन्दाकिनी के पवित्र जल से तर्पण करते हैं। रात्रि में राम गुरु वशिष्ठ के और सीता बारी बारी तीनों माताओं के चरण दबा कर सेवा धर्म निर्वाह करती हैं। ग्लानि से भरी कैकेयी सीता से कहती है कि वह राम से कहकर उसे मृत्युदण्ड दिलाये जिससे वो अपनी लज्जित जीवन से छुटकारा पा सकें। माता सुमित्रा सीता से जानती हैं कि लक्ष्मण उनकी किस प्रकार सेवा करते हैं। अगले दिन महर्षि वशिष्ठ सभा आहूत करते हैं। राम सभा में गुरु वशिष्ठ की आज्ञा का पालन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। सभी के चेहरों पर आशा की किरण जगमगा जाती है लेकिन अगले ही पल राम यह भी कह देते हैं कि गुरुदेव उन्हें नीति और धर्म सम्मत आज्ञा ही दें। गुरु वशिष्ठ भी ज्ञानी हैं। वे राम की कूटनीति का उत्तर देते हुए कहते हैं कि याचक नीति अनीति नहीं सोचता है। उसे केवल अपनी याचना पूरी होने से सरोकार होता है। वशिष्ठ कहते हैं कि भरत के प्रेम के आगे धर्म और नीति कोई स्थान नहीं रखती है और फिर वे भरत से बड़े भाई राम के समक्ष अपने हृदय की बात रखने को कहते हैं। भरत राम से कुल का ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते राज सिंहासन स्वीकार करने की याचना करते हैं। कैकेयी भी राम से कहती हैं कि वे अपने माँगे हुए वरदान वापस लेती हैं और राम को वचनों से मुक्त करती हैं। राम कहते हैं कि वचन वापसी का अधिकार केवल पिता दशरथ के पास था और अब वो परलोक सिधार चुके हैं अतएव उनके वचन अनुरूप कार्य करना ही एकमात्र विकल्प है। भरत राम की कुटिया के सामने अन्न जल त्याग कर मरने तक वहाँ धरना देने की घोषणा करते हैं। भरत की इस बात से राम अन्दर तक हिल जाते हैं। तभी एक दूत राजा जनक और रानी सुनयना के चित्रकूट पहुँचने की सूचना लाता है। वशिष्ठ राजा जनक के आगमन तक के लिये सभा स्थगित कर देते हैं।
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Thu, 04 May 2023 - 35min - 23 - रामायण - EP 23 - भरत का वन प्रस्थान। लक्ष्मण का क्रोध। राम भरत मिलाप।
पति वियोग में उदास उर्मिला को माण्डवी खुशी की समाचार देती है कि उसकी विरह की घड़ियाँ खत्म होने वाली है। आर्य भरत, राम लक्ष्मण और सीता को वापस लाने वन जा रहे हैं। अयोध्या की तमाम प्रजा भी उनके साथ जाती है। तीनों माताएं, गुरू वशिष्ठ मंत्रीगण और सेना साथ में है। मार्ग में श्रंगवेरपुर पड़ता है। यह राम के मित्र निषादराज गुह का राज्य है। एक प्रहरी निषादराज को सूचना देता है कि भरत सेना लेकर चित्रकूट जा रहे हैं। निषादराज को भ्रम होता है कि भरत राम को सदैव के लिये अपने रास्ते से हटाने के प्रयोजन से उनपर आक्रमण करने जा रहे हैं। वो युद्ध का नगाड़ा बजाकर भरत को गंगा किनारे ही घेर लेने का ऐलान कर देते हैं। तभी गाँव के पुरोहित निषादराज को भरत से मिलकर वास्तविकता जान लेने का परामर्श देते हैं। निषादराज अपनी सेना को झाड़ियों के पीछे सचेत कर भरत से मिलने जाते हैं। सुमन्त भरत को निषादराज और राम की मित्रता के बारे में बताते हैं। भरत से मिलकर निषादराज की आशंका गलत साबित होती है। वे भरत को बताते हैं कि राम और सीता घास के बिछौने पर सोये थे और नंगे पाँव चित्रकूट की तरफ गये हैं। दुखी होकर भरत खुद भी आगे की यात्रा नंगे पाँव पैदल करने का निर्णय लेते हैं। आगे बढ़ते हुए भरत भारद्वाज मुनि के आश्रम तक पहुँचते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। यात्रा जारी रखते हुए भरत सेना के साथ चित्रकूट की धरती पर पहुँचते हैं। कोल और भील लक्ष्मण को सूर्य पताकाओं को लेकर आगे बढ़ती सेना के बारे में सूचित करते हैं। लक्ष्मण वन में लकड़ियाँ काटना छोड़ वापस पर्णकुटी पहुँचते हैं और राम से कहते हैं कि भरत सेना लेकर उनपर आक्रमण करने आ रहा है। लक्ष्मण किसी सम्भावित आक्रमण का सामना करने के लिये धनुष बाण उठा लेते हैं और भरत का वध करने की घोषणा करते हैं। तभी बिजली कौंधने के साथ आकाशवाणी होती है कि लक्ष्मण को उचित अनुचित के बीच का अन्तर कर लेने के बाद ही कोई प्रण करना चाहिये। राम भी लक्ष्मण को अधीर होने से रोकते हैं। इस बीच भरत कुटिया में पहुँचते हैं और बड़े भाई राम के चरणों में गिर जाते हैं। राम उन्हें उठाकर हृदय से लगाते हैं। यह दृश्य देखकर लक्ष्मण आत्मग्लानि से भर उठते हैं और भरत के प्रति उठे अपने गलत विचारों के लिये उनसे क्षमा माँगते हैं। शत्रुघ्न भी वहाँ आ पहुँचते हैं। चारों भाईयों का आपस में मिलाप होता है।
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Tue, 02 May 2023 - 33min - 22 - रामायण - EP 22 - राजा दशरथ की अन्त्येष्टि। भरत द्वारा राजसिंहासन को ठुकरना।
भरत माता कैकेयी पर क्रोधित हैं तो शत्रुघ्न मंथरा को पीटते हुए महल से निकाल रहे हैं। उन्हें पता चल जाता है कि इस षड्यन्त्र के पीछे मंथरा की ही कुटिल बुद्धि है। भरत शत्रुघ्न को भैया राम का वास्ता देकर हिंसा करने से रोकते हैं। भरत बड़ी माता कौशल्या से मिलने उनके कक्ष में जाते हैं। कौशल्या भरत से उन्हें राम के पास वन में भिजवाने को कहती हैं। भरत इससे दुःखी होते हैं। वे माता कौशल्या से कहते हैं कि वे उन्हें भैया राम के पास वन नहीं भेजेंगे बल्कि राम को वन से वापस लायेंगे। भरत के मन में ग्लानि से है कि पापकर्म उसकी माता ने किया है किन्तु सम्पूर्ण विश्व उसे भ्रातद्रोही कहेगा। महर्षि वशिष्ठ भरत को शोक त्याग कर पिता दशरथ के पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार करने का परामर्श देते हैं। पूरी अयोध्या नगरी अपने महाराज की अन्तिम यात्रा में शामिल होती है। दशरथ के सत्कर्मों की यादकर प्रजा उनकी जय जयकार करती है। भरत पिता की चिता को अग्नि देते हैं। जब अस्थि कलश को सरयू नदी में प्रवाहित करने की बारी आती है तो भरत भाव विह्वल होते हैं और कलश नदी में प्रवाहित नहीं कर पाते। वशिष्ठ उन्हें मोह त्यागकर विधान पूरा करने का उपदेश देते हैं। अगले दिन राजसभा में महर्षि वशिष्ठ और मंत्री परिषद भरत से राजसिंहासन सम्भालने को कहती है। सुमन्त कहते हैं कि राजा के बिना राज्य असुरक्षित रहता है। शत्रु हमला कर सकते हैं। तब भरत सवाल उठाते हैं कि जब यही सभा युवराज राम को राजा चुन चुकी थी और महाराज ने अपनी रानी के कहने पर युवराज को वन भेज दिया था तो किसी मंत्री ने इसके विरूद्ध आवाज क्यों नहीं उठायी। भरत कहते हैं कि ज्येष्ठ होने के कारण राम ही राजसिंहासन के अधिकारी हैं। भरत पूरी राजसभा को कहते हैं कि वो उन्हें राम को वन से वापस लाने में सहयोग करे। वशिष्ठ भरत की प्रशंसा करते हैं। भरत माता कौशल्या को भी साथ चलने के लिये राजी कर लेते हैं और कहते हैं कि वे वन में ही भैया राम का राज्याभिषेक करेंगे। रानी कैकेयी को भी अब अपनी गलती का अहसास है। वो भी पश्चाताप करने भरत के साथ वन जाने का अनुरोध करती है। कौशल्या के कहने पर भरत इस पर सहमत होते हैं।
