Podcasts by Category
- 328 - kusum story written by Munshi PremchandThu, 09 Jun 2022 - 50min
- 327 - Shiv prasad singh;NanhonTue, 07 Jun 2022 - 2h 16min
- 326 - सिकंदर की शपथ कहानी जय शंकर प्रसादTue, 07 Jun 2022 - 10min
- 325 - Gatank se aage story written by Malti JoshiMon, 06 Jun 2022 - 22min
- 324 - Gunda story written by Jai Shankar PrasadWed, 01 Jun 2022 - 30min
- 323 - अपहरण ; मालती जोशीTue, 31 May 2022 - 13min
- 322 - निर्वासित कर दी तुमने मेरी प्रीत story written by Malti JoshiFri, 27 May 2022 - 57min
- 321 - Use buddha ne kaata story written by Madhu kankariaThu, 26 May 2022 - 41min
- 320 - Panchayat story written by जय शंकर प्रसादSun, 22 May 2022 - 07min
- 319 - Aabhusan story written by PremchandThu, 19 May 2022 - 48min
- 318 - Kanyadaan story written by Malti JoshiFri, 13 May 2022 - 29min
- 317 - Dukhiya story written by Jaishankar prasaad
https://youtu.be/fg0CpELnVeo Dukhiya Jaishankar Prasad दुखिया जयशंकर प्रसाद 1 पहाड़ी देहात, जंगल के किनारे के गाँव और बरसात का समय! वह भी ऊषाकाल! बड़ा ही मनोरम दृश्य था। रात की वर्षा से आम के वृक्ष तराबोर थे। अभी पत्तों से पानी ढुलक रहा था। प्रभात के स्पष्ट होने पर भी धुँधले प्रकाश में सड़क के किनारे आम्रवृक्ष के नीचे बालिका कुछ देख रही थी। 'टप' से शब्द हुआ, बालिका उछल पड़ी, गिरा हुआ आम उठाकर अञ्चल में रख लिया। (जो पाकेट की तरह खोंस कर बना हुआ था।) दक्षिण पवन ने अनजान में फल से लदी हुई डालियों से अठखेलियाँ कीं। उसका सञ्चित धन अस्त-व्यस्त हो गया। दो-चार गिर पड़े। बालिका ऊषा की किरणों के समान ही खिल पड़ी। उसका अञ्चल भर उठा। फिर भी आशा में खड़ी रही। व्यर्थ प्रयास जान कर लौटी, और अपनी झोंपड़ी की ओर चल पड़ी। फूस की झोंपड़ी में बैठा हुआ उसका अन्धा बूढ़ा बाप अपनी फूटी हुई चिलम सुलगा रहा था। दुखिया ने आते ही आँचल से सात आमों में से पाँच निकाल कर बाप के हाथ में रख दिये। और स्वयं बरतन माँजने के लिए 'डबरे' की ओर चल पड़ी। बरतनों का विवरण सुनिए, एक फूटी बटुली, एक लोंहदी और लोटा, यही उस दीन परिवार का उपकरण था। डबरे के किनारे छोटी-सी शिला पर अपने फटे हुए वस्त्र सँभाले हुए बैठकर दुखिया ने बरतन मलना आरम्भ किया। 2 अपने पीसे हुए बाजरे के आटे की रोटी पकाकर दुखिया ने बूढ़े बाप को खिलाया और स्वयं बचा हुआ खा-पीकर पास ही के महुए के वृक्ष की फैली जड़ों पर सिर रख कर लेट रही। कुछ गुनगुनाने लगी। दुपहरी ढल गयी। अब दुखिया उठी और खुरपी-जाला लेकर घास छीलने चली। जमींदार के घोड़े के लिए घास वह रोज दे आती थी, कठिन परिश्रम से उसने अपने काम भर घास कर लिया, फिर उसे डबरे में रख कर धोने लगी।
Thu, 12 May 2022 - 06min - 316 - Vasiyat story written by Malti JoshiMon, 09 May 2022 - 19min
- 315 - Snehbandh story written by Malti Joshi
