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- 7 - Episode 3 माया लोहनी द्वारा प्रस्तुत हिंदी पॉडकास् श्रृंखला प्रस्तुतीकरण का एक परिचय और एक अभिवादन
हिंदी प्रस्तुतीकरण के लिए अपेक्षाकृत नई ऑडियो विधा है । पॉडकास्ट पश्चिमी देशों में यद्यपि यह बहुत पहले से प्रचलन में है और लोकप्रिय भी ,,,,,परंतु भारतीय जनमानस अभी इसकी लोकप्रियता से अछूता ही है। हमारे यहां रेडियो, टीवी ,एफएम के पश्चात व्हाट्सएप पर फेसबुक लोकप्रियता के नए आयामों में शामिल है... इसलिए पॉडकास्ट संभवतः अपने उद्देश्य और लक्ष्यों की पूर्ति की भारत में अभी प्रारंभिक अवस्था में ही है.... इसलिए इसे लोकप्रिय किए जाने की अभी पर्याप्त संभावनाएं हैं..... और इन्हीं संभावनाओं की खोज में निकली हूं मैं--- माया लोहनी 🙏🌼🙏☺️🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🙏🌼🙏
Sun, 03 May 2020 - 01min - 6 - मानवता व महामारी के मध्य संघर्ष की स्थिति में दृढ़ प्रतिरोधकक्षमता व सकारात्मकता ही रक्षा का उपाय है
किसी महादानव की तरह संपूर्ण विश्व को एक महामारी के रूप में अपना ग्रास बनाता कोरोनावायरस मानव और मानवता के इतिहास का सबसे बड़ा अभिशाप सिद्ध हो रहा है ......तो यह समय है कुछ सोचने.. विचारने और अपनी जीवनशैली को पुनः नए सिरे से रचने और सुधारने का ।
Tue, 28 Apr 2020 - 15min - 5 - अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण को समर्पित मीरा के पद उनके माधुर्य व समर्पण का भक्ति भाव व्यक्त करते है
पहले पद में जहां मीरा ने प्रभु को भक्तों का तारणहार मानकर उनसे अपनी रक्षा और अपने संकट निवारण की प्रार्थना की है ..... द्रौपदी गजराज और भक्त प्रहलाद का उदाहरण देकर संत शिरोमणि मीराबाई ने प्रभु से इस संसार रूपी भवसागर से स्वयं को पार कराने की प्रार्थना सविनय निवेदन की है । वहीं दूसरे पद में मीरा के समर्पण भाव और दास्य भाव की भक्ति के दर्शन होते हैं .....जहां वे कृष्ण की चाकरी करके भी - सेवा करके भी अति प्रसन्न हैं । वे कृष्ण के रूप- सौंदर्य का वर्णन करती हैं ....वृंदावन की कुंज -गलियों में अपने गोविंद की लीलाओं का गायन करना चाहती हैं और यह चाहती हैं कि जैसे आपने गोप- गोपियों ....ग्वाल- बालों को व अपने भक्तों को अपने दर्शन दिए थे ; उसी प्रकार हे ईश्वर !! आप हमारा भी कल्याण कीजिए।
Thu, 23 Apr 2020 - 19min - 4 - हिंदी काव्य सागर के कोश से शमशेर बहादुर सिंह रचित "उषा" का भाव व काव्य -सौंदर्य माया लोहनी द्वारा..