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Fri, 28 Apr 2023 - 35min - 21 - रामायण - EP 21 - भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक। भरत-कौशल्या संवाद।
राजा दशरथ का पार्थिव शरीर अन्तिम दर्शनों के लिये रघुकुल के पूर्वजों के कक्ष में रखा है। पूरी अयोध्या नगरी शोक में डूबी है। महर्षि वशिष्ठ दशरथ को धर्म और सत्य के लिये प्राणों की आहुति देने वाला महात्मा बताकर उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। मंत्री सुमन्त राजा की अन्तिम आज्ञा पूरी न कर पाने की ग्लानि के साथ श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। कैकयी समेत तीनों रानियाँ भी अश्रुपूरित नेत्रों से पुष्प अर्पित करती हैं। राजा दशरथ के अन्तिम संस्कार और राज्य को नया राजा देने के लिये महर्षि वशिष्ठ भरत व शत्रुघ्न को ननिहाल से बुलाने का निर्णय लेते हैं। भरत के आने तक कार्यकारी दायित्व सुमन्त को सौंपे जाते हैं। वशिष्ठ एक अन्य मंत्री श्रीधर को भरत को लिवाने कैकेय देश भेजते हैं और विशेष निर्देश देते हैं कि वहाँ राम वनवास और दशरथ के निधन की सूचना न दी जाय और सामान्य भाव से भरत को अयोध्या लाया जाय। श्रीधर से वशिष्ठ का सन्देश पाकर भरत और शत्रुघ्न अपने नानाजी से आशीर्वाद लेकर अयोध्या आते हैं। भरत को मार्ग में नगरवासियों से तिरस्कार और महल में उदास वातावरण मिलता है। इससे वे चिन्तित होते हैं। मंथरा उन्हें माता कैकेयी के कक्ष में ले जाती है जहाँ उसने भरत की स्वागत आरती का प्रबन्ध कर रखा है। लेकिन कैकेयी वैधव्य रूप में हैं। भरत इसका कारण पूछते हैं। कैकेयी उन्हें उनके पिता राजा दशरथ के परलोक सिधारने का समाचार देती है। भरत के कन्धे से धनुष गिर पड़ता है। कैकेयी भरत को सांत्वना देने का प्रयास करती है। जब भरत को यह पता चलता है कि मृत्यु से पहले उनके पिता भैया राम को चौदह वर्ष के लिये वनवास भेज चुके हैं तो वो माता से इसका कारण पूछते हैं। कैकेयी उन्हें अपने दोनों वरदान के बारे में बताते हुए धूर्त वाणी से कहती है कि अब अयोध्या के साम्राज्य पर वो निष्कंटक राज्य कर सकता है। भरत अपनी माता कैकेयी के इस कृत्य पर क्रोधित होते हैं। वे कैकेयी का वध करना चाहते हैं लेकिन भैया राम का विचार कर ऐसा करने से रुक जाते हैं। फिर भी वे माता कैकेयी का सदैव के लिये परित्याग करने और भैया राम को वन से वापस लाने की घोषणा कर कक्ष से बाहर चले जाते हैं।
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Thu, 27 Apr 2023 - 38min - 20 - रामायण - EP 20 - श्रवण कुमार प्रसंग। दशरथ की मृत्यु
मंत्री सुमन्त राजमहल में जाने से पहले महर्षि वशिष्ठ के आश्रम जाते हैं और उनसे राजमहल साथ चलने का निवेदन करते हैं। वस्तुतः जाते समय राजा दशरथ ने सुमन्त से कहा था कि वो राम को वन में दो चार दिन रहने के बाद वापस ले आयें। राम न आयें तो कम से कम सीता को अवश्य वापस ले आयें। लेकिन सुमन्त इस कार्य में विफल रहते हैं। सुमन्त का विचार है कि यदि महर्षि वशिष्ठ साथ होंगे तो वे अपने वचनों से स्थिति संभाल लेंगे। दशरथ सुमन्त को राम सीता के बिना देखकर व्याकुल होते हैं। महर्षि वशिष्ठ उन्हें नीतिज्ञान देते हैं। रानी कैकयी के महल में मंथरा सुमन्त के अकेले वापस आने का समाचार पहुँचाती है। कैकयी उससे दशरथ की स्थिति के बारे में पूछती है। बिस्तर पड़े दशरथ को अपना अन्त समय निकट जान पड़ता है। उन्हें कुछ भी दिखना बन्द हो जाता है, तब उन्हें श्रवण कुमार के अंध माता पिता द्वारा दिया गया श्राप स्मरण आता है। दशरथ अपनी युवावस्था में आवाज की दिशा में निशाना लगाने में निपुण थे। एक बार आखेट के दौरान वे झाड़ियों में छिपकर सरयू नदी में किसी जंगली जानवर के पानी पीने आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी उन्हें पानी में हलचल की आवाज सुनायी पड़ी। उन्होने शब्दभेदी बाण चलाया जो लक्ष्य पर लगा। किन्तु किसी मानव की चीत्कार सुनकर वे भाग कर वहाँ गये और एक युवक के सीने पर अपना बाण लगा पाया। यह युवक कोई और नहीं, अपने अंध माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला श्रवण कुमार था। प्राण निकलने से पहले श्रवण कुमार दशरथ से प्रार्थना करता है कि उसके माता पिता प्यासे हैं। वे उन्हें जल अवश्य पिला दें। दशरथ कलश में जल लेकर श्रवण कुमार के अंध माता पिता के पास जाते हैं। वे पश्चाताप में डूबे हुए हैं। दशरथ के हाथों से कलश लेते समय हाथ का स्पर्श होने से अंधा पिता समझ जाता है कि आगन्तुक उसका पुत्र नहीं है। दशरथ उन्हें श्रवण की मृत्यु के बारे में बताते हैं। पुत्र के मौत का समाचार सुन उसकी माता बिना पानी पिये प्राण त्याग देती हैं। अंध पिता भी अपने प्राण त्यागने का निर्णय लेता है किन्तु मरने से पहले दशरथ को श्राप देता है कि वो भी उनकी तरह पुत्र वियोग में तड़प तड़प कर मरेंगे। इस पुरानी बात को स्मरण करते हुए दशरथ धरती पर गिर पड़ते हैं और राम राम कहते हुए अपने प्राण त्याग देते हैं। उधर पर्णकुटी में राम को ध्यान योग के दौरान पिता का रथ आकाश मार्ग से जाने का अहसास होता है।
रामायण एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो इसी नाम के प्राचीन भारतीय संस्कृत महाकाव्य पर आधारित है। यह श्रृंखला मूल रूप से 1987 और 1988 के बीच दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी।
इस श्रृंखला के निर्माण, लेखन और निर्देशन का श्रेय श्री रामानंद सागर को जाता है। यह श्रृंखला मुख्य रूप से वाल्मीकि रचित 'रामायण' और तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' पर आधारित है।
इस धारावाहिक को रिकॉर्ड 82 प्रतिशत दर्शकों ने देखा था, जो किसी भी भारतीय टेलीविजन श्रृंखला के लिए एक कीर्तिमान है।
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Wed, 26 Apr 2023 - 35min - 19 - Ramayan EP 19 - श्रीराम-वाल्मीकि संवाद
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!