https://youtu.be/juM-OE-jyJE माँ,ये है मीतू -- मैत्रेयी।" ध्रुव ने परिचय करवाया तो देखती ही रह गई। कटे बाल के नीचे एक छोटा-सा चेहरा - वह भी आधा गॉगल्स से ढँका हुआ। नेवी ब्ल्यू रंग की जीन्स के ऊपर चटख पीले रंग का पुलोवर। उस पर बने हुए केबल्स इतने प्यारे कि कोई और होता तो पास बिठाकर पहले डिजाइन उतार लेती - बाकी बातें बाद में होतीं। ''पर ये मीतू थी -- मैत्रेयी।'' अपनी सारी प्रतिक्रिया मन ही में समेटकर मैंने सहज स्वर में कहा, " ड्राइंगरूम में चलकर बैठो तुम लोग, मैं पापा को बुला लाऊँ?" बच्चों के पापा हस्बेमामूल बगिया में ईजी चेयर में लेटे अखबार पढ़ रहे थे। चार पन्नों का अखबार है, लेकिन पढ़ने में सुबह से शाम कर देंगे। अपनी सारी खीज उन पर उँडेलते हुए मैंने कहा, "बहूरानी आई हैं, चलकर मुआयना कर लीजिए।" "बहूरानी!" उन्होंने चौंककर पूछा, फिर चश्मा उतारकर मुझे सीधे देखते हुए बोले, "बहूरानी आई है तो तुम्हारा स्वर इतना तल्ख क्यों हैं?" एक-दो नहीं, साथ रहते पूरे अठ्ठाईस साल हो गए हैं। मेरे स्वर का एक-एक उतार-चढ़ाव उन्हें कंठस्थ हो गया है। फिर भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया और चाय बनाने के बहाने रसोई में चली गई।
Sat, 07 May 2022 - 36min - 314 - वासवदत्ता : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Vasavadatta : Acharya Chatursen Shastri
https://youtu.be/o0PyLSkhxag (वासवदत्ता महाराज उदयन की कला पर आसक्त होकर उनसे नृत्य-संगीत सीखने लगी। दोनों में असीम प्रेम उत्पन्न हो गया। और अन्त में विवाह भी। इस कहानी में उदयन और वासवदत्ता की तत्कालीन भावनाओं का श्रेष्ठ चित्रण है।) एक समय कौशाम्बी के राजकुमार उदयन शिकार खेलने वन में गए। वहां जाकर उन्होंने देखा, एक मदारी एक बहुत बड़े और सून्दर सर्प को ज़बर्दस्ती पकड़े लिए जा रहा है। सर्प उससे छुटने को छटपटा रहा है। राजकुमार उदयन को सर्प पर बड़ी दया आई और उन्होंने पुकारकर मदारी से कहा—अरे हमारे कहने से इस सर्प को छोड़ दे।
Sat, 07 May 2022 - 15min - 313 - Abhilasha story written By Munshi प्रेमचंद
https://youtu.be/pXEWkLAxxMs Abhilasha Munshi Premchand अभिलाषा मुंशी प्रेम चंद कल पड़ोस में बड़ी हलचल मची। एक पानवाला अपनी स्त्री को मार रहा था। वह बेचारी बैठी रो रही थी, पर उस निर्दयी को उस पर लेशमात्र भी दया न आती थी। आखिर स्त्री को भी क्रोध आ गया। उसने खड़े होकर कहा, बस, अब मारोगे, तो ठीक न होगा। आज से मेरा तुझसे कोई संबंध नहीं। मैं भीख माँगूँगी, पर तेरे घर न आऊँगी। यह कहकर उसने अपनी एक पुरानी साड़ी उठाई और घर से निकल पड़ी। पुरुष काठ के उल्लू की तरह खड़ा देखता रहा। स्त्री कुछ दूर चलकर फिर लौटी और दूकान की संदूकची खोलकर कुछ पैसे निकाले।
Fri, 06 May 2022 - 17min - 312 - Eid story written by Padma sachdevThu, 05 May 2022 - 17min
- 311 - Bhari dophari ke andere ; Madhu kankariaWed, 04 May 2022 - 1h 03min
- 310 - Ve Das Minute story written by Madhu KankariaTue, 03 May 2022 - 44min
- 309 - Ek Nav Ke Yatri ;Gulser Khan Shaani
https://youtu.be/6xxWaTuuAIc कीर्ति मारे उत्सुकता के फिर खड़ी हो गई. यह पाँचवी मरतबा था, लेकिन इस बार लगा कि सीटी की आवाज सचमुच दूर से काफी नजदीक होती आ रही है और गाड़ी प्लेटफार्म में प्रवेश करे, इसमें अधिक देर नहीं... घबराहट से चेहरे का पसीना पोंछने के लिए उसने रूमाल टटोला. नहीं था. बेंच पर छूटने की भी कोई संभावना नहीं थी. जल्दी-जल्दी यही होता है, उसने सोचा. वह साड़ी से ही मुँह पोंछना चाहती थी, लेकिन तभी यक-ब-यक सारे प्लेटफार्म में मुसाफिरों तथा सामान लदे कुलियों की भगदड़ मच गई - 'हेलो!' सहसा उसी समय अपने कंधे पर पड़े स्पर्श से कीर्ति चौंकी. चौंकी ही नहीं, धक्क-सी रह गई. क्षण के छोटे से खंड में लगा था कि कहीं रज्जन ही न हो, पर थीं वे मिसेज मित्तल. रॉ-सिल्क की आसमानी साड़ी में अच्छी तरह कसी-कसाई और चुस्त. किसी विदेशी सेंट की बहुत भीनी खुशबू एक क्षण के लिए हवा में ठहर गई थी. 