मनुष्य प्रकृति का ही बालक है इसीलिए संभवतः कहा गया है -- तेरी रज में लौट लौट कर बड़े हुए डहैं घुटनों के बल सड़क सड़क पर खड़े हुए हैं पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा ......तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा । ब्रह्म मुहूर्त की बेला से सूर्योदय की बेला तक प्रातः काल के अलग-अलग रूप रंगों और छवियों को हम प्राय: देख नहीं पाते या बहुत कम उसका साक्षात्कार कर पाते हैं । उन स्वरूपों को हमारे सामने शमशेर बहादुर सिंह ने अपनी इस कविता "उषा" में हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है।
Thu, 09 Apr 2020 - 18min - 3 - कथा समय में आज हिंदी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कृति "बड़े भाई साहब" का रोचक कथा वाचन
हिंदी साहित्य के प्रमुख आधार स्तंभ और उपन्यास सम्राट के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले मुंशी प्रेमचंद जिन्होंने हिंदी साहित्य को लोक चेतना ग्रामीण भारत और जनमानस की सच्ची पहचान के साथ जोड़ा जिनकी रचनाएं भारतीय समाज का सही रूप उजागर करती हैं 31 जुलाई 1880 में बनारस के लमही गांव में जन्मे मुंशी प्रेमचंद जिनका वास्तविक नाम धनपत राय था उन्होंने हिंदी उर्दू साहित्य की विकास यात्रा में ऐसे स्वर्णिम अध्याय जोड़ें जिसके लिए साहित्य जगत सदा उनका ऋणी रहेगा ।मुंशी प्रेमचंद 300 से अधिक कहानियां और उपन्यासों की रचना की जिनमें से प्रमुख गोदान, गबन ,निर्मला, सेवासदन ,रंगभूमि ,कर्मभूमि आदि नाम सभी पाठकों के मन -मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं ।ढाई सौ से अधिक उनकी कथाओं का संग्रह "मानसरोवर" शीर्षक से आठ खंडों में प्रकाशित है ।उनके तीन उपन्यासों पर फिल्म निर्माण भी हुआ है --गोदान, गबन और निर्मला । सर्वप्रथम उनका साहित्य देश भक्ति और स्वाधीनता की भावना जो कि उस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता थी ;उसकी आवाज को लिए हुए था ।उन भावनाओं से ओतप्रोत उनकी कहानियां "ज़माना" नामक अखबार में प्रकाशित हुईं और उनकी रचना "सोजे़ वतन" पर ब्रिटिश शासन ने प्रतिबंध भी लगा दिया था । ..........लेकिन न मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन संघर्ष रुका ; ना उनकी लेखनी की यात्रा रुकी........ और इस प्रकार भारतीय साहित्य को समृद्ध करते हुए उन्होंने अपनी 300 से भी अधिक रचनाओं के साथ मां भारती के साहित्य के कोष को समृद्ध किया । यहां प्रस्तुत कहानी "बड़े भाई साहब" एक मन को छू लेने वाली , बाल मन की भावनाओं को और बाल मनोविज्ञान की खरी समझ बताने वाली एक ऐसी कहानी है ; जो कहीं हमारे मन को गुदगुदा आती है ...... तो कहीं ह्रदय के तारों को छू जाती है और हम सभी लौट पड़ते हैं अपने उस बाल्यकाल की ओर ,,,,,,,,जहां हमें भी शिक्षा पद्धति की अनेक बातें इतनी नागवार गुजरती थी कि हमारे मन के भी क्रांतिकारी विचार उदय होते थे । "बड़े भाई साहब" इस रचना में मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी- उर् मिश्रित इतनी सहज भाषा का प्रयोग किया है कि पाठक और श्रोता का मन प्रेमचंद जी के लेखन की रवानी में सहज रूप से ही बहने लगता है । गंभीर से गंभीर विषय में व्यंग्य की एक धारा का होना प्रेमचंद जी के लेखन की एक प्रमुख विशेषता है कथा - कहानियां पुस्तकों रूप में पढ़ी भी जाती हैं और आज किंडल के रूप में इंटरनेट पर भी उपलब्ध हैं ।......... पर मुझे याद है कि जब रेडियो का ज़माना हुआ करता था सुनहरा साठ का दशक , 70 -80 का दशक तब रेडियो पर कहानियां बांची जाती थी और जब पुस्तके इतनी सुलभ न थी तो हम अपने संपूर्ण मन - प्राणों के साथ अपने कान उस कहानी के ऑडियो की ओर लगा देते थे । ....... तो आज पॉडकास्ट के इस नए और सशक्त माध्यम द्वारा प्रस्तुत है मुंशी प्रेमचंद की अमर कथा "बड़े भाई साहब" का यह कथा वाचन ......... ।
Tue, 07 Apr 2020 - 20min - 2 - Hindi Poetry is an ocean .... रत्नों भरे इस खजाने से महान साहित्यकारों के कुछ अमृत कलश रूपी मोती
साहित्य की आत्मा है कविता और कविता की आत्मा है भाव रस अलंकार ,छंद ,काव्य -शैली....... लेकिन इस सबसे बढ़कर कविता के अंदर बसा हुआ सार । संत कबीर की वाणी धर्म नीति और जीवन को जोड़ने वाली वाणी है संत कबीर कवि और साहित्यकार होने के साथ-साथ एक प्रखर समाज सुधारक भी थे उनका यह समाज सुधारक रूप उनकी कविताओं में उनके पदों में और उनके दोहों में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है दसवीं तक के स्तर के छात्र संत कबीर की वाणी उसके मर्म और कविता के पीछे छिपे उस सार तत्व को समझ पाए यही मेरी प्रस्तुति का उद्देश्य है यदि श्रोताओं ने इसे पसंद किया तो यही इस उद्देश्य की सफलता भी होगी।
Mon, 06 Apr 2020 - 13min - 1 - संत कबीर रचित "साखी" का सरल भावानुवाद Presentation By MAYA LOHANI (Trailer)Mon, 06 Apr 2020 - 00min
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