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Thu, 20 Apr 2023 - 34min - 18 - रामायण - EP 18 - केवट का प्रेम और श्री राम का गंगा पार जाना
वनपथ गमन पर राम अपने मित्र निषादराज गुह के साथ गंगा तीरे पहुचते हैं। उन्हें पार जाना है। निषादराज एक केवट को बुलाते हैं लेकिन केवट राम जी को नाव पर बैठाने से इनकार कर देता है। उसने राम के चरणों की महिमा सुन रखी है कि किस प्रकार उनके चरण पड़ने से अहिल्या शिला से नारी बन गयीं थी। केवट को भय है कि राम के चरण पड़ते ही उसकी नाव भी स्त्री बन जायेगी और उसकी आजीविका का साधन जाता रहेगा। वो राम से कहता है कि पहले वो उनके चरण अच्छे से धोएगा और फिर उस पानी को पीकर जाचेगा कि उसमें कोई जादूटोना तो नहीं है। वस्तुतः केवट राम के परमेश्वर स्वरूप को पहचान चुका है और वो किसी बहाने से उनके चरणामृत का पान करना चाहता है। राम उसकी भक्ति को समझ जाते हैं और भक्त की बात मान जाते हैं। परात में गंगाजल से राम के पाँव धोने के बाद केवट उस जल को पीता है और ऐसा प्रकट करता है मानों अब वो सन्तुष्ट है कि राम चरणरज से उसकी नाव को कुछ नुकसान नहीं होगा। राम लक्ष्मण सीता और निषादराज नाव पर सवार होकर गंगापार उतरते हैं। राम के मन में संकोच है। उनके पास केवट को देने के लिये कुछ नहीं है। सीता पति के मन के भाव समझ लेती हैं और अपनी अंगूठी उतारकर राम को देती हैं। राम केवट को वो अंगूठी पार उतराई के रूप में देना चाहते हैं। लेकिन केवट भी बड़ा चतुर है। वो तो भगवान से इससे अधिक पाने की लालसा रखता है। वो मना करते हुए कहता है कि धोबी से धोबी धुलाई नहीं लेता है और नाई से नाई बाल कटाई नहीं लेता है तो वो केवट है और राम भी एक केवट हैं तो वो उनसे उतराई कैसे ले सकता है। केवट प्रभु राम के चरणों में गिर कर कहता है कि एक दिन वो उनके घाट पर आयेगा तब वे उसे भवसागर पार करा दें। यही उसकी उतराई होगी। गंगा मैया की अराधना करके राम, लक्ष्मण, सीता और निषादराज तीर्थराज प्रयाग में भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुँचते हैं। राम के वनवास से भारद्वाज मुनि व्यथित हैं। वे राम को अपने आश्रम रहने का आमन्त्रण देते हैं। राम जानते हैं कि अयोध्या प्रयागराज के समीप है। अतएव अयोध्यावासी कभी भी वहा आ सकते हैं। इसलिये वे भारद्वाज मुनि से कोई अन्य एकान्त स्थान पूछते हैं। मुनिवर उन्हें चित्रकूट जाने का परामर्श देते हैं। चित्रकूट एक अत्यन्त पावन स्थान है जहाँ यमुना पार करके जाना है और कोई नाव भी नहीं है। निषादराज और लक्ष्मण मिलकर बासों का एक बेड़ा तैयार करते हैं। राम यहाँ से भरत के समान प्रिय अपने मित्र निषादराज को वापस भेज देते हैं। निषादराज भारी मन से यह आदेश स्वीकार करते हैं। लक्ष्मण बेड़े को यमुनापार ले जाने के लिये खेते हैं।
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Wed, 19 Apr 2023 - 35min - 17 - रामायण - EP 17 - राम का श्रंगवेरपुर पहुँचना। निषादराज से मिलन। सुमन्त का लौटना।
तमसा नदी के तट पर राम सीता और अयोध्यावासी रात्रि विश्राम करते हैं। राम सूर्योदय से पहले उठते हैं और प्रजा को सोता छोड़कर चुपचाप यह स्थान छोड़ने का निर्णय लेते हैं। वे सुमन्त के साथ रथ पर सवार होकर श्रंगवेरपुर पहुँचते हैं जो निषादराज गुह का राज्य है। निषादराज राम के मित्र हैं। एक सैनिक निषादराज को राम के रथ के राज्य सीमा में प्रवेश की सूचना देता है। निषादराज बंधु बांधवों के साथ उनसे मिलते हैं। वो राम को तपस्वी वेश में देखकर अचम्भित है। वे कैकेयी की चाल समझ जाते हैं। उधर दशरथ अपने महल में पुत्र विरह में जल रहे हैं। उन्होने अन्न जल त्याग दिया है। निषादराज राम से अपने छोटे से वनप्रदेश श्रंगवेरपुर की सत्ता सम्भालने का अनुरोध करते हैं। राम इसे अस्वीकार करते हैं और वृक्ष के नीचे घासफूस के बिछौने पर रात्रि विश्राम करते हैं। लक्ष्मण माता सुमित्रा के आदेश का पालन करते हुए रात्रि प्रहरा देते हैं। सवेरे राम निषादराज से गंगा पार कराने के लिये नौका का प्रबन्ध करने का अनुरोध करते हैं। राम आर्य सुमन्त से वापस अयोध्या जाने, पिता दशरथ को सम्भालने और भरत के राज्याभिषेक की व्यवस्था करने का निवेदन करते हैं। सुमन्त राजा दशरथ की इच्छानुसार सीता को वापस अयोध्या भेजने का अनुरोध राम से करते हैं। सीता उन्हें अपने पत्नी धर्म का भान कराकर इनकार कर देती हैं। राम गंगा पार जाने का उद्धत होते हैं। लक्ष्मण उन्हें खड़ाऊ पहनाना चाहते हैं। लेकिन राम इसका भी त्याग कर देते हैं। लक्ष्मण भी बड़े भाई का अनुसरण करते हुए अपनी चरण पादुकाऐं उतार देते हैं। निषादराज कहते हैं कि वन के पथरीले मार्ग पर नंगे पाव चलना दुष्कर होगा। तब राम को स्मरण आता है कि बाल्यकाल में गुरू वशिष्ठ ने उन्हें अपने आश्रम में कठोर तप का प्रशिक्षण देकर वनवासी जीवन जीने के अनुकूल बना दिया था। राम समझ जाते हैं कि गुरू वशिष्ठ त्रिकालदर्शी हैं और सम्भवतः वे भाँप चुके थे कि भविष्य में क्या होने वाला है।
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Tue, 18 Apr 2023 - 36min - 16 - रामायण - EP 16 - श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन
जैसे सीता अपना पत्नी होने का धर्म निभाती हैं, उर्मिला भी लक्ष्मण संग जाने का हठ करती हैं। लेकिन लक्ष्मण उन्हें माता कौशल्या की सेवा के लिये अयोध्या में रूकने के लिये समझाते हैं और उससे वचन लेते हैं कि वो दिल में बसने वाली छवि के साथ उन्हें वन के लिये विदा करेंगी। लक्ष्मण जानते हैं कि इतिहास में उर्मिला का यह बलिदान अकथ ही रहने वाला है। प्रजा के बीच राम वनगमन के पीछे कैकेयी और भरत की मिलीभगत होने की चर्चा है। गुरूमाता द्वारा कैकेयी को समझाने का प्रयास भी विफल रहता है। वो कैकेयी को सौतेली माँ का पर्याय न बनने की सीख देती है लेकिन कैकेयी की बुद्धि नहीं बदलती। राम लक्ष्मण व सीता वनगमन के लिये पिता की आज्ञा लेने पहुँचते हैं। दशरथ राम से राजविद्रोह कर उनसे राज्य छीन लेने को कहते हैं। राम इसे नीतिविरूद्ध बताते हैं तो दशरथ मन्त्री सुमन्त को सारा राजकोष और सेना राम के साथ वन भेजने को कहते हैं। इस पर हस्तक्षेप करते हुए कैकेयी राम को तापस वेश में वन जाने को कहती है। मंथरा भगवा वस्त्र लाकर देती है। इससे आहत मंत्री सुमन्त भी विद्रोह की भाषा बोलते हैं। तब राम उन्हें शान्त करते हैं और कैकेयी के हाथों से मुनि वस्त्र ग्रहण करते हैं। कैकेयी सीता को भी तपस्वी वस्त्र देती हैं। तब महर्षि वशिष्ठ कैकेयी पर रूष्ट होकर आज्ञा देते हैं कि सीता वन में राजसी ठाठ के साथ रहेंगी क्योंकि वो राजा दशरथ के वचन से बंधी हुई नहीं हैं। तब सीता ससुर और गुरू से क्षमा मागते हुए अपना स्त्री धर्म निभाने की इच्छा प्रकट करती हैं। मंथरा सीता को भगवा वस्त्र पहनाने आती है और कुटिलतापूर्वक उनसे समस्त राजसी वस्त्र और आभूषण उतारने को कहती हैं लेकिन गुरूमाता आभूषण उतारने को अपशगुन बताती हैं और सीता को रोक देती हैं। सीता आभूषणों के साथ भगवा वस्त्र धारण करती हैं। राजा दशरथ सीता को जोगन वेश में देखकर विचलित हैं। वे बारम्बार उन्हें रोकते हैं। उनके पिता जनक को दिये अपने वचन की दुहाई देते हैं। स्थिति हाथ से निकलने की आशंका में कैकेयी राम से तत्काल राजमहल छोड़ने को कहती हैं। दशरथ पीछे से सुमन्त को भेजते हैं ताकि वो राम को रथ पर ले जायें और कुछ दिन वन में रहने के बाद समझाबुझा कर वापस ले आयें। राजमहल के बाहर उपस्थित जन समूह राजा दशरथ के विरूद्ध विद्रोह का नारा लगाता है। राम के समझाने पर प्रजा शान्त तो होती है लेकिन राम के रथ के पीछे पीछे वन को चल देती है। राम का रथ नगर से निकलता है। दशरथ राम राम पुकारते बाहर निकलते हैं और धरती पर गिर पड़ते हैं। वो कैकेयी का परित्याग करने का ऐलान करते हैं और भरत के राजा बनने पर उससे तर्पण का अधिकार छीन लेने की बात कहते हैं। राम वनगमन से हर किसी की आँख में आँसू है लेकिन राज महल में एक उर्मिला ही ऐसी है जो रो भी नहीं सकती। आखिर वो अपने पति को दिये वचन से बंधी है। उसका त्याग पूरी रामायण में अकथ ही रह गया है। नगर से बाहर तमसा नदी के निकट पहुँचने पर राम प्रजाजन से वापस लौटने का निर्देश देते हैं। प्रजा उनकी बात का पालन नहीं करती।
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Mon, 17 Apr 2023 - 34min - 15 - रामायण - EP 15 - श्रीराम-कौशल्या संवाद, वन गमन की तैयारी
अपने वचनों से बंधे राजा दशरथ कैकेयी भवन में निढ़ाल पड़े हैं। उनका बुलावा पाकर राम वहा पहुँचते हैं। वे पिता को पीड़ा में देखकर माता कैकेयी से इसका कारण पूछते हैं। कैकयी कड़वे वचन बोलती है। वो कहती है कि उनके पिता ने उसे दो वर दिये थे। अब यह वर पूरे करने में उनका पुत्र मोह आड़े आ रहा है। लेकिन यदि वर पूरे नहीं करते हैं तो धर्म और सत्य पर कलंक लगता है। राम के पूछने पर कैकेयी भरत के राजतिलक और उनके वनागमन का वरदान माँगने की बात बताती है। राम दोनों वरदानों को अपने लिये शुभंकारी बताते हैं। राम कहते हैं कि भरत जैसे भाई को राजपाट देने में उन्हें कोई संकोच नहीं है और वनवास के दौरान तेजस्वी ऋषियों मुनियों के बीच रहना तो उनके लिये कल्याणकारी होगा। राम माता कौशल्या और सुमित्रा से वनागमन के लिये आज्ञा लेने हेतु कैकेयी भवन से प्रस्थान करते हैं। वे द्वार पर राजछत्र का त्याग कर संकेत देते हैं कि अब वे राजा नहीं बनने जा रहे हैं। राम माता कौशल्या को पिता के वचन के बारे में बताते हैं और वनागमन के लिये विदा करने को कहते हैं। कौशल्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं होता। वे चक्कर खा जाती हैं। उनके हाथों से पूजा का थाल गिर जाता है। राम उन्हें सम्भालते हैं, रघुकुल की रीति का स्मरण कराते हैं। कैकेयी के वरदान का समाचार सीता तक भी पहुँचता है। वे माता कौशल्या के भवन में आती है और घोषणा करती हैं कि पत्नी धर्म निभाने के लिये वे भी वन जायेंगी। राम मना कर देते हैं। इस पर सीता अपनी चिता जलाने की बात कहकर उन्हें राजी कर लेती हैं। तभी लक्ष्मण हाथों में धनुष बाण लेकर वहाँ पहुचते हैं और कैकेयी के प्रति कटु वचन बोलते हैं। लक्ष्मण भरत को राज्य दिये जाने पर विद्रोह का ऐलान कर देते हैं। राम इससे नाराज होते हैं। वे लक्ष्मण को पिता दशरथ के धर्म संकट और माता कैकेयी की कुबुद्धि के पीछे प्रारब्ध के खेल को समझाते हैं। तब लक्ष्मण भी भैया राम के साथ वन जाने का हठ करते हैं। राम इनकार करते हैं लेकिन तभी छोटी माता सुमित्रा का वहाँ आगमन होता है और वे लक्ष्मण को आदेश देती हैं कि वो राम के साथ वन जायें और उनकी सेवा करें। अब राम ही उनके पिता हैं और सीता माता। लक्ष्मण अपनी माँ पर गर्व करते हैं। कौशल्या को इससे सांत्वना मिलती है। वे लक्ष्मण को सुमित्रा और उर्मिला की धरोहर बताती है और राम से लक्ष्मण की सकुशल वापसी का वचन लेती हैं।
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Sun, 16 Apr 2023 - 38min - 14 - रामायण - EP 14 - रानी कैकेयी का कोप भवन जाना। दशरथ के दो वरदान