'अरे!' कीर्ति ने जल्दी से हाथ जोड़े, 'कहाँ जा रही हो?' 'भोपाल,' मिसेज मित्तल ने इतने सहज भाव में कहा जैसे उनका भोपाल जाना रोज-रोज की बात हो, 'और तुम!' उनकी आँखें बार-बार कंपार्टमेंट की ओर बढ़ते अपने कुली की ओर लगी हुई थीं. 'रज्जन आ रहा है.' मिसेज मित्तल के नए रूप वाले प्रभाव से मुक्त होने के लिए कीर्ति एक साँस में कह गई. वैसे पिछले कई घंटे से यह वाक्य उसे भीतर-भीतर तंग जरूर कर रहा था लेरकिन इस पल मिसेज मित्तल के अतिरिक्त वह और कोई बात नहीं सोच रही थी. बरसों बाद उन्हें इतना सिंगार-पटार किए कीर्ति देखे और खुद उनकी जबानी भोपाल जाने की बात सुने तो फिर अविश्वास की कहाँ गुंजाइश रह जाती है! 'अच्छा!' रज्जन की बात सुनकर एक पाँव से जमीं और दूसरे से उखड़ती हुई मिसेज मित्तल ने अपनी आँखों को और फैला लिया, पूछ रही थीं, 'इस गाड़ी से?' 'हाँ?'
Mon, 02 May 2022 - 34min - 308 - Tulsi Novel Written By Ashapurna DeviSun, 01 May 2022 - 05min
- 307 - Tulsi Novel Written By AshapurnaDeviSat, 30 Apr 2022 - 08min
- 306 - Tulsi Novel Written By Ashapurna DeviSat, 30 Apr 2022 - 08min
- 305 - Tulsi Novel Written By AshapurnaDeviFri, 29 Apr 2022 - 08min
- 304 - Tulsi Novel Written By AshapurnaDeviFri, 29 Apr 2022 - 08min
- 303 - Tulsi Novel Written By Ashapurna DeviThu, 28 Apr 2022 - 08min
- 302 - Tulsi Novel written By Ashapurna DeviThu, 28 Apr 2022 - 08min
- 301 - तुलसी ;आशापूर्णा देवीWed, 27 Apr 2022 - 08min
- 300 - Tulsi; Ashapurna DeviWed, 27 Apr 2022 - 08min
- 299 - Tulsi novel written by Ashpurna deviTue, 26 Apr 2022 - 09min
- 298 - Tulsi Novel Written By AshapurnaDeviTue, 26 Apr 2022 - 08min
- 297 - Tulsi Novel Written By AshapurnaDeviMon, 25 Apr 2022 - 07min
- 296 - Tulsi Novel written by Ashapurna deviMon, 25 Apr 2022 - 08min
- 295 - Tulsi Novel written By Ashapurna DeviSun, 24 Apr 2022 - 08min
- 294 - Tulsi Novel written by Ashapurna deviSun, 24 Apr 2022 - 08min
- 293 - Tulsi Novel Written By Ashapurna DeviSat, 23 Apr 2022 - 09min
- 292 - Tulsi Novel written By Ashapurna DeviFri, 22 Apr 2022 - 08min
- 291 - Tulsi Novel written By Ashapurna DeviThu, 21 Apr 2022 - 08min
- 290 - Tulsi Novel written By Ashapurna DeviWed, 20 Apr 2022 - 08min
- 289 - Ek Mamuli Se Prem Kahani; Suraj PrakashMon, 11 Apr 2022 - 1h 01min
- 288 - Ek Mamuli Se Prem Kahani ; Suraj Prakesh
https://youtu.be/UcBhHYA_PvY यहां कही जा रही कहानी देश की आज़ादी के पचासवें बरस के दौरान की एक छोटी सी, मामूली-सी प्रेम कहानी है। हो सकता है आपको यह प्रेम कहानी तो क्या, कहानी ही न लगे और आप कहें कि यह सब क्या बकवास है? जीवन के साथ यही तो तकलीफ़ है। जब जीवन की बात की जाये तो कहानी लगती है और जब कहानी सुनायी जाये तो लगता है, इसमें कहानी जैसा तो कुछ भी नहीं। हम यही सब कुछ तो रोज देखते-सुनते रहते हैं। फिर भी यह कहानी कहनी ही है। जीवन या कहानी जो कुछ भी है, यही है। बाकी फ़ैसला आपका। खैर।
Sat, 09 Apr 2022 - 55min - 287 - Bhaktin Story Written By Mahadevi VermaFri, 08 Apr 2022 - 33min