मंथरा के उकसाने पर रानी कैकेयी श्रृंगार त्याग कर कोप भवन में है। राजा दशरथ वहाँ आते हैं। कैकेयी उलाहना देते हुए दशरथ को दो वरदानों का स्मरण कराती है। दशरथ प्राण देकर भी अपने वचन पूरा करने का प्रण करते हैं। इसके लिये वे राम की सौगन्ध भी लेते हैं। उधर लक्ष्मण पत्नी उर्मिला के समक्ष भावी रामराज्य में अपने कर्तव्यों का बखान करते हैं। उर्मिला उन्हें पत्नी के प्रति होने वाले कर्तव्यों का स्मरण कराती हैं। रानी कैकेयी पूरे साज श्रृंगार के साथ दशरथ के समक्ष आती है। वो इठलाते हुए पहले वरदान में राम के स्थान पर अपने पुत्र भरत के लिये अयोध्या का राज माँगती है। दूसरे वरदान में वो राम को तपस्वी वेश में चौदह वर्ष का वनवास माँगती है। दशरथ रानी की इस माँग पर स्तब्ध होते हैं। वे कैकेयी को समझाने का भरपूर प्रयास करते हैं। कैकेयी उन्हें वचन तोड़ने का उलाहना देती है। दशरथ को पछतावा होता है कि उन्होने कैकेयी को पहचानने में भूल कर दी। उन्हें स्त्री की अनुचित माँग पूरी करने पर जगहँसाई होने का भी भय है। कैकेयी कहती है कि यदि राम का राज्याभिषेक हुआ तो वो मृत्यु का वरण कर लेगी। दशरथ भरत को राजा बनाने को तैयार होते हैं लेकिन वे कैकेयी से राम को वनवास भेजने की हठ त्यागने को कहते हैं। वे कैकेयी के पैरों पर गिरते हैं। तब कैकेयी दशरथ पर अपनी कठोर वाणी का अन्तिम बाण चलाते हुए उलाहने देती है। दशरथ मूर्च्छित होकर गिर पड़ते हैं। अगली सुबह उनकी मूर्छा प्रभात गीत से टूटती है। वे राम को पुकारते हैं। उधर राजमहल में राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ लगभग पूर्ण हैं लेकिन दशरथ के न पहुँचने और पुष्य नक्षत्र बीतते जाने से महर्षि वशिष्ठ चिन्तित हैं। मंत्री सुमन्त उनका सन्देश लेकर कैकेयी भवन में दशरथ के पास पहुँचते हैं। कैकेयी उन्हें पहले राम को बुला लाने का आदेश देती है। सुमन्त से सन्देश पाकर राम पिता से मिलने कैकेयी भवन की ओर प्रस्थान करते हैं।
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Sat, 15 Apr 2023 - 35min - 13 - रामायण - EP 13 - श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारी। कैकेयी-मन्थरा संवाद
राजमहल में सीता को राम के राज्याभिषेक की सूचना लक्ष्मण द्वारा मिलती है। राम भाईयों के साथ राजपाट चलाने की इच्छा रखते हैं किन्तु कुल परम्परानुसार उन्हें ही युवराज घोषित किया गया है। नगर में उनके राज्याभिषेक का ढिंढोरा बजता है। चारों ओर उत्सव सा महौल है। प्रजा गली चौक, खेत खलिहानों में बधाई गीत गाती दिखती है। पूरी अयोध्या नववधू की तरह सजायी जा रही है। यह दृश्य देखकर कैकेयी की कुबड़ी दासी मंथरा झुंझला जाती है। वो आपे से बाहर होकर उत्सव भंग करती है। वो रानी कैकेयी के महल में जाती है और उन्हें राम के राज्याभिषेक के विरूद्ध भड़काती है। वो कैकेयी के दिमाग में भर देती है कि राजा बनने के बाद राम का अपने भाईयों के प्रति प्रेम जाता रहेगा और वो उन्हें अपने मार्ग के कांटे की तरह साफ कर देगा। राजा राम की माँ कौशल्या अपनी सौत कैकेयी को दासी बनाकर रखेगी। मंथरा कैकेयी के अन्दर भरत को राजा बनाने का सपना दिखाती है और अपनी कुटिल बुद्धि से एक षडयन्त्र रचते हुए उन्हें राजा दशरथ के दिये दो वचनों का स्मरण कराती है। एक बार देवासुर संग्राम में राजा दशरथ असुरों के प्रहार से मूर्च्छित हो गये थे। उनकी सारथी बनी कैकेयी उन्हें रथ समेत सुरक्षित युद्धभूमि से बाहर ले गयी थी और उनके घाव भी ठीक किये थे। तब दशरथ ने उन्हें कभी भी दो वरदान माँग लेने का वचन दिया था। मंथरा कैकेयी से कहती है कि अब राजा दशरथ को उन दो वरदानों की याद दिला कर पहले से भरत के राजतिलक और दूसरे से राम को चौदह वर्ष के लिये वनवास भेजने के माँग करे। राम के वनवास को लेकर कैकेयी का मन दुविधा से भरता है लेकिन मंथरा उन्हें समझाती है कि भरत के निष्कंटक राज के लिये राम का अयोध्या से दूर रहना आवश्यक है। कैकेयी दम्भपूर्व स्वर में दासी को राजा दशरथ को बुलाने के लिये भेजती है। प्रहरी उसे दशरथ के कक्ष में नहीं जाने देता। तब मंथरा के सिखाने पर कैकेयी त्रिया चरित्र दिखाते हुए कोप भवन में चली जाती है। दशरथ कैकेयी के कोप भवन में जाने की सूचना पाकर परेशान होते हैं।
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Fri, 14 Apr 2023 - 35min - 12 - रामायण - EP 12 - भरत-शत्रुघ्न ननिहाल जाते हैं । दशरथ राम के राज्याभिषेक का निर्णय लेते हैं।
भरत के विवाहोत्सव में शामिल होने के लिये उनके मामा युधाजित अयोध्या में हैं। कुछ दिन बाद रानी कैकेयी के पिता राजा अश्वपति का स्वास्थ्य खराब होने की सूचना आती है इसलिए कैकेयी भरत-शत्रुघ्न को अपने मामा के साथ कैकेय प्रदेश जाने के लिये कहती हैं। भरत शत्रुघ्न पितातुल्य अग्रज राम और भाभी सीता का आशीर्वाद लेते हैं। राम अपने भाई से दूर नहीं रहना चाहते इसलिये उनका मन भरत संग जाने का है लेकिन वे माता पिता की सेवा के लिये अयोध्या में ही रूकते हैं। ऋषि विश्वामित्र भी अब अयोध्या से विदा लेना चाहते हैं। राजा दशरथ उनसे रूकने का आग्रह करते हैं किन्तु विश्वामित्र जानते हैं कि यदि वे राजमहल की मोहमाया में फँसते हैं तो वे पुनः अपने कर्तव्य पथ से विमुख हो जायेंगे। ऋषि विश्वामित्र उन्हें अपनी कथा सुनाते हैं कि किस प्रकार इन्द्र ने मेनका को उनकी तपस्या भंग करने के लिये भेजा था। मेनका ने अपनी अदाओं से उनको मोहित किया था और उनकी तपस्या भंग कर दी थी। महर्षि वशिष्ठ भी दशरथ को समझाते हैं कि नदी और साधु का एक स्थान पर रूकना ठीक नहीं होता। विश्वामित्र जी के जाने के बाद भी उनके ये वचन राजा दशरथ के कानों में गूँजते रहते हैं कि सांसारिक कर्तव्य पूरे करने के बाद मनुष्य को अपने पारिवारिक बन्धन तोड़कर अध्यात्म की तरफ मुड़ जाना चाहिये। दशरथ महर्षि वशिष्ठ के आश्रम जाकर उनसे एकान्त में अपनी मन की बात कहते हैं कि वे राम को राजपाट सौंपना चाहते हैं। वशिष्ठ उनसे इसके लिये वंश परम्परानुसार राजसभा बुलाने का परामर्श देते हैं। राजसभा में सर्वसम्मति से राम के राज्याभिषेक का अनुमोदन होता है। राम को राजसभा में बुलाया जाता है। सभा में वशिष्ठ राम से राज्यभार सम्भालने को कहते हैं। राम अपने पिता का राज सिंहासन ग्रहण करने को अनुचित बताकर इस निर्णय को अस्वीकार कर देते हैं। दशरथ राम को पुत्र-धर्म का भान कराते हैं। वशिष्ठ भी राम को बताते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिये दशरथ का वानप्रस्थ आवश्यक है। अन्ततः राम भारी मन से इस निर्णय को राजाज्ञा मानकर स्वीकार करते हैं। पूरे सभागृह में राजा रामचन्द्र की जय जयकार होती है। राम के राज्याभिषेक का समाचार राजमहल पहुँचता है। माता कौशल्या की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं है। छोटी रानी सुमित्रा अपने पुत्र लक्ष्मण को राजा राम के आधीन करती हैं।