- 286 - Adhuri Tashveer ; Suraj PrakashMon, 04 Apr 2022 - 24min
- 285 - Kal Kahan Jaogi Story Written By Padma SachdevSat, 02 Apr 2022 - 22min
- 284 - Boot Banglow: Ruskin BondFri, 01 Apr 2022 - 08min
- 283 - Gillu Mahadevi Verma
https://youtu.be/vBWZcRJQamA गिल्लू संस्मरण के माध्यम से महादेवी ने जीव - जन्तुओं की समझ और संवेदना को अभिव्यजित किया है । गिल्लू ( गिलहरी ) का लेखिका के प्रत्येक कार्य के प्रति व्यवहार यह अनुभूति कराता है कि मौन अभिव्यक्ति को समझने के लिए मन को एकाकार करना अपरिहार्य है । इसी कारण गिल्लू की सूक्ष्म संवेदना को लेखिका ने अनुभव किया । इस सस्मरण के माध्यम से लेखिका आधुनिकता और भौतिकवाद से संवेदना शून्य मन को द्रवित कर संवेदनशील बनाने में सहायक है ।
Wed, 30 Mar 2022 - 09min - 282 - Khoi Hui dishayein story written by KamleshwerTue, 29 Mar 2022 - 41min
- 281 - Jinn ki Musibat :Ruskin BondSun, 27 Mar 2022 - 11min
- 280 - Kaali Cheel story written by Madhu kankariya
https://youtu.be/v3WuJyYsOtU मधु कांकरिया :: :: :: काली चील :: कहानी कोई स्मृति जिंदगी से बड़ी नहीं होती। और न ही कोई सोच। पर कुछ स्मृतियाँ, कुछ जिन्दा और गर्म अहसास टीस बन कर ताउम्र सालते रहते हैं आपको। चेखव की एक कहानी पढ़ी थी - एक क्लर्क की मौत। जिसमे एक क्लर्क होता है। एक बार वह थिएटर हॉल में कोई नाटक देख रहा होता है कि अचानक उसे जोर से छींक आती है, छींक इतनी तेज होती है कि छींक के कुछ छींटे सामने बैठी मटकी-सी मोटी और गंजी खोपड़ी पर गिर जाते हैं। गंजी खोपड़ी घूम कर, आँखें तरेर कर पीछे देखती है तो क्लर्क के होश उड़ जाते हैं। वह उसका बॉस था। बॉस उससे कुछ नहीं कहता, पर अफसरशाही का आतंक, उसके मांस में ही नहीं हड्डियों तक में धंसा था। वह और अधिक चैन से बैठ नहीं पाता, बार बार उसे लगता कि अनजाने ही सही पर उससे भयंकर अपराध हो गया है। उसकी बदतमीज छींक के गंदे छींटे बॉस की खोपड़ी पर नहीं पड़ने चाहिए थे, जाने बॉस क्या सोचे, कौन जाने उसे नौकरी से ही... डर पंख पसारने लगा, बॉस का आतंक कंधे पर बैठे गिद्ध की तरह हर पल उसे अपनी नुकीली नोक से लहूलुहान करने लगा। अब गई नौकरी! थिएटर ख़त्म किये बिना ही वह घर लौट आता है और सीधे पहुँचता है, बॉस के यहाँ। काफी इंतजार के बाद बॉस घर आता है। जैसे ही बॉस की निगाह उस पर पड़ती है, वह गिड़गिड़ाता है - बॉस, मैंने जानबूझ कर नहीं छींका। मुझे माफ कर दें। बॉस उसे कुछ नहीं कहता है बस एक ठंडी और उदासीन नजर उस पर डाल कर रह जाता है। वह और अधिक डर जाता है। बॉस सचमुच उससे बहुत नाराज है, इसीलिए उसने मेरी बात का जबाब तक नहीं दिया। उसके वजूद का अंश अंश इस डर से ग्रस्त हो जाता है कि उससे दुनिया का सबसे बड़ा अपराध हो गया है। बॉस के आतंक के नुकीले कांटे उसे रह रह कर चुभते हैं, पल भर के लिए भी वह पलक तक झपका नहीं पाता है, खौफ और तनाव की नोक पर टंगा वह आधी रात में ही फिर जा पहुँचता है बॉस के घर - सर, मुझे माफ कर दे, मैंने जान बुझ कर नहीं छींका था, इस बार बॉस सचमुच अपना आपा खो देता है, और चीख कर कहता है - गेट आउट।
Mon, 21 Mar 2022 - 12min - 279 - Beaasra Story Written By Ashapurna DeviSat, 19 Mar 2022 - 31min
- 278 - Aishwarya Story Written By Ashapurna DeviWed, 16 Mar 2022 - 42min
- 277 - Bagh Main Bhoot Story Written By Ruskin BondSun, 13 Mar 2022 - 17min
- 276 - Dhoop ka ek tukda story written by Nirmal Verma
https://youtu.be/cqceYps3aIU लेखक: निर्मल वर्मा क्या मैं इस बेंच पर बैठ सकती हूं? नहीं, आप उठिए नहीं- मेरे लिए यह कोना ही काफ़ी है. आप शायद हैरान होंगे कि मैं दूसरी बेंच पर क्यों नहीं जाती? इतना बड़ा पार्क-चारों तरफ़ ख़ाली बेंचें- मैं आपके पास ही क्यों धंसना चाहती हूं? आप बुरा न मानें, तो एक बात कहूं-जिस बेंच पर आप बैठे हैं, वह मेरी है. जी हां, मैं यहां रोज़ बैठती हूं. नहीं, आप ग़लत न समझें. इस बेंच पर मेरा कोई नाम नहीं लिखा है. भला म्यूनिसिपैलिटी की बेंचों पर नाम कैसा? लोग आते हैं, घड़ी-दो घड़ी बैठते हैं, और फिर चले जाते हैं. किसी को याद भी नहीं रहता कि फलां दिन फलां आदमी यहां बैठा था. उसके जाने के बाद बेंच पहले की तरह ही ख़ाली हो जाती है. जब कुछ देर बाद कोई नया आगंतुक आ कर उस पर बैठता है, तो उसे पता भी नहीं चलता कि उससे पहले वहां कोई स्कूल की बच्ची या अकेली बुढ़िया या नशे में धुत्त जिप्सी बैठा होगा. नहीं जी, नाम वहीं लिखे जाते हैं, जहां आदमी टिक कर रहे-तभी घरों के नाम होते हैं, या फिर क़ब्रों के-हालांकि कभी-कभी मैं सोचती हूं कि क़ब्रों पर नाम भी न रहें, तो भी ख़ास अंतर नहीं पड़ता. कोई जीता-जागता आदमी जान-बूझ कर दूसरे की क़ब्र में घुसना पसंद नहीं करेगा! आप उधर देख रहे हैं-घोड़ा-गाड़ी की तरफ़? नहीं, इसमें हैरानी की कोई बात नहीं. शादी-ब्याह के मौक़ों पर लोग अब भी घोड़ा-गाड़ी इस्तेमाल करते हैं... मैं तो हर रोज़ देखती हूं. इसीलिए मैंने यह बेंच अपने लिए चुनी है. यहां बैठकर आंखें सीधी गिरजे पर जाती हैं- आपको अपनी गर्दन टेढ़ी नहीं करनी पड़ती. बहुत पुराना गिरजा है. इस गिरजे में शादी करवाना बहुत बड़ा गौरव माना जाता है. लोग आठ-दस महीने पहले से अपना नाम दर्ज करवा लेते हैं. वैसे सगाई और शादी के बीच इतना लंबा अंतराल ठीक नहीं. कभी-कभी बीच में मन-मुटाव हो जाता है, और ऐन विवाह के मुहूर्त पर वर-वधू में से कोई भी दिखाई नहीं देता. उन दिनों यह जगह सुनसान पड़ी रहती है. न कोई भीड़ न कोई घोड़ा-गाड़ी. भिखारी भी ख़ाली हाथ लौट जाते हैं. ऐसे ही एक दिन मैंने सामनेवाली बेंच पर एक लड़की को देखा था. अकेली बैठी थी और सूनी आंखों से गिरजे को देख रही थी. पार्क में यही एक मुश्क़िल है. इतने खुले में सब अपने-अपने में बंद बैठे रहते हैं. आप किसी के पास जा कर सांत्वना के दो शब्द भी नहीं कह सकते. आप दूसरों को देखते हैं, दूसरे आपको. शायद इससे भी कोई तसल्ली मिलती होगी. यही कारण है, अकेले कमरे में जब तक़लीफ़ दुश्वार हो जाती है, तो अक्सर लोग बाहर चले आते हैं. सड़कों पर. पब्लिक पार्क में. किसी पब में. वहां आपको कोई तसल्ली न भी दे, तो भी आपका दुख एक जगह से मुड़ कर दूसरी तरफ़ करवट ले लेता है. इससे तक़लीफ़ का बोझ कम नहीं होता; लेकिन आप उसे कुली के सामान की तरह एक कंधे से उठा कर दूसरे कंधे पर रख देते हैं. यह क्या कम राहत है? मैं तो ऐसा ही करती हूं-सुबह से ही अपने कमरे से बाहर निकल आती हूं. नहीं, नहीं-आप ग़लत न समझें-मुझे कोई तक़लीफ़ नहीं. मैं धूप की ख़ातिर यहां आती हूं-आपने देखा होगा, सारे पार्क में सिर्फ़ यही एक बेंच है, जो पेड़ के नीचे नहीं है. इस बेंच पर एक पत्ता भी नहीं झरता-फिर इसका एक बड़ा फ़ायदा यह भी है कि यहां से मैं सीधे गिरजे की तरफ़ देख सकती हूं-लेकिन यह शायद मैं आपसे पहले ही कह चुकी हूं.