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Wed, 12 Apr 2023 - 35min - 11 - रामायण - EP 11 - राम बारात की विदाई। अयोध्या में सीता का स्वागत और राम का एक पत्नीव्रत।
अयोध्या में तीनों रानियाँ बारात वापसी की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही हैं। किन्तु राजा जनक व पूरी बारात लम्बी अवधि से मिथिला में अतिथि बनकर रूकी हुई है। मंझली रानी कैकेयी का मत है कि महाराज दशरथ वरपक्ष वाले हैं, वे अधिकारपूर्वक बारात विदा करने की बात राजा जनक से कह सकते हैं। उधर मिथिला में मंत्री सुमन्त का भी यही भाव है किन्तु दशरथ राजा जनक के इस दर्द को समझते हैं कि एक पिता के लिये अपनी बेटी को विदा करना कितना कठिन होता है। तब सुमन्त उन्हें राजधर्म का स्मरण कराते हैं। आखिरकार ऋषि विश्वामित्र और ऋषि शतानन्द द्वारा सांसारिक नियम समझाने पर राजा जनक चारों पुत्रियों को विदा करने पर सहमत होते हैं। रनिवास में रानी सुनयना चारों पुत्रियों को नारी धर्म की शिक्षा देती हैं। पति, सास और ससुर की सेवा करने और ससुराल का मान रखने की सीख भी देती हैं। राम अपने तीनों भाईयों के साथ विदाई कराने रनिवास पहुँचते हैं। राजा जनक भाव विहवल ढंग से अपनी बेटियाँ राजा दशरथ को सौंपते हुए उनकी किसी भी गलती पर क्षमा करने की गुहार करते हैं। राजा दशरथ विनय भाव से घोषणा करते हैं कि सीता आने वाले समय में अयोध्या की महारानी बनेंगी इसलिये उसका आदर सत्कार किसी रानी की भाँति होगा। अपनी दुलारी सीता को डोली में बैठाते समय जनक उसे ससुराल में मायके की कीर्ति को नष्ट न होने देने की सीख देते हैं। बारात वापसी का अयोध्या में भव्य स्वागत होता है। अयोध्या स्वयं को धन्य महसूस करती है। द्वारचार पश्चात गुरू वशिष्ठ कुल देवता सूर्य का पूजन सम्पन्न कराते हैं। रानियाँ अपने चारों पुत्रों व पुत्रवधुओं के बीच दूध भात खिलाने की रस्म अदा कराती हैं। राम दूध भरे पात्र से कंगन ढूँढने की रस्म में सीता को जीतने देते हैं। भाईयों के बीच खूब चुहल होती है। प्रथम मिलन की रात्रि राम सीता को एक अनूठा उपहार देते हैं। वे कहते हैं कि राजकुलों में बहुविवाह की परम्परा है किन्तु उन्होंने सीता को अर्धांगिनी बनाना स्वीकार कर एक पत्नीव्रत की प्रतिज्ञा की है। अन्त में रामानन्द सागर अपनी मीमांसा में बताते हैं कि रामायण में इस प्रसंग के साथ बालकाण्ड का समापन होता है।
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Tue, 11 Apr 2023 - 35min - 10 - रामायण - EP 10 - श्री राम सीता विवाह
अयोध्या के राजमहल में शुभ समाचार पहुँचता है कि राम के साथ साथ भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का विवाह भी निश्चित हो गया है। तीनों रानियों की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं है। यहाँ से मंथरा की कुटिल बुद्धि काम करना शुरू कर देती है। वो कैकेयी को भरत के स्वागत के लिये अलग से विशेष प्रबन्ध करने का परामर्श देती है। वो कैकेयी से अपने पिता व कैकेय देश के राजा अश्वपति को सन्देश भेजने को कहती है। उधर जनकपुरी में मंगल गीतों के बीच राम समेत चारों राजकुमार लग्न मण्डप में पहुँचते हैं। भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा, देवी पार्वती व सरस्वती भी मनुष्य रूप धारण इस महान अवसर के साक्षी बनते हैं। राजा जनक राम के चरण पखार कर कन्यादान करते हैं। राम का सीता, भरत का माण्डवी, लक्ष्मण का उर्मिला और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति के साथ पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न होता है। चारों नव जोड़े पिता दशरथ और गुरू वशिष्ठ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। रानी सुनयना बेटी की विदाई की इस घड़ी पर अपनी वेदना व्यक्त करती हैं। राजा जनक में भी यही भाव है। वे राजा दशरथ के पास याची की भाँति पहुचते हैं और उनसे बेटी की विदाई को कुछ दिन टालने और बारात को मिथिला में रूकने का निवेदन करते हैं। दशरथ उनके मनचाहे दिवसों तक मिथिला में रहने का वचन देते हैं।
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Mon, 10 Apr 2023 - 35min - 9 - रामायण - EP 9 - राजा जनक का राजा दशरथ को सन्देश। राम बारात का मिथिला में आगमन।
राजा जनक का सन्देश अयोध्या पहुँचता है। राजा दशरथ अपने महल में हैं। कौशल्या और कैकेयी के भी वहाँ आने पर भरत और शत्रुघ्न उन्हें भैया राम का विवाह तय होने का समाचार बड़ा ही कौतूहल जागृत करने के भाव से सुनाते हैं। इसके पश्चात दशरथ मिथिला के राजदूत देवव्रत से सभागृह में मिलते हैं। देवव्रत राम और सीता के विवाह हेतु राजा जनक का प्रस्ताव उनके सम्मुख रखते हैं और उन्हें बारात लाने का आमंत्रण देते हैं। दशरथ के आग्रह पर महर्षि वशिष्ठ इस निमन्त्रण को स्वीकृति प्रदान करते हैं। दशरथ राजदूत को राज्य की तरफ से उपहार भेंट करते हैं जिसे वो स्वयं को लड़की पक्ष का बताकर विनयपूर्वक अस्वीकार कर देते हैं। राजा दशरथ ऋषियों मुनियों, मंत्रियों तथा समस्त प्रजाजन को बारात में चलने का निमन्त्रण भरत और शत्रुघ्न के द्वारा भिजवाते हैं। कौशल्या आर्य सुमन्त को याचकों को राजकोष से दान देने का निर्देश देती हैं। दशरथ बारात लेकर मिथिला पहुँचते हैं। जनक बारात का स्वागत करते हैं। जनक के अन्दर कन्या का पिता होने का दास भाव है तो दशरथ भी स्वयं को याची बताकर अपनी विनयशीलता का परिचय देते हैं। लक्ष्मण बड़े भाई राम को पिता दशरथ के आने की सूचना देते हैं लेकिन राम में भी रघुकुल के संस्कार हैं। वे कहते हैं कि इस समय वे गुरू विश्वामित्र