Sat, 12 Mar 2022 - 21min - 275 - Ek Din Ka Mehman Story Written By Nirmal Varma
https://youtu.be/hYlFBjErmDo एक दिन का मेहमान उसने अपना सूटकेस दरवाजे के आगे रख दिया। घंटी का बटन दबाया और प्रतीक्षा करने लगा। मकान चुप था। कोई हलचल नहीं - एक क्षण के लिये भ्रम हुआ कि घर में कोई नहीं है और वह खाली मकान के आगे खडा है। उसने रुमाल निकाल कर पसीना पौंछा, अपना एयर बैग सूटकेस पर रख दिया। दोबारा बटन दबाया और दरवाजे से कान सटा कर सुनने लगा, बरामदे के पीछे कोई खुली खिडक़ी हवा में हिचकोले खा रही थी। वह पीछे हटकर ऊपर देखने लगा। वह दुमंजिला मकान था - लेन के अन्य मकानों की तरह - काली छत, अंग्रेजी वी की शक्ल में दोनों तरफ से ढलुआं और बीच में सफेद पत्थर की दीवार, जिसके माथे पर मकान का नम्बर एक काली बिन्दी सा टिमक रहा था। ऊपर की खिडक़ियां बन्द थीं और पर्दे गिरे थे। कहाँ जा सकते हैं इस वक्त? वह मकान के पिछवाडे ग़या - वही लॉन, फेन्स और झाडियां थीं जो उसने दो साल पहले देखी थीं। बीच में विलो अपनी टहनियां झुकाये एक काले बूढे रीछ की तरह ऊंघ रहा था। लेकिन गैराज खुला और खाली पडा था; वे कहीं कार लेकर गये थे, संभव है उन्होंने सारी सुबह उसकी प्रतीक्षा की हो और अब किसी काम से बाहर चले गये हों। लेकिन दरवाजे पर उसके लिये एक चिट तो छोड ही सकते थे! वह दोबारा सामने के दरवाजे पर लौट आया। अगस्त की चुनचुनाती धूप उसकी आंखों पर पड रही थी। सारा शरीर चू रहा था। वह बरामदे में ही अपने सूटकेस पर बैठ गया। अचानक उसे लगा, सडक़ के पार मकानों की खिडक़ियों से कुछ चेहरे बाहर झांक रहे हैं, उसे देख रहे हैं। उसने सुन था, अंग्रेज लोग दूसरों की निजी चिन्ताओं में दखल नहीं देते, लेकिन वह मकान के बाहर बरामदे में बैठा था, जहां प्राइवेसी का कोई मतलब नहीं था; इसलिये वे नि:संकोच, नंगी उनमुक्तता से उसे घूर रहे थे। लेकिन शायद उसके कौतुहल का एक दूसरा कारम था; उस छोटे, अंग्रेजी कस्बाती शहर में लगभग सब एक दूसरे को पहचानते थे और वह न केवल अपनी शक्ल सूरत में बल्कि झूलते झालते हिन्दुस्तानी सूट में काफी अद्भुत प्राणी दिखाई दे रहा होगा। उसकी तुडी मुडी वेशभूषा और गर्द और पसीने में लथपथ चेहरे से कोई यह अनुमान भी नहीं लगा सकता कि अभी तीन दिन पहले फ्रेंकफर्ट की कानफ्रेन्स में उसने पेपर पढा था। मैं एक लुटा - पिटा एशियन इमीग्रेन्ट दिखाई दे रहा होऊंगा।' उसने सोचा और अचानक खडा हो गया - मानो खडा होकर प्रतीक्षा करना ज्यादा आसान हो। इस बार बिना सोचे समझे उसने दरवाजा जोर से खटखटाया और तत्काल हकबका कर पीछे हट गया - हाथ लगते ही दरवाजा खट - से खुल गया। जीने पर पैरों की आवाज सुनाई दी - और दूसरे क्षण वह चौखट पर उसके सामने खडी थी।
Tue, 08 Mar 2022 - 58min - 274 - Bootha Pahadi Ki Hawa story Written By Ruskin BondMon, 07 Mar 2022 - 17min
- 273 - Jaishankar Prasad:chudiwali
https://youtu.be/enTFpZCsurM चूड़ीवाली । जयशंकर प्रसाद। एक वैश्या की प्रेम कहानी,जिसने वैश्या होकर सिर्फ एक ही से प्रेम किया।
Sun, 06 Mar 2022 - 14min - 272 - Hatiyaar Story Written By Ashapurna DeviWed, 02 Mar 2022 - 23min
- 271 - Andhere Mein Fusfushat Story Written By Ruskin BondSun, 27 Feb 2022 - 13min
- 270 - प्रतिशोध : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Pratishodh : Acharya Chatursen Shastri