के आधीन हैं तो उनकी आज्ञा के बिना पिता से भेंट नहीं की जा सकती। तभी विश्वामित्र उन्हें ले चलने के लिये आते हैं। रात्रि में राम पिता की सेवा करते हैं। दशरथ को सुयोग्य पुत्र का पिता होने का गर्व होता है। उधर लक्ष्मण भैया राम और भाभी सीता के पुष्प वाटिका में हुए प्रथम साक्षात्कार की कहानी बहुत ही रस लेकर अपने भाईयों भरत और शत्रुघ्न को सुनाते हैं। मिथिला के सभागृह में दोनों राजन अपने अपने आचार्यों और परिवारीजनों के साथ मंत्रणा करते हैं। महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ की कुल परम्परा का बखान करते हुए राजा जनक से राम का विवाह सीता से और उनकी दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण संग करने का प्रस्ताव रखते हैं। जनक इसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। ऋषि विश्वामित्र भी अपने मन की बात रखते हैं। वे राजा जनक के अनुज व सांकाश्या राज्य के शासक कुशध्वज की पुत्रियों माण्डवी और श्रुतकीर्ति के साथ भरत और शत्रुघ्न के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। जनक अपने भाई कुशध्वज की ओर से इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं। सखियाँ यह शुभ समाचार सीता और उनकी बहनों तक पहुँचाती हैं।
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Sun, 09 Apr 2023 - 34min - 8 - Ramayan EP 8 - श्री राम द्वारा धनुषभंग | जयमाला पहनाना
In the eighth episode of Ramayan, Rama successfully strings the unlifted bow and breaks it, winning the Swayamvar competition and earning the right to marry Sita. The episode begins with a celebration of Rama's victory, as he is honored with a Jai Mala ceremony and garlanded by Janak and the other dignitaries.
As preparations are made for Rama and Sita's wedding, Rama's father King Dasharath visits Janak's palace with his wives and retinue. However, his arrival is overshadowed by the news of a terrible omen: Dasharath has had a nightmare in which he sees Rama leaving Ayodhya and entering into the forest. The king is deeply disturbed by this vision and seeks counsel from his advisors, who warn him of an impending danger to Rama's life.
Despite these ominous signs, Rama and Sita are formally engaged in a ceremony where they exchange garlands and are blessed by the assembled gods and sages. The episode ends on a cliffhanger, as a mysterious figure appears in the crowd and threatens to disrupt the wedding ceremony.
As the eighth episode of the Ramayan TV show, this installment builds on the previous episode's dramatic events and sets the stage for even greater conflicts and challenges. It also highlights the depth of Rama and Sita's love and their commitment to each other, despite the obstacles they will soon face.
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Sat, 08 Apr 2023 - 36min - 7 - रामायण - EP 7 - सीता स्वयंवर। राजाओं से धनुष न उठना। जनक की निराशाजनक वाणी।
आज सीता स्वयंवर का दिन है। जनकपुरी में चारों ओर उमंग का वातावरण है। राम लक्ष्मण स्वयंवर में जाने की तैयारी करते हैं। लक्ष्मण बड़े भाई राम को विश्वास दिलाते हैं कि स्वयंवर में वे ही विजयी होंगे। शहनाई, तुरही और शंख ध्वनि के साथ स्वयंवर प्रारम्भ होता है। कई राज्यों के राजा इस स्वयंवर में भाग लेने आये हैं। उनकी दम्भपूर्ण और ललकार भरी बातों से जनक कुछ परेशान से होते हैं। तभी विश्वामित्र राम व लक्ष्मण के साथ सभा में प्रवेश करते हैं। जनक का चेहरा खिल उठता है। वे आगे बढ़कर उनका स्वागत करते हैं। राजाओं के बीच कौतूहल उपजता है लेकिन वे आश्वस्त हैं कि सुकोमल दिखने वाले राम लक्ष्मण शिव धनुष को हिला भी न पायेंगे। सीता को स्वयंवर स्थल पर लाया जाता है। चारण और भाटों की एक टोली राजा जनक की प्रशंसा में एक गीत गाती है। एक चारण अपने गीत में वहाँ रखे शिव धनुष को इंगित कर राजा जनक का प्रण बताता है कि इस पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले पराक्रमी के साथ सीता का विवाह होगा।
वहाँ उपस्थित राजा और क्षत्रिय अपना बल और पराक्रम दिखाने बारी-बारी से आते हैं लेकिन शिव धनुष को अपने स्थान से हिला तक नहीं पाते। राम और लक्ष्मण शान्त रहते हैं। लेकिन ये दृश्य देखकर सीता की माँ सुनयना चिन्तित हो जाती है। कई राजा एक साथ मिलकर धनुष उठाने को आगे आते हैं लेकिन जनक इसे अपमानपूर्ण मानकर रोक देते हैं।
राजा जनक सभा को निराशाजनक स्वर में सम्बोधित करते हुए पछतावा करते हैं कि उन्होंने इस प्रण को ठानकर अपनी पुत्री के विवाह को कठिन बना दिया है। वे सवाल उठाते हैं कि क्या पृथ्वी वीरों से खाली हो चुकी है। जनक के यह वचन लक्ष्मण को तीर की तरह चुभते हैं। वे उठकर जनक को टोकते हुए कहते हैं कि उन्हें याद रखना चाहिये कि इस सभा में सूर्यवंशी रघुकुल के युवराज श्रीराम उपस्थित हैं। भगवान शेषनाग के अवतार लक्ष्मण चुनौती देते हैं कि यदि उन्हें अपने गुरु की आज्ञा मिल जाये तो वे पूरे ब्रह्माण्ड को गेंद की भाँति उछाल कर अपना पराक्रम दिखा सकते हैं। लेकिन विश्वामित्र लक्ष्मण को आसन पर वापस आने के लिये कहते हैं। विश्वामित्र सभा के मनोभाव को पढ़ते हैं और राम को राजा जनक की परेशानी दूर करने की आज्ञा देते हैं। गुरु की आज्ञा पर राम सहज भाव से शिव धनुष के पास जाते हैं। अन्य राजा उनका उपहास उड़़ाते हैं। तमाम शंकाओं से ग्रसित महारानी सुनयना भी राम के किशोरवय को देखकर परेशान हैं। उनका मन इस स्वयंवर को स्थगित करने का है किन्तु उनकी देवरानी आशान्वित दिखती हैं और वह स्वयंवर जारी रखने का परामर्श देती हty.