https://youtu.be/HeysBqlX4Og (वेश्या जैसे पापलिप्त व्यक्तियों के हृदय भी आघात से एकाएक बदल सकते हैं। 'प्रतिशोध' एक ऐसी ही कहानी है ।) मैं रेलगाड़ी द्वारा यात्रा करने के समय अपने सहयोगियों से बहुत कम बोलता हूं। आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य-दर्शन से जब जी उचटता है तो कोई पुस्तक पढ़ने लगता हूं या आंखें मूंदकर सो जाता हूं। इसलिए जब कलकत्ता से दिल्ली के लिए चलने लगा तो अलमारी से कुछ अच्छे उपन्यास और दो-तीन मासिक पत्र हैण्डबेग में रख लिए, ताकि कल सवेरे पटना से आगे की यात्रा प्रारम्भ होने पर साहित्य-चर्चा में ही समय बिता दूंगा। परन्तु मेरी यह भविष्य-चिन्ता बिलकुल बेकार साबित हुई। क्योंकि पटना जंकशन पर गाड़ी के डिब्बे का द्वार खोलकर अन्दर पैर रखते ही पंडित मुरलीधर ने उच्च स्वर से 'स्वागतम् महाभाग' कहने के पश्चात् प्रश्न किया-क्यों, कहां चले?
Fri, 25 Feb 2022 - 33min - 269 - Wah Kali Billi Story Written By Ruskin BondWed, 23 Feb 2022 - 08min
- 268 - Pukhraj Story Written By Ruskin BondMon, 21 Feb 2022 - 11min
- 267 - Willsan ka pul Story Written By Ruskin BondFri, 18 Feb 2022 - 12min
- 266 - Vaham Story Written By Ashapurna DeviThu, 17 Feb 2022 - 26min
- 265 - Jo Nahi Hai Wahi Story Written By Ashapurna DeviThu, 17 Feb 2022 - 34min
- 264 - Rigal par punarmilan story Written by Ruskin BondWed, 16 Feb 2022 - 11min
- 263 - Andere mein Citi ki gunj story Written By Ruskin BondTue, 15 Feb 2022 - 14min
- 262 - Ek Bhootha Cycle story Written By Ruskin BondSat, 12 Feb 2022 - 06min
- 261 - Bandero Ka Pratishodh Story Written By Ruskin BondFri, 11 Feb 2022 - 13min
- 260 - कोमलता की पराकाष्ठा कहानी महात्मा बुद्ध की
https://youtu.be/fxyQAcEwBvs भगवान बुद्ध के जीवन में ऐसी अनंत घटनाएँ मिलती हैं। ... उनके जीवन में कोमलता की पराकाष्ठा थी और उनकी वाणी में अपर्वू माधुर्य था, जो सबको अपनी ओर खींचता था। उनके मुंह से क्रोधभरा शब्द कभी नहीं निकलता था। वह मनुष्य थे, परन्तु मनुष्य की दुर्बलताओं से ऊपर उठ चुके थे।
Fri, 11 Feb 2022 - 05min - 259 - Andhere Mein Ek Chehra: Ruskin Bond अंधेरे में एक चेहरा: रस्किन बॉन्ड
https://youtu.be/ae9p3pBb58Q Andhere Mein Ek Chehra: Ruskin Bond अंधेरे में एक चेहरा: रस्किन बॉन्ड एंग्लो इंडियन शिक्षक मिस्टर ऑलिवर एक बार शिमला हिलस्टेशन के बाहर बने अपने स्कूल के लिए देर रात लौट रहे थे ।मशहूर लेखक रुडयार्ड किपलिंग के समय से भी पहले, यह स्कूल अंग्रेज़ी पब्लिक स्कूलों की तर्ज़ पर चल रहा था और यहाँ पढ़ने वाले बच्चे ब्लेज़र, टोपियों और टाई में सजे अधिकांशतः समृद्ध भारतीय परिवारों के थे । प्रसिद्ध अमरीकी लाइफ़ पत्रिका ने एक बार भारत पर किए गए अपने फीचर में इस स्कूल की तूलना इंग्लैंड स्थित प्रसिद्ध लड़कों के स्कूल इटेन से करते हुए इसे इटेन ऑफ ईस्ट की संज्ञा दी थी। मिस्टर ऑलिवर यहाँ कुछ सालों से पढ़ा रहे थे। अपने सिनेमा घरों और रेस्तरां के साथ शिमला बाज़ार स्कूल से लगभग तीन मील दूर था और कुँवारे मिस्टर ऑलिवर अक्सर शाम को घूमने शहर की ओर निकल पड़ते थे और अंधेरा होने के बाद देवदार के जंगल से गुजरते छोटे रास्ते से स्कूल लौटते थे । तेज़ हवा चलने पर देवदार के पेड़ से