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Fri, 07 Apr 2023 - 36min - 6 - Ramayan EP 6 - राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र जनकपुर प्रवेश
In the sixth episode of Ramayan, Rama, Lakshmana, and Vishwamitra arrive at the city of Janakpur, the capital of Mithila. Janak, the king of Mithila, has announced a competition to find a suitable husband for his daughter, Sita, and many princes and kings have come to participate. Vishwamitra hopes that Rama will prove his strength and skills in the competition, and also wishes to see Sita and evaluate her qualities as a wife for Rama.
As Rama and Lakshmana enter the city, they witness the grandeur and beauty of Mithila and are impressed by its people and customs. Janak receives them warmly and invites them to participate in the competition. As the episode progresses, we see Rama and Lakshmana showcasing their skills in archery, wrestling, and other activities, impressing the assembled audience and winning the admiration of Janak.
Meanwhile, Sita also watches the competition from afar and is impressed by Rama's skill and character. She develops a deep admiration and respect for him, which will play a crucial role in their later interactions.
As the sixth episode of the Ramayan TV show, this episode sets the stage for the upcoming events in the story, as Rama and Sita's fateful encounter draws nearer. It also highlights the themes of strength, skill, and merit, as the princes and kings compete to win Sita's hand, and the importance of virtue and character, as Rama and Lakshmana demonstrate their impeccable conduct and honourable intentions.
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Thu, 06 Apr 2023 - 36min - 5 - Ramayan EP 5 - ताड़का वध | विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा
In the fifth episode of Ramayan, Rama and Lakshmana continue to accompany Vishwamitra on his journey to protect his yagna from the demons. As they approach the ashram of Gautama, they learn about Ahalya's curse and her need for redemption. Rama, being the compassionate and virtuous person he is, takes it upon himself to restore Ahalya's honour and free her from her curse. Meanwhile, Vishwamitra, Rama and Lakshmana face many challenges from the demons who are trying to disrupt Vishwamitra's yagna. Will they be able to protect the yagna and ensure that the gods are pleased? Will Ahalya be able to find redemption and start anew? Tune in to this episode to find out.
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Wed, 05 Apr 2023 - 36min - 4 - Ramayan EP 4 - शिक्षा पूर्ण कर अयोध्या लौटे
In this episode, we see Rama and Lakshmana continuing their journey to Lanka, as they gather allies and build their army to rescue Sita. They encounter various tribes and kingdoms along the way, each with their own unique culture and customs.
Meanwhile, the powerful warrior Hanuman sets out on a quest to find Sita and deliver a message of hope and support from Rama. He travels across the sea to Lanka, encountering various obstacles and challenges along the way, including the demoness Lankini.
When Hanuman finally reaches Lanka, he discovers Sita imprisoned in a grove of ashoka trees, where she has been held captive by Ravana. Hanuman reassures Sita of Rama's love and determination to rescue her, and he sets off on a daring mission to gather intelligence and support for Rama's army.
As the episode progresses, we see Rama and Lakshmana continuing to build their army, with the help of allies like the monkey king Sugriva and the fierce warrior Angad. They also encounter various demons and monsters, including the demon king Kumbhakarna, who they must defeat in order to reach Lanka.
Throughout the episode, we see the themes of courage, loyalty, and determination being explored, as Rama and his companions demonstrate their unwavering commitment to each other and their cause. We also witness the power of Hanuman's devotion and his willingness to go to great lengths to serve his lord.
As the fourth episode of the Ramayan TV show, this episode sets the stage for the epic battle between Rama's army and Ravana's forces, as the two sides prepare to clash in a showdown that will determine the fate of Sita and the future of Ayodhya.
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Tue, 04 Apr 2023 - 35min - 3 - Sita's Abduction
In this episode, we see Rama, Lakshmana, and Sita continuing their exile in the forest, as they encounter various sages, mystics, and demons along the way. We witness their steadfast devotion to each other and their commitment to upholding dharma in the face of adversity.
However, the plot takes a dramatic turn when the demon king Ravana sets his sights on Sita and concocts a plan to abduct her. Disguising himself as a holy man, Ravana lures Rama and Lakshmana away from their hermitage, leaving Sita vulnerable to his attack.
Despite Sita's valiant efforts to resist Ravana's advances, she is eventually captured and taken away to Lanka, Ravana's kingdom. Rama and Lakshmana return to find Sita gone, and they set out on a desperate quest to rescue her from the clutches of the demon king.
As the episode progresses, we see Rama and Lakshmana encountering various challenges and obstacles on their journey to Lanka, including the fierce warrior Hanuman and the demoness Surasa. We also witness the inner turmoil of Ravana, who is torn between his desire for Sita and his sense of duty as a king.
Throughout the episode, we see the themes of love, loyalty, and honor being explored, as Rama and his companions demonstrate their unwavering devotion to each other and their commitment to upholding dharma in the face of great danger. We also witness the power of Ravana's ego and the destructive consequences of his selfish desires.
As the third episode of the Ramayan TV show, this episode sets the stage for the epic battle between good and evil that is to come, introducing us to the key players and conflicts that will drive the narrative forward.
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Mon, 03 Apr 2023 - 36min - 2 - Rama's Exile
In this episode, we continue to follow the story of Rama and his family as they face the consequences of Queen Kaikeyi's treacherous plot. We witness the heart-wrenching scene of Rama bidding farewell to his beloved wife Sita and loyal brother Lakshmana before setting off on his exile to the forest.
As Rama and Lakshmana journey into the forest, we see them encountering various obstacles and challenges, including the demoness Surpanakha, who attempts to seduce Rama and is punished by having her nose cut off by Lakshmana.
Meanwhile, back in Ayodhya, King Dasharatha is overcome with grief and guilt over his actions, eventually leading to his death. Bharata, Rama's younger brother who was crowned king in his absence, is horrified by the events that have transpired and sets out to find Rama and bring him back to Ayodhya.
Throughout the episode, we see the themes of loyalty, sacrifice, and duty being explored, as each character grapples with their own sense of right and wrong in the face of difficult circumstances. We also witness the power of Rama's unwavering devotion and the love and loyalty of his family and allies as they come together to navigate the challenges ahead.
As the second episode of the Ramayan TV show, this episode deepens our understanding of the characters and themes introduced in the previous episode, while also introducing new challenges and conflicts that will drive the story forward.
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Fri, 31 Mar 2023 - 37min - 1 - The Birth of Rama
In this episode, we are introduced to the world of the Ramayan and its main protagonist, Rama. The episode begins with a description of the kingdom of Ayodhya, ruled by King Dasharatha, and his three wives, Kaushalya, Sumitra, and Kaikeyi.
We then witness the grand sacrifice performed by King Dasharatha to please the gods, seeking their blessings for a son who will inherit his kingdom. The gods are pleased and soon after, Rama is born to King Dasharatha and Queen Kaushalya.
As the episode progresses, we see the young Rama growing up in Ayodhya and developing a close bond with his brothers, Bharata, Lakshmana, and Shatrughna. We also witness the announcement of Rama's impending coronation as the heir to the throne, much to the delight of the people of Ayodhya.
However, the plot takes an unexpected turn when Queen Kaikeyi, jealous of Rama's popularity and driven by her own selfish desires, manipulates King Dasharatha into exiling Rama to the forest for 14 years, while her own son, Bharata, is crowned king in his place.
Throughout the episode, we see the themes of duty, loyalty, and honor being explored, as Rama and his family grapple with the difficult decisions they must make in order to maintain their sense of righteousness and uphold their obligations to their kingdom.
As the first episode of the Ramayan TV show, this episode sets the stage for the epic saga that is to come, introducing us to the key characters and themes that will drive the narrative forward.
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Wed, 29 Mar 2023 - 34min
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