निकलती उदास, डरावनी सी आवाज़ों की वजह से अधिकांश लोग उस रास्ते को नहीं इस्तेमाल कर मुख्य रास्ते से ही जाते थे । लेकिन मिस्टर ऑलिवर भीरु या कल्पनाशील नहीं थे । उन्होंने एक टॉर्च रखा हुआ था जिसकी बैटरी ख़त्म होने वाली थी । टॉर्च से निकलता अस्थिर प्रकाश जंगल के सँकरे रास्ते पर पड़ रहा था । जब उसकी अनियमित रोशनी एक लड़के की आकृति पर पड़ी, जो चट्टान पर अकेले बैठा हुआ था, मिस्टर ऑलिवर रुक गए । लड़कों को अंधेरे के बाद बाहर रहने की अनुमति नहीं थी।
Thu, 10 Feb 2022 - 06min - 258 - Lehrein Jahan Tootati Hain story Written By Srivalli Radhika
https://youtu.be/ARgqMBa_WPk Lehrein Jahan Tootati Hain : Srivalli Radhika (Telugu Story) लहरें जहाँ टूटती हैं: श्रीवल्ली राधिका (तेलुगु कहानी) “अर्चना कल ही आ रही है।” भवानी ने बेचैनी के साथ सोचा। उस दिन जागने के बाद उसका इस प्रकार सोचना यह साठवीं बार था। दो वर्ष बाद अपने अभिन्न मित्र से मिलने की बात उसके मन को अशांत कर रही थी। ‘अभिन्न मित्रता!', हाँ, अपनी मित्रता के प्रति उन दोनों की भावना वही है। कालेज में उनकी पहली भेंट, उन दोनों के लिए आज भी एक अविस्मरणीय घटना है।तीन वर्ष का कालेज जीवन, हास्टल, साथ मिलकर देखी गयीं फ़िल्में, पढ़ी हुई पुस्तकें, प्रत्येक घटना, उनकी मित्रता को मज़बूत बनाने में सहायक ही रही। कभी भी... किसी भी परिस्थिति में दोनों की प्रतिक्रियाएँ एक जैसी होती थीं। परिहास में झगड़ने के लिए भी उनके बीच कभी मतभेद नहीं होता था। “आपके जीवन की अद्भुत घटना कौन सी है?” यदि भवानी से कोई पूछ बैठे तो शायद वह एक ही उत्तर देगी - “ठीक मेरी तरह सोचने वाली मित्र का होना।” डिग्री एग्ज़ाम्स समाप्त होने की देरी थी कि अर्चना का विवाह हो गया। वे इंजीनियर थे। विवाह के समय अमेरिका में थे। उनकी कंपनी की ओर से उन्हें किसी ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। स्वयं भी अमेरिका जाते हुए अर्चना ने भवानी को सावधान किया “तुम्हारे माता पिता जो भी रिश्ता ले आएँ, उसके लिए सिर न हिला देना। किसी क्लर्क या टीचर से विवाह करके अपने जीवन को नारकीय न बना लेना।” भवानी, धक-सी हो गयी। क्यों कि उससे एक दिन पहले ही किसी ने एक रिश्ता बताया था। वे सेक्रटेरियट में अपर डिवीजन क्लर्क थे। माता पिता इस रिश्ते पर आस लगाए बैठे थे। एक पल के लिए दुविधा में पड़ कर भवानी ने कहा “मेरा क्या है?” इस प्रकार अमेरिका की यात्रा कर अर्चना एक वर्ष बाद लौटी। उसके पति की नौकरी मद्रास में हो गई थी। सास... ससुर... बड़ा घर, अपने बारे में विस्तार से लिखते हुए उसने भवानी के नाम एक पत्र लिखा। उसके प्रत्युत्तर में भवानी ने लिखा – उसका विवाह लगभग निश्चित हो चुका था। वर का नाम प्रकाश है... विवाह एक महीने की भीतर ही हो सकता है... वह विवाह में अवश्य आये। प्रकाश की नौकरी के बारे में बिलकुल नहीं लिखा। वे एक सरकारी दफ़्तर में अपर डिवीजन क्लर्क थे। यह बात पत्र में लिखने का साहस उसमें नहीं था। अर्चना विवाहोत्सव में आयी। प्रकाश के बारे में उसने विशेष रूप से भवानी से कुछ नहीं पूछा। भवानी ने सोचा कि देख कर उसने सब कुछ समझ लिया होगा। ..
Tue, 08 Feb 2022 - 23min - 257 - Vaishali ki NagarVadhu Novel Written By Acharya chatursen ShastriMon, 07 Feb 2022 - 34min
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